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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
मिथिलाधिपति महाजनक
पुराकालीन वृत्तान्त है, विदेह राष्ट्र में मिथिला नगरी में महाजनक नामक राजा था । उसके अरिट्ठजनक तथा पोळजनक नामक दो पुत्र थे । राजा ने राज्य शासन का प्रशिक्षण देने की दृष्टि से उनमें से बड़े को उपराजा पद पर प्रतिष्ठित किया एवं छोटे को सेनापति का पद सौंपा ।
अविश्वास : विद्व ेष
कुछ समय बाद महाजनक की मृत्यु हो गई । उसका बड़ा पुत्र अरिट्ठजनक राज्यसिंहासन पर बैठा । उसने अपने छोटे भाई पोळजनक को उपराजा का पद दिया ।
कथानुयोग - नमि राजर्षि: महाजनक जातक ५८६
राजा के एक परिचारक ने उसके समक्ष पोळजनक के विरुद्ध शिकायत की। उसने कहा - "राजन् ! पोळ जनक आपकी हत्या कर राज्य हथियाना चाहता है ।"
राजा अरिट्ठजनक ने अपने सेवक की बात पर विश्वास कर लिया। उसने अपने छोटे भाई पोळजनक को बन्दी बना लिया । उसे लौह श्रृंखलाओं में बंधवा दिया । राजभवन से दूर एक कारागृह में उसे कैद करवा दिया, प्रहरी बिठवा दिये ।
सत्य - क्रिया
पोळजनक ने मन-ही-मन सत्य क्रिया की — सत्संकल्प किया- यदि मैं अपने भाई से द्रोह करता हूं तो मेरी ये लौह श्रृंखलाएं न खुलें, जिनमें मैं जकड़ा हूं; कारागृह के दरवाजे भी न खुलें। यदि मैं अपने भाई से द्रोह नहीं करता तो ये लौह- श्रृंखलाएं खुल जाएं, दरवाजे खुल जाएं ।
सत्य-क्रिया का प्रभाव हुआ । लौह-श्रृंखलाएँ तड़ातड़ टूट गईं, खण्ड-खण्ड हो गईं। दरवाजे अपने आप खुल गये । वह वहाँ से निकल गया । राज्य के सीमावर्ती गाँव में जाकर बस गया | गाँव के लोगों ने उसे पहचान लिया । वे उसकी सेवा करने लगे । राजा अट्ठिजनक उसे पुनः बन्दी नहीं बना सका ।
लोकप्रियता
पोळजनक के प्रति लोगों का आदर बढ़ता गया । वह लोकप्रिय हो गया । उसका प्रत्यन्न जनपद पर अधिकार हो गया । उसके अनेकानेक अगुगामी हो गये । उसकी शक्ति बढ़ गई । उसने सोचा – मेरा बड़ा भाई अब भाई नहीं रहा, वह शत्रु है । मुझे अब मिथिला पर अधिकार कर लेना चाहिए । यों निश्चय कर वह बड़े जन समुदाय, सैन्य- समुदाय के साथ मिथिला पहुँचा । मिथिला को घेर लिया । जब मिथिला के लोगों को ज्ञात हुआ कि पोळजनक चढ़ आया है, उनमें से अनेक अपने हाथियों, घोड़ों तथा अन्यान्य वाहनों के साथ आकर उससे मिल गये ।
पराजय- निष्क्रमण
पोळजनक ने राजा अरिट्ठजनक के पास सन्देश भेजा - " मैं पहले तुम्हारा शत्रु नहीं था, किन्तु, अब शत्रु हूं | अपना राज्य मुझे सौंप दो या लड़ने को तैयार हो जाओ ।"
राजा अरिट्ठजनक ने आत्मसमर्पण नहीं किया । वह युद्धार्थं तत्पर हुआ । उसने अपनी पटरानी को बुलाया । पटरानी तब गर्भवती थी । उसने उससे कहा – “कल्याणि ! युद्ध
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