Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ अनेकान्त 6/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 परिमित जीवों के जन्ममरण रूप भवसंक्रमण में कर्मों की भूमिका क्या है? क्या कारण है कि पराधीन होकर जीव प्राप्त पर्याय में ही तन्मय हो जाता है और अपना जीवन केवल मानसिक भौतिक या दैहिक सुख दु:खों की वैतरणी में खपा देता है तथा इन्द्रिदयज्ञान और इन्द्रियजसुख के लिये ही अपने सम्पूर्ण जीवन को भोगाभिलाषा रूपी अग्नि में होमते रहता है। इसका कारण कर्मबन्धन है तो वह क्यों होता है और किस रूप में जाना जाये। द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म में परस्पर सम्बन्ध की अवधारणा क्या है? इनमें जीव के पुरुषार्थ की भूमिका कहाँ और कैसी है? जीव को कर्मबन्धन क्यों होता है तथा जीव उससे मुक्त कब और कैसे हो सकता है? कर्मबन्धन से तथा तज्जन्य जागतिक प्रपञ्च से बचने का उपाय क्या है? क्या वह उपाय कर पाना हमारे लिये संभव है? यदि हाँ तो तद्विषयक पुरुषार्थ का औचित्य क्या है? जीव के लिये कर्म का बंध और मोक्ष क्यों, कैसे और कहाँ होते हैं? क्या ये दोनों परिणतियाँ जीव में पराधीन परिणतियाँ मात्र हैं? तथा जीव के लिये उनका औचित्य क्या है? क्या वह केवल कर्मों के संयोग वियोग तक ही सीमित है? अथवा उनके होने में या होते रहने में कोई और भी अपरिहार्यतायें मानी गयी हैं। क्या कर्मों से जीव की या जीव से कर्मों की स्वतंत्रता का हनन होता है? क्या दोनों ही अपनी अपनी स्वतंत्र सत्ता के द्योतक नहीं हैं? क्या उनमें परस्पर किसी की सत्ता को बदलने-परिणमाने की अर्हता है? क्या कारण है कि स्वतंत्र जीव और कार्मण वर्गणा रूप पुद्गल कभी भी अपनी-अपनी परित्याग नहीं करते हैं और न ही परस्पर एक दूसरे की सत्ता का परित्याग नहीं करते हैं और न ही परस्पर एक दूसरे की सत्ता का आहरण-अपहरण करते हैं। जीव और पुद्गल कर्मों में परस्पर अत्यन्ताभाव है यह क्यों प्ररूपित किया गया है? जीव और पुद्गल कर्मों में परस्पर निमित्तनैमित्तिक सम्बन्धों की अपरिहार्यता को जानने में उनकी योग्यता को ही महत्व क्यों दिया जाता है। जो जीव परिणाम कर्मबंध में निमित्त है वही कर्मोदय के होने पर कर्मबंध के होने से नैमित्तिक भी हैं क्या यह योग्यता का अनुसरण नहीं है? इत्यादि अनेकानेक जिज्ञासाओं का समाधान करने की क्षमता जैनकर्मसिद्धान्त में दृष्टिगोचर होती है। जीवनमूल्यों की विविधप्रस्थापनाओं

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96