Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 7
________________ सम्पादकीय 'अनेकान्त' का विशेषाक प्रस्तुत करते हुए हमें जहाँ बड़ी तीव्रता से चलता है। हमने अनेक महानुभावो को हर्ष का अनुभव हो रहा है वहाँ गहरे विषाद का भी। पत्र लिखे। हमे यह कहते हए परम प्रसन्नता होती है मई इसलिए कि पाठकों को अनेक विद्वान लेखकों की कि बहुत से विद्वान लेखकों ने अपनी-अपनी रचनाएँ रचनाएं इस प्रक में पढ़ने को मिलेंगी। विषाद इसलिए भेजी, लेकिन कुछ लोग अपनी व्यस्तता के कारण हमारे कि इस विशेषांक को हम एक ऐसे विशेष व्यक्ति की प्रमुरोध को स्वीकार करके भी लेख नही भेज सके। स्मति में प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हे प्रभी बहुत समय जिन्होने रचनाएँ भेजी है, उनके तो हम आभारी है ही, तक जीना था और अनेक लोकोपयोगी कार्य करने थे। लेकिन जो नही भेज सके, उनको भी हम धन्यवाद दिये विविध क्षेत्रों में उन्होंने जो सेवाएँ की, उन पर विस्तार बिना नहीं रह सकते। इस अनुष्ठान में सभी हमारे साथ से विभिन्न लेखो मे प्रकाश डाला गया है । यह निविवाद थे। इससे स्पष्ट है कि बाब छोटेलालजी के प्रति सभी सत्य है कि बाबू छोटेलालजी व्यक्ति नही, एक संस्था थे व्यक्तियों के हृदय मे बड़ा स्नेह और प्रादर था। और अपने जीवन-काल मे उन्होने इतना कार्य किया, विधिवत रूप से विभिन्न विभागों का विभाजन न जितना एक विशाल संस्था भी नही कर सकती थी। कर पाने पर भी हमने इस प्रक में अधिक-से-अधिक अनेकान्त' तथा वीर-सेवा-मन्दिर के साथ छोटेलाल- विचार-प्रेरक एव ज्ञान-वर्द्धक सामग्री देने का प्रयत्न किया जी का कितना गहरा सबध था, यह बताने की मावश्य- है। इसमे बाबू छोटेलालजी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व कता नही है। वस्तुत. अनेकान्त मौर वीर-सेवा-मन्दिर पर जहाँ ममस्पर्शी सस्मरण पढने को मिलेगे. वहा जैन छोटेलालजी के पर्यायवाची बन गये थे। अपने जीवन के दर्शन, साहित्य, कला तथा पुरातत्व पर भी सार गभित अतिम क्षण तक उन्हे इन दोनो की चिन्ता रही। उनकी रचनाएँ पाठको को प्राप्त होगी। इच्छा थी कि 'भनेकान्त' भारत की प्रमुख शोध-पत्रिकाम्रो हमे इस बात का बडा दुःख है कि स्थानाभाव के कारण कई लेखो का चाहते हए भी हम उपयोग नहीं मे से एक हो और 'वीर-सेवा-मन्दिर' सक्रिय रूप में कर सके। उनमे से चुने हुए लेखो को हम 'अनेकान्त' के समाज और राष्ट्र की सेवा करे। लेकिन प्राय. देखने । आगामी अंको मे निकालने का प्रयत्न करेगे। मे पाता है कि मनुष्य सोचता कुछ है, होता कुछ है। बाबू छोटेलालजी के स्वप्न पूरे नही हो सके और अब विशेषाक कैसा बन पडा है, इसका निर्णय तो स्वय उनको पुरे करने का दायित्व उन महानुभावो पर है, जो पाठक ही करेंगे । हम इतना ही निवेदन कर देना चाहते छोटेलालजी के स्नेहभाजन थे और जो इन सस्थाप्रो के है कि इसकी सामग्री के सकलन तथा प्रकाशन मे हमने साथ अभिन्न रूप में आज भी जुड़े हुए है। यथासामर्थ्य परिश्रम तथा ईमानदारी से काम लिया है। जिस समय 'अनेकान्त' का विशेषाक निकलने की याद इसमे कोई अच्छाई है तो उसका श्रेय वि कल्पना की गई थी, यह सोचा गया था कि इसके कुछ लखका को है पीर यदि इसम कोई त्रुटिया या कमिया पृष्ठो में छोटेलालजी के संस्मरण रहें और कुछ में उनके है तो उनके लिए हमारी जिम्मेदारी है। कृतित्व पर प्रकाश डाला जाय, लेकिन अधिकाश पष्ठो में हमे विश्वास है कि पाठक इस विशेषाक को सुपाठ्य साहित्य, जैन दर्शन, जैन पुरातत्व, जैन कला तथा जैन तथा सग्रहणीय पायगे । सस्कृति पर विद्वानों के सारगभित लेख रहे। विशेषाक मे २०० पृष्ठसे ऊपर सामग्री दी गई है मौर हमे खेद है कि हमारी यह योजना पूरी नहीं हो मार्ट पेपर पर दो दर्जन से भी अधिक चित्र दिये गये हैं। सकी। प्राज का युग व्यस्तता का युग है। घटना-चक -सम्पादक

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