Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ दियहाइं पंच दह वा जोव्वणमिणमो बुहा बिंति । 'डाह्या लोको कहे छे के जोबन मात्र पांचदस दिवसनु ज होय छे'. अहीं एक जाणीतो दोहरो याद आवे छे : सूकां तरुवर पल्लवे, निर्धनिया धन होय, गयुं जोबन आवे नहीं, मूआ न जीवे कोय. 'नीलीराग जैन' 'प्रबंधकोश' गत वृद्धवादि-सिद्धसेन-प्रबंधमां सिद्धसेनना चरित्रवर्णनमां एक स्थळे का छे के सिद्धसेने पूर्वदेशमां कूर्मारपुर जईने त्यांना राजा देवपालने प्रतिबोधीने तेने 'नीलीराग-जैन' बनाव्यो. ___ 'नीलीराग' शब्द मूळे तो वैशिक शास्त्र-एटले के वेश्याशास्त्रनी परिभाषानो शब्द छे. परमार राजा भोजदेवकृत 'शृंगारमंजरी-कथा' 'मां वेश्या प्रत्येना पुरुषना अनुरागना जे मुख्यत्वे चार प्रकार वर्णवाया छे ते छ : नीलीराग, मंजिष्ठाराग, कुसुंभराग अने हरिद्राराग (पृ. १९). गळी, मजीठ, कसुबो अने हळदरथी रंगेलां कपडांनो रंग केटलो टकाउ होय छे तेना उपमान अनुसार आ प्रकार पाड्या छे. नीलीराग वाळा पुरुषनो अनुराग केवो होय छे ते समजावतां वेश्यामाता पोतानी पुत्रीने कहे छे : 'जेम गळीथी रंगेलुं कपडुं अनेक रीते क्षार वगेरे वापरीने धोवा छतां पोतानो रंग तजतुं नथी, ते ज प्रमाणे नीलीराग पुरुष तेना सेंकडो टुकडा करी नखाय तो पण पोतानो गाढ अनुराग तजतो नथी.' (पृ.२६). ___आ अनुसार नीलीराग जैन एटले जेणे एक वार जैन धर्म अंगीकार कर्यो ते पछीथी कदी पण एनो त्याग न करे तेवो जैन. अनुरागना वर्गीकरणनी समग्र परंपराना विवेचन माटे जुओ कल्पना मुनशीनी 'शृंगारमंजरी-कथा'नी भूमिका, प्रकरण पांचमु (अने विशेष पृ. ६५-६७ उपर आपेलो कोठो.) . १. शृंगारमंजरी कथा. संपा. कल्पलता मुनशी. सिंघी जैन ग्रंथमाळा, ग्रंथांक ३०, १९५९. [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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