Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 58
________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 सम्बन्ध मात्र है अथवा उनमें और भी कोई सम्बन्ध की अविनाभाविता है? निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धों की स्वीकृति मात्र क्या यहाँ समाधानकारक है? निमित्त एवं नैमित्तिक पदार्थों परिणामों की योग्यता का मूल्यांकन क्या यहाँ उपेक्षणीय माना जा सकता है? अथवा योग्यता के बिना किसी को भी कर्म बंध में निमित्त या नैमित्तिक स्वीकारना हमें संभव है क्या? क्या निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध को कर्त्ताकर्म के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? निमित्त कर्ता है और नैमित्तिक कर्म है- यह प्रतिपत्ति हमें क्या सूचित करती है? क्या इसे सर्वथा-शाश्वत सत्य माना जा सकता हैनिमित्त नैमित्तिक संबन्धों की अपरिहार्यता क्यों है और क्यों हमें उस परिधि में कर्त्ता कर्म विषयक व्यवहार स्वीकार्य है? क्या निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध वस्तुमूलक योग्यता को नकारता है? क्या निमित्त वस्तु नैमित्तिक वस्तु की योग्यता को बदल सकती है या नैमित्तिक वस्तु की योग्यता उससे प्रभावित होकर स्वयं क्रियान्वित होती है? जैनकर्मसिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में कर्मों का उदय निमित्त एवं जीवगत तादृश परिणाम नैमित्तिक हैं तो जीवगत परिणामों को निमित्त एवं कर्मबन्ध को नैमित्तिक मानना भी असंभव नहीं है। इस प्रकार कर्मबन्धन में पड़े संसारी जीवों के लिये कर्म और जीव परस्पर निमित्त नैमित्तिक दोनों रूपों में स्वीकार्य हो जाते हैं? कर्म निमित्त है तो नैमित्तिक भी है निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धों की परिधि में जीवों के संसरण एवं उनकी समस्त सांसारिक अवस्थाओं को यथार्थ के धरातल पर समझने-समझाने में जैनकर्मसिद्धान्त की महती भूमिका है। - जैनकर्मसिद्धान्त से ज्ञात हो जाता है कि प्रत्येक जीव का संसरण चक्र अनादि काल से गतिशील है। जीव और कर्म ही अनादि हैं, जिनका परस्पर निमित्त नैमित्तकपना जीवन की विभाव परिणतियों तथा कर्मों के बंधोदय आदि के रूप में सादि सान्त है। कोई भी ऐसा कर्म नहीं है जो अनादि से जीव के साथ बंधा हो परन्तु सतत परम्परा के चलते रहने से जीव को कर्मबंध अनादि से माना जाता है। जगत् में मौजूद प्राणियों के जीवन व्यवहारों और नानाविध संयोग वियोगों की तथ्यात्मक जानकारी उनके कार्मिक परिवेश के बिना असंभव है। संसार में जीवों की हर भूमिका कर्माधारित क्यों है? चतुर्गति

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