Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ सुधरे संस्कार-धारा सही नजरिये के लोग चमड़ी के रंग पर ध्यान नहीं देते, वे सदा गुण और संस्कारों को महत्त्व देते हैं। कान व्यक्ति कैसा है, इसकी सही पहचान उसके रंग-रूप और जाति से नहीं, वरन् उसके जीवनगत संस्कारों से होती है । व्यक्ति के संस्कार ऊँचे हों, तो छोटे कुल में पैदा होकर भी उच्च आदर्शों को स्थापित कर जाएगा। व्यक्ति के संस्कार यदि निम्न कोटि के हैं, तो उसका ऊँचे कुल में पैदा होना, उसकी कुलीनता पर व्यंग्य ही होगा। पहले चरण में हम व्यक्ति की पहचान उसके कुल से करवा सकते हैं, लेकिन अंततः तो आदमी द्वारा आत्मसात किये गये संस्कार ही काम आएँगे। गोरे रंग को देखकर आकर्षित होने वाले युवक को तब पछताना पड़ता है, जब उसे अपनी पत्नी में सम्यक् संस्कारों का अभाव नजर आता है। सही नजरिये के लोग चमड़ी के रंग पर ध्यान नहीं देते, वे सदा गुण और संस्कारों को ही महत्त्व देते हैं । रंग आँखों को सुहावना लगता है, पर जीवन तो संस्कारों के संतुलन से ही सुखी और सुव्यवस्थित होता है। व्यक्ति की गरिमा और मर्यादा हैं संस्कार कौन आदमी कैसा है, यदि तुम्हें यह पहचानना हो तो तुम उसके संस्कारों को पहचानने की कोशिश करो। संस्कार तुम्हें व्यक्ति का सही मूल्यांकन करवा देंगे। ५४ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122