Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आ सद्य रचेला गीतने 'हुंबडक' कह्युं छे. आ भ्रष्ट रूप छे. हकीकते 'झंबडक' के 'झंबटक' एवं शब्दरूप जोईए. हेमचंद्राचार्यना 'छंदोनुशासन' ना पांचमा अध्यायमा अंते केटलाक अपभ्रंश गीतप्रकारोनी व्याख्या आपी छे. जेम के धवलगीत (कोई उत्तम पुरुषने, धवल वृषभने नामे वर्णवतुं), मंगलगीत (विवाह जेवा मंगळ प्रसंगे गवातुं), फुल्लडगीत ( देवतानी स्तुति तरीके गवातुं ) अने झंबटक (के 'झंबडक' ) - गीत ( राजा वगेरे व्यक्तिने अनुलक्षतुं ) " झंबडकमां चरणदीठ १४ मात्रा होय छे. मतंगकृत 'बृहद्देशी', जगदेकमल्लकृत 'संगीतचूडामणि' वगेरे संगीतशास्त्रना ग्रंथोमां प्रबंधाध्यायमां 'झोंबडक' के 'झोंबड' एवा नामे एक गेय प्रबंध वर्णवेलो छे.
(९)
उद्दाम दंडक छंदनुं एक प्राकृत उदाहरण
'स्वयंभूछंद' ना दंडक विभागना छंदोमां उद्दाम दंडकनुं जे उदाहरण अंगपति नामना कविनुं आपेलुं छे ('स्वयंभूछंद', १, ७२.७) तेनी संपादक वेलणकरे संस्कृत छाया आपी नथी. टिप्पणमां मात्र तेनो तात्पर्यार्थ बताव्यो छे. आ दंडकमां प्रत्येक चरणमां प्रथम छ लघु अने पछी १३ पंचमात्र आवे छे. आ पंचमात्रिक गणनुं स्वरूप गुरु + लघु + गुरु (--) एवा प्रकारनुं छे. उदाहरणनो पाठ अने गुजराती अनुवाद नीचे प्रमाणे छे (पाठनी कोईक अशुद्धि सुधारी लोधी छे).
पह- सम-हिम- डड्डू - देहो दढं को णुमण्णो कुणतो तणेणत्थए
सत्थरे थोर-कंतच्छिओ (?) णेइ अज्जाहरे जामिणि पंथिओ | णवरिअ अवरेण थित्ती णिरुद्धावलावे महं दंडअं लंघ मा मा करंकं इमं फोड मा मुट्ठिअं ढोवणि पूर(?) मा भंझ (गञ्ज ? ) रे ||
१. आ धवलगीत एटले धोळं. मंगळगीत विवाहनां गीत. पंदरमी शताब्दीमां थयेल मतिशेखर कृत 'नेमिनाथ वसंत फुलडां' ('वसंतमास श्रीनेम तणइ फुलडे फागप्रबंध रे')नी अने अढारमी शताब्दीमां थयेला वीरविजयोक्त 'वयरस्वामी फूलडां'नी नोंध 'जैन गूर्जर कविओ' मां लीली छे. नवमी शताब्दीना स्वयंभू कविना छंदोग्रंथ 'स्वयंभूछंद' मां पण धवल, मंगल अने फुल्लडक गीतोनुं लक्षण आप्युं छे.
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