Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Concept Publishing Company

View full book text
Previous | Next

Page 850
________________ ७६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन 372 569 513 541 445 445 68, 638, 106, 173 455, 504 455 वासुदेव कृष्ण वासना विकथा विजय-मुनि विजया-साध्वी विजयेन्द्रसरि विदेह राज विदेह राजषि विदेह राष्ट्र विजय-विजया विदर्भा विदर्भा-पुरी विनय विनय-पिटक विज्ञेय विन्धाटवी विनीता नगरी विभीषण विमलघोष विमल मुनि विमुक्त-सुख विरोध विश्वकर्मा विश्वास विसवन्त-जातक विशल्या विवेक विद्याधर पारिनुख विद्याधरी धनवती वेगवती वेणुवन वेणवन-उद्यान वैताढ्य वैदेही वैराग्य वैराग्य-भाव 494 646 9 शंख 668 शक 668 शकुनि 676 शतद्वार-नगर 303 शम्ब 706 शम्बूक 701,584 शरीर 662 शशि प्रभा 429 शशि मंडल 429 शस्त्रु दमन 6 शाखामृग 76 शाला-गांव 83 शाश्वतवाद 438 शास्ता 717 शास्ता-उपदेश 450 शिवादेवी 691 शिवि कुमार 666 शिवि जातक 425 संवर-द्वार 460 संवर-प्रकार 410 संसार 28 संसार अनित्यता 124 शिविराज 456. शिषि-राजा 35 शिवि-राष्ट्र 505 शिशुपाल 506 शिक्षाक्त 428 शील 673 शील-व्रत 8 शुक-शावक 429 शुद्धोधन 428 शुद्धोधन-राजा 107, 407, 711 शुभमति 142 शूर 441 641 17 72, 69 674,484 552 539 568 562, 567 36 36 710 472 322 568 568 529 29, 133 581, 691, 131, 134 105 293 411 622 434 495 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858