Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 6
________________ अध्ययनं: १, उद्देशक :- . १२५ ___ नमो नमो निम्मलदसणस पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामिने नमः ३९ महानिशीथं - छेदसूत्रं मूिलम् षष्ठं छेद सूत्रं * मूलम् एव (सधनतास ५छी परममनेमासूत्र०५२316वृत्ति-यूश નિયુક્તિ આદિમળેલ નથી માટે માત્ર મૂજ આપેલ છે अध्ययनं-१-शल्योखरणम् ) मू.(१) ओम् नमोतित्थस्स, ओम् नमोअरहंताणं, सुयं मे आउसं तेनं भगवया एवमक्खायंइह खलु छउमत्थ-संजम-किरियाए वट्टमाणे जेणं केइ साहू वा साहूणी वा से णं इमेणं परमत्यतत्त-सार-सब्भूयस्थ-पसाहग-सुमहत्थातिसय-पवर-वर-महानिसीह-सुयक्खंध-सुयानुसारेणंतिविहं तिविहेणं सब्व-भाव-भावंतरंतरेहिणं नीसल्ले भवित्ताणं आयहियट्ठाए अचंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठतव-संजमानुट्ठाणेसुसव्व-पमाया-लंबण-विप्पमुक्के अनुसमयमहिन्नसमनालसत्ताए सययंअनिचिन्नेअनन्न-परम-सद्धा-संवेग-वेरग्ग-मग्गगएनिन्नियाणोअनिगहिय-बल-वीरिय-पुरिसक्कारपरक्कमे अगिलानीए वोसट्टचत्त-देहे सुणिच्छि-एगग्गचित्ते-अभिक्खणं अभिरमेजा। म. (२) नोणंराग-दोस-मोह-विसय-कसाय-नाणालंबणानेग-पमाय इड्-िरस-सायागारवरोद्ददृज्झाण-विगहामिच्छत्ताविरइ-दुह-जोग-नाययणसेवणा-कुसीलादि-संसग्गी-पेसुन्नऽअक्खाणकलह-जातादि-मय-मच्छरामरीस-ममीकार-अहंकारादि-अणेग-भेय-भिन्न तामस-भाव-कलुसिएणं हियएणं हिंसालिय-चोरिक मेहुण-परिग्गहारंभ-संकप्पादि-गोयर-अज्झवसिए-धोर-पयंडमहारोद्द-घन-चिक्कणं-पावकम्म-मल-लेव-खवलिए असंवुडासव-दारे। मू. (३)एक्क-खण-लव-मुहुत्त निमिस-निमिसद्धब्अंतरमवि ससले विरत्तेज तंजहा उवसंते सव्वभावेणं विरत्ते य जया भवे । सव्वत्थ विसए आया रागेयर-मोह-वजिरे ।। मू. (५) तया संवेगमावन्ने पारलोइय वत्तणि। एगग्गेनेसती सम्म हामओ कत्थ गच्छिहं ।। मू. (६) को धम्मो को वओ नियमो को तवो मेऽनुचिडिओ। किं सीलं धारियं होज्जा को पुन दानो पयच्छिओ। जस्सानुभाव ओन्नत्थ हीन-मज्झुत्तमे कुले । सग्गे वा मनुय-लोए वा सोक्खं रिद्धिं लभेञ्जहं ।। म. (८) अहवा किंथ विसाएण सव्वंजाणामि अत्तियं । मू. (७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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