Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha Author(s): Gunsagarsuri Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust MumbaiPage 11
________________ 09555555555555555 (३८-२) पचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं # 99999 oros तद्भयमहवा विणिहिटुं ॥७६ ।। आलोयण - कालम्मि वि संकेस - विसोहि - भावओ नाउं हीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देजाहि ॥७७ ॥ इति दव्वाइ - बहु - गुणे गुरु - सेवाए य बहुतरं देज्जा हीणतरे हीणतरं हीणतरे जाव झोस त्ति ॥७८ ।। झोसिज्जइ सुबहुं पि हु जीएणऽन्नं तवारिहं वहओ वेयावच्चकरस्स य दिज्जइ साणुग्गहतरं वा ॥ ७९ ॥ तव - गव्विओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य तवसा य जो न दम्मइ अइपरिणाम - प्पसंगीय ॥८०॥ सुबहुत्तर - गुण - भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य पासत्थाई जो वि य जईण पडितप्पिओ बहुसो ॥ ८१ ॥ उक्कोसं तव - भूमि समईओ सावसेस - चरणो य छयं पणगाईयं पावइ जा धरइ परियाओं ॥८२।। आउट्टियाइ पंचिदिय - धाए मेहुणे य दप्पेणं सेसेसुक्कोसाभिक्ख - सेवणाईसु तीसुं पि ॥ ८३|| तव - गब्वियाइएसु य मूलुत्तर - दोस - वइयर - गएसुदंसण - चरित्तवन्ते चियत्त - किच्चे य सेहे य॥८४॥ अच्चन्तोसन्नेसुय परलिंग - दुगे य मूलकम्मे य भिक्खुम्मि य विहिय - तवेऽणवट्ठ - पारंचियं पत्ते ।। ८५ ॥ छेएण उ परियाएऽणवट्ठ - पारंचियावसाणे य मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥८६॥ उक्कोसंबहुसो वा पउट्ठ - चित्तो वितेणियं कुणइ पहरइ जो य स - पक्खे निरवेक्खो घोर - परिणामो ।। ८७ ।। अहिसेओ सव्वेसु वि बहुसो पारंचियावराहेसु अणवठ्ठप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अणेगासु ॥ ८८ ।। कीरइ अणवठ्ठप्पो सो लिंग - क्खेत्तर - कालओ - तवओ लिंगेण दव्व - भावे भणिओ पव्वावणाऽणरिहो ॥ ८९॥ अप्पडिविरओ - सन्नो न भाव - लिंगारिहोऽणवठ्ठप्पो जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥९॥जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिणाईणं ॥ ९१ ।। वासं बारस वासा पडिसेवी कारणेण सव्वो वि थोवं थोवतरं वा वहेज्ज मुंचेज वा सव्वं ॥९२॥ वंदइनय वंदिज्जइ परिहार - तवं सुदुच्चरं चरइ संवासो से कप्पइनालवणाईणि सेसाणि ॥९३ ।। तित्थयर - पवयण - सुयं आयरियं गणहरं महिड्ढियं आसायंत्तो बहुसो आभिणिवेसेण पारंची ॥९४॥जोयस- लिंगे दुट्ठो कसाय - विसए हिं राय - वहगो य राय ग्गमहिसि - पडिसेवओ य बहुसो पगासो य।।९५॥ थीणद्धि - महादोसो अन्नोऽन्नासेवणापसत्तो य चरिमट्ठाणावत्तिसु बहुसो य पसज्जए जो उ ॥ ९६ ॥ सो कीरइ पारंची लिंगाओ - खेत्तर - कालओ - तवओय संपागड - पडिसेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य ॥९७॥ वसहि - निवेसण - वाडग - साहि- निओग - पुर - देस - रज्जाओ खेत्ताओ पारंची कुल - गण - संघालयाओ वा ॥९८ ॥ जत्थुप्पन्नो दोसो उप्पज्जिस्सइ य जत्थ नाऊणं तत्तो तत्तो कीरइ खेत्ताओ खेत्त - पारंची।।९९ ॥ जत्तिय - मेत्तं कालं तवसा पारंचीयस्स उ स एव कालो दु- विगप्पस्स वि अणवठ्ठप्पस्स जोऽभिहिओ ॥१००॥एगागी खेत्त - बहिं कुणइ तवं सुविउलं महासत्तो अवलोयणमायरिओ पइ - दिणमेगो कुणइ तस्स ॥१०१।। अणवट्टप्पो तवसा तव - पारंची य दो वि वोच्छिन्ना चोद्दस - पुव्वधरम्मी धरंति सेसा उ जा तित्थं ॥१०२॥ इय एसजीयकप्पो समासओ सविहियाणुकम्माए कहिओ देयोऽयं पुण पत्ते सुपरिच्छिय - गुणम्मि ॥१०३ ॥ जमश्री पंचकल्पभाष्यम् । श्रीपंचकल्पभाष्यम् वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसगलसुयनाणीं । सुत्तत्थकारगमिसिं दसाण कप्पे य ववहारे । व्याख्येयं ॥१॥ कप्पंति णामणिप्फण्णं, महत्थं वत्तुकामतो। णिज्जूहगस्स भत्तीय, मंगलट्ठाएँ संथुतिं ॥२॥ तित्थगरणमोक्कारो सत्थस्स तु आइए समक्खाओ। इह पुण जेणऽज्झयणं णिज्जूढं तस्स कीरति तु ॥३॥ सत्थाणि मंगलपुरस्सराणि सुहसवणगणधरणाणि । जम्हा भवंति जति य सिस्सपसिस्सेहिंपचयं (खाइं) च ॥४॥ भत्ती य सत्थकत्तरि तत्तो(तं कय) उवओगगोरवं सत्थे। एएण कारणेणं कीरइ आदी णमोक्कारो।।५।। वदि अभिवादथुतीए सुभसद्दो णेगहा तु परिगीतो। वंदण पूयण णमणं थुणणं सक्कारमेगट्ठा ।।६।। भद्दन्ति सुंदरन्ति य तुल्लत्थो जत्थ(स्स) सुंदरा बाहू । सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु बालत्ते |७|| पाएणं लक्खिज्जइ पेसलभावो तु वाहुजुवयलस्स । उववण्णमतो णामं तस्सेयं जबद्दबाहुत्ति |८|| अण्णेवि भद्दबाहू विसेसणं गोत्त(ण्ण)गाहण पाईणं । अण्णेसिं पऽविसिद्वे(पिय सिद्धे)विसेसणं चरिमसगलसुतं ।।९|| चरिमो अपच्छिमो खलु चोइस पुव्वा उ होतिसगलसुतं । सेसाण वुदासट्टा सुत्तकर ऽज्झयणमेयस्स ॥१०॥ किं तेण कयं ? सुत्तं, जं भण्णति तस्स कारतो सो उ?। भण्णति गणधारिहिं CCF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C 语听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听圳乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 [D Education international 201003 www.jainelibrary.c ) FOLDouate-Decanoatisepnly srooEEEEEEEEEEEEEEEY515161555 श्री आगमगणमंजषा - १४६५ 155555555555555555555555EOYOYPage Navigation
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