Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 17
________________ ढूंकनोंध वाचक उमास्वातिजीना पद्य विशे अनुसन्धान-३मां "त्रण मूल्यवान पद्यो"-नोंध वांची. तेना संदर्भमां - अमारा द्वारा वर्तमानमां संपादनाधीन 'मोहोन्मूलनवादस्थल' ग्रन्थ (र. सं. १३मा शतकनो उत्तरार्ध, कर्ता आ. अजितदेवसूरिजी)मां पण वा. श्रीउमास्वातिजीचं ते पद्य आ प्रमाणे प्राप्त छ : "रूप्यकञ्चोलकस्थेन शुचिना मधुसर्पिषा ।। नेत्रोन्मीलनं(नकं) कुर्यात् सूरिः स्वर्णशलाकया ॥" वळी, आ पद्य, थोडाक परिवर्तन साथे, 'कल्याणकलिका-भाग २' (कर्ता : पं. कल्याणविजयजी)नी प्रस्तावनामां पण मुद्रित छे. त्यां "शुद्धेन" तथा 'नयनोन्मीलनं' एम पाठ छे. वधुमां, 'मोहोन्मूलनवादस्थल'मां श्री उमास्वातिजी तथा श्री हरिभद्रसूरिजी - ए बन्ने पूज्योए 'प्रतिष्ठाकल्प' रच्या होवानो स्पष्ट उल्लेख मळे छे. उपरांत, ___ "स्थविरावलिकापठितार्यसमुद्राचार्य-निशीथादिच्छेदग्रन्थ-स्थानस्थानसूचितपादलिप्ताचार्यादिकृतप्रतिष्ठाकल्पाः" एवो पाठ पण छे, जेथी आर्य समुद्राचार्ये प्रतिष्ठाकल्प रच्यो होवानी कल्पना पण यथार्थ ठरे छे. प्रतिष्ठाकल्पगत बीजी पण केटलीक गाथाओ 'मोहोन्मूलन' मां मळी आवे छे, ते अत्रे रजू करवानी लालच रोकी शकतो नथी. कुल सात गाथाओ प्राप्त छे. तेमां पहेली गाथा श्री हरिभद्रसूरिरचित प्रतिष्ठाकल्पगत होवानो उल्लेख छे. बाकीनी तमाम - ६ गाथाओ तथा अज्ञातकर्तृक छे. छतां ते पैकी २-३ पद्यो एक कर्तानां छे, अने ४-५-६ पद्यो पण एककर्तृक छे. गाथाओ आ प्रमाणे छे :विहिवयणं च पमाणं सुट्टत्तं जेण ठावणा गुरुणा । . कज्जा जिणबिंबाणं तं च सविसयं हवइ करणे ॥१॥ तो इटुंसे पत्ते हेमसलागाए मंतविहिपुव्वं । जिणनेत्तुम्मीलणयं करेज्ज वनेनिसं (वन्नन्नसं?) तत्थ ॥२॥ [16] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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