Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 101
________________ वातावरण भी तैयार कर सकता है। हमारी मुश्किल यह है कि हम अपनी सोच और दृष्टि को बेहतर बनाने के लिए कोशिश नहीं करते । हम केवल चेहरे को सुन्दर बनाने में, चालू स्तर की मैग्जीन पढ़ने में या दुकानदारी में अपना सारा समय व्यय कर डालते हैं । जीवन को कैसे बेहतर बनाया जाए, इसके प्रति न तो जागरूक रहते हैं, न ही ईमानदारी से इसके लिए कोशिश कर पाते हैं। भीतर का सौंदर्य ___जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए दस से बीस फीसदी भाग हमारे शारीरिक सौष्ठव और सौंदर्य पर जाता होगा, पर अस्सी से नब्बे प्रतिशत असर तो हमारे अपने नजरिये और दृष्टिकोण पर जाता है। हमारी मुश्किल यह है कि हम 'स्मार्टनेस' पर स्वयं की समग्रता केंद्रित कर देते हैं। अपनी सोच और शैली को बेहतर बनाने के लिए तो हम अपनी समग्रता का दसवाँ भाग भी केंद्रित नहीं कर पाते । जीवन के लिए यह सौदा बड़ा नुकसानदेह है । जिससे हमें नब्बे प्रतिशत लाभ होता है, उस पर हम ध्यान नहीं देते और जिससे दस प्रतिशत लाभ होता है, हम उतने-से लाभ के लिए स्वयं की नब्बे प्रतिशत ताकत को झौंक देते हैं। हम एक छोटा-सा उदाहरण लें, विश्व-सुंदरी प्रतियोगिता का। सुंदरियाँ तो हजारों-लाखों होती हैं, पर क्या आपको पता है कि उन हजारों-लाखों में से किसी एक का चयन कैसे किया जाता है ? हर सुन्दरी की सोच, शैली और जीवन-दृष्टि के आधार पर । यह तो सर्वविदित है कि दक्षिण अफ्रीका के लोग काले होते हैं और शायद कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता होगा कि उसकी पत्नी काली हो । यह भी हम सभी जानते हैं कि विश्व-सुंदरियों की श्रृंखला में दक्षिण अफ्रीका की महिला भी विश्व सुंदरी का खिताब जीत चुकी है । सीधी-सी बात है कि गुब्बारा अपने काले रंग के कारण नहीं, वरन् उसके भीतर जो कुछ है उसी के बल पर वह ऊपर उठता है । वातावरण का प्रभाव व्यक्ति के नजरिये और रवैये पर सबसे ज्यादा प्रभाव वातावरण का पड़ता है। गुरु विश्वामित्र का निमित्त पाकर कोई पुरुष राम, लक्ष्मण और भरत हुए, वहीं मंथरा के साथ रहकर कोई राजरानी भी केकैयी हो जाती है । एक त्याग और बलिदान का आदर्श बन जाता है, तो दूसरा मात्र स्वार्थपूर्ति का । जब हम वातावरण की बात कर रहे हैं, तो हमें ध्यान देना होगा कि हमारे घर का ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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