Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 15
________________ अमरसेनचरिउ ___३. लिखते समय वर्ण छूट जाने पर छूटे हुए वर्ण के स्थान के ऊपरी अंश में काक-पाद का चिह्न अंकित किया गया है तथा वह वर्ण पंक्तिसंख्या पूर्वक काक-पाद चिह्न के पश्चात् ऊपर-नोचे कहीं भी लिखा गया है । यदि वह ऊपर लिखा गया है तो उसमें पंक्ति संख्या ऊपर से लेकर दी गयी है और यदि नीचे लिखा गया है तो पंक्ति संख्या नीचे की पंक्तियों की दी गयी है ( १।९।१६, १।११।२, १।१४।१४, ३।१०८, ३।१२।१२, ७७८)। ४. आ स्वर की मात्रा दर्शाने के लिए वर्ण के ऊपर एक खड़ी रेखा दी गयी है ( १।१४।७, २।४।८, ४।६।२४, ४।८।२०) । ५. यमक का कोई चरण छूट जाने पर लिपिकार ने जहाँ छूटे चरण का आरम्भ होना था वहाँ ऊपर-नोवे काकपाद चिह्न दर्शाये हैं तथा वह चरण हाँसिये में धन का चिह्न देकर पंक्ति संख्या पूर्वक लिखा है ( ३।१०।७)। ६. लिपिबद्ध करने में रह गये वर्ण काक-पाद चिह्न देकर या बिना चिह्न दिये ही यथास्थान ऊपरी भाग में लिखे गये हैं ( ४।१।३, ४।१।१२)। ७. वर्ण को अपठनीय बताने के लिए वर्ण के ऊपर अंग्रेजो वर्णमाला में छोटे एन वर्ण जैसी आकृति का प्रयोग किया गया है ( १।१०।८, १।१२।११ )। ८. वर्गों का क्रम भंग हो जाने पर उन्हें अनुक्रम में पढ़ने के लिए वर्गों के ऊपर क्रम संख्या दी गयी है ( १।१५।९, ३।६, ३७, ४।३।५, ४।४।८)। ____९. आ स्वर की मात्रा की अनावश्यकता दर्शाने के लिए मात्रा के नीचे काक-पाद चिह्न प्रयुक्त हुआ है ( ४।६।१८ )। पाण्डुलिपि की लेखन-पद्धति १. यमक की प्रथम पंक्ति पूर्ण होने पर विराम सुचक एक खड़ी रेखा दी गयी है। २. छन्द नामों तथा धत्ता-क्रमांकों की दोनों ओर दो-दो खडी रेखाओं का व्यवहार हुआ है। ३. संस्कृत-श्लोकों के पूर्ण होने पर छ वर्ण लिखा गया है। इस वर्ण के आगे-पीछे भी दो-दो खड़ी रेखाएँ दी गयी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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