Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 44
________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 करती हैं। स्वच्छन्दी 43 वे स्वच्छन्द प्रवृत्ति की इच्छा से बिना किसी अपराध के पति, पुत्र, श्वसुर अथवा पिता का घात कर देती है। 4 स्वच्छंदता की इच्छा करने वाली स्त्रियाँ मूर्खता से अभीष्ट फल के देने वाले कुल रूप कल्पवृक्ष को नष्ट कर डालती है। स्त्री स्वच्छंदता को प्राप्त होकर अकेली ही मनुष्य के जिस अनर्थ को करती है, उसे क्रोध को प्राप्त हुए सिंह, व्याघ्र, सर्प, अग्नि और राजा भी नहीं करते हैं | 35 पतिहन्त्री - स्त्रियाँ कामदेव के समान सुन्दर, पराक्रमी, कुलीन, दान सम्मान, सम्भोग, नमन और आदर-सत्कार के द्वारा निरन्तर ही उनकी सेवा में तत्पर और लोक के स्वामी राजा जैसे सुयोग्य पति को शीघ्र ही मारकर दासी पुत्रों के साथ रमण किया करती है। सब स्त्रियाँ कामदेव की गोद को भी पाकर अर्थात् कामदेव के समान सुन्दर पति को भी प्राप्त कर स्वभाव से अन्य पुरुष की इच्छा किया करती हैं। जैसे अयोध्या नगरी का स्वामी देवरति राज्य सुख से वंचित हो गया। उसकी रता नाम की रानी ने गान विद्या में प्रवीण एक लगड़े व्यक्ति पर आसक्त होकर अपने पति को नदी में फेंक दिया। 36 हृदयकलुषा वर्षाकाल की नदियों की तरह स्त्रियों का हृदय भी नित्य कलुषित रहता है। चोर की तरह वे भी अपना कार्य करने में तत्पर रहती हैं और उनकी बुद्धि मनुष्य का धन हरने में रहती है। 7 स्त्रियाँ अतिशय निर्दय होकर पति, पुत्र और पिता को भी संदेह की तराजू पर क्षणभर आरोपित किया करती है। अभिप्राय यह है कि स्त्रियाँ अपने पति, पुत्र और पिता को भी संदेह की दृष्टि से देखने लगती है । 38 कुलीन महिलाएँ प्रायः पति को ही देवता मानकर अपने प्रिय को छोड़ देती हैं, किन्तु कुलीन नारियों का भी मनुष्य तभी तक प्रिय रहता है। जब वह धनहीन, वृद्ध, रोगी, दुर्बल और स्थान से रहित नहीं होता है। स्त्री को इन अवस्थाओं को प्राप्त मनुष्य को रस निकाली हुई ईख की तरह अथवा गन्धरहित माला की तरह अप्रिय होता है। उसे कुलीन स्त्रियाँ भी

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