Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ निरभ्र आकाश को देखकर अन्तस् का आकाश रू-ब-रू हो जाता है । मैंने जगत के सौंदर्य को देखा है, किन्तु इतना कहना सत्य का एक पहलू है, मानव-मानव में फैली स्वार्थ- चेतना, अंधविश्वास की वृत्तियाँ और नासमझ कट्टरताओं और दुराग्रहों को देखकर मानवता का विकृत स्वरूप भी प्रतिबिंबित हो जाता है । अपनी मुक्ति का रसास्वादन करने के लिए धर्म के द्वार पर दस्तक देने वाला इंसान निहित स्वार्थों के चलते पंथों और दुराग्रहों में बाँट दिया जाता है । लोग स्वांग को साधुत्व और अर्थहीन क्रियाओं को धर्म का पर्याय मान बैठते हैं और इस तरह विशाल बुद्धि का स्वामी इंसान किसी संकीर्ण दृष्टि के चंगुल में फंस जाता है । परिवारों पर जब नज़र डालते हैं, तो उनके अहं और उनकी घरेलू अव्यवस्थाएँ उनके खून को आपस में बाँट देती हैं । भाई को भाई से प्यार करता देख भला किसे खुशी न होगी, लेकिन भाई जब भाई के ही खून का प्यासा बन जाए, भाई-भाई के बीच ऐसी दरारें पड़ जाए कि एक-दूसरे का नाम लेना भी पसंद न करे तो ऐसी स्थिति में संसार की स्वार्थ- चेतना हमें जगत की निःसारता को समझने के लिए प्रेरित करती है । समाज में अलग-अलग कौम के लोग रहें तो यह तो समाज की खूबी है कि एक उपवन में कई तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, पर हम ज़रा समाज की विकृत स्थिति पर ध्यान दें तो चौंक उठेंगे कि कोई भी कौम दूसरी किसी कौम के कल्याण के लिए प्रयत्न करती हुई नहीं मिलेगी । ओह ! इतने बड़े संसार को लोगों ने कितना छोटा बना लिया है । सागर की विशालता ठंडी पड़ चुकी है और लोग अपनी-अपनी तलैयों को ही सागर मान बैठे हैं। लोग अपनी ही तलैया को सागर बनाने के लिए उसके किनारों और पनघटों को खींच- खींचकर उसे संसार का सागर बनाना चाहते हैं । हमने जन्म भी देखा है, जवानी भी देख रहे हैं, रोग-बुढ़ापा और मृत्यु को अपने पर और औरों पर घटित हुआ जान रहे हैं । रोड़पति करोड़पति हो जाया करते हैं और करोड़पति रोड़पति । इस सुंदर सृष्टि पर किसका कौन-सा अगला चरण होगा, कहा नहीं जा सकता । पलक झपकते किसी की लुटिया डूब जाती है और देखते-ही-देखते किसी के नाम लॉटरी खुल जाती है । किसी के नाम मकान हो जाता है, तो किसी की कब्र खुद जाती है । यह काया कि जिस पर आदमी को इतना नाज़ है, जिसे बचाने और साधने के इतने सारे इंतजाम हैं, लेकिन इसके बावज़ूद किसकी काया कब शमशान और कब्रिस्तान में पहुँच जाए कोई खबर थोड़े ही है। कब किसकी राख नये जीवन की सूत्रधार बन जाया करती है और कब किसका जीवन दो मुट्ठी राख की पोटली, कहा नहीं जा सकता । २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ऐसे जिएँ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122