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अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 दैत्य, सर्प, हाथी, ग्रह, चन्द्र और सूर्य की चेष्टा को जानते हैं, सुख-दुःख, जय-पराजय और जीवन-मरण को जानते हैं, वे भी स्त्रियों के चारित्र को नहीं जानते हैं। जहाज समुद्र के पार पहुंचते हैं तथा नक्षत्र आकाश के पार पहुँचते हैं, परन्तु स्त्रियों के दुश्चरित्र के पार कोई भी नहीं पहुँचते हैं।
कितने ही मनुष्य वन में स्थित व्याघ्र को, आकाश में स्थित पक्षी को तथा नदी व तालाब में स्थित मछली को ग्रहण किया करते हैं, परन्तु स्त्रियों के चंचल मन को कोई भी ग्रहण कर नहीं सकता है।
___इस संसार में कोई मणि, मंत्र, औषध और अंजन तथा ऐसी वे विद्याएँ भी नहीं जिनके आश्रय से यहाँ स्त्रियाँ उत्तम, अभिप्राय को प्राप्त करेंगी। जब तक वे पुरुष को अपने में अनुरक्त नहीं जानती तब तक वे पुरुष के अनुकूल वर्तन के द्वारा तथा प्रशंसा परक वचनों के द्वारा पुरुष के मन को उसी प्रकार आकृष्ट करती है जैसे माता बालक के मन को आकृष्ट करती है। बनावटी हास्य वचनों से, बनावटी रुदन से, झूठी शपथों से कपटी स्त्रियाँ पुरुष के चंचल चित्त को हरती हैं।"
स्वभाव से कुटिल स्त्रियाँ गुणों में दोषों को देखा करती हैं, प्रिय के विषय में वे दष्टता पर्ण व्यवहार करती हैं तथा उनका आदर किए जाने पर, वे क्रोध को प्राप्त होती हैं। स्त्रियाँ सब ही जनों के ठगने में चतुर होती हैं। वे प्रत्यक्ष में लाखों अयोग्य कार्यों को करके भी उन्हें संदेह से रहित होकर आच्छादित किया करती है। हमारे दोष कभी प्रकट हो सकते हैं, ऐसा उन्हें संदेह भी नहीं रहता है।2 कृतघ्न -
थोड़ा सा भी अपराध होने पर स्त्री सैकड़ों उपकारों को भुलाकर अपना, पति का, कुल का और धन का नाश कर देती है। सत्पुरुषों के भी मन में घर को बांधने वाली-स्थान को प्राप्त करने वाली स्त्री, निर्भय होकर समस्त संसार से पूजे जाने योग्य गुण समूह को उजाड़ देती है। नष्ट कर देती है। परपुरुष में जिसका चित्त लग जाता है, वह स्त्री अपने पति के सम्मान, उपकार, कुल, रूप, यौवन आदि गुण, स्नेह, सुखपूर्वक लालन-पालन और मधुर वचनों का भी विचार नहीं करती तथा व्याघ्री की तरह उनके हृदय को विदारित करती है। वे शत्रु के समान सदा पुरुष के पाप का ही चिन्तन