Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 86
________________ चित्त का स्वरूप जलाशय जैसा व्यक्ति का चित्त जैसे ही प्रभावित या आंदोलित होता है, तो उसका व्यक्तित्व और आचार-व्यवहार सभी कुछ उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते । यदि मनुष्य का चित्त भयग्रस्त हो जाए, तो न केवल इस स्थिति में उसका शरीर सुस्त हो जाएगा, वरन उसे दस्तें भी लग सकती हैं, जी मचला सकता है। इतना ही नहीं वह अपने मित्रों और परिजनों के प्रति भी सशंकित हो उठेगा । उसे हवा का एक झौंका दस तरह के बहमों से भर देगा । यह हम भलीभांति जानते हैं कि व्यक्ति का चित्त जब क्रोधित हो जाता है, तो हमारे रक्त की गति, आँखें और वाणी-व्यवहार कितना असंतुलित-असंयमित हो जाता है। इसी तरह चित्त में जब वासना की तरंग उठती है, तो मन की स्थिति, बुद्धि का विवेक, शरीर का स्वास्थ्य, व्यवहार की पवित्रता सभी कुछ तो बाधित हो जाते हैं । तब मानो आँखों को कुछ सूझता ही नहीं । बुद्धि की आँखों में एक अलग ही तरह का अंधत्व उतर आता है । यह अंधत्व आखिर चित्त की ही परिणति है यानी चित्त का आंदोलित होना व्यक्ति के संपूर्ण जीवन-चरित्र को आंदोलित करने के समान होता है। जैसे जलाशय में फेंका गया पत्थर का एक छोटा टुकड़ा उसकी संपूर्ण सहजता को अस्थिर और तरंगित कर देता है, चित्त का स्वरूप भी उस जलाशय जैसा ही है। जीवन के केंद्र में चित्त की भूमिका प्रमुख रहने के कारण व्यक्ति का कब-क्या रूप होता है, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती । चूंकि मनुष्य बहुचित्तवान है, इसलिए उसके रूप भी बहुतेरे हैं । चित्त एक होकर भी अनगिनत रूपों को अपने में धारे है । अब भला यह बात कोई तय थोड़े ही है कि व्यक्ति का कब-क्या रूप होगा। चेहरा तो वही होता है, लेकिन सुबह उसका रूप अलग हो जाता है, तो दोपहर को अलग; साँझ को कुछ और ही और रात को किसी अन्य ही रूप में । जिस व्यक्ति को उसकी पत्नी ने सुबह दस बजे देखा, जब उसे ही रात को दस बजे वह देखती है, तो चौंक पड़ती है कि क्या यह वही है ? व्यक्ति के कितने रूप हैं, पहचाने नहीं जा सकते ! कोई व्यक्ति किसी के साथ पच्चीस साल जीकर भी यह नहीं कह सकता कि यही स्वरूप है इसका । औरों की तो छोड़ो, आदमी अपने आपको ही नहीं पहचान पाता। अरे, अभी जो व्यक्ति कुछ मिनट पहले सबसे प्यार से बोल रहा था, कहा नहीं जा सकता कि उसके अगले पल भी प्यार में ही बीतेंगे । शांत चित्त बैठे हुए व्यक्ति को बेटे अथवा कैसे करें चित्त का रूपान्तरण ७५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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