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३७४ ___ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ रानी के साथ भोग-विलास-जनित सुखों का अनुभव करे । उक्त विचार की, जो संयमपालन के यथार्थ लक्ष्य के प्रतिकूल था, आलोचना किये बिना ही संभूति मुनि काल-धर्म को प्राप्त हो गया। चित्त मुनि ने किसी प्रकार का निदान नहीं किया। वह शुद्ध संयम का सम्यक् प्रतिपालन करता हुआ, काल-धर्म को प्राप्त हुआ। दोनों प्रथम स्वर्ग में देवरूप में उत्पन्न हुए।
चित्त : संभूति : पुनर्जन्म
__ स्वर्ग में देव-आयुष्य पूर्ण कर चित्त मुनि का जीव पुरिमताल नगर के एक प्रमुख सेठ के घर में पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। संभूति के जीव ने काम्पिल्यपुर नगर के ब्रह्मभूति नामक राजा की चलनी नामक महारानी की कोख से पुत्र-रत्न के रूप में जन्म लिया। जन्म से पूर्व महारानी चूलनी को चवदह कुमार के ऐसे शुभ स्वप्न आये, जो उत्पद्यमान बालक पुण्य प्रतापशीलता के द्योतक थे । कुमार का नाम ब्रह्मदत्त रखा गया।
राजा ब्रह्मभति एक असाध्य रोग से ग्रस्त हआ। उसने चारों दिशाओं के अपने चार मित्र प्रादेशिक राजाओं को बुलाया। उसने उनसे कहा कि मैं आरोग्य लाभ कर सक,
व नहीं लगता। कुमार ब्रह्मदत्त अभी बालक है। उसके वयस्क हो जाने तक आप मेरे राज्य की समीचीन रूप में व्यवस्था करते रहें। जब कुमार ब्रह्मदत्त योग्य हो जाए तो उसका राज्याभिषेक कर दें। उन चारों ने ब्रह्मभूति का अनुरोध स्वीकार किया।
कुछ समय बाद राजा ब्रह्मभूति की मृत्यु हो गई। उक्त चारों प्रादेशिक राजाओं में से प्रथम दीर्घ नामक राजा राज्य की रक्षा के लिए मनोनीत हुआ। उसका आचरण अच्छा नहीं था। रानी चूलनी के साथ उसका अनुचित सम्बन्ध स्थापित हो गया। कुमार ब्रह्मदत्त को जब इसका पता चला तो वह मन-ही-मन बहुत दुःखित हुआ। कुमार ब्रह्मदत्त
एक दिन काक और हंसिनी का जोड़ा अपने समक्ष रखकर राजा दीर्घ को सुनाते हए कहा-“रे नीच काक ! यदि तूने इस हंसिनो का संग किया तो यह स्मरण रखना, तुम्हें प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे।"
। राजा दीर्घ सारी बात समझ गया। उसने चलनी को वह बात कही। वह बोला"रानी ! यह बालक हमारे लिए दुःखद सिद्ध होगा; अतः मैं अब यहां नहीं रुक सकता। अपने राज्य में जाता हूं।"
रानी चूलनी विषयान्ध थी। वह दीर्घ से बोली--"तुम चिन्ता मत करो, मैं कुमार की हत्या करवा दूंगी।"
चूलनी द्वारा ब्रह्मदत्त की हत्या का असफल प्रयत्न
___ तदनन्तर रानी चूलनी ने एक लाक्षागृह बनवाया। कुमार ब्रह्मदत्त का विवाह किया। नव दम्पति को उस नूतन घर में शयन करने की आज्ञा दी। लाक्षागृह में ठीक समय पर आग लगा दी जाए, चूलनी ने यह गुप्त मंत्रणा की। कुमार ब्रह्मदत्त को किसी मंत्री द्वारा रानी की इस दुर्मन्त्रणा का ज्ञान हो गया। ब्रह्मदत्त ने इस संकट को टालने के लिए मंत्री के साथ परामर्श किया। दोनों के परामर्श के अनुसार नगर के बाहर से उस लाक्षागृह तक एक गुप्त सुरंग निर्मित करवा दी गई। मंत्री ने कुमार ब्रह्मदत्त की सेवा में अपने पुत्र को रख दिया। लाक्षागृह में जब आग लगाने का प्रसंग उपस्थित हुआ तो मंत्री पुत्र ने ब्रह्मदत्त को
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