Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 42
________________ पहचानें, समय की नजाकत तुम समय के साथ चलो, समय तुम्हारे साथ चलेगा। हमारी दृष्टि जब किसी के हाथ की कलाई पर पड़ती है या किसी के बैठकखाने की दीवार पर, तो सहजतया हमें टिक-टिक करती एक चीज नजर आ जाती है और वह है—घड़ी । घड़ी का आविष्कार सृष्टि की उस आदिकालीन व्यवस्था में ही हो चुका होगा, जब मनुष्य ने अपनी जीवन की घड़ियों का मूल्य समझा होगा । जीवन की निर्धारित घड़ियाँ होती हैं। कितनी घड़ियाँ आईं, कितनी बीतीं, कितनी आनी बाकी हैं, इस बात का लेखा-जोखा करने के लिए ही घड़ी का रूप ईजाद हुआ । विकास के क्रम में घड़ी के स्वरूप बदलते गये, लेकिन समय का जायजा लिया जा सके, ऐसी घड़ी किसी-न-किसी रूप में हर-हमेश रही है। __ जयपुर के जंतर-मंतर में ऐसी ही सांकेतिक घड़ियाँ बनी हुई हैं । उस पत्थर की घड़ी पर जब-जहाँ सूरज की धूप पड़ती है, तब दर्शक उतने बजने का संकेत जान लेता है । मूल्य घड़ी का नहीं, समय के गमन और आगमन का है । सुश्री हैलन केलर से जब पूछा गया कि आप रात और दिन का फर्क कैसे करती हैं, क्योंकि अंधे व्यक्ति के लिए न सूरज का दिन होता है और न चाँद की रात । उसने बताया कि उसे न केवल रात और दिन का भेद ज्ञात हो जाता है, अपितु हर घंटे की स्थिति भी मालूम हो जाती है । उसने जब पूछने वाले को यह बताया कि इस समय इतने बजे होंगे तो प्रश्नकर्ता का चकित होना स्वाभाविक था। पहचानें, समय की नजाकत ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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