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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
लिया, अन्यथा हमारे लिए तो प्रलय ही हो जाता। आज से कृष्ण को कभी, कहीं एकाकी नहीं छोड़ना है, यह ध्यान रहे ।
यशोदा द्वारा विशेष देखभाल
यशोदा उस दिन से कृष्ण को हर घड़ी अपने पास रखने लगी । बालक की रग-रग में चंचलता होती है । वह एक स्थान पर कैसे टिक सके । कृष्ण चुपचाप घुटनों के बल चल पड़ता, इधर-उधर निकल जाता । माता का ज्योंही उस ओर ध्यान जाता, वह दौड़कर उसके पीछे जाती और उसे पकड़ कर वापस लाती । कृष्ण के नटखटपन से यशोदा परेशान हो गई। उसने एक उपाय निकाला । एक लम्बी रस्सी ली। उसका एक किनारा कृष्ण की कमर से बाँधा और एक ऊखल से बाँधा । यशोदा ने सोचा - कृष्ण घुटनों के बल थोड़ा-बहुत इधरउधर घूमता रहेगा, ऊखल के साथ बँधे होने से दूर नहीं जा पायेगा । यशोदा कृष्ण को ऐसी स्थिति में छोड़ कार्यवश बाहर पास-पड़ोस में चली जाती ।
यमलार्जुन
जैसा ऊपर उल्लेख हुआ है, विद्याधर सूर्पक की दोनों पुत्रियाँ, जो कृष्ण को प्राण हरने गोकुल आईं, मारी हो गई, अब उसका पुत्र अपने पितामह का प्रतिशोध लेने वहाँ आया । उसने अपने को यमल तथा अर्जुन — दो वृक्षों के रूप में परिवर्तित किया । कृष्ण के घर के सम्मुख आस्थित हुआ । वृक्षों की शाखाएँ हिलने लगीं। पत्तों की मर्मर ध्वनि सुनाई पड़ने लगी । और भी तरह-तरह की मोहक चेष्टाओं द्वारा वह वृक्ष द्वय के रूप में विद्यमान विद्याधर सूर्पक का पुत्र कृष्ण को लुभाने का, आकृष्ट करने का प्रयत्न करने लगा । बालक तो सहज ही कुतूहल प्रिय, जिज्ञासाप्रिय, विनोदप्रिय होता ही है । वृक्षों की नाना चेष्टाएँ देख कृष्ण घुटनों के बल चलता हुआ, रेंगता हुआ वृक्षों की ओर बढ़ने लगा, रस्सी बँधा ऊखल पीछे-पीछे घिसटने लगा ।
मध्य पहुँचा, वृक्ष अपने-अपने स्थान विद्याधर का लक्ष्य कृष्ण को दोनों
में
यों आगे बढ़ता हुआ शिशु ज्योंही दोनों वृक्षों के से चलित हुए, परस्पर समीप आने लगे । ऐसा करने वृक्षों के बीच फँसाकर मसल डालना, पींचकर उसके प्राण हर लेना था। कृष्ण उन दोनों वृक्षों के बीच में इस प्रकार आ गया था, जैसे चक्की के दो पाटों के बीच आ जाता है ।
अनाज का दाना
श्रीकृष्ण की रक्षा में अवस्थित देव शीघ्र ही जागरूक हुए। उन्होने उन दोनों वृक्षों को जड़ से उखाड़ डाला । वृक्ष धड़ाम से धराशायी हो गये
आसपास के गोपों को जब वृक्षों के गिरने की सुनाई दी तो वे वहाँ फौरन दौड़े आये । यशोदा का भी उधर ध्यान गया । तत्क्षण आई । पुत्र को वृक्षों के बीच देखा। उसने झट उसे गोद में उठाया, छाती से लगा लिया । वह प्यार से बार-बार उसका मुख चूमने लगी। उसे बडा पश्चाताप था कि उसकी तनिक सी असावधानी से उसके पुत्र के प्राण संकट में पड़ गये थे ।
कृष्ण की कमर में जब रस्सी बँधी देखी तो सभी उसे दामोदर के नाम से संबोधित करने लगे। सभी को यह विश्वास हो गया कि श्री कृष्ण अति बली है ।
यसोदा ने निश्चय किया, अब वह क्षण भर के लिए भी अपने पुत्र को आँखों से
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