Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 58
________________ करें । अपनी बुद्धि का मनन के लिए उपयोग न कर पाने के कारण ही ज्ञान और जीवन के बीच एक विरोधाभास अथवा एक साफ दूरी बनी हुई रहती है । मनन से ही जीवन में मनुस्मृति का जन्म होता है । पठन के द्वारा तो किसी और का ज्ञान हमें मिलता है, लेकिन मनन तो वह मटका है, जिसमें उस ज्ञान का मंथन होता है, अनुशीलन और अनुसंधान होता है और तब जो सार-नवनीत निकलकर आता है, वह ज्ञान का परिपक्व परिणाम है । तब उस ज्ञान और जीवन के बीच एक संतुलन होगा, एक समरसता होगी; उस ज्ञान का जीवन-जगत के लिए उपयोग होगा । हम नियमित स्वाध्याय करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अतीत में हमारा एज्यूकेशन कहाँ तक का रहा। मेरे नाना पाठशाला की पढ़ाई की दृष्टि से तीसरी फैल थे, लेकिन हर कोई यह जानकर चमत्कृत हो उठेगा कि उन्होंने अपने जीवन में दस हजार से ज्यादा ऐतिहासिक और अनुसंधानपरक लेख लिखे । जीवन में अपनाया गया एक अकेला स्वाध्याय का संकल्प व्यक्ति को महान विद्वान बना देता है । मैं तो कहूँगा अधिक न सही, आप प्रतिदिन आधे घंटे स्वाध्याय करने का संकल्प ग्रहण करें । आप पाएँगे कि इस एक संकल्प की आपूर्ति की बदौलत आप एक महीने में कम-से-कम पाँच-सात विशिष्ट ग्रंथों को पढ़ चुके हैं यानी एक वर्ष में आप पचासों ग्रंथ और उनका ज्ञान अपनी बुद्धि को प्रदान कर चुके हैं । मात्र आधे घंटे नियमित स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति, मेरी गारंटी है कि वह पाँच साल में पारंगत विद्वान हो जाएगा। आप चाहें तो अपने स्वाध्याय के क्रम को किसी एक विषय से जुड़ा हुआ रख सकते हैं और चाहें तो कुछ सरसता और समरसता के लिए एक से अधिक विषयों का भी उपयोग कर सकते हैं । प्रमाद को बाधक न बनने दें इसी सप्ताह मेरे पास एक ऐसे महानुभाव आए हैं जिन्होंने तत्त्व - ज्ञान का एक विश्वकोश, एनसाइक्लोपीडिया तैयार किया है । मैं उनके कार्य को देखकर अभिभूत हुआ । उन्होंने रहस्य उद्घाटित करते हुए कहा - यह विश्वकोष और कुछ नहीं, मेरे दस-बारह वर्ष के निरंतर स्वाध्याय का सुमधुर परिणाम है । मैंने उन्हें साधुवाद दिया और एक बार पुनः स्वाध्याय का महत्व स्वीकार हुआ । 1 यदि आपको लिखने का शौक हो तो आप इसका भी उपयोग कर सकते हैं । जब आप प्रतिदिन रात को सोने से पहले दो पन्ने भी लिख लेंगे तो निश्चय ही आप प्रति छः जीवन-विकास के नायाब पहलू - शिक्षा और स्वाध्याय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ४७ www.jainelibrary.org

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