Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 14
________________ मैं अध्येता जीवन-जगत का बड़ी विचित्रताओं से भरा है यह जगत । हमने अब तक केवल रामायण ही पढ़ी है, इस विराट जगत को नहीं; हमने केवल गीता और महाभारत को पढ़ा है, जीवन को नहीं; हमने केवल राम-कृष्ण-महावीर-बुद्ध से प्रेम किया है, अपने आप से नहीं । कितने ताज्जुब की बात है कि रामायण को सौ दफा पढ़ने के बावजूद हम राम न हो पाए और गीता का नियमित पाठ करने के बावजूद हमारे जीवन से उसके माधुर्य का, उसके सत्य और योग का गीत न फूट गया । केवल महाभारत को पढ़ लेने भर से क्या होगा, जब तक हमारी नपुंसक बन चुकी चेतना में 'भारत' का भाव न जगे, आत्म-विश्वास का सिंहत्व न भर उठे, जीवन-जगत का बोध न हो जाए। हम पढ़ें इस जगत को, जगत में हो रहे परिवर्तनों को देखें । आप पाएंगे रामायण अतीत की कृति नहीं, वरन यह जगत हर पल, हर क्षण रामायण और महाभारत की ही आवृत्ति है । कोई अगर मुझसे पूछे कि आपका धर्म कौन-सा है और शास्त्र कौन-सा, तो मेरा सीधा-सा जवाब होगा-जो धर्म मनुष्य का होता है, वही मेरा धर्म है और जिस प्रकृति ने इतने विचित्र और अद्भुत जगत की रचना की है, यह जगत और जगत पर पल्लवित होने वाला जीवन ही मेरा शास्त्र है । किताबों के नाम पर मैंने ढेरों किताबें पढ़ी हैं, न केवल पढ़ी हैं, वरन ढेरों ही मैंने कही और लिखी हैं, पर कोई अगर कहे कि मुझे सबसे सुंदर किताब कौन-सी लगी है तो मैं कहूँगा कि इस जगत से बढ़कर कोई श्रेष्ठ किताब नहीं है और जीवन से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है । मैं पाठक हूँ, अध्येता हूँ जीवन का, जगत का; मैं द्रष्टा हूँ जीवन-जगत की अपने सामने होने वाली हर इहलीला का। बुद्धि की खाद भर हैं किताबें ___ मात्र किताबों को पढ़ने का काम उनका है जो बुद्धिमान हैं । किताबें बुद्धि की खाद हैं, किताबों के द्वारा बुद्धि का सिंचन होता है; किताबें तो बुद्धि की सहेली हैं, पर बुद्धि जीवन का अंतिम चरण नहीं, जीवन की समझ पाने का पहला आयाम है। बुद्धि से शुरुआत होती है, पर बुद्धि पर पूर्णाहुति नहीं। बुद्धि के आगे घाट और भी हैं। जीवन-जगत को वह व्यक्ति पढ़ना चाहेगा जो किताबों के भी पार चलना चाहता है, वास्तविक सत्य और रहस्य को जीना और जानना चाहता है । ऐसे व्यक्ति से ही अध्यात्म का जन्म होता है, उसमें ही अध्यात्म का अभ्युदय होता है। अध्यात्म कोई शास्त्र या वाद नहीं है कि जिसे पढ़ा जाए, कि जिसका पंडित हुआ जीवन से बढ़कर ग्रंथ नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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