Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Concept Publishing Company

View full book text
Previous | Next

Page 843
________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] शब्दानुक्रम ७८३ 205, 208 712 274 446 583,428 719 454 547,541 चंड प्रद्योत-राजा चक्र रत्न चण्ड प्रद्योत चतुर रोहक चन्द्रगति-विद्याधर चन्द्र ग्रहण चन्द्र देव चन्द्र मण्डल चन्द्र सखा चन्द्र हास चन्द्र वर्तसक-राजा चम्पा चम्पानगर चम्पा नगरी चर्मरत्न चक्षु दान चरण श्री चारित्य धर्म चाण्डल कुमार चातुर्याम-धर्म चारित्र चारित्र-गण चाणूर चिन्त चिन्त संभूत जातक चिन्त मल चिन्त-समा चित्रांगद चुड़ा मणि चूलनि ब्रह्मदत्त-राजा चेतवन चेटक-राजा त्य चैत्य-वृक्ष चैतसिक-विकार 677 712,713 छबरु-जाकक 696 छत्र रत्न 211 छत्रवासिनी-देवी 429 745 554 जटायुध 455 जनक-नरेश 445 जन्म 445 जम्बुमाली 371 जरा कुमार 666 जरा-मरण 591 जरासन्ध 56, 481, 483 जल-राक्षस 712 जय-राजा 570 जाति मन्त 465 जित पद्मा 565 जित शस्त्रू 373 जिन दास 140 जिन पालित 32,108 जिन रक्षित 33 जीव 495,521 जीवन 5, 170 372 जीवन-रस 371,378 जीवन-लक्ष 8 जीवन्य-शरीरवाद 696 जीवयशा 683 जेतवत 273,452 जेतवन उद्यान 293 जैन-आगम 61 जैनीकरण 677 जैन परम्परा 164 586 113 तज्जीव-तच्छरीखार 499 365 696 162 441 690, 683 666 476 476 68, 149, 172,187 633, 615, 117,1 508 23 68 499,501 8, 489, 30 420, 59 64 140 712 65 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858