Book Title: Anekant 2016 07
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 45
________________ 44 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 शीघ्र छोड़ दिया करती हैं। फिर नीच स्त्रियों का तो कहना ही क्या है ? मत्त हाथी की तरह स्त्रियाँ मद से उन्मत्त रहती हैं। वे अपने दास में और पति में कुछ भी अन्तर नहीं करती। यह मेरा मान्य कुलीन पति है और यह दासी का पुत्र नीच हैं, मैं इसकी स्वामिनी हूँ, यह भेद नहीं करती। जब वे जानती हैं कि हमारे में अनुरक्त पुरुष के पास चाम, हड्डी और माँस ही शेष है, तो उसे वंशी में लगे माँस के लोभ से फँसे मत्स्य की तरह संताप देकर मार डालती है। धार्मिक क्रियाओं से वंचित काम से अंधी हुई स्त्रियाँ न दान को देखती हैं, न पूजन, न व्रत, न शील आदि पर विचार करती हैं, न सुजनता का विवेक रखती हैं, न प्रतिष्ठा का विचार करती हैं, न अपनी व अपने कुल की महानता को देखती हैं, और न अपने व दूसरे के हित का भी ध्यान रखती हैं। गौरव प्रतिष्ठा और आराधनीय उत्कृष्ट गुणों में स्थापित की गई भी स्त्रियाँ स्वयं दोष रूप कीचड़ में निमग्न हुआ करती है। स्त्रियाँ अथाह क्रोध के वेग से अंधी होकर उस कार्य को करती हैं कि जिससे यह लोक शीघ्र ही दु:ख रूप समुद्र में पड़ जाता है। उत्तम पुरुषों का मान मर्दन जिन अतिशय बलशाली पुरुषों ने शत्रु के हाथी के दांत के अग्र भाग पर चढ़ कर वीर लक्ष्मी को स्थिर कर दिया है, वे भी स्त्रियों के द्वारा खण्डित किए जा चुके हैं। जो मनुष्य सुमेरु के समान निष्कम्प और समुद्र के समान अतिशय गम्भीर होते हैं, उन्हें भी विचलित करके स्त्रियाँ क्षणभर के भीतर तिरस्कार को प्राप्त कराती है। जो स्त्री तिरस्कार रूप फल को उत्पन्न करने के लिए बेल के समान है, दुःखरूप वनाग्नि की पंक्ति है, विषयभोग रूप समुद्र की बेला (किनारा) है, नरक रूप प्रासाद का प्रवेश द्वार है, काम रूप सर्प की दाढ़ के समान है तथा मोह व आलस्य की माता है, उसको हे भव्य! तू परिणामों की स्थिरता का आश्रय लेकर छोड़ दे। शीलवान स्त्रियाँ संसार में सदैव दुश्चरित्रधारी स्त्रियाँ ही विद्यमान नहीं हैं। उन स्त्रियों में से भी कुछ स्त्रियाँ ऐसी हैं, जो अपने शीलधर्म के प्रभाव से जगत् को

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