Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Agam Shrut Prakashan View full book textPage 7
________________ १२६ भू. (१०) मू. (११) मू. (१२) मू. (१३) मू. (१४) महानिशीथ-छेदसूत्रम् -१/-९ दुचरियंजारिसो याहं जे मे दोसा य जे गुणा॥ घोरंधयार-पायाले गमिस्सेऽहमनुत्तरे। जत्थ दुक्ख-सहस्साइं अनुभविस्सं चिरंबहूं। एवं सव्वं वियाणते धमाधम्म सुहासुहं । अत्येगे गोयमा पाणीजे मोहायहियं न चिट्ठए। जेयावाय-हियं कुजा कत्थई पारलोइयं। मायाडमेण तस्सावी सयमवी तंन भावए॥ आया सयमेव अत्ताणं निउणं जाणे जहट्ठियं । आया चेव दुपत्तिजे धम्ममवि य अत्त-सक्खियं ॥ जंजस्सानुमयं हियए सो तं ठावेइ सुंदर-पएसु। सदूली निय-तणए तारिसकूरे विमन्नइ विसिटे ॥ अत्तत्तीया समेम्रा सयल-पाणिणो कप्पयंतऽप्पणप्पं । दुटुं वइ-काय-चे8 मणसिय-कलुसं जुंजयंते चरते ॥ निदोसे तंच सिढे ववगय-कलुसे पक्खवायं विमुखा। विक्खंतऽग्नंतपावे कलुसिय-हिययं दोस-जालेहिं नद्धं । परमत्य-तत्त-सिट्ट सब्भूयत्य पसाहंग। तब्मणियानुढाणेणंजे आयारंजए सकं॥ तेसुत्तमं भवे धम्मं उत्तमा तव-संपया। उत्तम सील-चारित्तं उत्तमा य गती भवे ॥ अत्गे गोयम पाणी जे एरिसमवि कोडिं गते। ससल्ले चरती धम्मं आयहियं नाव बुझइ ।। ससल्लो जइ विकटुगं घोर-वीर-तवं चरे। दिव्वं वाससहस्सं पिततो वी तंतस्स निष्फलं ।। सलंपि भन्नई पाजं नालोइय-निंदियं । नगरहियंन पच्छित्तं कयं जंजह य भाणियं ।। माया-डंममकत्तव्वं महापच्छन-पावया। अयज-मनायारं च सलं कम्मट्ठ-संगहो॥ संजम-अहम्मंच निस्सील-ब्बतता विय। सकुलसत्तमसुद्धी य सुकयनासो तहेव य॥ दुग्गइ-गमन मनुत्तारंदुक्खे सारीर-मानसे। अव्बोच्छिन्ने य संसारे विग्गोवणया महंतिया ।। केसं विरूव-रूवत्तं दारिदं-दोहग्गया। ___ हाहा-भूयसवेयणया-परिभूयं च जीवियं ॥ निग्घिण-नित्तिंस-कूरतं निद्दय-निक्किवयाविय। मू. (१६) मू. (१७) मू. (१८) मू. (१९) मू. (२०) मू. (२१) मू. (२२) मू. (२४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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