Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 5
________________ कर्नाटक में जैन धर्म वे महामस्तकाभिषेक में सम्मिलित होते रहे। मैसूर नरेशों की गोम्मटेश्वर-भक्ति का विशेष परिओडेयर वश से सम्बन्धित सबसे प्राचीन शिलालेख चय अनेक पुस्तकों में उपलब्ध है। १६३४ ई. का है। उममे उल्लेख है कि जिन महाजनों ने टीप: श्रवणबेलगोल की जमीन-सम्पत्ति गिरवी रख ली थी, उसे हैदर अली और टीपू सुल्तान ने भी अपनी राजधानी तत्कालीन मैसरनरेश चामराज ओडेयर ने स्वयं कर्ज चुका श्रीरंगपटन से राज किया। उन्होंने श्रवणबेलगोल के कर छुड़ाने की घोषणा की। इस पर महाजनो ने भूमि मन्दिरों और गोम्मटेश्वर की मूर्ति को हानि नहीं पहुंचाई। आदि कर्ज से स्वय मुक्त कर दी। इस पर नरेश ने शिला. टीपू सुलतान ने तो गोम्मटेश्वर को नमन भी किया लेख लिखवाया कि जो कोई भी इस क्षेत्र को जमीन गिरवी । आदि रखने का कार्य करेगा वह महापाप का भागी होगा स्वतन्त्रता प्राप्ति क बाद : और समाज से बहिष्कृत माना जायगा । मैसूर के ओडेयर वंश की सत्ता समाप्त होकर प्रजा तान्त्रिक कर्नाटक सरकार बनी। उसके मुख्यमन्त्रियों ___ 'मुनिवंशाम्युदय' नामक एक कन्नड़ काव्य मे वर्णन है कि मंसूरनरेश चामराज श्रवणबेलगोल पधारे और सर्वश्री निजलिंगप्पा, देवराज अर्स और श्री गुण्डराव ने उन्होने गोम्मटेश्वर के दर्शन किए। उन्होने चामुण्ड राय गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक आदि मे जो सहर्ष सह. से सम्बन्धित लेख पढवाए, वे सिद्धर बसदि गए और योग दिया वह स्मरणीय है । एक हजार वर्ष पूर्व होने पर उन्होंने कर्नाटक के जैनाचार्यों की परम्परागत वंशावली तो भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाधी ने भी सुनी और पूछा कि आधुनिक कहां हैं। जब उन्होने यह महामस्तकाभिषेक के अवसर पर गोमटेश के प्रति अपने जाना कि चन्न रायपट्टन के सामन्त के अत्याचारो के कारण श्रद्धा-सुमन अर्पित किए थे। गोम्मटेम्वर की पूजा बन्द कर गुरु भल्लातकीपुर (प्राज भालातकीपर (प्राज- वर्तमान में भारत सरकार का पुरातत्त्व विभाग और कल के गेरुसोप्पे) चले गए है तो उन्होंने सम्मानपूर्वक गुरु कर्नाटक सरकार का पुरातत्व विभाग, धारवाड़ विश्व(भट्टारक जी) को श्रवणबेलगोल बुलवाने का प्रबन्ध किया विद्यालय कर्नाटक के जन स्मारकों मे वैज्ञानिक ढग से और दान देने का वचन दिया। उन्होंने किया भी वैसा ही सहर्ष सक्रिय सहयोग प्रदान कर रहे है। कुछ स्मारक, और चन्न रायपट्टन के सामन्त को हराकर पदच्युत कर प्राचीन मूर्तियां, शिलालेख आदि तो इन्ही के कारण दिया। सुरक्षित रह गए हैं। ये सभी संस्थान जैन समाज की शिलालेख है कि चिक्कदेवराज ओडेयर ने कल्याणी विपुलप्रशंसा के पात्र है। सरोवर का निर्माण या जीर्णोद्धार करवाया था तथा कर्नाटक के छोटे राजवंश : उसका परकोटा वनवाया था। उन्होने १६७४ ई. मे जैन कर्नाटक में पृथक राजा या सामन्त आदि के रूप मे साधुओ के आहार के लिए भट्टारक जी को मदने नामक और भी अनेक धर्मानुयायी वश रहे हैं जो थे तो छोटे गांव भी दान मे दिया था। किन्तु धार्मिक प्रभाव के उनके कार्य बहुत बड़े घे (जैसे उपर्युक्त नरेश के उत्तराधिकारी कृष्णराज ओडेयर कारकल का राजवश, हुमचा का सान्तर राजकुल आदि)। ने श्रवणबेलगोल के भट्टारक जी को अनेक सनदे दी थी इन।। भी सक्षिप्त परिचय यहां दिया जा रहा है। जो उनके वंशजो द्वारा मान्य की गयी। उनमें ३३ मदिरों सेन्द्रक वंश: के व्यय एवं जीर्णोद्धार के लिए तीन गांव दान में दिए जाने का उल्लेख है। नागरखण्ड या वनवामि के एक भाग पर शासन करने मैसूरनरेश कृष्णराज ओडेयर चतुर्थ भी श्रवणबेलगोल वाले इस वश का बहुत कम परिचय शिलालेखों से मिलता आए थे और उन्होने नवम्बर १९०० ई. मे अपने आगमन है। ये पहले कदम्ब शासको के और बाद मे चालयों के के उपलक्ष्य मे अपना नाम चन्द्रगिरि पर खुदवा दिया था सामन्त हो गए। जैन धर्मपालक इस वश के सामन्त भानु. जो अभी भी अंकित है। शक्ति राजा ने कदम्बराज हरिवर्मा से जिनमन्दिर की

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