Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ बोएँ वही, जो फलदायी हो जीवन में सदा वे बीज बोएँ जिन्हें काटते समय खेद और कटुता न हो। मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही उसका व्यवहार होता है । वह जैसा स्वप्न देखता है, उन्हें पूरा करने का वैसा ही प्रयास करता है । व्यक्ति जैसा भी है, अपने ही कारण है। वह सुखी है, तो भी अपने ही कारण और दुःखी है, तो उसका आधार भी वह स्वयं ही है । वह गीत गाता है, तो अपने लिए गीतों की ही व्यवस्था कर रहा है; गाली-गलोच करता है, तो उपेक्षित और अपमानित होने के खुद ही बीज बो रहा है । जीवन में सब कुछ वही होता है, जिसका बीजारोपण उसके अतीत ने किया है । जीवन में मिलने वाले कड़वे फलों को देखकर चिंतित होने का कहाँ अर्थ है ! यह तो जीवन का प्रकृतिगत नियम है कि जैसा बोएँगे, वैसा पाएँगे । फूलों की व्यवस्था की है, तो फूल मिलेंगे; काँटे बोएँ हैं, तो पाँवों में काँटें ही आएँगे। हमारा जीवन एक गूंज की तरह है । हमें वापस वही मिलता है, जो हम अपनी ओर से किसी को देते हैं। जगत : जीवन की प्रतिध्वनि यह सारा जगत तो अन्तरात्मा का एक अन्तर्सम्बन्ध है । यहाँ प्रतिध्वनि वैसी ही होती है, जैसी व्यक्ति की ध्वनि होती है । प्रकृति की प्रतिक्रिया क्रिया के विपरीत नहीं होती । आप कभी किसी शांत-एकान्त स्थान में जाकर बाँसुरी की तान छेड़ेंगे, तो आप ताज्जुब करेंगे कि वहाँ का सारा वातावरण आपकी बाँसुरी के सुर-संसार का सहभागी १४ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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