Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 49
________________ विफलता मात्र पड़ाव है, मंजिल नहीं जीवन की हर असफलता सफलता की ओर बढ़ने की प्रेरणा है । जो असफलता से निराश हो जाते हैं, वे सफलता के शिखर की ओर नहीं बढ़ पाते। हम अपनी हर असफलता को सफलता की मंजिल का एक पड़ाव भर समझें । जैसे मंजिल तक पहुँचने के लिए हर पड़ाव को पार करना होता है, सफलता को आत्मसात करने के लिए हमें विफलताओं का भी सामना करना होता है । सफलताएँ कोई घर बैठे ही नहीं आ जाती हैं, उसके लिए हमें निरन्तर सन्नद्ध और प्रतिबद्ध रहना होता है। संघर्ष और कठिन परिश्रम के बाद ही सफलता की सुखानुभूति हो सकती है । किसी भी सफलता को प्राप्त करने के लिए हमें जितनी अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, सफलता का स्तर उतना ही श्रेष्ठ होता है। बगैर कोशिशों के कामयाबियाँ नहीं मिला करतीं और किसी शान्त समुद्र में नाविक कभी कुशल नहीं बन पाता । लफ्फाजी नहीं, कुछ ठोस करें माना कि कुदरत सबके लिए आहार- पानी की व्यवस्था करती है, पर इसका मतलब यह नहीं कि शेर को गुफा में बैठे-बैठे ही भोजन मिल जाएगा या घोंसले में ही चिड़ियाओं के लिए चुगा-पानी टपक जाएगा। कभी आप किसी जन्तु को अपने दाना-पानी के लिए कोशिश करते हुए देखें, तो यह देखकर ताज्जुब कर उठेंगे कि उन्हें कितनी मेहनत करनी पड़ती है । माना कि कुदरत ने बीजों की व्यवस्था की होगी, पर यह तो भली-भांति माली ही बता सकता है कि बीज में छिपे फल और फूल को निष्पादित करने के लिए उसे कितना श्रम करना पड़ा । जमीन ईश्वर की व्यवस्था है, किंतु खेतों में फसलों को लहलहाना मनुष्य के श्रम की सफलता है। मिट्टी और पहाड़ प्रकृति की देन है, परन्तु उससे बनने वाली ईंटों और खण्डों से किसी खूबसूरत इमारत का निर्माण करना मानवीय रचनाधर्मिता है । मनुष्य यदि किसी भी कार्य को करने के लिए सन्नद्ध हो जाए, उसे अपनी जवाबदारी मान ले, तो उसका प्रयास और पुरुषार्थ स्वतः सक्रिय हो जाएगा । जो लोग कोरी बातें करते रहते हैं, इसके अलावा कुछ नहीं करते, उनकी बादशाहत केवल बातों से ही जुड़ी होती है । करने के नाम पर वे कंगाल होते हैं । महान लोग अपने संदेशों को वाणी के द्वारा कहने की बजाय अपने जीवन में आत्मसात करके ही प्रदर्शित करते हैं । दुल्लत्ती केवल वे ही गधे मारा करते हैं, जो किसी भी प्रकार के भार का संवहन करने में असमर्थ होते हैं। अपने कंधों पर दायित्वों का वहन करने वाले न तो दुलत्ती 1 ऐसे जिएँ ३८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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