Book Title: Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 16
________________ जिसने जगत को बनाया उसको बनाने वाला कौन रहा । हमारी अन्तर्दृष्टि तो केवल इतना ही देखे कि यह जगत आखिर क्या है ? यह जीवन और इसका रहस्य क्या है ? धरती पर इतना दुःख क्यों है? मैं स्वयं दुःखों का अनुभव क्यों करता हूँ? मैं अपने आपको दुःखी देखना चाहता हूँ या सुखी? अगर मुझमें सुख पाने की तृषा है, तो फिर भी मुझे दुःखों के दौर से क्यों गुजरना पड़ता है ? दुःख हैं, तो क्यों हैं ? दुःख है तो दुःख के कारण क्या हैं? सुखी होना चाहता हूँ तो सुख को पाने के आधार-सूत्र क्या हैं? जो जीवन और जगत को ध्यानपूर्वक देखता है, उसकी चेतना में मनन का अंकुरण होता है । मनन स्वयं मार्ग देता है, मनन से सत्य के मार्ग खुलते हैं, मनन से मनुष्य में मनु साकार होता है। __ मूल गुर है जीवन और जगत को भीतर की खुली आँखों से देखा जाए। यह कला हासिल हो जाए । दुनिया की हर किताब और शास्त्र मंगल प्रेरणाओं को लिये होते हैं। किताबें मनुष्य के प्रबुद्ध होने में सहायक बनती हैं, पर किताबें अन्तिम सीढ़ी नहीं हैं। सीखने, पाने और जानने की ललक हो, तो सृष्टि के हर डगर पर वेद, कुरआन, बाइबिल के पन्ने खुले और बोलते हुए नजर आ जाएँगे । कभी चिड़ियों की चहचहाट पर ध्यान दें, वृक्ष के हिलते-डुलते पत्तों पर दृष्टि केन्द्रित करें । सागर और सरोवर में उठ रही लहरों को देखें । हिरणों को गुलांचे भरते हुए और तितलियों को उड़ते हुए निहारें । कभी खिले हुए फूलों को देखें तो कभी पेड़ के पीले पड़ चुके पत्तों को गिरते हुए । सचमुच, ऐसा करके आप जीवन के कई-कई पाठ और अध्याय एक तरह से पढ़ चुके हैं। पढ़ें-पढ़ाएँ जीवन की किताब धरती का पहला शास्त्र स्वयं मनुष्य का जीवन है, दूसरा शास्त्र यह जगत है, तीसरा शास्त्र प्रकृति है और चौथा शास्त्र पवित्र किताबें । किताबें विचार और चिन्तन देती हैं, जबकि जीवन का पठन और पारायण अन्तर्दृष्टि । सत्य का बोध इसी से होता है, जीवन की वास्तविक समझ इसी से ईजाद होती है । व्यक्ति अपनी अन्तर्दृष्टि से देखकर जिस जागृति और परिणति तक पहुँचता है, वही उसका अनुभव-धन होता है । उसी से वह उपलब्ध होता है । उसके जीवन का, अन्तर्मन का अन्धेरा छंटता है। जीवन मेरा शास्त्र है और जगत मेरा गुरु । मैंने इसे पढ़ा है, मैंने इससे बहुत कुछ सीखा है। जीवन और जगत के प्रति सदा सजग रहने वाला उनके रहस्यों का भी द्रष्टा और ज्ञाता हो जाता है। क्या हम भीतर की आँख खोलकर उसका उपयोग जीवन से बढ़कर ग्रंथ नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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