Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 21
________________ अनेकान्त 6/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 दिखाई देता है। ऐसे दिव्य, भव्य, मुक्तजीव अर्थात् सिद्ध-निराकार परमात्माओं का द्योतक है। इस कारण से इन नक्षत्र वाले ध्वजा को जमीन पर रखना, अपमानित करना, फाड़ना, ध्वस्त करना, उसको चढ़ाने और उतारने का जो समयप्रज्ञा का ध्यान न रखना अपराध एवं देशद्रोह माना जाता है। कई राष्ट्रों की ध्वजाओं में पूर्णचन्द्र भी है, जो परिपूर्णता अर्थात् कृत्यकृत्यता-सार्थकता, कर्ममुक्त जीवन की परिपूर्णता, स्वतंत्रता, बन्धमुक्तता, उज्वलता, प्रकाशमान, प्रभास्वरूप, प्रभासमान, उदयमानसूर्य, दैदीप्यमाननक्षत्र, इन सभी का प्रतीक है। इस प्रकार एक देश अथवा राष्ट की सर्वांगीण स्वतन्त्रता भौतिकता से पूर्ण नहीं होती, अपितु तात्त्विकता के धरातल पर साधनारूढ होने पर ही साध्यसिद्ध होती है। ये संकेत यह उद्घोषित करते हैं कि शाश्वतसुखमोक्षसुख प्राप्त करना ही मानवता का चरमध्येय है। तात्त्विक स्वतन्त्रता ही सामान्य स्वतंत्रता से श्रेष्ठ है। यह संकेत मानवता की संस्कृति की परिभावना है। इस प्रकार जैनधर्म विश्वव्यापी धर्म था। परन्तु कालान्तर में इसी जैनधर्म से वैदिक परम्परा आदि भिन्न-भिन्न, मत, परम्पराएं उद्भव हए, जिन्हें धर्म मानकर प्रचार-प्रसार किया गया। वही शाखोपशाखाओं के रूप में मतान्तरित हुए। वास्तव में अहिंसा परमो धर्मः ही सभी जीवों का हित करने वाला एक ही धर्म है। अन्यमत जीवों का हित करने में समर्थ नहीं है। अतएव जैनशासन की त्रैलोक्यहितकर्तणां जिनानामेव शासनम् के रूप में उद्घोषणा है। संदर्भ : 1. इन्ट्रोडक्शन टु, अर्धमागधी- प्रो. ए. एम.घाटगे, पूना 2. अर्धमागधी- डॉ. ए.एन. उपाध्ये, प्रसारांग, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर 3. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान- डॉ. हीरालाल जैन, जयपुर कन्नड अनु. - मिर्जी अण्णाराय, कर्नाटक 4. कान्फुयेन्स ऑफ आफोसिट्स- बैरिस्टर चम्पतराय जैन, कलकत्ता। 5. प्राकृत साहित्य का इतिहास- डॉ. जगदीश चन्द्र जैन 6. सिद्ध-हैम-शब्दानुशासन- प्रो. पी. एल. वैद्य, बी.ओ.आर.आय. मुम्बई 1970

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