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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
तत्त्व
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नियतिवाद
सब जीव पृथक्-पृथक् हैं, यह उपपन्न है-युक्तिसंगत है। ऐसा कुछ वादियों का मत है । उनके अनुसार जीव पृथक्-पृथक् सुख भोगते हैं, दु:ख भोगते हैं, पृथक्-पृथक् ही अपने स्थान से लुप्त होते हैं-एक देह का त्याग कर दूसरी देह प्राप्त करते हैं।
___ दुःख स्वकृत नहीं हैं, फिर परकृत-दूसरे द्वारा किया हुआ कैसे हो सकता है। सुख एवं दुःख न सैद्धिक हैं- प्रयत्नजन्य सफलता-प्रसूत हैं और न असैद्धिक-प्रयत्नजन्य असफलता-प्रसूत ही हैं।
__ वे कहते हैं- मनुष्य जो पृथक्-पृथक् सुख-दुःख अनुभव करते हैं, वह न उनका अपना किया है और न पराया किया है। वह सांगतिक है-नियतिकृत है।'
__यों नियतिवाद का प्रतिपादन कर वे अज्ञानी होते हुए भी अपने आपको पण्डित - ज्ञानी मानते हैं । सुख-दुःख जो नियतानियत है—एक अपेक्षा से नियत है, एक अपेक्षा से अनियत है, इसे वे नहीं जानते । वे बुद्धिरहित हैं।
कर्म-पाश में जकड़े हुए ऐसे पुरुष नियति को ही पुन:-पुनः सुख-दुःख का कारण बतलाते हैं । वे अपनी क्रिया-चर्या में उद्यत रहते हुए भी दुःख से छूट नहीं सकते ।२
अज्ञानवाद
सूत्रकार ने मृगों का दृष्टान्त देते हुए बताया है कि जैसे परित्राणरहित-भटकते हुए तीव्रगामी मृग अशंकनीय-शंका न करने योग्य स्थानों में शंका करते हैं तथा शंकनीयशंका करने योग्य स्थानों में निःशंक रहते हैं । वे भटकते हुए उन्हीं स्थानों में पहुँच जाते हैं, जहाँ फन्दे लगे होते हैं। फन्दों में बंध जाते हैं । उसी प्रकार अज्ञानीजन अशंकनीय में शंका करते हुए, शंकनीय में अशंक रहते हुए उन मृगों की ज्यों संकटापन्न होते हैं, विनष्ट हो जाते हैं।
कर्मोपचयनिषेधक क्रियावाद
जो पुरुष जानता हुआ मन से हिंसा करता है, शरीर से हिंसा नहीं करता। नहीं जानता हुआ शरीर से हिंसा करता है, मन से हिंसा नहीं करता। वह उसके फल का केवल स्पर्श मात्र करता है । तज्जनित पाप उसके लिए अव्यक्त-अप्रकट रहता है । अथवा वह पापबद्ध नहीं होता।
पूर्वोक्त परवादि-मतों का वैयर्थ्य प्रकट करते हुए आगे सूत्रकार ने कहा हैएक जन्मान्ध पुरुष आस्राविणी—जिसमें चारों ओर से पानी भर रहा है, नौका में बैठा है, चाहता है, नदी को पार कर जाए, किन्तु, वह बीच में ही डूब जाता है, उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि, अनार्य-अपवित्र कर्मा श्रमण उपर्युक्त सिद्धान्तों की नौका पर बैठा चाहता
१. सूत्रकृतांग १.१.२.१.३ २. सूत्रकृतांग १.१.२.४-५ ३. सूत्रकृतांग १.१.२.६-१३ ४. सूत्रकृतांग १.१.२.२५
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