Book Title: Agam Sutra Satik 13 Rajprashniya UpangSutra 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 117
________________ ३०२ राजप्रश्नीयउपासूत्रम्- ४२ हिरण्णविहिं भाएंति, एवंसुवन्नविहि भाएंति रयणविहिं पुष्फविहि फलविहिं मल्लविहिं चुण्णविहिं वत्यविहिं गंधविहिं। तस्थ अप्पेगतिया देवा आभरणविहि भाएंति, अप्पेगतिया चउविहं वाइतं वाइंति ततं विततं घनं झुसिरं, अप्पेगइया देवा चउब्विहं गेयं गायंति, तं--उकिखत्तायं पायत्तायं मंदायं रोइतावसाणं, अप्पेगतिया देवा दुयं नट्टविहिं उवदंसिंति अप्पेगतिया विलंबियनट्टविहिं उवदंसेति अप्पेगतिया देवा दुतविलंबियं नट्टविहिं उवदेसेंति, -एवं अप्पेगतिया अंचियं नट्टविहिं उवदेसेंति अप्पेगतिया देवा आरभडभसोलं आरभडभसोलंउप्पयनिचयपमत्तं सकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभतणामं दिव्यं नट्टविहिं उवदंसेति अप्पेगतिया देवाचउब्विहं अभिनयं अभिनयंति, तंजहा-दिहतियं पाडंतियं सामंतोवणिवाइयं लोगअंतोमज्झावसाणियं, अप्पेगतिया देवा बुक्कारेति अप्पेगतिया देवा पीणेति। अप्पेगतियऽ वासेति अप्पेगतिया हकारेति अप्पेगतियाविणंतितडवेति अप्पेगइया वग्गंति अफोडेंति अप्पेगतिया अप्फोडेति वग्गंति अप्पे० तिवई छिदंति अप्पेगतिया हयहेसियं करेति, अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइय करेति, अप्पेगतिया रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहधणधणाइयं करेंति अप्पेगतिया उच्छोलेति। अप्पेगतिया पच्छोलेंति अप्पेगतिया उक्किट्टियं करेंतिअ० उच्छोलेंति करेंति अप्पेगतिया उच्छोलेति । अप्पेगतिया पच्छोलेंति अप्पेगतिया उक्किट्टियं करेतिअ० उच्छोलेंति पच्छोलेतिउ० अप्पेगतिया तिन्निवि, अप्पेगतिया उवायंति अप्पेगतिया उववायंति अप्पेगतिया परिवयंति अप्पेगइया तिन्निवि, अप्पेगइया सीहनायंति अप्पेगतिया दहरयं करेंति अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति। अप्पे० तित्रिवि अप्पेगतिया गजतिअप्पेगतिया विजुयायंति अप्पेगइया वासंवासंति अप्पेगतिया तिन्निवि करेंति, अप्पेगतिया जलंति अप्पेगतिया तवंति अप्पेगतिया पतति अप्पेगतिया तिन्निवि, अप्पेगतिया हक्कारेति अप्पेगतिया थुक्कारिति अप्पगतिया धक्कारेति, अप्पेगतिया साई २ नामाई साहेति अप्पेगति । चत्तारिवि। __-अप्पेगइयादेवा देवसन्निवायंकरेति-अप्पेगतिया देवुजोयंकरोति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेति, अप्पेगइयादेवा कहकहगंकरेति, अप्पेगतिया उप्पलहत्थगयाजावसयसहस्सपत्तहत्थगया अप्पेगतिया कलसहत्थगया जाव घूवकडुच्छयहत्थगया हट्ट तुट्ठ जाव हियया सव्वतो समंता आहावंति परिघावंति। तएणतंसूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओजाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने यबहवे सूरियाभरायहाणिवत्थवा देवाय देवीओयमहयामहया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति अभिसिंचित्ता पत्तेयं २ करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी जय २ नंदाजयर भद्दा जय जय नंदा भदंते अजियं जिणाहि जियं च पालेहि जियमझे वसाहि इंदो इव देवाणं चंदी इव ताराणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं भरहो इव मणुयाणं बहूई पलिओवमाइं बहूई सागरोवमाइं बहूइं पविओवमसागरोवमाइं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स अन्नेसिं च बहूणं सूरियाभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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