Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 38
________________ सन्दर्भ : शिक्षा, संगति और संस्कार का हमारे आचार-विचार और जीवन-शैली को प्रभावित करने वाला एक और जो सबसे बड़ा घटक है, वह है मित्र-मंडली । यदि किसी के बारे में यह जानना हो कि वह कैसा हो, तो मात्र इतना पता लगा लें कि वह किस स्तर के लोगों के बीच उठता-बैठता है। संगत स्वतः रंगत दिखा देता है । हमें मित्र बनाते वक्त उतनी ही सतर्कता बरतनी चाहिए, जितनी वर/वधु की तलाश के लिए श्रम और सावधानी बरतनी पड़ती है। संगति का असर तो आखिर आएगा ही । गोरे के पास काला बैठेगा, तो भले ही उसका रूप न चढ़े, पर उसकी अक्ल तो आएगी ही आएगी। काजल की कोठरी में जाएँगे, तो दामन में दाग तो लगेगा ही । सीधी-सी बात है कि हींग की पोटली जेब में रखोगे, तो हींग की ही गंध आएगी, वहीं चन्दन का तिलक लगाओगे, तो चन्दन की सुवास से स्वयं को और सबको आह्लादित करोगे । हमारे आचार-विचार, बोल-बरताव, आहार-विहार और आदत-संस्कार भी वैसे ही बन जाते है, जिस तरह की आदत वालों के साथ उठते-बैठते हैं । आखिर, कीचड़ में पाँव रखकर गुलाब की सुगंध नहीं पाई जा सकती। 'जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन' इस चिरपरिचित उक्ति पर ध्यान दें, तो बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि वे भोजन की सात्विकता पर भी सजगता बरतें । शिक्षा वह हो, जो हमें जीवन-दृष्टि दे, जीने की कला सिखाए । व्यवसाय भी ऐसा हो, जो शुद्ध आजीविका प्रदान करे। ऐसे जीएँ जीवन अपना बेहतर होगा हम सुबह सूर्योदय से पहले जागें । स्वयं में ऊर्जा, उत्साह और आत्मविश्वास का संचार करें । माता-पिता को प्रणाम करें । शौच-क्रिया से निवृत्त हों, स्वच्छ और खुली हवा में टहलने के लिए जाएँ । टहलना और व्यायाम करना शरीर के लिए वैसे ही लाभप्रद है, जैसे बढ़ई के द्वारा औजार में धार करना । टहलते समय दीर्घ श्वास लें । नाखून न बढ़ाएँ । प्रतिदिन स्नान करें । सप्ताह में दो बार शरीर पर तेल की मसाज करें । घर में कुछ गमले लगाएँ, व्यर्थ की चिंता न पालें । मन की शान्ति और निर्मलता के लिए ध्यान अवश्य करें और सदा ईश्वर तथा प्रकृति के लिए धन्यवाद से भरे रहें । स्वाध्याय हमारी बुद्धि को प्रखर और सक्रिय बनाए रखने में सहयोग करेगा। पेश आएँ शालीनता से २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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