Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 78
________________ जाता है । हम कृपया अपने आपको उत्साह और उल्लास से भरें; साहस और विश्वास से आपूरित करें; अपनी इच्छा-शक्ति को प्रखर करें, फिर देखें जीवन का कौन-सा कार्य दुष्कर है, कष्टकर है, असाध्य है। जीवन के सहज सौंदर्य को प्रगट करने के लिए चित्त में पलने वाली चिंताओं की चिता जला डालें । जीवन का सत्य तो यह कहता है कि चिंता तो स्वयं चिता ही है। काष्ठ की चिता घंटों में जल जाया करती है, पर भूसे की चिता जलती नहीं, केवल धुंवाती है । हृदय में चिंता को पालना तो भूसे को ही सुलगाना है यानी एक ऐसी चिता की व्यवस्था करना है जो न तो पूरा जलाती है और न जीने जैसा रखती है । ___ कोई व्यक्ति अगर किसी सार्थक पहलू पर चिंता करे, तो समझ में भी आती है, पर व्यर्थ की बीती-अनबीती बातों पर दिन-रात घुटते रहने का कहाँ औचित्य है । आखिर जो बीत चला उसे लाख याद करने पर भी लौटाया नहीं जा सकता, जो अनबीता है उस आने वाले कल को आखिर खींचकर तो आज बनाया नहीं जा सकता। अब जिसकी पत्नी मर गई उसके लिए यह सोच-सोचकर व्याकुल रहना कि तु तो मर गई, लेकिन मेरी रातें हराम कर गई, क्या इस व्याकुलता का कोई अर्थ है ? सिवाय आत्मक्षति के कोई परिणाम नहीं है। अब जिसके घर बेटी पैदा हो गई वह इस बात को लेकर चिंतित रहता है कि बेटी को कैसे बड़ी करूँगा, पढ़ाऊँगा, ब्याह करूँगा। ओह, प्रकृति जो दे उसकी व्यवस्था की चिंता करना उसे देने वाले का काम है, न कि हमारा । आखिर जो जीवन देता है वह जीवन की व्यवस्था भी देता है । जहाँ प्यास है, वहाँ पानी भी है; जहाँ धूप है वहाँ उससे बचाने के लिए शीतल छाँह की भी व्यवस्था है। फिर चिंता किस बात की ! भला किसी की बेटी धन के अभाव में कुँआरी रही है ? मेरी शांति और निश्चितता का एक छोटा-सा मंत्र रहा है जो जीवन देता है, वह जीवन की व्यवस्था भी देता है । मैं पैदा हुआ उससे पहले मेरी माँ की छाती दूध से भर गई । जिस व्यवस्थापक की ओर से जीवन के प्रथम चरण में ही इतने पुख्ता बंदोबस्त हैं, फिर चिंता किस बात की । मस्त रहो मस्त, पूरी तरह निश्चित ! हीन न माने, आत्मविश्वास की अलख जगाएँ इस क्रम में अगला संकेत यह है कि हम अपने हृदय में हीन-भावना को स्थान न दें। मैं छोटा वह बड़ा, मैं निर्बल वह बलवान, मैं गरीब वह धनवान, मैं साँवला वह मन की धरा रहे उर्वर ६७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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