Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 20
________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 19 वैदिक भाषा बनाई गयी। तत्पश्चात् यही परिष्कृत और परिमार्जित रूप प्राप्त करके संस्कृत भाषा बनी। ईजिप्ट के उत्खनन में एक दिगम्बर जैन नग्नमूर्ति प्राप्त हुई थी, जिसे रेषफ् नाम से पुकारा जाता था। यह नाम जैनधर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभ का ही है। इसी प्रकार रसिया, ग्रीक, मेक्सिको, कनाडा, थाईलैण्ड, बर्मा, इण्डोनेशिया. श्रीलंका देशों में भी दिगम्बर जैन नग्नमर्तियाँ प्राप्त हई थीं. जिनसे यह स्पष्ट होता है कि जैनधर्म सम्पर्ण विश्व में व्याप्त तथा यह जैनधर्म प्रागैतिहासिक है। पुरातत्त्वों का सूक्ष्मतया परिशीलन करने से विविध देशों के सर्वोत्कृष्ट धार्मिक एवं सांस्कृतिक संकेत परिलक्षित होते हैं। उन परिशीलन में तथा जैनधर्म के अनुसार सिद्धपरमेष्ठी धार्मिक दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट पद पर स्थित हैं। सिद्धशिला या सिद्धलोक ही इनका निवास स्थान है। जैनधर्म के अनुसार सर्व मुक्त जीव सिद्ध परमात्मा इसी पर स्थित रहते हैं। जैनधर्म की अपेक्षा यह सिद्धशिला ही सभी जीवों के लिए सर्वोत्कृष्ट सुख का धाम है। जैनधर्म में सिद्धशिला अर्धचन्द्राकार के रूप में चिह्नित है और उस पर भी जो ज्योति या नक्षत्र उल्लेखित है, वह सिद्धों की उपस्थिति का ही द्योतक है। यह चिह्न अनादिकाल से है। यह आश्चर्य प्रतीत होता है, वास्तव में इस प्रकार के चिह्न प्रस्तुत में विश्व के सर्वधर्मों में किसी न किसी संकेत रूप में हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में अपने-अपने धर्मस्थान तथा राष्ट्रध्वज में चिह्नित है। इससे जैनधर्म की प्राचीनता एवं व्यापकता सिद्ध होती है। इस्लाम धर्म में भी अर्धचन्द्र और उस पर एक बिन्दु है, जिसे वे भी अपने धर्म का एकमात्र विशिष्ट संकेत के रूप में मानते हैं। यही संकेत चीनी देश का कम्यूनिष्टध्वजा में भी प्रतिबिम्बित होता है। इसी प्रकार अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों की ध्वजाओं में भी नक्षत्र का चिह्न चिह्नित है। यह चिह्न नयनों को आनन्द देने वाले चित्रों के रूप में चिह्नित नहीं है, अपितु एक सर्वोत्कृष्टता, सर्वोत्कृष्टपद, शाश्वतसुख, कर्म-संसार के दु:खों से मुक्ति स्थान प्राप्त मुक्तजीवों के संकेत के रूप में चिह्नित है। अतएव प्रायः अधिकतम राष्ट्रों के ध्वजाओं में यही चिह्न चिन्हित

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