Book Title: Agam 38 Chhed  05 Jitkalpa Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जितकल्प-पंचकल्प सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा॥ ॥श्री.मागम-गुण-४५।।। 11 Sri Agama Guna Manjusa 11 (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३) श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है। जीव और अजीव के बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताई है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पन्नवणासूत्र के ही पदार्थ है। यह आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४) श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है। इसमे ३६ पदो का वर्णन है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। ५) ६) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, २२०० श्लोक है। ७) श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है । ६ आरे के स्वरूप बताया है । ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। ९) ८) श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे गये उसका वर्णन है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्मकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है। चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। १२) श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली परचक भी कहते है। दश प्रकीर्णक सूत्र १) श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है । २) श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना और मृत्युसुधार ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार ( १ ) भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है । ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन है । इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। ७) श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने में समजाया गया है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित अन्य बातों का वर्णन है। १०) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। MO६५६६५६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ श्री आगमगुणमंजूषा H Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOX ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶KK Introduction 45 Agamas, a short sketch YURALSEA PERLA RADIO Quan Bài 3 Bà Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là 35 3 3 20 It is of the size of around 800 Ślokas. (8) Antagaḍa-daśānga-sutra: It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vṛṣṇi, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akṣobhakumāra, 6 sons of Devaki, Gajasukumara, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Kṛṣṇa, 8 queens like Rukmiņi. It is available of the size of 800 Ślokas. (9) Anuttarovavayi-daśānga-sūtra : It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimāna, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumara and other 9 princes of king Śrenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Apagara, etc. It is of the size of 200 Ślokas. I Eleven Angas: (1) Acărănga-sutra: It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 Ślokas. (2) Suyagaḍānga-sutra: It is also known as Sūtra-Kṛtānga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 Ślokas. (3) Thapanga-sutra: It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 Slokas. (4) Samaväyänga-sutra: This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 slokas. (5) Vyakhyā-prajñapti-sūtra : It is also known as Bhagavati-sūtra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 Ślokas. (6) Jäätädharma-Kathānga-sutra: It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 Ślokas. SEVEN A (7) Upāsaka-daśānga-sutra: It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahāvīra, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. (10) Praśna-vyākaraṇa-sūtra: It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahavira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 Ślokas. Vipaka-sūtranga-sutra: It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 Ślokas. (11) II Twelve Upangas (1) Uvavayi-sutra: It is a subservient text to the Acaranga-sutra. It deals with the description of Campă city, 12 types of austerity, procession-arrival of Konika's marriage, 700 disciples of the monk Ambaḍa. It is of the size of 1000 slokas. (2) Rayapaseni-sutra: It is a subservient text to Suyagaḍanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 Ślokas. www.jainelibrary Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********** IV Six Cheda-sūtras ********** (2) Nisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-sutra, YU MUNU AM VIÀO QUN ********¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ (1) Vyavahara-sutra, (3) Mahānisitha-sutra, (5) Daśāśruta-skandha-sūtra and (6) Bṛhatkalpa-sūtra. These Chedasûtras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. V Four Malasitras (1) Daśavaikalika-sutra: It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Cūlikäs called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthulabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahāvideha region and received four Culikās. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra: It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Pifaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. (4) Avasyaka-sutra: It is the most useful Agama for all the four groups 2010 03 of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are (1) Samayika, (2) Caturvimśatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kayotsarga and (6) Paccakhāṇa. VI Two Culikäs (1) Nandi-sütra: It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirthankaras and 11 Gaṇadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Ślokas. (2) Anuyogadvara-sutra: Though it comes last in the serial order of the 45 Agamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 Ślokas. ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶__¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TOO સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ 2 આગમ ૩૮ અ) જીતકલ્પ સૂત્ર બ) પંચકલ્પ સૂત્ર અ) જીતકલ્પ સૂત્ર ૩૮ - ૧ ૧૦૩ ગાથાના આ આગમમાં દેશના-વંદનાથી આરંભીને અભિધેય પ્રાયશ્ચિત્તનું સંક્ષિપ્ત વર્ણન આપ્યું છે. તે પછી પ્રાયશ્ચિત્તનું માહાત્મ્ય અને તેના દસ ભેદ જણાવ્યા છે. તે પછી આલોચના અને પ્રતિક્રમણ પ્રાયશ્ચિતના યોગ્ય દોષો, વિવેક અને વ્યુત્સર્ગ પ્રાયશ્ચિત્તના યોગ્ય દોષો, વળી જ્ઞાનાતિચાર, દર્શનાતિચાર, પંચ મહાવ્રતના અતિચાર અને તેના પ્રાયશ્ચિત્ત, વિવિધ તપના અતિચાર તેમજ દ્રવ્ય, દેરા અને કાલ અનુસાર તપ વિષયક પ્રાયશ્ચિત્ત, જીતયંત્રનો વિધિ, પ્રતિસેવના અનુસાર પ્રાયશ્ચિત્ત વગેરે વર્ણન સુંદર રીતે આ છેદ ગ્રંથમાં મળે છે. બ) પંચકલ્પ ૩૮- ૨ પંચકલ્પ મૂળ આગમ હાલમાં ઉપલબ્ધ નથી તેથી ભાષ્ય છપાય છે. આ ગ્રંથમાં સાધુના આચારો અને પાંચ કલ્પ ના પ્રાયશ્ચિત્ત ની વાતો જણાવી છે. નિષ્કપટીની અને કપટીની આલોચના પ્રાયચ્છિત, ગચ્છમાંથી નીકળેલા નું ફરી ગચ્છ પ્રવેશ પશ્ચાતાપીની ફરીથી દીક્ષા, પારાંચિત પ્રાયચ્છિતવાળાને, ક્રોધી, માની, ઉન્મતિ તેમ જ ઉપસર્ગથી પીડાયેલા મુનિ ને, આચાર્ય ઉપાધ્યાય પદ કોને આપવો ?, એલ વિહારીને પ્રાયચ્છિત, વંદનવ્યવહાર વિહારની મર્યાદા, સાપ કરડે ત્યારે શું કરવું ?, મોહવિજય, ગવેષણા, આચાર્ય ઉપાધ્યાયના પાંચ અતિશયો, સ્વાધ્યાય તથા વાંચના આપવી, મૃતશરીરની વિધિ, શય્યાત્તર ના ઘર નું શું ૨ે ? શું ન ક૨ે ? માનવમુત્ર સેવન વિધિ, ત્રણ પ્રકારના અભિગ્રહો આગમ ક્યારે વંચાય, દશ પ્રકારની વૈચાવય્ય અને તેનું ફળ श्री आगमगुणमंजूषा ५० 五五五五五五五卐6749呎 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%C2 HOROS85030355555 (३८-१० जीयकम्प सुत्त पंचम छेयसुतं [8] 1590090050sxssRENong सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स। सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमो। ३८ जीयकप्प - सुत्तं पंचम छेयसुत्तं कय- पयवण-प्पणामो वोच्छं पच्छित्तदानं - संखेवं जीयव्ववहार - गंय जीयस्स विसोहणं परमं ॥१॥ संवर - विनिज्जराओ मोक्खस्स पहो तवो पहो तासिंतवसोय पहाणंगं पच्छित्तं जंच नाणस्स ॥२॥ सारो चरणं तस्स वि नेव्वाणं चरण - सोहणत्थं च पच्छित्तं तेण तयं नेयं मोक्खत्थिणाऽवस्सं ||३|| तं दसविहमालोयण पडिकमणोभय विवेग वोस्सग्गे तव छेय - मूल - अणवक्कया य पारंचिए चेव ॥४॥ करणिज्जाजे जोगा तेसुवउत्तस्स निरइयारस्स छउमत्थस्स विसोही जइणो आलोयणा भणिया ।। ५ ।। आहाराइ - गहणे तह बहिया निग्गमेसुऽणेगेसु उच्चार - विहारावणि - चेइय - जइ - वंदणाईसु ॥६।। जं चऽन्नंकरणिज्जं जइणो हत्थ - सय - बाहिरायरियं अवियडियम्मि असुद्धो आलोएंतो तयं सुद्धो॥७॥ कारण - विणिग्गयस्स यस - गणाओ पर - गणागयस्स वि य उवसंपया - विहारे आलोयण - निरइयारस्स ।। ८|| गुत्ती - समिइ - पमाए गुरुणो आसायणा विनय - भंगे इच्छाईणमकरणे लहुस मुसाऽदिन्न - मुच्छासु ॥९॥ अविहीइ कास - जंभिय - खुय - वायासंकिलिठ्ठ - कम्मेसुकंदप्प - हास - विगहा - कसाय - विसयाणुसंगेसु ॥१०॥ खलियस्स य सव्वत्थ वि हिंसमणावज्जओ जयंतस्स सहसाऽणाभोगेण व मिच्छाकारो पडिक्कमणं ॥ ११ ॥ ओभोगेण वि तणुएसु नेह - भय - सोग - वाउसाईसु कंदप्प - हास - विगहाईएसु नेयं पडिक्कमणं ॥ १२॥ संभम - भयाउरावइ - सहसाउणभोगप्प - वसओ वा सव्व - वयाईयारे तदुभयमासंकिए चेव ॥ १३ ।। दुच्चितिय - दुब्भासिय - दुच्चेट्ठिय - एवमाइयं बहुसो उवउत्तो वि न जाणइ जं देवसियाइ - अइयारं॥ १४ ॥ सव्वेसु वि बीय - पए दंसण - नाण - चरणावराहेसु आउत्तस्स तदुभयं सहसक्कराराइणा चेव ॥१५॥ पिंडोवहि - सेज्जाई गहियं कडोगिणोवउत्तेण । पच्छा नायमसुद्धं सुद्धो विहिणा विगिचंतो ॥ १६ ॥ कालऽद्धाणाइच्छिय - अनुग्गयत्थमिय - गहियमसढो उ कारण - गहि - उव्वरियं भत्ताइ - विगिचियं सुद्धो ॥ १७|| गमणागमण - विहारे सुयम्मि सावज्ज - सुविणयाईसु नावा - नइ - संतारे पायच्छित्तं विउस्सग्गो ॥१८॥ भत्ते - पाणे सयणासणे य अरिहंत - समण - सेज्जासु उच्चारे पासवणे पणवीसं होति ऊसासा ॥१९॥ हत्थ - सय - बाहिराओ गमणाऽऽगमणाइएसु पणवीसं पाणिवहाई - सुविणे सयमठ्ठसयं चउत्थम्मि ॥२०॥ देसिय - राइय - पक्खिय - चाउम्मास - वरिसेसु परिमाणं सयमद्धं तिन्नि सया पंच - सयऽद्भुत्तरसहस्सं ॥२१ ।। उद्देस - समुद्देसे सत्तावीसं अनुण्णवणियाए। अद्वैव य ऊसासा पठ्ठवण - पडिक्कमणमाई ।। २२ ।। उद्देसऽज्झयण - सुयक्खंधंगेसु कमसो पमाइस्स कालाइक्कमणाइसुनाणायाराइयारेसु ॥२३॥ निव्विगइय - पुरिमड्ढेगभत्त - आयंबिलं चणागाढे पुरिमाई खमणंतं आगाढे एवमत्थे वि ॥ २४ ॥ सामन्नं पुण सुत्ते मयमायामं चउत्थमत्थम्मि अप्पत्ताऽपत्ताऽवत्त - वायणुद्देसणाइसु य ॥२५॥ कालाविसज्जणाइसु मंडलि - वसुहाऽपमज्जणाइसु य निव्वीइयमकरणे अक्ख - निसेज्जा अभत्तट्ठो ॥२६।। आगाढाणागाढम्मि सव्व - भंगे य देस - भंगेयजोगे छठ्ठ - चउत्थं चउत्थमायंबिल कमसो ॥ २७ ॥ संकाइएसु देसे खमणं मिच्छोवबूहणाइसु य पुरिमाई खमणतं भिक्खु - प्पभिईण व चउण्हं ॥ २८ ।। एवं चिय पत्तेयं उवबूहाईणमकरणे जइणं आयामतं निव्वीइगाइ पासत्थ - सड्ढेसु ।।२९|| परिवाराइ - निमित्तं ममत्त - परिपालणाइ वच्छल्ले साहम्मिओ त्ति संजम - हेउं वा सव्वहिं सुद्धो ॥ ३०॥ एगिदियाण घट्टणमगाढ - गाढ - परियावणुद्दवणे । निव्वीयं पुरिमड्ढं आसणमायामगं कमसो ॥ ३१ ॥ पुरिमाई खमणतं अनंत - विगलिदियाण पत्तेयं पंचिदियम्मि एगासणाइ कल्लाणयमहेगं ॥ ३२ ॥ मोसाइसु मेहुण - वज्जिएसु दव्वाइ - वत्थु - भिन्नेसु हीणे मज्झुक्कोसे आसणमायाम - खमणाई ।। ३३ ॥ लेवाडय - परिवासे अभत्तट्ठो सुक्क - सन्निहीए य इयराए छ? - भत्तं अट्ठमगं सेस - निसिभत्ते ॥३४ ।। उद्देसिय - चरिम - तिगे कम्मे पासंड - स - घर - मीसे 過失明明明明明明明明明明明明明明明明明劣明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐明明听听听听听心C區 %%%%%%% XC%%%%%%% (सौन्य :- श्री हंसरा लामा शाह परिवार नपायास (5२७) प्रेरणा - जीशमार (राया)) MOO555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १४६३ 59555555555555555555555556TOR Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PO95555555555555 (३८-१) जीयकप्प सुत्तं पंचम छेयसुतं श CC乐乐乐乐乐听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐明明明明明明明明纸乐乐乐乐历乐乐6CM य बायर - पाहुडियाए सपच्चवायाहडे लोभे ॥३५॥ अइरं अनंत - निक्खित्त - पिहिय - साहरिय - मीसयाईसु संजोग - स - इंगाले दुविह - निमित्ते य खमणं तु ॥ ३६॥ कम्मुद्देसिय - मीसे धायाइ - पगासणाइएसुं च पुर - पच्छ - कम्म - कुच्छिय - संसत्तालित्त - कर - भत्ते ॥३७॥ अइरं परित्त - निक्खित्त - पिहिय - साहरिय - मीसयाईसु अइमाण - धूम - कारण विवज्जए विहिय मायामं ॥३८॥ अज्झोयर - कड - पूईय - मायाऽनंते परंपरगए यमीसानंतानंतरगया इए चेगमासणयं ॥ ३९॥ ओह - विभागुद्देसोवगरण - पूईय - ठविय - पागडिए लोउत्तर - परियट्टिय - पमिच्च - परभावकीए य ॥४०॥ सग्गामाहृड - दद्दर - जइन्नमालोहडोझरे पढमे सुहुम - तिगिच्छा - संथव - तिग - मक्खिय - दायगो वहए ।। ४१ ॥ पत्तेय - परंपर - ठविय - पिहिय - मीसे अनंतराईसु पुरिमड्ढं संकाए जं संकइ तं समावज्जे ॥४२॥ इत्तर - ठविए सुहुमे ससणिद्ध - ससरक्ख - भक्खिए चेव मीस - परंपर - ठवियाइएसु बीएसु याविगई ॥४३॥ सहसाऽणाभोगेणव जेसु पडिक्कमणमभिहियं तेसु आभोगओत्ति बहुसो - अइप्पमाणे य निव्विगई ।। ४४॥ धावण - डेवण - संघरिस - गमण - किड्डा - कुहावणाईसु उक्कुट्ठि- गीय - छेलिय - जीवरुयाईसु य चउत्थं ॥ ४५|| तिविहोवहिणो विच्चुय - विस्सारियऽपहियानिवेयणए निव्वीय - पुरिममेगासणाइ सव्वम्मि चायामं ॥ ४६॥ हारिय - धो - उग्गमियानिवेयणादिन्न - भोग - दानेसु आसण - आयाम - चउत्थगाइ सव्वम्मि छटुंतु ॥४७॥ मुहनंतय - रयहरणे फिडिए निव्वीययं चउत्थं च नासिय - हारविए वा जीएण चउत्थ - छट्ठाइं ॥४८॥ कालऽद्धाणाईए निव्विइयं खमणमेव परिभोगे अविहि - विगिंचणियाए भत्ताईणं तु पुरिमड्ढं ।। ४९॥ पाणस्सासंवरणे भूमि - तिगापेहणे य निव्विगई सव्वस्सासंवरणे अगहण - भंगे य पुरिमड्ढं ॥ ५०॥ एयं चिय सामन्नं तवपडिमाऽभिग्गहाइयाणं पि निव्वीयगाइ पक्खिय - पुरिसाइ __- विभागओ नेयं ॥५१॥ फिडिए सयमुस्सारिय - भग्गे वेगाइ वंदणुस्सग्गे निव्वीइय - पुरिमेगासणाइ सव्वेसु चायाम ।। ५२ ।। अकएसु य पुरिमासण - आयाम सव्वसो चउत्थं तु पुव्वमपेहिय - थंडिल - निसि - वोसिरणे दिया सुवणे ॥५३॥ कोहे बहुदेवसिए आसव - कक्कोलगाइएसुं च लसुणाइसु पुरिमड्ढं तन्नाई - बन्ध - मुयणे य ॥ ५४॥ अझुसिर - तणेसु निव्वीइयं तु सेस - पणएसु पुरिमड्ढे अप्पडिलेहिय - पणए आसणयं तस - वहे जं च ॥५५॥ठवणमणापुच्छाए निव्विसओ विरिय - गृहणाए य जीएणेक्कासणय सेसय - मायासुखमणं तु ॥५६॥ दप्पेणं पंचिदिय - वीरमणे संकिलिट्ठ - कम्मे यदीहऽद्धाणासेवी गिलाण - कप्पावसाणे य ॥ ५७॥ सव्वोवहि - कप्पम्मि य पुरिमत्ता पेहणे य चरिमाए चाउम्मासे वरिसे य सोहणं पंच - कल्लाणं ॥५८|| छेयाइमसद्दहओ मिउणो परियाय - गविवयस्स वि य छेयाईए वि तवो जीएण गणाहिवइणो य ॥ ५९॥जंजं न भणियमिहई तस्सावत्तीए दान - संखेवं भिन्नाइया य वोच्छं छम्मासंताय जीएणं ॥६० ॥ भिन्नो अविसिट्ठो च्चिय मासो चउरो य छच्च लहु - गरुया निव्वियगाई अट्ठमभत्तंत दानमेएसिं ॥६१॥ इयसव्वावत्तीओतवसोनाउंजह - कम्मं समएजीएणदेज्ज निव्वीइगाइ - दानं जहाभिहियं ॥६२ ।। एयं पुण सव्वं चिय पायं सामन्नओ विणिद्दिढं दानं विभागओ पुण दव्वाइ - विसेसियं जाण ॥ ६३ ॥ दव्वं खेत्तं कालं भावं पुरिस - पडिसेवणाओ य नाउमियं चिय देज्जा तम्मत्तं हीनमहियं वा ॥६४ । आहाराई दव्वं बलियं सुलहं च नाउमहियं पि देज्जा हि दुब्बलं दुल्लहं च नाऊण हीनं पि ।। ६५॥ लुक्खं सीयल - साहारणं च खेत्तमहियं पि सीयम्मि लुक्खम्मि हीनतरयं एवं काले वि तिविहम्मि ॥६६ ।। गिम्ह - सिसिर - वासासुं देज्जऽट्ठम - दसम - बारसंताई। नाउं विहिणा नवविह - सुयववहारोवएसेणं ॥६७।। हट्ठ - गिलाणा भावम्मि - देज हट्ठस्स न उ गिलाणस्स जावईयं वा विसहइ तं देज सहेज्ज वा कालं ॥ ६८ ॥ पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥६९ ॥ तह धिइ - संघयणोभय - संपन्ना तदुभएण हीणा य आय - परोभय - नोभय - तरगा तह अन्नतरगा य ॥७०॥ कप्पट्ठियादओ वि य चउरो जे सेयरा समक्खाया सावेक्खेयर - भेयादओ वि जे ताण पुरिसाणं ॥ ७१ ॥ जो जह - सत्तो - बहुत्तर - गुणो व तस्साहियं पि देज्जाहि हीणस्स हीणतरगं झोसेज्ज व सव्व - हीणस्स ॥ ७२ ॥ एत्थ पुण बहुतरां भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य जंतेण जीयमट्ठमभत्तंतं निव्वियाईयं ।। ७३ ॥ आउट्टियाइ दप्प - प्यमाय - कप्पेहि वा निसेवेज्जा दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो ।। ७४ ॥ जंजीय - दानमुत्तं एयं पायं पमायसहियस्स एत्तो च्चिय ठाणंतरमेगं वड्ढेज दप्पवओ ॥७५|| आउट्टियाइ ठाणंतरं च सट्ठाणमेव वा देज्जा कप्पेण पडिक्कमणं Re0555555555555555555555554[ श्री आगमगुणभजूषा - १४६४ |555555555555555555555 9595%2FOTOX ONO$听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明乐乐QLO Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 09555555555555555 (३८-२) पचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं # 99999 oros तद्भयमहवा विणिहिटुं ॥७६ ।। आलोयण - कालम्मि वि संकेस - विसोहि - भावओ नाउं हीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देजाहि ॥७७ ॥ इति दव्वाइ - बहु - गुणे गुरु - सेवाए य बहुतरं देज्जा हीणतरे हीणतरं हीणतरे जाव झोस त्ति ॥७८ ।। झोसिज्जइ सुबहुं पि हु जीएणऽन्नं तवारिहं वहओ वेयावच्चकरस्स य दिज्जइ साणुग्गहतरं वा ॥ ७९ ॥ तव - गव्विओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य तवसा य जो न दम्मइ अइपरिणाम - प्पसंगीय ॥८०॥ सुबहुत्तर - गुण - भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य पासत्थाई जो वि य जईण पडितप्पिओ बहुसो ॥ ८१ ॥ उक्कोसं तव - भूमि समईओ सावसेस - चरणो य छयं पणगाईयं पावइ जा धरइ परियाओं ॥८२।। आउट्टियाइ पंचिदिय - धाए मेहुणे य दप्पेणं सेसेसुक्कोसाभिक्ख - सेवणाईसु तीसुं पि ॥ ८३|| तव - गब्वियाइएसु य मूलुत्तर - दोस - वइयर - गएसुदंसण - चरित्तवन्ते चियत्त - किच्चे य सेहे य॥८४॥ अच्चन्तोसन्नेसुय परलिंग - दुगे य मूलकम्मे य भिक्खुम्मि य विहिय - तवेऽणवट्ठ - पारंचियं पत्ते ।। ८५ ॥ छेएण उ परियाएऽणवट्ठ - पारंचियावसाणे य मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥८६॥ उक्कोसंबहुसो वा पउट्ठ - चित्तो वितेणियं कुणइ पहरइ जो य स - पक्खे निरवेक्खो घोर - परिणामो ।। ८७ ।। अहिसेओ सव्वेसु वि बहुसो पारंचियावराहेसु अणवठ्ठप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अणेगासु ॥ ८८ ।। कीरइ अणवठ्ठप्पो सो लिंग - क्खेत्तर - कालओ - तवओ लिंगेण दव्व - भावे भणिओ पव्वावणाऽणरिहो ॥ ८९॥ अप्पडिविरओ - सन्नो न भाव - लिंगारिहोऽणवठ्ठप्पो जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥९॥जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिणाईणं ॥ ९१ ।। वासं बारस वासा पडिसेवी कारणेण सव्वो वि थोवं थोवतरं वा वहेज्ज मुंचेज वा सव्वं ॥९२॥ वंदइनय वंदिज्जइ परिहार - तवं सुदुच्चरं चरइ संवासो से कप्पइनालवणाईणि सेसाणि ॥९३ ।। तित्थयर - पवयण - सुयं आयरियं गणहरं महिड्ढियं आसायंत्तो बहुसो आभिणिवेसेण पारंची ॥९४॥जोयस- लिंगे दुट्ठो कसाय - विसए हिं राय - वहगो य राय ग्गमहिसि - पडिसेवओ य बहुसो पगासो य।।९५॥ थीणद्धि - महादोसो अन्नोऽन्नासेवणापसत्तो य चरिमट्ठाणावत्तिसु बहुसो य पसज्जए जो उ ॥ ९६ ॥ सो कीरइ पारंची लिंगाओ - खेत्तर - कालओ - तवओय संपागड - पडिसेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य ॥९७॥ वसहि - निवेसण - वाडग - साहि- निओग - पुर - देस - रज्जाओ खेत्ताओ पारंची कुल - गण - संघालयाओ वा ॥९८ ॥ जत्थुप्पन्नो दोसो उप्पज्जिस्सइ य जत्थ नाऊणं तत्तो तत्तो कीरइ खेत्ताओ खेत्त - पारंची।।९९ ॥ जत्तिय - मेत्तं कालं तवसा पारंचीयस्स उ स एव कालो दु- विगप्पस्स वि अणवठ्ठप्पस्स जोऽभिहिओ ॥१००॥एगागी खेत्त - बहिं कुणइ तवं सुविउलं महासत्तो अवलोयणमायरिओ पइ - दिणमेगो कुणइ तस्स ॥१०१।। अणवट्टप्पो तवसा तव - पारंची य दो वि वोच्छिन्ना चोद्दस - पुव्वधरम्मी धरंति सेसा उ जा तित्थं ॥१०२॥ इय एसजीयकप्पो समासओ सविहियाणुकम्माए कहिओ देयोऽयं पुण पत्ते सुपरिच्छिय - गुणम्मि ॥१०३ ॥ जमश्री पंचकल्पभाष्यम् । श्रीपंचकल्पभाष्यम् वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसगलसुयनाणीं । सुत्तत्थकारगमिसिं दसाण कप्पे य ववहारे । व्याख्येयं ॥१॥ कप्पंति णामणिप्फण्णं, महत्थं वत्तुकामतो। णिज्जूहगस्स भत्तीय, मंगलट्ठाएँ संथुतिं ॥२॥ तित्थगरणमोक्कारो सत्थस्स तु आइए समक्खाओ। इह पुण जेणऽज्झयणं णिज्जूढं तस्स कीरति तु ॥३॥ सत्थाणि मंगलपुरस्सराणि सुहसवणगणधरणाणि । जम्हा भवंति जति य सिस्सपसिस्सेहिंपचयं (खाइं) च ॥४॥ भत्ती य सत्थकत्तरि तत्तो(तं कय) उवओगगोरवं सत्थे। एएण कारणेणं कीरइ आदी णमोक्कारो।।५।। वदि अभिवादथुतीए सुभसद्दो णेगहा तु परिगीतो। वंदण पूयण णमणं थुणणं सक्कारमेगट्ठा ।।६।। भद्दन्ति सुंदरन्ति य तुल्लत्थो जत्थ(स्स) सुंदरा बाहू । सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु बालत्ते |७|| पाएणं लक्खिज्जइ पेसलभावो तु वाहुजुवयलस्स । उववण्णमतो णामं तस्सेयं जबद्दबाहुत्ति |८|| अण्णेवि भद्दबाहू विसेसणं गोत्त(ण्ण)गाहण पाईणं । अण्णेसिं पऽविसिद्वे(पिय सिद्धे)विसेसणं चरिमसगलसुतं ।।९|| चरिमो अपच्छिमो खलु चोइस पुव्वा उ होतिसगलसुतं । सेसाण वुदासट्टा सुत्तकर ऽज्झयणमेयस्स ॥१०॥ किं तेण कयं ? सुत्तं, जं भण्णति तस्स कारतो सो उ?। भण्णति गणधारिहिं CCF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C 语听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听圳乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 [D Education international 201003 www.jainelibrary.c ) FOLDouate-Decanoatisepnly srooEEEEEEEEEEEEEEEY515161555 श्री आगमगणमंजषा - १४६५ 155555555555555555555555EOYOY Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AOR55555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [४] $$ $ RONOR HCFC%%%%%%%%听听听听听听听听听听听听玩明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听$5C网 सव्वसुयं चेव पुवकतं ॥११॥ तत्तोच्चिय णिज्जूढं अणुग्गहट्ठाय संपयजतीणं । सो(तो)सुत्तकारओ कलु स भवति दसकप्पववहारे ||१२|| वंदे तं भगवंतं बहुभद्दसुभद्दसव्वओभदं । पवयणहियसुय(ह)केतुं सुयणाणपभावगं धीरं ॥२॥ लघुभाष्यं १||१३|| वदिसद्दो पुव्वभणिओ तदिती तं चेव णामगोत्तेहिं । इस्सरियाइ गुण भगो सो से अत्थित्ति तो भगवं |४|| भद्दे कल्लाणंति य एगट्टं तं च सुबहुयं जस्स। सो होति सुबहुभद्दो सोभणभद्दो सुभद्दोति।।५।। खीरामसवमदीणि तु सुभाणि भद्दाणि तस्स तु बहूणि । सव्वउ इह परलोए भदं तो सव्वतोभद्दो॥६|| आमोसहादि इह तह परलोए होतऽणुत्तरसुरादी।सुकुलुप्पत्ती य तओ ततोय पच्छायणेव्वाणं ॥७॥ भातित्ति भद्दमहवा भद्दमहवा भाई णाणादीएहिं सोजम्हा। सो होति भद्दणामो कुणेति भद्दाणि वा जम्हा ॥८॥ पवयण दुवालसंगं तस्स हितो जं करेतऽवोच्छित्तिं । संघो तु पवयणं तू हितोवदेसं अतो तस्स ।।९|| केतूसद्दो उसियं तुंगं तु तस्स तु सुहं तु । इहलोए परलोए सो भगवं होति परमसुही ॥२०|| वायणय पभावणया सुतणाणगुणा य जे वदति लोए। विउसपरिसाएँ मज्झे सुतणाणपभावणा एसा ॥१॥ किं कारण तस्स कओ महया भत्तीय तू णमोक्कारो ?। जम्हा तेणं जूढा अम्ह हियट्ठाय सुत्त इमे ।।२।। आयारदसा कप्पो ववहारो णवमपुव्वणीसंदो। चारित्तक्खणट्ठा सूयकडस्सुप्परि ठविता ||३|| अंगदसा अण्णावि हु उवासगादीण तेण उ विसेसो। आयारदसा उइमा जेणेत्थं वण्णियाऽऽयारा॥४॥ दसकप्पव्वहारा एगसुतक्खंध केइ इच्छंति। केई व दसा एक्कं कप्पववहार बीयं तु॥५॥ रयणागरथाणीयं णवमं पुव्वं तु तस्स णीसन्दो। परिगाल परिस्सावो एते दसकप्पववहारा ॥६॥ किं कारण णिज्जूढा चरित्तसारस्स रक्खणट्ठाए । खलियस्स तहिं सोही कीरइ तो होति निरुवयं ।।७।। सूयकडुवरि ठविता जम्हा तू पंचवासपरियाए। सूयकडमहिज्जति तू तो जोग्गो होति सो तेसिं॥८॥ अणुकंपाऽवुच्छेदो कुसुमा भेरी तिगिच्छ पासिच्छा कप्पे परिसा य तहा दिटुंता आदिसुत्तम्मि ॥९॥ ओसप्पिणि समणाणं हाणिं णाऊण आउगबलाणं । होहिंतुवग्गहकरा पुव्वहकरा पुव्वगतम्मी पहीणम्मि ॥३॥३०॥ खेत्तस्सय कालस्सय परिहाणिं गहणधारणाणं च । बलविरिए संघयणे सद्धा उच्छाहतो चेव ॥४॥१॥ किं खेतं काला वा संकुयती जेण तेण परिहाणी। भन्नइ न संकुयंती परिहाणी तेसि तु गुणेहिं ॥२॥ भणियं तु दूसमाए गामा होहिति तू समाणसमा । इय कारण(खेत्ते) गुणहाणी कालेवि उहोतिमा हाणी ॥३॥ समए समए णंता परिहायंते उ वण्णमादीया। दव्वादीपज्जाया अहोरत्तं तत्तियं चेव ॥४॥ दूसमअणुभावेणं साहुजोग्गा उदुल्लभा खेत्ता । कालेविय दुब्भिक्खा अभिक्खणं होति इमरा यल०२॥५॥ दूसमअणुभावेण य परिहाणी होति ओसहिबलाणं । तेणं मणुयाणंपि तु आउगमेहादिपरिहाणी ||ल० ३||६|| संघयणंपिय हीयइ ततोय हाणी य धितिबलस्स भवे । विरियं सारीरबलं तंपिय परिहाति सत्तं च ॥ल०४||७|| हायंति य सद्धाओ गहणे परिव(य)ट्टणे य मणुयाणं । उच्छाहो उज्जोगो अणालसत्तं च एगट्ठा।ल०५॥८॥ इय णाउं परिहाणिं अणुग्गहट्ठाएँ एस साहूणं । णिज्जूढडणुकंपाए दिलुतेहिं इमेहिं तु ।।९।। पगरणचेडऽणुकंपा दविदड्डेहिं होयगारीणं । जह ओमे बीयभत्तं रण्णा दिण्णं जणवयस्स॥५॥४०॥ एवं अप्पत्तच्चिय पुव्वगतं केइमा हुमारिहंति। तो उद्धरिऊण ततो हेट्ठा उत्तारियं तेहिं॥१॥माय हु वोच्छिज्जिहिति ॥ चरणगुओगोत्ति तेण णिज्जूढं । वोच्छिण्णे बहु तम्मी चरणाभावो भवेज्जाहि ।।२।। कह पुण तेण गहेतुं दिण्णाई तत्थिमो तु दिद्रुतो। जह कोइ दुरारोहो सुसुरभिकुसुमो तु कप्पमो।।३।। पुरिसा केइ असत्ता तं आरोढूण कुसुमगहणट्ठा । तेसिं अणुकंपट्ठा केइ ससत्तो समारुज्झे ।।४।। घेत्तुं कुसुमा सुहगहणहेतुगं गथिउं दले तेसिं। तह चोद्दसपुव्वतलं आरूढो भद्दबाहू तु ||५|| अणुकंपट्ठा गथिउं सूयगडस्सुप्परि ठवे धीरो । तं पुण सुतोवएसेण चेव गहितं ण सेच्छाए ॥६।। अण्णह गहिए दोसो असाहगं णाणमाईणं । केसवभेरीणातं वक्खातं पुव्वसामइए |७|| अहवा तिगिच्छओ तु ऊणहियं वावि ओसहं दिज्जा । तेहिं तु(तहिं तू)ण कज्जसिद्धी सिद्धी विवरीयए भवति ॥८॥ पारिच्छ पारिच्छित्तू पकप्पमादी दलंति जोग्गस्स । परिणामादीणं तू दारूगमाहिं णातेहिं ॥६॥४९॥ पारिच्छ अदिसुत्ते पुव्वं भणिया तु जा उ विहिसुत्ते । सेलघणादी परिसा पूरंताई य भण्णिहति ॥५०॥ परिसादारं भणितं कप्पहारं कमेण हु इदाणिं । किं पुण उक्कमकरणं बहुवत्तव्वंति णाऊणं ॥१।। किं पुण कप्पज्झयणे वन्निज्जति भण्णती सुणसु ताव । जे अभिहिता उ अत्था तहियं ते ऊ समासेणं ।।२।। कप्पे पकप्पिए चेव, कप्पणिज्नेत्तिआवरे । फासुए एसणिज्जे य, %听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听乐 MOKOS$ 5999945454545555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४६६5555555555555555555EOYOY Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुतं [५] *********** संजमे इत्तियावरे ॥७ ॥३॥ वालए वागए चेव चम्मए पट्टए तहा। पम्हए किमिए चेव धातुए मीसतेति य ||८ ||४|| उवसंपया चरित्तस्स, चरित्ते कइविहे इय? | नियंठा कति पण्णत्ता ?, कहं समोतारणातिय || ९ ||५|| ववहारे कस्स पण्णत्ते ?, कहं पडिसेवणाविय ?। देसभंगे कहं वुत्ते ?, सव्वभंगेत्तियावरे || १० ||६|| पच्छित्ते कइविहे वुत्ते, छट्टाणित्तियावरे | पंचट्ठाणे चतुट्ठाणे, तिट्ठाणे इतियावरे || ११ ||७||० छट्टाणे दंसणे वत्ते, संजमे इत्तियावरे । गाहणा य चरित्तस्स, एमेता पडिवत्तिओ ॥ १२ ॥८॥ कप्पो उ होति दुविहो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य । दुविहो उ कप्पिओ खलु दव्वे भावे य णायव्वो ||९|| आगमणो आगमओ दव्वम्मी कप्पिओ भवे दुविहो । आगमतोऽणुवउत्तो णोआगमतो इमो होति ||६०|| जाणगसरीर भविए तव्वतिरित्ते य होति णायव्वो । जाणग भयगसरीरं भविओ पुण सिक्खिही जो तु || १|| वतिरित्तो एगभवो बद्धाऊ अभिमुहो य बोद्धव्वो । भावेवि होति दुविहो आगमणो आगमे चेव ||२|| आगमओ उवउत्तो णोआगमओ य पिंडमाईणं । गहणंमि कप्पिओ खलु पव्वावेतुं च सेहाणं ॥ ३॥ जं जं जोग्गं जतीणं आहारादी तहेव सेहा य। एवं तु कप्पणिज्जं अपरिग्गहणा अकप्पम्मि ॥ १३ ॥४॥ आहारि पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए । सेज्जाए दगसाला अकप्प सेहा य जे अन्ने ॥५॥ केरिसयं कप्पणिज्जं ? फासुयगं, फासूयं तु केरिसगं ? । जीवजढं जं दव्वं तंपि य जं एसणिज्जं तु ॥६॥ दसदोसविप्पमुक्कं गहिय चसद्देण उग्गमादीवि । एयं तु साहुजोग्गं गिण्हंतो संजतो होति ||७|| अहवा सत्तरसविहो संजम जं वावि सुत्तछंदेणं । भुंजति आहाराती विवरीयमसंजमो होइ ||८|| आहारस्स उ भेदो उसणादी उवहिणो उ वालादी । एतेंसि तु परूवण वालयममादीणिमा होति || १४ || ९ || वालेहिं णिप्फण्णं वालयमोणोट्टियादिगं होति । वक्केहि तु णिप्फण्णं वागज सणवक्कमादीगं || ७० || चम्मं चम्मपडीए पट्टो उण होतिमो मुणेयव्वो । पल्लत्थोग्गहपट्टा तिरीउपट्टो य एमादी ॥१॥ पम्हज हंसगब्भादि अहवा कप्पासियं मुणेयव्वं । कोसेज्जपट्टमादी जं किमियं तू पवुच्चति ||२|| छुब्भति वंसकरिल्लो कंमिवि देसंमि तरुणते घडए । वट्टं तो पूरयती तं घडयं चिप्पिए तंमि ||३|| संकोहेऊण कणयं तेहिं तम्हा उ किज्जए सुत्तं । तेणं वयं जं वत्थं भण्णति तं धातुतं णाम ||४|| दुगसंजोगादीहिं एएसिं चेव वालयादीणं । तं मीसयंति भण्णति जह ऊमक्खो (दुण्हं खो) म्हियादीयं ||५|| वत्तव्व चसद्देण भेयपभेदा उ जेत्तिया तेसिं । सुद्धेहेतेहिं तू उवसंपण्णो हु सचरित्ती ॥६॥ अहवा पंचविहातो उवसंपय होतिमा समादेणं । सुय सुहदुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य बोद्धव्वा ॥७॥ अहवा तिविहुवसंपय णाणे तह दंसणे चरित्ते य । चरितं च कतिविहं तू पंचविहं तं इमं होति ||८|| सामइयं छेदुवट्ठावणं च परिहारसुद्धियं चेव । तत्तो य सुहुमरागं अहखायं चेव बोद्धव्वं ||९|| अहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवावि । खाइग खओवसमितं उवसमियं वा भवे तिविहं ||८०|| भेदा उ चसद्देणं होति इमे णाणदंसणाणं तु । खाइय खओवसमियं दुविहं णाणं मुणेयवं ॥१॥ खइयं केवलनाणं खओवसमियाई सेसणाणाई। खइयं खओवसमियं उवसमियं दंसणं तिविहं ||२|| कस्सेतं चारित्तं ? णियंठ तह संजयाण, ते कतिहा ? | पंच नियंठा पंचेव संजया होतिमे कमसो || ३ || पुलए बउस कुसीले होति णियंठे तहा सिणाए य । एएसिं एक्वेक्को पंचविहो होति बोद्धव्वो ॥४॥ णाणपुलाए तह दंसणे य चारित्त लिंग अहसुहुमे । एसो पंचविहो खलु पुलयणियंठो मुणेयव्वो ||५|| आभोगमणाभोगे तह संवुडऽसंबुडे अहासुहुमे। एसो पंचविहो तू बउसणियंठो ॥६॥ दुविहो होति कुसीलो पडिसेवणया तहा कसाए य । एक्केक्का पंचविहो परूवणा तेसिमा होति ||७|| णाणपडिसेवणाए दंसण चरणे य लिंगे असुमुहे । पडिसेवणाकुसीलो पंचविहो एस णायव्वो ॥ ८॥ णाण कसायकुसीले दंसण चरणे य लिंग अहसुहमो । एस कसायकुसीलो पंचविहो तू मुणेयव्वो ॥ ९ ॥ पढमगसमयनियंठे अपढम चरिमे व तह अचरिमे य । तत्तो य अहासुहुमे पंचमए होति णायव्वो ||१०|| पंचविहे सिणाए तू अच्छवी तह असबले अकम्मंसे । संसुद्धणाणदंसणधरे य होती उत्थे तु || १ || अरहा जिणे य केवल अप्परिस्सावी य होति पंचमए। एते पंच विकप्पा सिणायस्सा तु होति णायव्वा ॥ २ ॥ पंचविह संजतावी सामाइय छेउवट्ठ परिहारे । सुहुमे य अहक्खाए एक्वेक्के ते पुणो दुविहा ||ल० १७० ॥ ३ ॥ इत्तरिए आवकाही सामाइयसंजए भवे दुविहो। दुविहे य छेउवट्ठो सऽतियारे णिरतियारे य ||ल० १७१॥४॥ परिहारविसुद्धीए णिव्विसमाणे तहेव निव्विट्टे । दुविहे य सुहुमरागे संकिस्संते विसुज्झते ॥ ल० १७२ || ५ || अहखाओविय दुविहो छउमत्थो चेव केवली COOK श्री आगमगुणमंजूषा - १४६७ GRO Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555 (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुतं चेव । एसो तु संजतो खलु पंचविहो होति णायव्वो || ल० १७३ || ६ || सामाइयम्मि उ कए चाउज्जामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो सामाइयसंजतो स खलु ॥ १७४॥७॥ छेत्तूण तु परियागं पोराणं तोठवेति अप्पाणं । धम्मम्मि पंचनामे छेओवट्ठावणा स खलु ॥ ल० १७५ ||८|| परिहरति जो विसुद्धं पंचज्जामं अणुत्तरं धम्मं । तिविण फासतो परिहारियसंजतो स खलु || ल० १७६ || ९ || लोभमणुं वेदितो जो खलु उवसामओ व खवओ वा । सो सुहुमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि ॥ १७७॥१००॥ ०उवसंते खीणम्मि व जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि । छउमत्थो व जिणो वा अहवाओ संजतो स खलु || ल० १७८|| १ || एतेसि मोतारो दुविट्ठाण तह परट्ठाणे । वोच्छामि आणुपुव्विं जो जत्थ समोयरति तेसिं ॥ २॥ जहणुवसंपजणता सव्वेसिं चेव पपुच्छियव्वा उ। वाकरण जहाकमसो सिंइणमो उवोच्छामि || ३ || पुलगो तु पुलागत्तं जहमाणो जहइ सो पुलागत्तं । उवसंपज्जे असंजम अहवावि कसायसीलं तु ||४|| बउसो उ बउस्सत्तं जहती सेवणं कायं वा । संजऽसंजम अस्संजमं तु पडिवज्जती सो तु ||५|| पडिसेवणाकुसीलो विजहति पडिहति पडिसेवणाकुसीलत्तं । बउस कसायकुसीलं पडिवज्न असंजमं वावि ||६|| अहवावि संजमासंजमं तु पडिवज्जती ततो सो उ । जोवि कसायकुसीलो विजहति सो तू कसायत्तं ॥ ७॥ पुलगं व बाउस वा अहवा पडिसेवणाकुसीलं तु । पडिवज्जयिं वा अहवावि असंजमं वावि ॥ ८॥ अहवा संजमसंजम उवसंपज्जे तुसो चुतो तत्तो। णिग्गंठे उ णियंठत्त विजहति तत्तो चुतो संतो ||९|| उवसंपज्ज सायं सिणा अहवा असंजमं वावि। विजहति सिणायगत्तं सिणायवो ऊ चुतो तत्तो ॥ ११०॥ उवसंपज्जति तत्तो सिद्धिगतिंसो पहीणकम्मंसो । एसो तु नियंठाणं या संजयात् ||१|| सामादिसंजतो तू सामइयत्तं जहन्त किं जहति । किं वा उवसंपज्जे ? एवं पुच्छा उ सव्वेसिं ॥ २॥ सामाइयत्तं जहती सामाइयसंजते चुते तत्तो। दुवठावणियं वा पडिवज्जति सुहुमरागं वा ॥ ल० १७९ || ३ || अहवावि संजमासंजमं च अस्संजमं च पडिवज्जे । छेदुवठवणीए पुण विजहति से छेदुवट्टवणं । लवपरिहार विसुद्धीय अहवावी सा तु सुहुमरागंतु। अस्संजम संजमऽसंजमंच पडिवज्जती अहवा | ल० १८१||५|| परिहारविसुद्धीओ विजहति तत्तो चुत्तोवि तं चेव । उवसंपज्जति छेदं अहवावि असंजम सो तु |ल० ||१८२||६|| विजहति सुहुमसरागो ततो चुतो सुहुमसंपरायत्तं । उवसंपज्जति सामातिसंजमं छेद महावि ||ल० १८३ ||७|| अहव अहक्खायं तू अस्संजममहव सो तु पडिवज्जे । अहखातसंजमो पुण अहखायत्तं विजहमाणो ॥ ल० १८४||८|| जहति अहक्खायत्तं उवसंपज्जति सो चुतो तत्तो । सुहुमं च संपरागं अस्संजम सिद्धिगतिमहवा || ल० १८५ || ९ || एस समोतारो खलु अहवावि णियंठसंजएसुं तु । संजयनिग्गंथेसु य अवरोप्परतो समोतारो ॥१२०॥ पुलगबउसाण दुण्हवि सामइछेदेसु तू समोतारो । ओतरति कुसीलो पुण आदिल्लेसुं चऊसुंपि ॥१॥ णिग्गंथसिणाता पुण समोतरंते तु ते अक्खाते । एवं तुणियंठा तू ओतरिया संजतेसुं तु ॥ २॥ पुलबउसकुसीलेसुं सामइछेदा समोतरंती तु । परिहारसुहुमरागा ओतरति कुसीलएसुं तु ||३|| ओतरति अहक्खाओ णिग्गंथसिणातएसु दोसुंपि । एमेत समोतरिता अण्णोण्णेसुं जहाकमसो ||४|| उत्तारे सव्वमहव्वयाणि णियमा तु सव्वदव्वेसु । ण तु सव्वपज्जवेहिं जम्हा सामादिए उदितं ||५|| पढमम्मि सव्वजीवा बीते चरिमे य सव्वदव्वाइं । सेसा महव्वता पुण (खलु) तदेक्कदेसेण दव्वाणं || ६ || एतेसि णियंठाणं आवण्णाणं तु संजाणं च । ववहारो होति दुहा पच्छित्ते आभवंते य ||७|| पच्छित्ते पंचविहो आगममादी उ होति णायव्वो । कस्साभवति ण वावी ? सच्चित्तादी तु आभव्वो ॥८॥ सावराहिस्स ववहारो, अवराहो पडिसेवणा । पडिसेवणा य कतिहा ?, तीसे भेदा इमे भवे ||९|| दप्पिया कप्पिया चेव, दुविहा पडिसेवणा । जयणाऽजयणा कप्पी, जया सुद्धो तु सेवतो || १३०|| जयणासेवी कप्पो जयणाएँ अजयणाए य । आवज्जति सट्ठाणं वणिज्जति वित्थरो कप्पे || १ || पडिसेवगस्स होति देसब्भंगो य सव्वभंग । अव केरिसए देसे दव्वेऽवि सो होति ?||२|| पणगादी छेदो एसो खलु होति देसभंगो तु। मूलादि उवरिमेसू णायव्वो सव्वभंगो उ ॥ ३ ॥ तस्स उ विसुद्धिहेतुं पच्छित्तं तस्स केत्तिया भेदो ?। छट्टाणादीया खलु परूवणा तेसिमा होति ॥४॥ छसु काएसु वएसु य छव्विह एगिदियादि पंचविहं । संघट्टण परितावण उद्दवणे चेव निप्फण्णं ||५|| चउहा तु णाणवंते दंसणवंते चरित्तवंते य ॥ तत्तो चियत्तकिच्चे अहवा दव्वासयं चउहा ||६|| अहवा अतिक्कमादी चउहा कोहाइयं च चउहा [६] ४ श्री आगमगुणमंजूषा - १४६८ ॐॐॐॐॐॐॐ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KGRO (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्त [७] तु । णाणादियारमादी होती तिविहं च पच्छित्तं ||७|| अहवा आहारोवहिसिज्जतियारे होति तिविहं तु । उग्गम उप्पायण एसणा य तिविहं तु एक्केक्के ॥ ८॥ आलोयण पडिक्कमणे तदुभयमेवं तु होति तिविहं तु । सच्चित्ताचित्तमीसग तिविहं चेदं मुणेयव्वं ||९|| अहवा सत्तट्ठविहं नव दसहा वावि होति पच्छित्तं । आलोय पडिक्कम विवेगे य वोसग्गे ॥ १४० ॥ छट्ठग तवे य तत्तो सव्वे तुवरिल्ल सत्तमं छेदो। अट्ठविह छेद दुविहो देसे सव्वे य बोद्धव्वो || १ || णवविह सव्वच्छेदो दुह संजमुवट्टविज्जती मूलं । कालंतरमित्तरे पुण खेत्तंतो बहिं च दसभेदं ||२|| अहवऽण्णह दुविहेदं एगविहं वावि होज्ज णायव्वं । रागद्दोसा दोण्णी एगविहोऽसंजमो होति ||३|| छा सत्ती जो का छव्विहे सद्दहती। णत्थि ण णिच्चादी वा छव्विहमेयं तु मिच्छत्तं ||४|| धम्मत्थिकायमादी कालंतादिं तु छत्तु दव्वातिं। जो ताइं ण सद्दहती छव्विहमेयं तु मिच्छत्तं ॥ ५॥ संजमो सतरसविहो उ सामाइयमादि अहव पंचविहो । गाहणता व चरित्तस्स गहणं चिय गाहणा होति ||६|| किह पुण चरित्तगहणं होज्जाही ? इमेहिं तु । वेरग्गेणं अहवा मिच्छत्ता होइ सम्मत्तं ||७|| सम्मत्ताउ चरितं अहवा होज्जा इमेहिं गहणं तु । सवणे णाण विणाणे एमादी गाहण चरित्ते ||८|| अवावी उवएसो एग होति गाहणाउत्ति । तह उवदिस्सति जह ऊ चारित्तं गेण्हती सा तु ॥ ९॥ अविराहणम्मि य गुणा दोसा य विराहणे चरित्तस्स । तह गाहिज्जति जह तं (तू) आगाढो होति चारित्ते ॥ १५०॥ णाणे तह दंसणे य जातिग्गहणेण संसुया एया। एयातिं गाहिंते गाहणता वण्णिता एसा ॥१॥ एमेता जा भणिता अहवा . अवहारणे चसद्दो तु । पडिवत्ती उवगारो वागरणं वावि पडिवत्ती ॥२॥ एतं कप्पे वण्णिज्जतीउ अन्ने य बहुविहा अत्था । अत्थेसु अणेगेसु य कप्पभिधाणं मुणेयव्वं ॥३॥ सामत्वण्णा काले, छेयणे करणे तहा। ओवंमे अहिवासे य, कप्पसद्दो वियाहिओ ||१५||ल० ६ || ४ || सामत्थे अठ्ठ मासे वत्तीकप्पो तु होति गब्भगतो । वण्णण अज्झयणं तू कप्पिय जमेगसाहूणं ॥ ५ ॥ काले हेमंताणं जह तु सदरायकष्पतिक्कंते । छेदेणे जह केसे तू चउरंगुलवज्ज कप्पेहि ||६|| करणे वत्तीकप्पिय अ जहा तु पुरिसेणं । आइच्चचंदकप्पा हवंति जह साहुणा धम्मौ ॥७॥ सोहम्मकप्पवासी अहिवासे जह तु होति देवा तु । एते सामत्थादी जोएयव्वा इहं कप्पे ॥८॥ कप्पज्झयणमधीतुं अतियारविसोहणं समत्थे उ । कतिविहपायच्छित्तस्स परूवणा वण्णणा होति ॥९॥ काले उडुबद्धाणं वासावासं च वुड्ढवासं वा । वसती जहाविहं खलु उस्सग्गववायसंजुत्तं ॥ १६०॥ तवसोहिमतिक्कंतं छिंदति फणगादिएहिं परियागं । कुणइ य तहा पयत्तं जह तं दिण्णं वहइ सम्मं ||१|| ओवम्मे जिणकप्पो जाणणगहणेय सोहवति गीतो। अहिवासे सामादिसु ऊणतिरिक्ते विभासा तु ॥ २॥ सव्वेसिं कप्पाणं पण्णवण परूवणा ऊ णवमंमि। आसज्ज उ सोयारं पुव्वगते वा इहं वावि ॥१६ ॥३॥ एतेसिं सव्वेसिं छव्विह कप्पाइयाण कप्पाणां । पण्णवण परूवणता णवमे पुव्वम्मि णिहिठ्ठा ||४|| सोतारं पुण आसज्ज होज्ज इह कप्पि अहव णवमम्मि । धारणगहणसमत्थे तहितं असमत्यें इह तु ॥ ५ ॥ कप्पाणं वक्खाणं पुव्वगते वण्णितं समत्तं तु । इह थोवगन्तिकाउं ण हु बहु माणो ण कायव्वो || ६ || दव्वे खेत्ते काले उग्गहसंघयणधारणगुरूणं । तंपी बहु मण्णिअव्वं जं एगपदे पदं अत्थि || १७ ||७|| दुस्समअणुभावेणं हाणी विरियस्स ओसहीणं तु । दुलभाणि य दव्वाई जाई जोग्गाई तणुभावे ||८|| खेत्ताणि प (य) हायंती विरंजोग्गाइं तदणुभावेण । दुब्भिक्खपउरकालो तेणणुभावेण मणुयाणं ||९|| लद्धी उग्गहणम्मी संघयणं धारणा य परणिति । ण य सीसायरियाणं सत्ती वत्तुं च सोतुं वा ॥ १७० ॥ ण य संति बहु गुरवो जे वत्तारो य हुंति अत्थस्स । तेवि ण सव्वस्स लहुं पसादसुहुमा (मुदा) भवंती तु ॥१॥ इह णातुं परिहाणीं जं एगपदेवि एगमत्थपदं बहु मंतव्वं तंपि हु किं पुण संतेसु णेगेसु ॥ २॥ तो ण पमाएयव्वं ण य भत्ती तू तहिं ण कायव्वा । सद्रुतरं उज्ज काव्वो तम्मि घित्तव्वे ||३|| सो पुण पंचविकप्पो कप्पो इह वण्णिओ समासेणं । वित्थरतो पुबगतो तस्स इमे होति भेदो तु ||४|| छव्विह सत्तविहे य दसविह वसतिवि य बायाले । जस्स तु णत्थि विभागो सुव्वत्त जलंघकारो सो ॥ १८ ॥ ५॥ विभयण विभाग भण्णति जहेरिसो छव्विहो य सत्तविहो। णामादिविभागो वा जस्सेसो ण विदितो होति ||६|| सुव्वत्त सुट्टु वत्तं तस्स निबुडस्स वा जलमगाहे। होती सचक्खुयस्सवि जहंधकारो मणुस्सस्स ||७|| अहवा जलंधकारो मेहोत्थइयंमि होति गगणम्मि | अहवा जलंधकारो जत्थादिच्चो ण दीसति तु ॥ ८॥ एवं तु अंधकारो कप्पपकप्पं पडुच्च तस्स भवे। अहवा सो चेव जलो भवइ य से अंधकारं तु ॥९॥ छव्विहकप्पस्सिणमो णिक्खेवो छव्विहो मुणेयव्वो । णामं ठवणा दविए खेत्ते काले य भावे य ॥ १८०|| जेण परिग्गहिएणं दव्वेणं कप्पो होति णाऽकप्पो । तं दव्वमेव श्री अगमर णमंजघा १४६९ 2010 1 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COLO$$事历历明 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [] 5%%%%%%%%%%2 03 OTG乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听国乐乐听听听听听FC 2. कप्पो कारणकज्जोवयारातो ॥१॥ सो तिविहो बोद्धव्वो जीवमजीवे य मीसतो चेव एतेसिं तु विभागं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ॥२॥ तिविहो य जीवकप्पो दुपय चउपपय तहेव अपदेहिं । अहिगारो दुपदेहिं तत्थवि य मणुस्सदुपदेहिं ॥३॥ तत्वव य कम्मभूमतुसंखिज्जगवासआउएहिं तु । पव्वइतुकामएहिं तत्थवि तू होति अहिगारो ॥४॥ सो होति छव्विहो तू बोद्धव्वो मणुयजीवकप्पो तु । वोच्छामि तस्स इणमो भेदविकप्पं समासेणं ॥५|| पव्वावण मुंडावण सिक्खावणुवठ्ठ भुंज संवसणा। एसोत्थ (तु) जीवकप्पो छन्भेदो होति णायव्वो॥१९॥ल०७||६|| अब्भुवगमो पव्वावण मुंडावण होति लोयकरणं तु । गहणासेवणसिक्खं सिक्खाविन्तंमि सिक्खवणा ।।ल० ८॥७|| वयठवणमुवठ्ठवणा संभुंजण मंडलीएँ सह भोगो। एगततो सह वासो संवसणा होति णायव्वा ॥ल० ९॥८॥ णाऽपव्वावित मुंडावणा तु ण यऽमुंडिए तु सिक्खवणा । एमादी तु विभासा पव्ववयतीतु केरिसगो ?||९|| सुत्तत्थदुभयविसारयस्स संगहउवायकुसलस्स। कप्पति पव्वावेतुं संवेगसुवट्टितमतिस्स |२०||१९०॥ सुत्तत्येण विसारए चउभंगो एत्थ होति कायव्वो। तं चेव तदुभयं खलु विसारतो जाणतो तस्स॥१|| दव्वे भावे संगह दव्वे आहारमादिएहिं तु। सिक्ख वणं अगिलाए गेलण्णे यावि करणं तु ॥२|| भावम्मि संगहो खलु णाणादी तं तु होति बोद्धव्वो । जाणइ वट्टावेतुं गच्छं तु उवायकुसलो तु ॥३॥ संसारभउब्विग्गो संविग्गो सो तु होइ णायव्वो । एतेसिं तु पदाणं चउभंगो होति एक्केको ॥४|| तदुभयविसरदो खलु ण संगहे कुसलो एत्थ चउभंगो। तदुभयउवायकुसलो एत्थंपि तु होति चउभंगो॥५॥ तदुभयसंविग्गेहिवि चउभंगो एव होति कायव्वो । एवगुणजातियस्सा पव्वावेतुं तु कप्पति तु ||६|| पव्वाविंता भणिता अहुणा पव्वावणिज्ज वोच्छामि । पव्वज्जाए जोग्गा जे वा होती अजोग्गा तु ॥७॥ पव्वाणारिहा कलु जातीकुलरूवविणयसंपण्णा । तव्विवरीयगुणा खलु होति अपव्वावणाजोग्गा ॥८॥ तेसिं तु जे विवक्खा तविवरीया हवंति ते णियमा । अहवावि इमे वीसं वज्जित्ता सेसगा जोग्गा ||९|| बाले वुड्ढे नपुंसे य जड्डे कीवे य वाहिए। तेणे रायावगारी य, उम्मत्ते य अदंसणे ॥२१॥२००|| दासे दुढे य मूडे य, अणत्ते जुंगितेइ य। ओबद्धए य भयए, सेहणिप्फेडितेति य ॥२२॥१|| गुठ्विणी वालवच्छा य, पव्वावेतुंण कप्पए । एसिं परूवणा दुविहा, उस्सग्गववायसंजुता ॥२३॥२॥ कारणमकारणे अहव कारण जयरेतरा पुणो दुविहा । एस परूवण दुविहा एत्तो बालादि वोच्छामि ||३|| तिविहो य होति लो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य । एतेसिं तिण्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥४॥ सत्तठ्ठगमुक्कोसो छप्पण मज्झो य चतुतिय जहण्णशे । एयं वयनिप्फण्णं सभावओ होति णव भेदा ||५|| जहणो जहणसभावो मज्झसभावो तहेव उक्कासो । एवं मज्झिम तिण्णी उक्कोसावी भवे तिण्णि ॥६॥ छिंदतंमछिंदता तिन्निवि हरितादि वारिता संता। पुणरविय छिंदमाणा जति दिठं गुरूण वऽण्णेणं ॥७॥ उक्सो दुट्ठणं मज्झिमतो ठाति वारितो संतो । जो पुण जहण्णबालो हत्थे गहिओविणवि ठाति ||८|| दाहिणकरम्मि गहितो यामकरेणं स छिंदती ताई। मंडलंगंमि व धरितो चिठ्ठइ एवं च भणितो तु॥९॥जह भणितो तह तु ठितो पढमो बीएर फेडियं ठाणं । तइओ न ठाति ठाणे अहरूब्भ (व्व) ति विस्सरं रूयति॥२१०|| एतेसिंबालाणं पव्वाविंतस्सिमं तु पच्छित्तं। तिण्डंपि कमेणं तूवोच्छामी आणुपुव्वीए ॥१।। अउ णत्तीसा वीसा उगुवीसा चेव तिविहबालम्मि । तव छेद वीसु पढमे बिति मिस्सा ततिय छेदाती ॥२।। अउणत्तीसं दिवसे सिक्खवितस्स मासियं लहुयं । उक्कोसगम्मि बाले सो चेव असिक्खणे गुरूगो॥३।। अण्णे अउपाउत्तीसं गुरूओ सिक्खे असिक्खि चउलहुया । पुणरवि अउणत्तीसं लहुगा सिक्खेतरे गुरूगा (गुरूगा सिक्खे य छल्लहुगा) ॥४॥ अण्णे अउणत्तीसं गुरूगा सिक्खे सिक्कि छल्लहुगा । (अण्णे उ अउणतीसं सिक्खाविंतस्स होति पच्चित्तं ।) छल्लहुगा सिक्खम्मि य असिक्खि गुरूगा अउणतीसं ॥५॥ अज्जे सिक्खासिक्खे छग्गुरू तवो छेद छग्गुरू चेव । मूलऽणवठ्ठ पारंचिगं च एक्केक्कगं तत्तो ।।६।। अहवा सो चेव तवो छेदादी मासमादिया होति । सिक्खाविंतमसिक्खे मूलेक्कदूगं तहेक्केकं ॥७|| अहवा सो चेव तवो छेदो पणगादि जाव छम्मासा। सिक्खाविंतमसिक्खे लहु गुरू एक्कक्क उगुतीसा ।।८।। मूलऽणवठ्ठ चतओ पारंचियमेव होति एक्वेक्कं । सिक्खासिक्खपगारा उक्कोसे होति बोलेते॥९|| अहवा सो चेव गमो दिणेहिं सिक्खितरवज्जिए होति । मासादितवच्छेदा मूलाईया दिणेक्केक्कं ॥२२०॥ एमेव मज्झिमेऽवी णवरं दिवसा तु वीस वीसं तु । एमेव जहण्णेऽवि उगुवीसुगुवीस दिवसा तु ॥१॥ अहवा ONO乐乐乐乐乐明明乐乐乐乐明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐鲜明乐乐乐乐乐乐乐显 reO933555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४७० 555555555555555333333455085ROR Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TO.C%%%%%% %%%%%% (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [९] 历历历历万年岁岁5岁万岁万岁万RMOS FOOOK 国兵听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐明明听听听听听听听乐乐乐乐 मज्झे मीसा जहण्णछेदादि अन्नपरिवाडी। तवछेदेगंतरिया मज्झि जहण्णे तु भयणाए ||२|| मज्झिमि वीसं लहुओ सिक्खमसिक्खस्स मासिओ छेदो। वीसण्ण चेद लहुओ सिक्खमसिक्खे गुरूग तवो (गो जो) ॥३।। अबोक्कंती एवं तवछेदेगंतरा तु णेयव्वा । जा छम्मासा ताव तु परओ मूलादि एक्कक्कं ||४|| अउणावीसजहण्णे सिक्खा वितस्स मासि छेदो। सो च्चिय असिक्खि गुरूओ जा छग्गुरू तिण्णि परओ तु ।।५।। अहवा ण होइ छेदो ठाणे च्चिय मूल तह य अणवठ्ठो । पारंचिए य तत्तो एवं भयणा जहण्ण स्स ॥६।। अहवा पढमे छेदो तद्दिवसे चेव हवइ मूलं वा । एमेव होति ए तइए पुण होति मूलं तु ||७|| किं कारण सोधेसा ? दोसा तहियं इमे समक्खाता। पव्वाविएसु तेसुतु उड्डा हाई मुणेयव्वा ।।८।। बंभस्स वयस्स फलं अयगोले चेव होति छक्काया। णिसिभत्तमंतराए चारग अजसो य पडिबंधो ।। २४||९|| लोगो बेती पेच्छह इणमो बंभव्वईण तु फलं तु। अयगोलोविव तत्तो डहती सो जित्तिए मुक्को ॥२३०॥ भत्त णिसि मग्गमाणे दिते तू रातिभत्तभंगो तु। हवइ अदितम्मि तऽतराइयं बेइ लोगो य॥१॥ चारगपाला हु इमे जे बालाइंतु एव रूंभंति। लोगे जायति अजसोअहो इमे णिरणुकंपत्ति ।।२।। तेण य पडिबंधेणं पडिबद्धा णवि कहिचि विहरंति । जे दोस णीयवासे ते पावंते य अच्छंता ॥३॥ ऊणढे णत्थि चरणं पव्वावितोऽवि भस्सई चरणा । मूलावराहिणी खलु णारभते वाणिओ चेहूँ ||४|| उग्घायमणुग्घायं णाऊणं छव्विहं तवोकम्मं । एमेव छेद छव्विह जिणचोद्दसपुब्विए दिक्खा ।। २५॥५॥ उग्घायमणुग्घातो मासो चउ छच्च छव्विह तवेसो । एमेव छव्विहोच्चिय छेदो सेसाण एक्केक्कं ॥६॥ एयं पायच्छित्तं णाउण पव्वावए तओ बालं । णवरं पव्वाविंतीजिणचोद्दसपुब्विअतिसेसी ॥७॥ ते जाणिउं गुणागुण बहुगुण णाऊण तेण दिक्खंति । के पुण जिणमादीहिं दिक्खिय बाला ? इमे सुणसु ॥८॥ सत्ताए अतिमुत्तो मणओ सिजंभवेण पुव्वविदा । अतिसेसिणा य वतिरो छम्मासो सीहगिरिणावि ॥९॥ एते अव्ववहारी जह पव्ववितिह गच्छवासी तु । एयं इच्छं णाउं भण्णति इणमो णिसामेहि ॥२४०॥ उवसंते व महाकुलें णातीवग्गे व सन्निसिज्जतरे। अज्जाकारणजाते बाले पव्वज्जऽणुणाया ।। २६||१|| पव्वज्जाए परिणए विउलकुले तत्थ बाल होज्जाहि । मासव्वे तेसि कते अच्छंतू तेण पव्वावे ॥२|| णातीवग्गे य , तहा छेव(थेर)गमादी मयम्मि संतम्मि । जणवादरक्खतो । सारवेइ आसण्णवालाई ॥३।। एवं ससन्नितराणवि अज्जायवि डिडिबंध पडिणीए । कजं करेमि सचिवो जदि मे पव्वावतह बालं ॥४|| एतेहिं कारणेहिं पव्वाविज्जहिं गच्छवासी तु । पव्वावियाण तेसिं इमेण विहिणा उ सारवणा ।।५।। भत्ते पाणे धोवण सारणया वारणा निओजणया। चरणकरणसज्झायं गाहेयव्वो पयत्तेणं ।। २७||६|| निद्धमहुरेहिं आउं पुस्सति देहम्मि पाडवं मेहा । अच्छति जत्थ ण णज्जति सड्ढादिसु पीहगादीया ||७|| ठावेति सालवाडा पडिलेहणमादि सारणमभिक्खं । वारिज्जए अभिक्खं हरियादी छिंदमाणो य ॥८॥ सामायारिं सव्वं सज्झायं चेव ऊ पयत्तेणं । गाहिज्जति सो एवं जयणा एसा तु बालस्स॥९॥ तिविहो य होइ वुड्डो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य । एतेसिं तिण्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं ।।२५०।। दस आउविवागदसा दसभागे आउयं विभतिऊणं । दसभागे दसभागे होति दसा ता इमा होति ॥१॥ बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पवंचा | पब्भार मुम्मुहीविय सयणी दसमा य णायव्वा ॥२८|२| तहियं पढमदसाए अट्ठमवरिसादि होति दिक्खा तु । सेसासु छसुवि दिक्खा पब्भारादीसु साण भवे ||३|| वुड्डऽट्ठदसुक्कोसो मज्झोणवमि दसमी य तु जहण्णो। जं तुवरि त हेट्ठा भयणाऽप्पबलं समासज्ज ॥४॥ केसिंचि पवंचादी वुड्डो उक्कोसगो उ जा सतरिं। अट्ठदसाए मज्झो णवमीदसमीसुय जहण्णशे॥५॥ कुरुकुयमादि णिसिद्धो जह माबीयं करेहिं एवंति । पुणरवि पकरेमाणो दिट्ठो साहूहिं ताहे तू ।।६।। उक्कोसो दणं मज्झिमओ ठाति वारिओ संतो। जो पुण जहण्णवुड्डो हत्थे गहिओ णवरि ठाति ॥७॥ ठाणे य चिट्ठसुत्ती जह भणियो तह ठिओ भवे पढमो । बीएण फेडियं तं तइओ णवि ठायइ द्वाणे ।।८|| एगुणतीसा वीसा अउणावीसा यक तिविह वुड्डम्मि। पत्तेयं तवछेदा पढमे बिति मीस तवछेदा ॥९॥ तह चेव विभागो तू जह बालाणं तु होति तिण्हंपि। किं पुण एसाऽऽरूवणा ? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥२६०॥ आवस्सय छक्काया कुसत्थ सोए य भिक्ख पलिमंथो। थंडिल अप्पडिलेहा पमज्ज पाढे करणजड्डो॥ २९॥१॥ आवस्सयं णं सक्को गाहेतुं जड्डयाएँ सो वुड्डो। छक्कायण सद्दहतीण तरति ते याविपरिहरितुं॥२॥ कुद्दिट्ठिकुसत्थेहिं तु भावितो निच्छ्य तगं मोत्तुं। लोगस्स अणुग्गहकरा चिरंपुराणत्ति अम्हे मो॥३॥ अतिसोयवादएणं ॥ ero5545555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १४७१5555 5 55555555555555ROR Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [१०] पुढविं गिण्हति बहुं-दुबं छड्डे । अपरीहत्थो भिक्खायरियं पलिमंथ पातवहो ||४|| थंडिल्लं णवि पासइ दुब्बलगहणी य गंतु ण चएइ । अण्णस्सवि वक्खेवो चोदण इहरा विराहणता ||५|| पडिलेहणं ण गिण्हति पमज्जणे यावि सो भवति जड्डो । नवि तीरति पाढेतुं दुमम्मेहो जडबुद्धी य ||६|| भंजति अभिक्खमालावगं च अण्णेसि वावि दलिमंथो । उवही वीसारेती छड्डेइ व पंथि वच्च॑तो ||७|| उद्वितणिवेसिते चंकम्मंते अवाउडियदोसा । चरणकरणसज्झाए दुक्खं बुड्ढो ठवेतुं जे ॥ ८॥ उग्घायमणुग्घायं छव्विह पच्छित्त कारणे तेणं । तम्हा वुड्ढ ण दिक्खे जिणचोद्दसपुव्विए दिक्खा ||९|| पव्वाविति जिणा खलु चोद्दसपुव्वी य जे य अतिसेसी । जिणमादीहिं तेहिं कयरे ते दिक्खिया बुड्ढा ? || २७० ॥ सत्थाए पुव्वपिता चोहसपुव्वीण जंबुणा सपिता । तंमग्गेणं जरतो तु दिक्खितो रक्खियज्जेणं ||१|| एते अव्ववहारी इच्छामी तु अणतिसेसी य । जह दिक्खंते ? भण्णति सुणसू जह तेवि दिक्खति ॥२॥ उवसंते व महाकुर्ले णातीवग्गे व सणिणसेज्जतरे । अज्जाकारणजाते वुडस्सेवं भवे दिक्खा ॥३॥ जह चेव य बालस्सा विभास तह चेव होति वुडस्स । णवरं इमो विसेसो अज्जाणं कारणा होति ||४|| अज्जाण णत्थि कोती संचारिंतो तु खेत्तमादी तु । तेणं तेसिऽट्ठाए वुड्डुं संकप्प (हतसंक) पव्वावे || ५|| एतेहिं कारणेहिं जति णामं होज्ज दिक्खितो वुड्डो । ताहे य तस्स सारण कायव्व इमीय तु विही ||६|| भत्ते पा सणास उवही तव वंदणए। चरणकरणसज्झायं अणुयत्तणया य गाहणता ||३०||७|| जारिसतभत्तपाणेण समाही दिज्जते सि तारिसगं । सयणीय महा (समा) भूमी पाउंछणमादि आसणयं ॥ ८॥ जतियं तरए वोढुं सीयत्ताणं व जत्तिएण से तत्तियमेत्तो उवही दिज्जति सेऽणुरहट्ठाए ||९|| वंदणए अणुकंपा कीरति ण य सारियम्मि वंदावे । चरणकरणसज्झायं अणुकूलेउं चरण गाहे ॥ २८० ॥ उवउंजिउं णिमित्ते दोण्हंपिय कारणा दुवग्गाणं। होहिति जुगप्पवरा दुण्हवि अट्ठा दुवग्गाणं ॥ ३१ ॥ १ ॥ म ओहि मो उवउंजिय परोक्खणाणी निमित्त घित्तूणं । जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिति ||२|| दोण्णित्ति बालवुड्डा पुणरवि दोवग्ग इत्थिपुरिसा य । सुत्तत्थदुगट्ठाए कालियपुव्वगयअट्ठा वा ॥ ३ ॥ पुणरवि दोवग्गा खलु सणा समणी य होति णायव्वा । तेसिं अट्ठा दिंती आहारो तेसि होहिति ॥४॥ एत्तो वुच्छ णपुंसं सो किह णज्जेज्न जह णपुंसोत्ति ? । भण्णति ण चेव कप्पपति दिक्खितुं विहि अजाणते ||५|| तम्हा दिक्खा गीते दिक्खंते चउगुरू अगीयस्स । गीतेवि अपपुच्छित्ता गुरुगा पुच्छा उवाएणं || ६ || अम्हं णपुंसगादी ण कप्पते एव भणिर्ते साहेज्जा । को वा णिव्वेदो ते ? भणिज्ज भगवं ! अहं ततिओ ||७|| अहवाविय मेत्ता से णिव्वेदं पुच्छिया हु साहेज्जा। अहवावि लक्खणेहिं इमेहिं णाउं परिहरेज्जा ||८|| महिलासभावो सरवण्णभेदो, मेंढं महंतं मउया य वाणी । ससद्दगं मुत्तमफेणगं च एताई छप्पंडगलक्खणाई ||९|| गती भवे पच्चवलोइयं च मिदुत्तदा सीतलयत्तया य । धुवं भवे दुक्खरणामधेज्जो, संकारपच्चंतरिओ ढकारो ||२९० || गतिहत्थवत्थकडिभुमयभासदिट्ठी य केसलंकारो। पच्छन्नमज्जणाणि य पच्छण्णतरं च णीहारो ||३२|| १ || मंदा गती विक्खिवे वामहत्थं, लंबं णियंसेति जहेव इत्थी । कडिथंभगं वावि करे अभिक्खं, सवब्भमं उक्खिवए भुमाओ ||२|| भासतो यावि करं वत्थि णिवेसेति इत्थिया चेव । हीणस्सरो य जायइ दिट्ठी य सविब्भमा तस्स ||३|| केसे इत्थी व जहा आमोडति इत्थिमंडणं चेव । ण्हायति एगंते या पच्छन्नं आयरच्चारं ||४|| पुरिसेसु भीरु महिलासु संकारो पमयकम्मकरणो य । एयं बाहिरलक्खण णपुंसवेदो भवे अंतो ॥ ५॥ सो पुण णपुंसवेदो लिंगे तिविहेवि होति बोद्धवो। कह लिंग तिए ? भण्णति एत्थं एक्वेक्क वेदत्तिगं ॥६॥ उस्सग्गलक्खणं खलु थीपुरिसण ळपुंसगाण वेदाणं । फुंफमदवग्गिमहणगरदाहसरिसा जहाकमसो ||७|| एक्केक्के तिह भयणा इत्थी थीसरिस पुरिस अपुमे य । इय पुरिसणपुंसे या एक्वेक्वे होति वेदतिगं ॥८॥ सो पुण णपुंसगो तू सोलसहा होति तू मुणेयव्वो । पंडग कीवे वातिय कुंभी ईसालु सउणी य ॥९॥ तक्कम्मसेवि पक्खियमपक्खिए तह सुगंधि आसित्ते । विद्धित चिप्पिय मंतोसहीहिं वा उवहए जे य ॥ ३०० || इसिसत्त देवसत्ते एतेसि परुवणा इमा होति । तहियं पंडो तिविहो लक्खण दूसी च उवघाओ || १ || पंडगलक्खण जस्सा जायाअवलोयणेण तु गहा (ग्गह) णं । सो लक्खणतो पंडो दूसीपंडो इमो होति ॥२॥ दूसियवेदो दूसी दोसु य वेदे सज्जते दूसी। दो सेवइ वा वेदे दोसु च दूसिज्जी दूसी || ३ || दूसेति सेसए वा सो दुह आसित्तो तह य तूसित्तो । सावच्चो आसित्तो अणवच्चो होति ऊसित्तो ||४|| उवघाओविय दुविहो वेदे य तहेव होति KOKO HONOUGAT US HUA UA UA 55555555555 MOKO श्री आगमगुणमंजूषा १४७२ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ उवकरणे । वेदोवघायपंडो इणमो तहियं मुणेयव्वो ॥५॥ पुव्विं दुच्चिण्णाणं कम्माणं असुहफलविवागणं । उदया हम्मति वेदो जीवाणं पावकम्माणं || ६ || जह हेमकुमारो तू इंदम बालियाणिमित्तेणं । मुच्छिय गिद्धो अतिसेवणेण वेदोवघात मतो ||३३||७|| एयस्स विभास इमा जह एगो रायपुत्त वण्णेणं । तवियवरहेमसरिसो तो से णामं कतं हेमो ||८|| सो अन्नदा कदाई इंदमहे इंदठाणपत्ताओ । नगरस्स बालियाओ पुप्फादीहत्थ दवणं ||९|| पुच्छति सेवगपुरिसे किं एया आगा उ इहइंति ? | ते बिंती सोहग्गं मग्गंतेता वरत्थीओ ॥ ३९० ॥ तो ई एयासिं इंदेण वरो हु दिण्ण अहमेव । घेत्तूणं ता तेणं छूढा अंतेउरे सव्वा ॥ १ ॥ तो णागरगा रण्णो उवट्ठिता मोयवेह एताउ । तो बेति मज्झत्तोकं जामाता ण रुच्चे भे ? ||२|| तो तासु अतिपसत्तस्स तस्स णिग्गलियसव्वबीयस्स । वेदोवघातो जातो सागारीयं ण उट्ठेति ||३|| तो ताहिं सियाहिं सो अद्दागेहिं घातित्तो ताहे । वेदोवघातपंडो एसोऽभिहितो समासेणं ॥४॥ उवहत उवगरणम्मी सेज्जातरभूणियाणिमित्तेणं । तो कविलगस्स वेदो ततिओ जातो दुरहियासो ||३४||५|| उवह उवगरणम्मी एवं होज्जा णपुंसवेदो उ । दोसा स वेदुदिण्णं धारेतुं न चयइ णायमिणं || ६ || जह पढमपाउसम्मी गोणो धातु तु हरियगतणस्स । अणुमज्जति कोडिच्चं वावण्णं दुब्भिगंधीयं ||७|| एवं तु केइ पुरिसा भोत्तूणं भोयणं पतिविसिद्वं । ताव ण भवंति तुट्ठा जाव ण पडिसेविवो वेदो ॥८॥ लक्खणदूसियउवघायपंडगं तिविहमेव जो दिक्खे। पच्छित्त तिसुवि मूलं दोसा तहियं इमे होति ||९|| तरुणादीहिं सह गओ चरित्तसंभेदिणी करे विकहा । इत्थिकहाउ हत्ता तास अवणं पगासेइ || ३२०|| समलं आविलगंधिं खेदो य ण ताणि आसए होति । सागारियं णिरिक्खड़ मलित्तु हत्थेहिं जिग्घइ य || १|| पुच्छति सोऽवि पुव्वो णपुंसगो विति अतिसुहं एवं । आसय पोसे य तहा दुहावि सेवी अहं चेव ॥२॥ एवं पुच्छित्तु तओ अहवावि अपुच्छिऊण सह सेवे । गेहेज्ना ही समणं ते कहेयव्व तो गुरुणं ॥३॥ छंदिय कहिय गुरूणं जो ण कहेति कहिएवि य उवेहि । परपक्ख सपक्खे वा जं काहिति सो तमावृज्जे ॥४॥ सो समणसुविहिएहिं पवियारं कत्थती अलभमाणो । तो सेवितुं पवतो गिहिणो तह अण्णतित्थी य || ५ || अजसो य अकित्ती य तंमूलागं तहिं पवयणस्स । तेसिपि होति संका सव्वे एतारिसा मण्णे ||६|| एरिससेवी एतारिसावि एतारिसो चरति सद्दो । सो एसो णवि अण्णो असंखडं घोडमादीहिं ||७|| जम्हा एते दोसा तम्हा णवि दिक्खणिज्जो पंडो हु । | एसो पंडोऽभिहिओ एत्तो किलिवं पवक्खामि ॥ ८॥ किलिवस्स गोण्णणामं तदभिप्पओ कलिज्जए जस्स । सागरियं से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा ||९|| सो हू णिरुम्भमाणो कम्मुदएणं तु जायए तइओ । तम्मिवि सो चेव गमो पच्छित्तं चेव जह पंडो ॥ ३३० ॥ उदएण वातियस्सा सविगारं जा ण होति संपत्ती । तच्चण्णिय असंवुडित दिट्टंतो तत्थिमो होति ||३५|| १ || णावारूढो तच्चण्णितो तु दट्टु असंवुडमगारिं । ओवतिओ पुरिसेहिं झडित्ति धारिज्माणोऽवि ॥ २॥ एसो तु वातिगो हू अलभंतो सेवितुं अणायारं । कालंतरेण सोऽवि हु णपुंसगत्तेण परिणमति ॥ ३॥ दुविहो य होति कुंभी जातीकुंभी य वेदकुंभी य जातीकुंभी वायण्हिओ हु सो भइऍ दिक्खाए || ४ || होइ पुण वेदकुंभी असेवओ सुज्झते सि सागरियं । सोऽविय णिरुद्धबत्थी णपुंसगत्ताऍ परिणमति ||५|| वेदुक्कडता ईसालुगो हु सेविज्जमाण दवणं । ण चएती धारेतुं भिमाणो भवेततितो ||६|| सउणी उक्कडवेओ चडओव्व अभिक्ख सेवए जो तु । सोऽविय णिरुद्धबत्थी णपुंसगत्ताऍ परिणमति ||७|| तक्कम्मसेवि जो खलु सेविय तं चेव लिहति साणव्व । सोऽविय अपडियरंतो णपुंसगत्ताऍ परिणमति ||८|| एगे पक्खे उदओ एगे पक्खम्मि जस्स अप्पो तु। सो पक्खपक्खिओ हू सोवि णिरुद्धो भवे अपुमं |९|| सागारियस्स गंधं जिंघति सोगंधिओ भवे स खलु । कालंतरेण सोडवी अलभंतो परिणमे अपमं ॥ ३४० ॥ विग्गह अणुप्पवेसिय अच्छति सागारियंस आसत्तो। ण य से भावोवसमो अलभंतो सोवि अम भवे || १ || गालिय दो भाऊगा जस्स हु सो वद्धिओ मुणेयव्वो । चिपिप्पय बालस्सेव तु चिप्पित्तु विराहितो जस्स ||२|| मंतेणुवहतवेदो अहवावी ओसहीहिं जस्स भवे । इसिसत्तदेवसत्तो इसिणा देवेण वा सत्ता ||३|| वद्धियमादि उवरिमा छच्च णपुंसा हवंति भणिज्जा । जदि पडिसेवि ण दिक्खे अह णवि पडिसेवि तो दिक्खे || ४ || आदिल्लेसु दससस्सुवि पव्वाविंतो हु पावए मूलं । जो पुण पव्वावेहा वदतेवं तस्स गुरुगा ॥५॥ जे पुण छत्तुवरिमगा पव्वाविंतस्स चउगुरू तेसु । वदमाणेऽविय गुरुगा किं वदतेसो इमं सुणसु ॥ ६॥ थीपुरिसा जह उदयं धरिति झाणोववासणियमेहिं । एवमपुमंपि उदयं धरेज्ज जदि को तहिं दोसो ?| ||७|| अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति । एवं खु नत्थि दिक्खा सवेदगाणं ण वा तित्थं ॥८॥ Menon श्री आगमगुणरंजूषा - १४७३ YO ५१ [११] Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RORO5555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [१२] 5555555555岁5岁男FQQ CC%明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明OM भण्णति थीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणसु। णिवसंती इयरो पुण कहिं छुब्भति दोसुवी दोसा॥९॥ संवासफासदिट्ठीदोसा हू तस्स उभयसंवासे। अप्पत्थंबगदिळूत जह राय मतो अवारंतो॥३५०॥ एत्थंबगदिठ्ठतो अहवा जह वच्छो मातरं दटुं । अभिलसती मायाविय वच्छं दट्ठण पण्हुयति ।।१।। अंबं वा खज्जंतं द8 अहिलासो होति अण्णस्स । सागारियादि द8 एव णपुंसे भवे दोसा ||२|| तम्हा हुण दिक्खिज्जा एवं णाऊणमेत दोसगणं । बितियपदे दिक्खिज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु ||३|| असिवे ओमोदरिए रायददुढे भए व आगाढे। गेलन्न उत्तिमठू णाणे तह दंसण चरित्ते॥३६।।४।। रायढुठ्ठभयेसुं ताणऽ णिवस्स चेव गमणठ्ठा । वेज्जो व सयं तस्स व तप्पिस्सति वा गिलाणस्स ॥५|| पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमठ्ठपडिवण्णे । अहवावी अ (कु) सहाए वेयावच्चठ्ठता दिक्खे ॥६।। गुरूणो व अप्पणो वा णाणादी गिण्हमाणे तप्पिहिति । अचरणदेसा णिते तप्पे ओमासिवेहिं वा ॥७॥ एतेहिं कारणेहिं आगाढेहिं तु जो तु णिक्खामे। पंडादी सोलसगं कयकज्जविगिचणछाए ॥८॥ तस्स विही होति इमो दिक्खिजंतस्स कारणज्जाए। सो पुण जाणिमजाणि जाणति जाणी तहा ततिओ॥९॥णवि कप्पति दिक्खेतुं तमुवठ्ठित पण्णवेति अह एवं । तुज्झ ण कप्पति दिक्का नाणादिविराहणा मा ते॥३६०|| जो पुण न जाणएवं तस्स विहि होतिमा करेयव्वा । जणपच्चयकृताए जाणंतमजाणए वावि ॥१|| कंडिपट्ट भंड छिहली कत्तरि खुर लोय परमतं पाढे । धम्मकह सन्नि राउल ववहार विगिंचंण कुज्जा ॥३७||२|| कडिपट्ट भंड छिहली कीरति ण विधम्म अम्ह चेवासी । कत्तरि खुरेणऽणिच्छे हाणी एक्केक्क जालोओ।।३।। लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पाढिति। तंपिय अणिच्छमाणो पाढिंती छलियकव्वाइं॥४|| ताणिवि अणिच्छमाणे धम्मकहा ताऽवि हू आणिच्छंते परतित्थिय वत्तव्वंदिज्जति ताहे ससमहेवि॥५॥ तंपिय अणिच्छमाणे उक्कमतो तस्स दिज्जए सुत्तं । अण्णण्णसुत्त पल्लव पुव्वावरओ असंवद्धं ॥६।। वीयारगोयरे थेरसंजुतो रत्ति दूरि तरूणाणं गाहेह ममंपि ततो थेरा जत्तेण गाहिति ॥७॥ वेरग्गकहा विसयाण जिंदणा उणिसियणे गुत्ता। चुक्कखलितम्मि बहुसो सरोसमिव तज्जए तरूणा ||८|| कतकज्जा से धम्म कर्हिति मुंचाहि लिंगमेयंति। मा हण दुएवि लोए अणुव्वता तुज्झणो दिक्खा॥९॥ इय पण्णविओ संतो जइ मुंचति लिंग तो उ रमणिज्जं । अह णवि मुंचति ताहे भेसिज्जति सो इमेहिंतो॥३७०|| सण्णि खरकम्मितो वा भेसेइ कओ इहेस किंचिव्वो। तेसासति रायकुले यदि सो ववहार मग्गिज्जा ॥१॥ एतेहिं दिक्खिओऽहं जतिविय लोगो ण याणते कोति । जह एतेहिं दिक्खितो तो ते बिंती ण दिक्खेमो ॥२॥ अज्झाविओवि एतेहिं चेव पडिसेह किं वऽहीयं ते ?। छलियकहादी कढति कत्थ जई कत्थ छलिताई ?||३|| पुव्वावरसंजुत्तं वेरग्गकरं सतंतमविरूद्धं । पोराणमद्धमागहभासाणियतं हवति सुत्तं ॥४॥ जे सुत्तगुणाऽभिहिता तव्विवरीयाइं गाहिओ पुव्विं । तेहिं चेव विवेगो जह एरिसयं भवति सुत्तं ॥७॥ णिववल्लह बहुपक्खम्मि वावि वुहुंचगम्मि पव्वइए । वोसिरणं वोच्छामि विहीऍजह कीरए तस्स॥६|| भण्णिकहाओ भठं बिंतीण घडति इहं खुएरिसयं । परतित्थिगादि वयसूजदि बेती तुज्झ समयंति ॥७|| इय होतुत्ती वोत्तूण णिग्गतो भिक्खमादिलक्खेणं । भिक्खुगामदी छोढुं विपलायंती पुणो तत्तो॥८॥ कावालिए सरक्खे तच्चणिणयलिंगमादि वसभा तु । तं णितु देउलादिसु सुत्तं छड्डित्तु वसभेन्ति ।।९।। तिविहे होति य जड्डो भास सरीरे य करणजड्डो य । भासाजड्डो चउहा जल एलग मम्मण दुमेहो ॥३८॥३८०॥ जह जलवुड्डो । भासति जलमूओ एव भासइ अवत्तं । जह एलगोव्वं एवं एलगमुगो बलबलेति ॥१|| मम्मणमूओ बोब्बड खलेइ वाया हु अविसदा जस्स । दुम्मेहस्सण किंची घोसंतस्सावि ठायइ हु ।।२।। दसणणाणचरित्ते तवे य समितीसु करणजोगे य। उवइठ्ठपि ण गेण्हति जलमूगो एलमूगोय॥३॥णाणादिऽठ्ठा दिक्खा भासाजड्डो अपच्चलो तस्स । सो य बहिरो य णियमा गाहण उड्डाह अहिकरणं ।।४।। तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे तहेव वंदणए । एतेहिं कारणेहिं सरीरजड्डे ण दिक्खेज्जा ।।५।। अद्धाणे पलिमंथो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो य । उडुस्सासऽपरक्कम अहिअग्गीउदगमादीसु ॥६|आगाढगिलाणस्स य असमाही वावि होज मरणं वा । जड्डे पासेवि ठिए अण्णे य भवे इमे दोसा ॥७|| सेदेण कक्खमादी कुच्छण धुवणुप्पिलावणे दोसा। णत्थि गलओ य चोरो णिदियमुंडा य जणवादो ।।८।। णेगे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु । तम्हा तं णवि दिक्खे गच्छ महल्ले वऽणुण्णाए ||९|| इरियासमिईभासेसणासु आदाणसमिइगुत्तीसु । णवि ठाति चरणकरणे कम्मदुएणं करणजड्डो ॥३९०॥ जलमूग एलमूगो अतिथूरसरीर करणजड्डो य । दिक्खंतस्सेते खलु चउगुरू सेसेसु मासलहू ॥१॥ भासाज९ मम्मण सरीरजहुं च णातिथूरं च । जावज्जिय परियट्टे HOTO 555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४७४55555555555555555555555555OOK SC$$$$$$$明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听心 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ※G (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत T करणे जड्डुं तु छम्मासे ॥२॥ मोत्तुं गिलाणकज्जे दुम्मेहं वावि पाढि छम्मासे । ताहे तं दुम्मेहं जोऽविय करणम्मि सो जड्डो ||३|| छण्हुवरि तेसि दोण्हवि आयरिओ अण्ण गाहें छम्मासा | पच्छ । अण्णो ततिओ सोऽविय छम्मास परियट्टे || ४ || जोऽविय तं गाहेती सिस्सो तस्सेव सो हवति ताहे । तहवि ण गिण्हे जदि हू कुलगणसंघे विचिता ॥ ५॥ दुविहो य होति कीवो अभिभूओ चेव अणभिभूतो य । अभिभूतोऽविय दुविहो आलिद्धनिमंतणाकीवो ||६|| दुविहो य अणभिमूओ दिठ्ठीकीवो य सद्दकीवो य । एतेसि विसेसमिणं वृच्छामि अहाणुपुववीए ||७|| आलिद्धो जो णिवडति इत्थीहिं एस पढमओ कीवो। जो पुण पडति णिमंतिउ सो होति णिमंतणाकीवो ||८|| दुव्वियडदुण्णिसण्णं णिगिणमणायारसेविणि वावि । दट्ठूणं जो खुब्भति दिठ्ठीकीवं तयं बिति ||९|| अह साहम्मीणं तहऽण्णधम्मिणं अहव वावि गिहियाणं । इत्थीओ दट्टुणं खुब्भति दिठ्ठीय कीवो सो ॥ ४०० ॥ भासाभूसण तह गीतसद्द परियारसद्दमहवावि । सोऊणं जो खुब्भति सो भण्णतिं सद्दकीवोत्ति ॥ १ ॥ मोहुक्का ते करेज्ज दोसे इमे णिरुभंता । सज्जं इत्थिग्गंहणं मरणं अहवावि ओहाणं ||२|| आलिद्धणिमंतणदिठ्ठिसद्दकीवाण होति आरूवणा । चउगुरू छग्ग्रू छेदो मूलं च जहक्कमेणं तु ||३|| एत्थं दो आदिल्ले जदि दिक्खे तो हु एव परियट्टे। जावज्जीवं णियमियचरित्तसंघातसहिएहिं ॥४॥ दिठ्ठी य सद्दकीवो णवरं दिक्खेज्ज उत्तिमम्मि । अण्णह ण तेसि दिक्खा एवं कीवो समक्खातो ॥५॥ रोगेण व वाहीण व अभिभूयस्सा ण कप्पती दिक्खा। गंडीकोढादीओ सोलसहा हवति रोगो उ || ६ || वाही पुण अठ्ठाविहो कोठ्ठा (ढा) दीओ तु होति णायव्वो । तं रोगवाहिघत्थं दिक्खते ऊ इमे दोसा ||७|| छक्कायसमारंभो णाणचरित्ताण चेव परिहाणी । घंसण पीसण पयणं दोसा एवंविहा होति ||८|| जाता अणांहसाला समणाविय दुक्खिया तिगिच्छंता । तेविय पउणा संता होज्ज व समणा ण वा होज्जा ||९|| अक्कंतिओ य णो पागइओ गामदेसअद्धाणे । तक्करखाणगतेणो परूवणा तेमिसा होति ॥४१०|| अक्कंतिओ अडाडा पागइओ छिराय अहव पागतिणं । हरती गामाईणं अंतर अहवावि तेसिं तु ॥१॥ तेणेव कम्मेणं जीवति णऽण्णेण तक्करो स खलु । खत्ताइं जो खणती खाणगतेणो भवे स खलु ॥ २॥ सो पुण तेणो चउहा दव्वे खित्ते य काल भावे य । एतेसि चउण्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं ||३|| सच्चित्ते अच्चित्ते सीमेऽविय होति दव्वतेणो हु । सच्चित्ते दुपयादी दुपदे दासाइयं होति || ४ || गोमादी य चउप्पय अपदं फलधण्णमादियं होति । अच्चित्त हिरण्णादी दुपयादि सभंड मीसम्म ||५|| एमादि दव्वतेणो साहम्मियण्णधम्मियागिहीणं । तेणितो सो तिविहो उक्कोसो मज्झिम जहण्णो ||६|| हयगनमाणिक्काणि य तेणितो तेणतो उ उक्कोसो। खत्तखणकण्हवन्नियगोणीतेणो तु मज्झिमओ ||७|| गंठीभेदग पहियजणदव्वहारी जहण्णतेणो तु । एक्केक्स्स य एत्तो पडिच्छगपडिच्छगो चेव ||८|| सगदेसपरविदेसे अंतर तेणे य होति खित्तम्मि । राइंदियावि काले भावम्मि य णाणतेणादी ||९|| गोविंदज्जो णाणे दंसणसुत्त हेत्तुठ्ठा वा । पारंचिगउवचरगा उदायिवहगादओ चरणे ||४२०|| दव्वादितेण एसो पव्वावेतुं ण कप्पए सव्वो । समणाण व समणीण व पव्वाविंते इमे दोसा ॥१॥ वंधण रोहण तालण दासत्तं मारणं च पाविज्जा । णिव्विसयं व णरिंदो करेज्ज संघपि सो रुट्ठो ||२|| अजसो य अकित्ती या तंमूलागं तहिं पवयणस्स । ठाति गिहीणवि एवं सव्वे एयारिसा मण्णे ||३|| सग्गामपरग्गामे सदेसपरदेस अंतो बाहिं वा । दिट्ठमदिक्कोसा मज्झिमजहणे इम सोही ||४|| मूलं छेदो छग्गुरू छल्लहु चार लहुगगुरुगाय । गुरुग लहुगो य मासो एएसिं चारणा उ इमा ॥ ५॥ सग्गामंतो दिठ्ठे उक्कोसो मूल छेदो अद्दिट्ठे । बाहिं दिट्ठे छेदो अद्दिट्ठे होत छग्गुरूगा ||६|| परगामंतो दिट्ठे उक्कोसो छेदो छग्गुरूमदिट्ठे । वाहिं दिट्ठे छग्गुरू अद्दिट्ठे होति छल्लहुगा ||७|| सद्देसंतो दिठ्ठे छग्गुरू अद्दिट्ठे होति छल्लहुगा । बहिदिठ्ठे छल्लहुगा । अठ्ठे होति चउगुरूगा ॥८॥ परदेसंतो दिठ्ठे छल्लहुगा अदिठ्ठ होति चतुगुरूगा। बहिदिठ्ठे चतुगुरूगा अद्दिठ्ठे होति चउलहुगा ॥९॥ एवं ता उक्कोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरूमासे । छगुरुगादि जहण्णे ठायइ अंतम्मि लहुमासे ||४३०|| तियपद मुक्कमोचिय अहवा वीदज्जितो गरिदेणं । अद्भाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमहं वा ॥ | १ || रन्नी उवरोहादिसु संबद्धे तह य दव्वजोगम्मि । अब्भुठ्ठिओ विणासाय होइ रायावकारी तु ॥ २॥ सच्चित्तअचित्तमीसगमवकारे दूतलेह उवकरणं । समणाण व समणी व न कप्पते तारिसे दिक्खा ||३|| आसो हत्थी खरिया वाहीतं कतकतं च कळागादी। अहवा सभंडमत्ता खरियादी अवहिता होज्ना ॥४॥ दोच्चविरूद्धं च कतं होज्जाहि पउत्तकुडलेहो वा । पिउपुत्तभाउगादी कोई वहिओ व से होज्जा ॥ ५॥ तं तु अणुद्धियदंडं जो पव्वावेति होति मूलं से। एगमणेग पओसा होज्जा पत्थारदोसा वा ||६|| 1 ॐ श्री आगमगुणमंजूषा - १४७५ NOTION [१३] ne Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IOS $ $$$$$ $明 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [१४] $$$ $$$ 22TC) 555555555OT FFFFFFFFFF CO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐6S双 बितियपद मुक्कमोचिय अहवा वीसज्जितो णरिदेणं । अद्धाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमढे वा ७|| उम्मदो खलु दुविहो जक्खादेसो य मोहणिज्जो य । दुविहंपि ण दिक्खिज्जा दोसा तु भवे इमे तस्स ॥८॥ अगणी आलीवणता आयवयविराहणा य उड्डाहो । छक्काय र सद्दहती सज्झायज्झाणजोगे य॥९॥ पडिलेहणादि वितहंई करेति समितीसु असमितया वावि। उवदिपिण गिण्हति तम्हा णवि दिक्खे उम्मत्तं ।।४४०|| दुविहो अदंसणो खलु जातिउ उवघाततो य णायव्वो । उवघातो पुण तिविहो वाही उवघाउ अंजणता ॥१|| एयपसंगणं चिय अवरो थीणद्धिओ मुणेयव्यो । एलेसिं सोहि इमा जहक्कमेणं मुणेयव्वा ॥२॥ उद्धियणयणे तह सेसएसु थीणद्धितो तु कमसो तु । छग्गुरू चउगुरू चरिमे दोसा तहिं दिक्खिते इणमो ||३|| छक्कायविउरमणता आवडणं खाणुकंटमादीसु । थंडिलअप्पडिलेहा अंधस्स ण कप्पती दिक्खा ॥४|आवहति महादोसं दंसणकम्मोदएण थीणद्धी । एगमणेगपओसेजं काही तं तु आवज्जे ॥५॥ गब्भे कीए अणए दुब्भिक्खे सावराहि रूद्धे य। एमादि होति दोसा ण कप्पती तारिसे दिक्खा ॥६|| राया व रायमच्चो कितिकम्मं संजताण कुव्वंतो। दळूण दुवक्खरयं सव्वे एयारिसा मण्णे ||७|| वह बंधं उद्दवणं खिंसण दासत्तमेव पावेज्जा । णिव्विसयंपि णरिंदो करेज्ज संघपि सो रूठो ||८|| अजसो य अकित्ती या तंमुलागं तहि य पवयणस्स । लोगस्स होति संका सव्वे एयारिसा णूणं ।।९॥ मुक्को व मोइओ वा अहवा वीसज्जितो णरिदेणं । अदाण परविदेसे दिक्का से उत्तिमढे वा ॥४५०|| दुविहो य होति दुठ्ठो कसायदुठ्ठो य विसयदुठ्ठो य। दुविहो कसायदुठ्ठो सपक्खपरपक्खचउभंगो॥१॥ सासवणाले मुहणंतए य उलुगच्छि सिहगिणि सपक्खे। सासवणाल संसुभिय एगेण गुरूणमुवणीयं ।।२।। सव्वं गुरूरा कइयं कयरे कोवो य खामणागुरूणा । अणुवसमते उगणे गणिं ठवेत्ताऽन्नहिँ परिन्ना ॥३|| पुच्छंतमणक्खाए सोव्वइ अण्णस्स (सवणातो गंतु) कत्थ से देहं । गुरूणो पुव्वं कहिते दाई पडियरण दंतवहो॥४॥ मुंहणंतगस्स गहणे एमेव य गंतु णिसि गलग्गहणं । संमूढेणियरेणवि गलए गहितो मया दोवि॥५॥ अत्थं गतेवि सिव्वसि उलुगच्छी उक्खणामि तुह अच्छी। पढमगमो णवरि इह उलुगच्छीउत्ति ढोकेइ ॥६॥ सिहरिणि लुद्ध णिवेदे गुरूण सव्वादितंति उग्गिरणा । भत्तपरिणाम अण्णहिं ण गच्छती सो इहं णवरि ॥७॥ परपक्खम्मि सपक्खे उदातिणिवमारतो जह व दुठ्ठो । सो पवयणरक्खणठ्ठा णिच्छुब्मति लिंग हातूणं ॥८॥ परपक्खि सपक्खे पुण जउणारायव्व सो तु भयणिज्जो । तं पुण अतिसयणाणी दिक्खेंतऽधिगारिणं णाउं ।।९।। परपक्खे परपक्के दंडियमादी पदुठ्ठ परदेसे। उवसंते वाऽन्नत्य उ दमगादि पदुठ्ठ भयितो वा ॥४६०॥ तिविहो य विसयदुठ्ठो सलिंग गिहिलिंग अण्णलिंगे य । अहवा सव्वेवि दुहा सपक्खपरपक्खचउभंगो॥१॥ परपक्खविसयदुठ्ठो सपक्ख पारंचिओ तु आउट्टो। अठियम्मि लिंगहरणं एमेव सपक्ख परपक्खे॥परपक्खं तु सपक्खे विसयपदुछ ण तं तु दिक्खंति । सज्जि (ज्झि) यादिपदुद्रु ण य परपक्खं तु तत्थेव ॥३॥ दव्वदिसखेत्तकाले गणणा सारिक्ख अभिभवे वेदे । वुग्गाहणमण्णाणे कसायमत्ते य मूढपदा ॥४॥ दव्वि दुहा बहि अंतो अंतो धत्तुरगादि बहि धूमो। जावदवियं ण याणति घडियावोद्दव्व दिठ्ठति ॥५॥ दिसमूढो पुव्वमवरं मण्णति खेत्तम्मि खेत्तवच्चासं । दियरातिविवच्चासो काले पिंडारदिळूतो॥६।। जह कोई पिंडारो खीर णिसठ्ठाए पाउ (रत्ति) पासुत्तो। अब्भच्छण्णे उठ्ठिओ मण्णति जह वट्टए रत्ती ।।७।। महिसीओ पविसंतो दिठ्ठो लोएण हसियतो ताहे। किं एयंतिय भणियं एमादी कालमूढेसो॥८॥ ऊणहियं मण्णंतो उट्टारूढो व गणणतो मूढो। सारिक्ख थाणुसरिसो महतरसंगामदिठूतो॥९|| जह एक्के गामम्मी चोरो पडिया तुई तत्थ जुद्धम्मि । सेणावति तहिं वहिओ सारिक्खो महतरो व णितो॥४७०|| सोणीय चोरपल्लिं इयरो दड्डो य तेण गामेणं । बेति य चोरे महतरोणाहं सेणावती तुज्झं ॥१॥ तो ते चोरा बिती गहिओ एसो रणपिसायीते। तो णासिऊण तत्तो गामगतो बेति यो नियगा ॥२॥ दड्डो सी अम्हेंहि किं देवेहि जियावितो तं सी ?। इय ई सारिक्खविमुढा दोणिवि गामेल्ल चोरा य॥३|| अभिभूतो संमुज्झति सत्थग्गीवात (चोर) सावयादीहिं । अब्भुदय अणंगरती वेदंमी रायदिटुंतो ॥४||जह कोति रायपुत्तो बालो अच्छीसुदुक्खमाणासु। मादुगहसारिसारियसंफुसण ठितो तु तुण्हिक्को॥५॥लद्धोवाउत्तितओएवमभिक्खं तु ताहे सा कुणति। सोऽविय विवद्धमाणोई सत्तो तीएतुपासम्मि॥६॥ तीयवि अणुप्पियं चिय पितुउवरमणे यतस्स रायत्तं। तहवियं तं पडिसेवति सचिवादिणिसिज्झमाणोवि॥७॥ वुग्गहितोपरेणं कज्जमकजं 5+hero SHOROF 5 555555555555555 श्री आगमगणमंजषा - १006145444444444444444444444554KKota Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%2 9555555555555555 (३८-रापंचकप्पभास पंचम छेयसुत (१५) 100%990ssssswwweeeg 2 च ण मुणती जो तु । सो वुगाहणमूढो दिट्ठता दीवजातादी ॥८॥ वणिदारग पियमहिलो तीय समं गमण वारिजाणेणं । गम्मिणि पोतविवत्ती समुद्दमज्झे फलगलग्गा |९|| अंतरदीवुत्तिण्णा पसूयदारग विवद्धितो कमसो। तेण सह लग्ग वितिरिच्छपोतरूढा गता सपुरं ।।४८०॥ वुग्गाहिय तीय सुतो ण मुणति लोगेण भण्णमाणोऽवि। जह जणणि तवेसत्ती अगम्मगमणं ण वट्टति उ॥१॥जह वा अणंगसेणो ण मुणति वुग्गाहियऽच्छराहिं तु । मित्तवयणं हियंपी जह वावि सुवण्णगारीणं ।।२।। वुग्गाहितो तु बोद्दोमा हीरेज्जा सुवण्णकारेणं । तुझं तु मोरगाइं छाएमी तंबएण अहं ॥३॥ लोगो य तुमं भणिहिति हरियाई मोरगाइं बोद्द! तुहं । तं मा हु पत्तियाही एवं च भणिज्जसी लोगं ||४|| जो एत्थं भूतत्यो तमहं जाणे कला य मासो य । सोऽविय एवं भणती वुग्गाहिय अहव अंधलगा ।।५।। अंधलगब्भत्तणिवे सयणासणभत्तवसहिमादीहिं। सुपरिग्गहितंधलगा तेवि य धुत्तेण भणिता य ॥६॥ अहयम्मि अंधदासो अम्हं राया य अंधलगभत्तो । इह दुक्खिय तहिं वच्चह जह कयपुण्णोव्व दियलोयं ।।७।। इय होतुत्ति यं णेहिं णेतु रत्तिं तु डोंगरंतेण । वेढेऊण पुरिल्लो लाविउ मग्गिलपठ्ठीए॥८॥ आणह भे जं अत्थि एत्थ चोराण पतिभयं ठाणे । गेण्ह य पत्थर मा य हु कासति देहित्थ अल्लियितुं ॥९॥ भणिहिति चोर तुब्भे केणेते अंधला वरागातु। गिरिडोंगरा चढाविय पहणह ते पत्थरेहिं तु ॥४९०।। इय वोत्तूण पलाओ चित्तूणं अत्थजातयं तेसिं। ते य पभाते दिठ्ठा गोवादीएहिं भणिता य॥१॥ केणेते एव कता इय वुत्ते पत्थरेहिं ते पहया । णवि दिति अल्लियावं वुग्गाहिय एवमादीया ॥२॥ वणिमहिल मूढ़ दव्वे वेयम्मि य मूढ होति राया ऊ । वुग्गाहणमूढा पुण दीवादी सेस दव्वेवि ॥३॥ अण्णाणमूढ इणमो दाइज्जतं पि कारणसतेहिं । जो सप्पहं ण याणति जच्चंधो चेव जह चंदं ॥४|| कोहादिकसाओदयमूढोणवि जाणती मणूसो तु । इह य परम्मि य लोए हिताहितं कज्जऽकज्जं वा॥५॥ दव्वेण य भावेण य दुविहो मत्तोतु होति णायव्वो। मज्झदादी दव्वे माणविहेण भावम्मि॥६॥ मोत्तूण वेदमूढं आदिल्लाणं तु णत्थि पडिसेहो। वुग्गाहण अण्णाणे कसयमूढो पडिक्कुठो ॥७॥ सच्चित्तं च अचित्तं मीसगं जो अणं तु धारेति । समणाण व समणीण व ण कप्पते तारिसे दिक्खा ॥८॥ अयसो य अकित्ती या तंमूलागं तहिं पवयणस्स। अणचोप्पडझंझडिया सव्वे एतारिसा मण्णे ||९|| बितियपद दाणतोसिय अहवा वीसज्जितो पभुणं तु । अद्धाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमठू वा ॥५००। चउरो य मुंगिया खलु जाती कम्मे य सिप्प सारीरे । जातीय पाणवरूडाडोंबाणिक्कारमादीया ॥१॥ पोसगसंवरणडलंखवाहसोयरियमच्छिगा कम्मे । पडकारा य परीहर (सह) रजगा कोसेज्जगा सिप्पे ।।२।। करपादकण्णणासियओठ्ठविहूणा य वामणा वडभा। खुज्जा पंगुलकुंटा काणा एते अदिक्खेया ॥३॥ पच्छा य होति विगला आयरियत्तं ण कप्पए तेसिं। सीसो ठावेयव्वो काणगमहिसोव्व णिण्णम्मि ॥४॥ जे पुण जातीजुंगित कम्मे सिप्पे य तिण्णिविण दिक्खे। बितियपदे दिक्खेज्जा एएहिं कारणेहिं तु॥५॥ जाहे य माहणेहिं परिभुत्तो कम्मसिप्पडिविरतो । अद्धाण परविदेसे दिक्का से अब्भणुण्णाया ॥६।। कम्मे सिप्पे विज्जा मंते जोगेण चेव ओबद्धे । समणाण व समणीण व ण कप्पए तारिसे दिक्खा ॥७|| कम्मं तु उड्डमादी सिप्पं सिक्खिज्जते गुरूविदेसा । लोहारादी तं पुण विज्जकलालेहमादीओ ॥८॥ अहवा विज ससाहण मंतो पुण होति पढियसिद्धो तु । वसिकरणपादलेवादि ततो उ जोगा मुणेयव्वा ॥९॥ गोवालादी कम्मे ओबद्धा छिण्णऽछिण्ण कालेणं । दिण्णा अदिण्णभतिया दिण्णभतीया ण कप्पंति ॥५१०॥ सिप्पादी सिक्खंतो सिक्खाविंतस्स देति जा सिक्खा । गहितम्मिवि सव्वंपी जच्चिरकालं तु ओबद्धा॥१|| बंध वहो रोहो वा हविज्ज परिताव संकिलेसो वा । ओबद्धगम्मि दोसा अवन्न सुते य परिहाणी ॥२।। मुक्को व मोइओ वा अहवा विसज्जिती णरिदेण । अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अब्भणुण्णाया ॥३॥ दिवसभयए व जतामतीय कव्वालभयग उच्चत्ते । भयओ चतुव्विहो खलु ण कप्पते तारिसे दिक्खा ॥४॥ दिवसभयओ उ धिप्पइ छिण्णेण धण्णेण दिवसदेवसियं। जत्तातु होति गमणं उभयं वा एत्तियधणेणं ॥५॥ कव्वाल उड्डमादी हत्थमितं कम्ममेत्तियधणेणं । एच्चिरकाले ध (व) त्ते कायव्वं एत्तियधणेणं ।।६।। कतजत्तगहियमोल्लं दिक्खे अकयाय होति पडिसेहो। पव्वविते गुरूगा गहिए उड्डाहमादीणि ॥७॥ छिण्णमछिण्णे य धणे वावारे काल इस्सरे चेव । सुत्तत्थजाणएणं अप्पाबहुयं तु णायव्वं ॥८॥ वावारे काल धणे छिण्णमछिण्णे य होति भंगठ्ठ । साहिय गहिते य कते मोत्तुं सेसेसु दिक्खेति ॥९।। गहिए व अगहिते वा छिण्णधणे साधिते ण दिक्खंति। ORC$听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐所乐乐玩玩乐乐听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐LO恩 %%%% % 0%%%%%%%%%%%%%%% 03C质男男男男男%%%%%%%%%%%% 11-19] ·v99 $勇为 勇 当% %%%%%%%%%%%%班牙50万 5 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRO%%%% $ 明 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [१६] 5岁男%%%%%%203 乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明5O अच्छिण्णधणे कप्पति गहिते व अगहिते वावि ॥५२०|| जत्थ पुण होति छिण्णं थोवो कालो य होति कम्मस्स ।तत्थ अणिस्सरदिक्खा इस्सरो बंधंपि कारेज्जा॥१॥ ई घेत्तुं समय समत्थो रायकुले अत्यहाणि कईते । फेल्लस्सतंण कप्पति रोबोरसवीरिए भयणा ||२|| सेहस्सा णिप्फेडिय जो सेहं घेत्तु आसियाडेति । सो पुण वतेण केरिसो ण कप्पती आसियाडेतुं ॥३।। अप्पडुपण्णो बालो सोलसवरिसूणो अहव अणिविठ्ठो । अम्मापितुअविदिण्णो ण कप्पती तत्थ वऽण्णत्थ ।।४।। ततियवतअतीयारो णिप्फेडण तेणसद्द भइणिज्जो । तेणे य तेणतेणे पडिच्छगपडिच्छगे चउहा ॥५।। ततियवतस्सऽतियारो णिक्खाविंतस्स सेहमविदिण्णं । भयणा तेणगसद्दे होती है इणमो समासेणं ।।६।। जो सो अप्पडुपण्णो बिरठ्वरिसूण अहव अणिविठ्ठो । तं दिक्खितऽविदिण्णं तेणो परतो अतेणो तु ।।७।। अहवा मुंडित ससिहे भइयव्यो होति तेणसद्दो तु । एक्केक्कस्स य इत्तो चउभंगो होइमो कसमो।८।। मुंडपभुपेल्लए या चउभंगो पढमततिय अणुण्णाया।ते हरमाणो अतेणो सेसेसु तु तेणओ होति ।।९।। एव पभुससिहपिल्लग चउभंगो णूण एत्थवि तहेव । एतेण कारणेणं तेणगसद्दो तहिं भजितो॥५३०।। अहवऽण्णो चउभंगो ससिहेगं एक्कोणेति इति एक्को । असिहम्मि होति बितिओ तेणा चत्तारि तत्थ इमे॥१|| जो गन्तु सयं णेती सो तेणो होति लोगउत्तरिओ। भिक्खादिगते तम्मि तु हरमाणो तेणतेणोतु ||२|| तं पुण पडिच्छमाणो पडिच्छओ तस्स जो पुणो मूला। गिण्हति एगंतरिओ पडिच्छगपडिच्छगो स खलु ||३|| तइयव्वताइयारो एवं णितस्स होइ सेहं तु । अण्णे य इमे दोसा गहणादीया भवे तस्स ॥४|| अम्मपितरो कस्सति विपुलं घेत्तूण अत्थसारं तु । रायादीणं कहते कहियम्मि य गिण्हणादीया ॥५॥ विप्परिणमे व सण्णी केई संबंधिणो भवे तस्स। विप्परिणया य धम्म मुएज्ज कुज्जा व गहणादी ||६|| आयरियउवज्झाया कुल गण संघो तहेव धम्मो य । सव्वेवि य परिचत्ता सेहं णिप्फेडयंतेणं ।।७॥ तम्हा तु ण हायव्वो बतियपदेणं हरेज व कयादि । होही जुगप्पहाणो ण य दोसा तत्थ केति भवे ।।८।। तो अतिसेसी दिक्खे ओहीमादी अमूढहत्थो वा । थिरहत्थो व अमूढो दिक्खेज्जा सो तहिं चेव ॥९॥ केति पुण मंदधम्मा बितियपदणिसेवियं ववदिसंति । वडपादवोविव जहा मूलविणठ्ठा णहविलग्गा ॥५४०|| णिप्फेडियमिच्छंता रक्खियमालंबणं ववदिसंति । मूलविणठ्ठो व वडो जह चिठ्ठति लग्गपादेसु ॥१॥ एवं तु मूलसुत्तं छड्डेतुं ते तु लग्ग साहासु । साकारण णिप्फेडी णिक्कारणओ य पडिकुछो ।शा जे केइ सेहदोसा बालादीता मए समक्खाता । ते चेव य सविसेसा गुव्विणि तह बालवच्छासु ॥३|| कह ते तु संभवंती गब्भम्मी तम्मि चेव बाले य। दिठ्ठा तु बालदोसा होज्ज कदादी णुपुंसो वा ।।४।। एवं अवसेसावी णवरं मोत्तूणिमे तहिं अणले । वुटुं जड्डसरीरं तेणं रायावकारिं च ॥५॥ दासमणत्तं च तहा ओबद्धं भतग सेहणिप्फेडिं। अवसेस अणलदोसा भइयव्वा गुम्विणीए उ ॥६|| अहवावि गुम्विणीए अन्ने दोसा इमे भवंती हु । कायभवत्थो बिंबं चतिफिति वयणम्मि व मरेज्जा ||७|कवि तेणे रायावकारि दुढे य सेहणिप्फेडे । गुब्विणीए य जहक्कम वोच्छं आरोवणं इणमो ।।८॥ मूलं चतुगुरू पारंचिया दुवे चउगुरुं तओ मूलं ।' अहवाऽवकारि मोत्तुं सेहं वा सेस मूलं तू ॥९॥ पारंची मूलं वा अवकारिऍ सेहे होति चउगुरूगा । सेसेसु ठाणएसुं चउगुरुगा हू मुणेयव्वा ॥५५०।। बाले वुड्ढे कीवे जड्डे मत्ते अदंसणे चेव । करमादिजुंगिए वा जदि पच्छा होज्ज णिक्खंतो॥१॥ गच्छे संगहियाणं संवासो तेसि होति णिपिठो । ण विड (उ) त्ताणं णियमा एगठ्ठाणे य पाएण ॥२॥ होज्जाहि गुब्विणीयवि जह पउमवतिव्व खुड्डमाया वा । तं तू उवस्सयम्मी भावियसड्ढेसु वा गोवे ||३|| जिणपवयणपडिकुछो जो पव्वावेति लोभदोसेणं। चरितठ्ठितो तवस्सी लोवेइ तेमव तु चरितं ॥४|| पव्वाविओ सियत्ती सेसं पणगं अणायरणजोग्गं । अदुवा समायरंते पुरिमपदऽणिवारिया दोसा ॥५॥ पव्वावण मुंडावण सिक्खावणुवठ्ठ भुज संवसणा । पढमपदहीण सेसा पंच पदा तेहिं वज्जेन्ति ॥६॥ पव्वज्जा तु अभिहिया सा पुण होज्जा कहं तु पव्वज्जा ?। तं वत्तुमणाऽयरिओ गाहासुत्तं इमं आह ।।७।। छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविण्णाणा पडिस्सुता । सारणिया रोगिणिया, अणाढिया देवसण्णत्ती ॥३९॥ल० १०॥८॥ (व) च्छाणुबंधिया (१०) अजणियकण्णिया बहुजणस्स सम्मुदिया। अक्खाता संगारा वेयाकरणे सयंबुद्धा ।।४०||ल० ११||९|| पल्लि सुराऽभय देवी वड तेतलि मूग वासुदेवे य। उहायण मण (१०) केसी जंबु पभव मल्लि सोम जिणा ॥४१॥ल० १२॥५६०|| गामेगो चोर पडिया वत्थहिरण्णादि गेण्हितुं ते य । संपढ़िते य पल्लिं रूववती ॥ OO兵兵明明明明明明明乐乐乐明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听2C MORo45555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१४७८9555555555555555461 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0555555555与勇男 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [१७] 5555555555555sXORK CC%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐国乐乐乐听听听听听听C महिलिया भणति ॥१॥ किं न हरह महिलाओ ? चोरा चिंतंति इच्छिया महिला । णेतुं पल्लीवतिणो उवणीया तेण पडिवण्णा ॥२॥तीय धवो सयणेणं भणितो किं बंदिगंण मोएसि । गंतूण चोरपल्लि थेरी ओलग्गए पयओ॥३।। किं ओलग्गसि पुत्ता! चोरेहिं भारिया इहाणीया। विरहे तीऍ कहेती इहागतो तुज्झ भत्तत्ति ||४|| कहिए तु चोरअहिवम्मि पउत्थे भणति अज्ज रत्तीए। पविसतु चोरहिवोकं पविठे (पच्छा) सेणावती आओ।।५।। हेछा आसंदि पवेस चोरहिवं भणति धुत्ति इणमो तु। जदि एज्ज मज्झ भत्ता तस्स तुमं किं करिज्जासि ?।।६।। चोराहिवाह सक्कारइत्त तुम देज तो करे भिउडिं। आह ततो चोरहिवो दारे थंभम्मि उल्लंबे ॥७॥ वद्धेहिं वेढेज्जा तुठ्ठा सण्णेति हेठ्ठ संदीए। णीणेतुं चोरहिवा कंभे वद्धेहिं वेढेइ ।।८॥ सुणएण खड्य वद्धे पासुत्ताणं च चोरअहिवस्स । सगअसिणा छेत्तूणं सीसं गहिइथिओ भण (चल) ति ॥९|| णीणीजंती सीसं चोरहिवस्स तु सा गहेऊणं । गालंती ऊ रूहिरं अह गच्छति मग्गतो तस्स ॥५७०॥ जाहे जातब्भासं ताहे सीसं तयं पमोत्तूणं । दसियाचीराईणि य साडिंति य जाति चिंधछा ।।१।। जाहे य णिठ्ठिताई ताहे तणपूलियाओ बंधंती । वच्चति अवयक्खंती पुणो पुणो मग्गतो सा तु ||२|| गोसे य पभायम्मी सेणहिवं घाइयं ततो द8 । लग्गा कुढेण चोरा पासंति य ताणि चिधाणि ॥३।। रूहिरदसिगादियासं अणिच्छिया णिज्जइत्ति मण्णंता । तुरियं धावे कुढ़िया ताणिविय पभायकालम्मि॥४|| पंथस्स एगपासे ठियाणि कुढिएण जाव दिठ्ठाई। तं खीलेहि वितड्डिय महिलं घेत्तूण ते य गता।।५।। ते चोरा तंणेउंचारोहिवभाउगस्स उवणिति । सा तेणं पडिवण्णा चोराहिवपट्टबंधम्मि ।।६।। इतरोवि खीलएहिं वितडडिओ अच्छती तु अडवीए। जूहाहिवणिज्जूढो अह एति अणीहुतो तहियं ॥७॥ तो कवितो दगुणं कहिँ मण्णे एस दिठ्ठपुव्वोत्ति चिंतेऊणं सुचिरं संभरिता णियगजाती तु ॥८॥ अहमेतस्स तिगिच्छी आसि विसल्लोसहीय तं मोए। संरोहिणीएँ तत्तो संरोहेत्ता वणे तस्स ।।९।। लिहतिऽक्खरा अणिहुओ सोऽहं वेज्जो तवासि पुव्वभवे । संभारिय संभिण्णाणऽतो उ ते वाणरो कहते ॥५८०।। जह जुहा णिच्छूढो साहिज्ज मज्झ कुणसु वरमित्ता!। आमंति तेण भणितो जूहं गंतूण ते लग्गा ॥१॥ दोण्ह विसेसमणातुंण किंचि कासीय सो हु साहिज्ज । गठ्ठो लुत्तविलुत्तो लिहति ततो अक्खरा पुरतो ।।२।। किं साहिज्नं ण कतं ? पुरिसाह ण जाण दोण्हवि विसेसं । तो तुठ्ठो वाणरतो वणमालं अप्पणो विलए ॥३।। लग्गे सेग पहारेण मारितुं चोरपल्लिमतिगंतुं । रत्तिं मारिय चोराहिवं तुं तं गिण्हितुं इत्थिं ॥४॥ सग्गामं आणेत्ता इत्थि उवणेति सयणवग्गस्स वेरग्गसमाजुत्तो धिरत्थु इत्थीइ जो भोगो।।५।। मज्झत्थं अच्छंतं सयणो जंपति तु झायसे किण्णु ?। किं वाऽसि कडुयकामो? भणती काहऽप्पणो छंदं ।।६।। थेराणतिय धम्म सोतुं पव्वज्जमब्भुवेसी य। एसा छंदा भणिता अहुणा रोसा तु पव्वज्जा ||७|| सीसारक्खो रण्णो धम्मं सोऊण सावओ जातो । मा मारेही कंची उज्झित्तु असिं धरे दारूं ||८|| तप्पडिणिरायकहिए पिच्छामि असिति सावएणुत्तं । सम्मद्दिठ्ठीदेवयसारक्खिज्जोत्ति तो कठ्ठ॥९॥ दिव्वप्पभावमायसमयं तु दटुंण कुद्दो तो राया। णिज्जति पच्चणीए सलो तेसिं तु रक्खठ्ठा ॥५९०।। बेति णरिंदं अह सो मा एतेसिं तु रूसहा तुब्भे । जं जंपियमेतेहिं तं सव्वं णरवर ! तहेव ॥१॥ ताहे छोण पुणो णिक्कुट्ट असी तु णवरि दारूमओ। दिठ्ठो णरवसभेणं विम्हइओ बेति किं एयं ॥शजंपति सड्डो ताहेणरवर !देवप्पसाद इच्चेसो। पावविवज्जी उणरा हवंति देवाणऽवी पुज्जा ।।३।। तो तुठ्ठो भणति णिवो सेवसु एमेव दारूअसिणा उ। कडगादीहि य पुजितो पावितो सुमहंतमिस्सरियं ॥४॥ कालगयम्मि सड्ढे पुत्तो णामेण चंडकण्होत्ति। पडिवण्णोतं भोगं सामंते पुणऽणमंतम्मि ॥५॥ पेसेति चंडकण्हं गंतूणं घेत्तू सजियमाणेति । तुठ्ठो य भणति राया किं देमि अहाह सो इणमो ॥६।। जं खज्जपेज्जभोजजं गेण्हेज्न पुरिम्मि तं तु सुग्गहियं । इय होतुत्ति य भणिय वारूणिपाणप्पमादेणं ||७|| रत्तिं चिरस्स सगिहं आगच्छति भज्जमातरो तस्स । दुहिया जग्गंतीओ उण्णिद्दा अण्णदा रत्ति ।।८।। चिरकत दारं पिहए अह वदती आगाते तु सो दारं । उग्घाडंतो जणणिं वएंसु जत्थेरिसे वेले ॥९॥ उग्घाडिय दाराई तहियं वच्चत्ति मातु रूसितो तु । सरा हुग्घाडियदारूत्ति गन्तु साहूणमल्लियओ॥६००॥ पव्वावेह लवेई तेऽविय मत्तोत्तिकातु वक्खेवं । बिती गोसग्गम्मी पभाते पव्वावइस्सामो ||१॥ सयमेव कुणति लोयं ताहे लिंगं दलंति जतिणोतु । पव्वावित विहिणा एसा दोसा तु पव्वज्जा ॥२॥ दमगं भइयं कम्मं कुणमाणं दट्ठ सावओ पुच्छे । केवतिभतीय कम्मं करेसि ? पाएण पच्चाह३|| दाहामी O乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明乐乐所乐乐乐乐乐C Ke495454 श्री आगमगुणमंजूषा - १४७९॥555555555555 F OTO Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुतं [१८] पतिदिवसं तव पादं गंतु साहुणो बुहि। सावेण पेसिओ हं करेज्ज जं आणवे साहू ॥ ४॥ साहू भांति दमगं जो पव्वइउं करेति कम्मऽम्हं । तं कारवेमु ण गिहिं पव्वइओ दव्वओ ताहे ||५|| साहू भांति दिवसं पढियव्वं जं च देमु उवएसं । एयं कम्मं अम्हं सिक्खं दुविहंपि गाहितिं || ६ || कतिवय दिवस गतेहिं अह सड्डो भणति तं भतिं *गेण्ह । उक्कोसगभत्तेणं सुहित्तो रत्तो लवे इणमो ||७|| अच्छतु तुब्भं हत्थे जति ता मग्गे तदा दलेज्जाहि । कतिवय दिवसेहिँ ततो अभिगयधम्मो उवठ्ठियओ ||८|| परिजुण्णेसा भणिता सुविणे देवीऍ पुप्फचूलाए। नरगाण दंसणेणं पव्वज्जाऽऽवस्सए वृत्ता ||९|| चतुरो तु गोणपाला सत्था हीरं जतिं तु अडवीए । पडिलाभिति पहठ्ठा दोहिं दुगुछाइयं तहियं ||६१०|| दियलोगगता तत्तो चइतु दुगुंछा दसण्णि दासत्तं । तत्तो मिगा य हंसा सोवागा चित्तसंभूता ॥ १॥ अदुगुंछी तित्थगरं पुच्छति किं सुलभदुलभबोहीऽम्हे । तित्थंकराह विग्घं अम्मापितरो करेहिति ||२|| तो ओहीनाण पासित्तु माहणपुत्तत्त णगरमुसुगारे । सो माहणो अपुत्तो पुच्छति णेमित्तिए वहवे ॥३॥ ते काउ समणरूवं उसुगारपुरम्मि आगता कहए । बहुजण तीतादीणि तो पुच्छे महाणो ते उ ||४|| होज्जऽम्ह किं चऽवच्चं पच्चाह चुया दिया तुहिति । जमलदारगा तू कुमारगा पव्वइस्संति ॥ ५॥ मा तेसि करेज्नासी विग्घमवस्सं च तेसि पव्वज्जा । होही वोत्तूण गता चइउं उववन्नया तेसिं (सु) ॥६॥ बालत्तऽम्मापितरो भणंति समणाण सरिसरूवेणं । रक्खस माणुसखागा भमंति दट्टुण ते पुत्ता !||७|| मा तेसि अल्लिएज्जह दूरंदूरेण परिहरिज्जा ह । मा भक्खेज्जा ते भे तेसिं वयणं पडिसुणेति ॥८॥ रत्थादि जत्थ पासंति संजते ते तओ पलायंति । अह अन्नया नगर बहिं चेडे पासंति वंदंते ||९|| बिति य अम्मापितरो दिठ्ठऽम्हे चेड वंदमाणा तु । णवि समणरूवि रक्खस भक्खिति व चेडरूवाई || ६२०|| चिंतेतऽम्मापितरो अतिवीसत्था इमे हु जायत्ति । मा पव्वएज्ज इहतिं अल्लियमाणा तु समणाणं ॥ १ ॥ सउवज्झाया एते वइयं णिज्जंतु तत्थऽ हिज्जंतु । इय संचितेऊणं वइयं णीता ततो तेहिं ॥२॥ वइयाऍ समीवम्मी मणाभिरामो तु अत्थि वडरूक्खो । अह अण्णदा कदाई ते तु रमंता गता तहियं ॥३॥ सत्था हीणा य जती तिसियकिलंता तु आगता तहियं । एत्थ करेमो भिक्खं वडठ्ठा पठ्ठिता तत्तो ॥ ४॥ तो ते भयाभिभूता चेड विलग्गा तमेव वडरूक्खं । जतिणोऽविय तस्स हेठ्ठा ठातुं पविसंति भिक्खठ्ठा ॥ ५॥ णवरि पवत्तिति गुरू तहियं अज्झयण णलिणगुम्मति । ता ते सरंति जातिं ओयरितुं वंदितुं बिति ||६|| अम्मापितरो पुच्छित्तु पव्वज्जं अब्भुवेमो सेसं तु । जह उसगारज्झयणे वक्खातं सुत्तआलावे ||७|| एसा पडिस्सुता खलु पव्वज्जा सारणी तु ळातेसु । चोद्दसमे अझ जह तेतलि पोट्टिला बोहे ||८|| पतिठाणे जुवराया राहायरियाण पासि णिक्खंतो । तगराऍ तस्स भगिणी दिण्णा जितसत्तुरायस्स ||९|| तगरगताण कदायी उज्जेणीओ य आगतो साहू । राहगुरूपुच्छऽणाबाह बेति बाहेति रायसुतो ॥६३०॥ पुत्तो पुरोहियस्स य दोsवेते णिवघरम्मि बाहंति । तं सोतुं जुवणिवमुणी बेती मम नत्तुओ सो तु ॥ १॥ सासेमि तं दुरप्पं आपुच्छिय गुरू गतो उ उज्जेणिं । णिरूवसग्गं तु पुठ्ठा तं चैव कर्हिति से जतिणो ॥२॥ भिक्खठ्ठ णिग्गयम्मिय भणितो अच्छा आणइ सामो । भत्तठ्ठ अत्तलाभीति बेति दंसेह णिवओकं || ३ || दंसेतूण णियत्तो खुड्डो इयरो व गंतु णिवओंकं । सद्देण महंतेणं अह कुणती धम्मलाभं तु ॥४॥ तो तेहिं सो तु दिठ्ठो परितुठ्ठेहिं च णेहिं सो गहिओ । भळितो त णच्चसुत्ती इय होतू तेण ते भणिता ॥ ५॥ गायह तुब्भे हि ततो ते तु पगीता पणच्चिओ साहू । ता ते उवद्दवित्ता साधुणा खित्तिया दोवि ॥ ६ ॥ पुणरवि बेंती गायसु तुमं तु अम्हे उ णच्चिमो इण्हिं । इय होत्तुत्ति य भणिते पणच्चिता ताहे ते दोवि ||७|| पुणरविय विद्द्वेत्ता गोवाल ! विवेह किं एयं । भणिता ते साधूणं बिति य किं सवसिं तं अम्हे ? ||८|| देहिं तु जुद्धं अम्हं लविता साहूण दोण्णिवि समगं । आगच्छहत्ति सिग्घं तो ते आधाविता तुरितं ॥९॥ आधावेंता य तत्तो घेत्तुं बाहासु दोवि साहूणं । तह विहुताऽणेण दुतं जह संधि विसंधिता सव्वे ॥ ६४०|| उत्ताणए महीए पाडेतुं णिग्गतो तु सो तत्तो उज्जाणं गंतूणं झायति झाणं गुणसमग्गो ॥ १ ॥ अह ते दहुं णिहते संभंतो परिजणो कहे रन्नो । रायाविय संभंतो आगतुं णियच्छती ते तु ॥२॥ पुच्छे तेऽवीय जती बिति य णेत्थऽम्ह पविसते कोई । णवरिक्को पाहुणओ आगतो ण य तं तु जाणामो ||३|| ताहे उज्जाणादिसु रण्णा गविसाविओ य दिठ्ठो य । गंतूण सयं राया चलणेसु विड़िओ जतिणो ||४|| बेई य जं इमेहिं अवरद्धं तं खमाहिसी भंते! जंपति साधू जदि णिक्खमंति मोक्खामि तो णवरं ॥ ५ ॥ सण्णाओ अवरेहिं एस कुमारस्स माउलो YO FOR श्री आगमगुणमंजूषा - १४८ON Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्त [१९] सो उ । बहुसो निब्बंध कते पडिवण्णा जाहे ते दोवि ||६|| ताहे गंतूण तहिं दोण्णिवि घेत्तूण तेण बाहासु तह णं खलखलीकीत जह संधी सिं पुणो लग्गा ॥ ७ ॥ णिक्खामेतुं दोण्णवि सूरिसगासं तु णीणिया तेणं । चिंतेइ रायतणओ साधु कतं मातुलेण ममं ||८|| मम हियमिच्छंतेणं (२६९) रूदमाणे पीहकोव्व बालस्स । तह मज्झे सेयन्ती अतियारविवज्जितो विहरे ॥९॥ इतरो जातिमदेणं अविणयमादीणि अविगडेत्ताणं। दुल्लभबोही बंधित्तु गतो तु दियलोयं ॥ ६५० || कोसंबीइ य इणमो सेठ्ठी णामेण तावसो णामं । मरिऊण सूयरोरग जातो पुत्तस्स पुत्तो तु ॥१॥ जातो जाति सरंतो विचिंतती किण्णु सुण्ह अम्मत्ति । पुत्तोऽविय बप्पोत्ती भणामि मूयत्तण वरं मे ॥२॥ मरूदेवो तित्थकरं पुच्छति किह सुलभदुलभबोहिऽहं ? । भणितो दुल्लभबोही तं सी गुरूपरिभवकएणं ||३|| कह बुज्झेज्जामित्ति य ? भणितो कोसंबिमूगमातूए । उववज्जिहिसी तहियं मूगा अब्भुत्थितो बोहो || ४ || ताहे आगंतूणं साहू समायत्ति ( गामंति) भणति सो देवो । अहगं चइऊण इतो तुज्झं मातूए उदरम्मि ||५|| उववज्जीहं अइरा होहिति अंबेहिं डोहलोऽकाले । अविरिज्जंते तम्मि य किच्छप्पाणा य होहिति तु ॥ ६॥ अहगं गिरिणीतंबे सव्वोतुय अंबगं करेहामि । अंबालंभे वज्जसि दे अंबे देह जदि गब्भं ||७|| अब्भुवगते ससक्खे अंबे देज्जासि बालभावे य। साहूणं चलणेसुं पाडेज्जाही अणिच्छंपि ॥ ८ ॥ किं बहुणा ? तह कुज्ना जहऽहं साहुत्तणे दढो होमि। संबोहिकरओ खलु लभति अजत्तेण बोहिं तु ||९|| मूगेण अब्भुवगति देवो णमिऊण सालयं पत्तो । चइऊण य उववन्नो कुच्छीए मूगमाऊ ||६६० || अंबगडोहल जाते अविणिज्जंतम्मि देहहाळीए। अद्दण्णपरिजणाणं मूगो लिहतऽक्खराणिणमो || १ || जदि देह मेय गब्भं मज्झं तो अंभगाणि आणेमि । देमित्ति अब्भुवगेत ससक्खमाणेति अंबाई ॥२॥ तो पुण्णडोहलाए जातो दिण्णो य ताहे से तस्स । उत्ताणसायगं तं जतिणो पादेसु पाडेति ॥ ३॥ अतिविस्सरं परोच्छी जाहेविय पाडिओ उ पादेसु । सुहचलणेसु जतीणं मूगेणुत्तो तु णेच्छीया ॥४॥ घेत्तुं गीवाऍ तओ मूगेणं पाडिओ रूवे बहुसो । परितंतु ततो मूओ निक्खतो गतो य दियलोयं ||५|| ओही दणं सुविणादिसु बोहिओ जति ण बुज्झे। ताहे करेति रोगी देवोऽवि य वेज्जरुवेणं ||६|| जदि वहति सत्यकोसं भमति मए यावि जदि समं एसो। णो णीरोगु करेमी पडिवण्णा कतो य णीरोगो ॥७॥ घेत्तूणं तं पयाओ गुरूगं से सत्यकोसगं दावे । तं वज्जभारगुरूगं बेती ण तरामि वोढुं जे ||८|| दंसेति साधुरूवं बेति दक्खिमाहितो तेहिं । मुंचामि विमुंचेमि य रोगा पडिवण्ण तो मुक्का ||९|| णिक्खते तो तम्मी देवोवि ततो तु सालयं पत्तो । कालेणुप्पव्वइतुं सघरं संपठितो अह सो ||६७०|| देवेण पलायंतो दिठ्ठो विगुरुव्विऊण तो अडविं । काउं मणुस्सरूवं अह अडविं पठितो तत्तो ॥ १ ॥ लवति ततो दुब्बोही किं इच्छसि अप्पगं विणासेतु ? | जंजासि अडविहुत्तो देवोवि ततो ण पच्चाह ||२॥ तं पुण विजाणमाणो णरगादीदुक्खसंकिलेसं तु । किं णिग्गंतुं तत्तो पुणरवि दुक्खाडविमतीसि ? ||३|| अगणितो तं वयणं सघरं अह आगतो ततो सो तु। रोगाणं साहरणं भूओ विज्जागमो दिक्खा ॥ ४ ॥ कालेण केणइ पुणो लिंग मोत्तूण पट्ठितो सगिहं देवेण पुणो दिठ्ठो गामपलित्तऽतरा कुणति ॥ ५ ॥ रवि मणुस्सरूवी तणभारेणं तु विसति तं गामं । दहुं लवे पुराणो किं इच्छसि अप्पणो णासं ? ॥६॥ जं तणभारेण तुमं विससि पलित्तं ततो लवे देवो । एव तुमं जाणंतो जरमरणपलित्त संसारं ||७|| पविसंतिच्छसि णासं मुंचसि जं दुक्खलद्धियं दिक्खं । अगणितो वच्चति घरं गतस्स रोगं पुणो कुणति ॥ ८॥ पुरव दिक्खा उपव्वइए य सघणहुत्तम्मि। संपट्टिऍ अडवीए तस्स पहे वंतरप्पडिमं ॥ ९ ॥ कातुं अच्चण देवो अच्चितमहितो तु पडति हेठ्ठमुहो। पुणरवि समुठ्ठवेतुं हवियच्चिओ सो पण पडतो ||६८० || एवं पुणो पुणोवि य अच्चियमहितोवि बहुसो पडे जाहे। लवति ततो दुब्बोही किं वरठाणे ण ठाएसो ? || १ || देवाह जहासि तुमं वरठाणेवि ठविओऽवि ण रमेसि । पव्वज्जं मोत्तु णरगादठाणं पुणवि अभिलससि ॥२॥ लवति पुराणो को तुम ? देवो दंसेति मूगरूवं से। देवत्तं पुव्वभवं संगारं चावि संभारे ॥३॥ तो संभरीतुं जातिं संवेगमुवागतो भणति देवं । इच्छामो अणुसट्ठि जातो थिरो संजमे ताहे ||४|| रोगिणिय एस दिक्खा अणाढिया रामकण्हपुव्वभवो । उद्दायणसंबोही भगावती देवसण्णत्ती ॥५॥ वच्छऽणुबंधी मणको कण्णाए अजणिओ तु केणइवि । पुत्तो जायति जो तू सो होती अजणकण्णी उ ||६|| णिवतिसुतातिं दोन्निवि णिक्ता तु भातुभंडाई । अण्णद रायसुतो तू णिसाऍ लोयऽप्पणो कुणति ||७|| छड्डेहामि पभाते चलणाहो काल पडियरं तीए । पोग्गल वेदगमणं अह णिवयति तेसु वासु ॥८॥ वीसरिया ते तस्स यसिरोरूहा तम्मि चेव ठाणम्मि । तत्थ य पवित्तिणी उ अहागता गाम गंतुमणा ॥ ९॥ अह तीऍ रायदुविहा तं वंदितु सा पदेसे अह तंसि ॐ श्री आगमगुणमंजूषा - १४८१ Yeo 五五五五五五五 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 岁%%%%%%% %%%%%% (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत [२०] 「 %%%%%%% %%%282 Merros 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐圳乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐国明明听听听听听听听听听听听听明明明明明乐M र उवविठ्ठ णवरि तीए य मोउगं सहसमोगाढं ।।६९०॥ लज्जाए सह घेत्तुं तेसिं जे सुक्कपुग्गलाइण्णे । गुज्झम्मि सन्निवेसिय अह सुक्कं जोणिमोगाढं ॥१|| तो गब्भो आहूतो अह पोट्टं वद्धिउं पयत्तं च । मुणिया य सुविहियाहिं पुठ्ठा बेती तुणवि जाणे ।।२।। अतिसयणाणी थेराय पुच्छिता तेहिं सिट्ठ जहवत्ते। होही जुगप्पहाणो रक्खह णं अप्पमादेणं ।।३।। जम्म सड्ढकुलेसु स वड्डितो गोण्णणाम कत केसी । एसा तु अजणकण्णी पव्वज्जा होति णायव्वा ॥४॥ बहुजणसंमुतियाए णिक्खमणं होति जंबणामस्स अक्खायाए जंबू धम्म अक्खादि पभवस्स ॥५|| संगार मल्लिणाते सत्त णिवा कासि जह तु संगारं । वेयाकरणे सोमिल पुच्छा जह वाकरे भगवं ।।६।। सयबुद्धा तित्थगरा सोलसहा एस होति पव्वज्जा। पुच्छापरिसुद्धम्मितु अभुवगते होति पव्वज्जा॥७॥ गोयरमचित्तभोयणसज्झायमण्हाणभूमिसिज्जाती। अब्भुवगयम्मि दिक्खा दव्वादीसुं पसत्थेसु ॥८॥ लग्गादीसु तूरते अणुकूले दिज्जते अहाजातं । सयमेव तु थिरहत्थो गुरू जहण्णेण तिण्हऽट्टा ।।९।। अन्नो वा थिरहत्थो सामाइग तिगुण अट्टगहणं च। तिगुणं पादक्खिण्णं णित्थारग गुरूगुणे वुद्धी ।।७००|| फासुय आहारो से अणहिंडतं च गाहए सिक्खं । ताहे य उवठ्ठवणं छज्जीवणियं उपत्तस्स ||१|| अप्पत्ते अकहेत्ता अणभिगयऽपरिच्छऽतिक्कमे पासे । एक्कक्के चउगुरूगा विसेसिया आदिमा चउरो ४२।।२।। अप्पत्तं तु सुतेणं परियाग उवट्ठवित्तु चउगुरूगा । आणादिणो य दोसा विराहणा छण्ह कायाणं ।।३।। सुत्तत्थं अकहेत्ता जीवाजीवे य बंधमोक्खं च । उवठवणे चउगुरूगा विराहणा जा भणिय पुव्वं ॥४॥ अणहिगतपुण्णपावं उवठ्ठवितस्स चउगुरू होति । आणादिणो य दोसा मालाए होति दिर्सेतो ॥५॥ ससरक्खदगउल्लऽगणीपतिढ़िते हरितबीजमादीसु । होति परिक्खा गोयर किं परिहरती ण वावित्ति ।।४।।६।। उच्चारादि अथंडिल वोसिर ठाणादि वावि पुढत्तीए वावि पुढवीए। णदिमाददगसमीवे खारादीदाह अगणिम्मि ॥७॥ विजणऽभिधारण है वाते हरिए जह पुढविते तसेसुं च । एमानिद परिक्खित्ता वतदाणमिमेण विहिणा सो|८|| दव्वादि पसत्थे वता एक्केक्कं तिगुण णोवरि हट्ठा । दुविहा तिविहा य दिसा आयंबिल णिव्विगतिगो वा ।।९।। पितपुत्ताणं जुयला दोण्णि तु णिक्खंत तत्थ एगस्स । पत्तो पिता ण पुत्तो एगस्स उ पुत्तो ण तु थेरो॥७१०|| ताहे तु पण्णविज्जति दंडियणायं तु कातु भण्णइ तु । मा गेण्ह असग्गाहं रातिणिओ होति एसविता ॥१॥ एवं सो पण्णवितो जदि इच्छे तो उवठ्ठवेती तु । णेच्छंते पंचाहं ठंती दो तिण्णि वा पणगा ॥२॥ वत्थुसभावासज्ज व जाऽधीतं ताव तं पडिच्छंति । एवं रायअमच्चे संजतिमज्झे महादेवी ।।३।। राया रायाणो वा दोण्णिवि सम पत्त दोसु पासेसु। ईसरसेट्ठिअमच्चे णियमघडाकुल दुवे खुडे॥४॥ समयं तु अणेगेसुं पत्तेसुं अणभिओगमावलिया। एगतो दुहतो ठविता समराइणिता जहाऽसण्णं ।।५।। ईसिं अणोयइत्ता वामे पासम्मि होति आवलिया। अहिसरणम्मि य वड्डी ओसरणे सो व अण्णो वा ॥६|| उवठावियस्स एवं संभुंजणता तहेव संवासो। बितियपदं संबंधी ओमादिसु मा हु बहिभावं ।।७।। भुंजीसु मए सद्धिं इयाणि णेच्छंति मा तु बहिभावं । अहिखायंति व ओमे पच्छन्ने जेण भुंजति ||८|| एमादिणा तु भावं ताहे अप्पत्तं अहवऽपत्तं वा। उवठावेतुं भुजति अपरिणते चित्तरक्खट्ठा ।।९।। उवठाविय संभुत्ते संवासो एत्थ होति कायव्वो। बितियपएँ संवसेज्जा अणुवट्ठवियंपिमेहिं तु॥७२०|| अण्णत्थ णत्थि ठाओ अहवा होज्जाहि सोऽवि एगागी । ण य कप्पति एगस्सा संवासो तेण संवासो ||१|| सच्चित्तदवियकप्पो एमेसो वन्निओ महत्थो तु । अच्चितदवियकप्पं एत्तो वोच्छं समासेणं ॥२॥ आहारे उवहिम्मि य उवस्सए तह य पस्सवणए य। सेज्ज णिसेज्जट्ठारे दंडे चम्मे चिलिमिणीय (१०)॥४४||ल०२२||३|| अवलेहणिया दंतार घोवणे कण्हसोहणे चेव । पिप्पलग सूति णक्खाण छेदणे चेव सोलसमे ॥४५||ल०२३||४|| आहारो खलु दुविहो लाइय लोउत्तरो य णायव्वो। तिविहो य लोइओ खलु तत्थ इमो होइ णायव्वो ॥५॥ भायणे भोयणे चेव, भुंजियव्वे तहेव य। भायणे तु इमं थेरा, गाहासुत्तमुदाहरे ॥६।। सुवण्णरजते भोज्ज, मणिसेले विलेवणं। (अविदाही) घतमायास पयं तंबे, पाणसुहं च मिम्मते ||७|| सूवोदणं जवण्णं तिन्नि य मंसाणि गोरसो जूसो । भक्खा गुललावणिया मूल फलं हरियगं डागो ॥४६॥८॥ होइ रसालो य तहा पाणं पाणीय पाणगं चेव । सागं चऽवारसहा णिरूवहतो लोगपिंडो सो ॥४७॥९॥ सूवगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए। ओदणगहणेणं पुण सत्तविहो ओदणो होति ॥७३०|| जातु जवण्णं भण्णति तिन्नि तु मंसाणि जलयरादीणं । गोरसो खीरादी उ मुग्गपडोलादि जूसो तु ॥१॥ भक्खविहि उल्लसुक्खा गुलकत तह लावणी त बोद्धव्वा । मूलगअल्लगमादी मूलं अंबादिग फलं तु ॥२॥ हरितग मूलकुढेरग भूयणगादी य होति णायव्वो। डागो O听听听听听听听听听听听听劣明明明明明明明劣劣听听听听纸纸货明明明明明明明明明明明明明明明明明明FC sex955555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१४८२5555555555 555FGFOR Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6666666666 (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं खंड तुलादसभागो 1 य गोरसकओ पजेवणादी बहुविहाणो ॥ ३॥ दो घतपला मुह पलं दहिस्स अद्धाढगं मरिय वीसा। खंड तुलादसभागो एस रसालू णिवतिजोग्गो ||४|| दस खंडपाला हवंति णायव्वा । ते तम्मि पक्खिवित्ता मज्जियणामं रसालोत्ति ॥ ५ ॥ पाणं मज्जविही उ पाणीयं धारपाणियादीयं । दक्खादिपाणगाई सागेणं वंजणा जे तु ||६|| एवं अठ्ठारसहा णिरूवहतो दहुगादिपरिहीणो । ण य उवहम्मति जेणं रसादि छूढेण दव्वेणं ||७|| परिसुक्खं दाहिणतो दवाणि सव्वाणि वामतो कुज्जा । द्धिमहुराणि पुवं मज्झे अंब दवंताणि ॥४८॥८॥ परिसुक्खं सालणगादि तं गिण्ह सुहं तु दाहिणकरणं । वामेर पाणगादी तेण तयं वामपासम्मि ||९|| अप्पाइज्जति देवं तू द्धिहुरदव्वेहिं । पेतादीहिं णियमा केवइयं तं तु भोत्तव्वं ॥ ७४०॥ अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा दवस्स दो भाए। वातपवियारणठ्ठा छब्भागं ऊणयं कुज्जा ॥ १॥ तं पुण एयपमाणं आदी मज्झे तहेव अवसाणे। केरिसयं भोत्तव्वं ? तस्स इमं गाहमाहंसु ॥ २॥ असतामिव संजोगं पण्णा भोयणविहिं उवदिसंति। लक्खं दवावसाणं मज्झ विजित्तं महुरमादी ||४९ || ३ || असता असज्जणा दुज्जणा य एगट्ठिताणि एयाणि १ तेहिं समं जा मेत्ती संजोगेसो तु णायव्व ॥ ० १३ || ४ || गुलमहुरा उल्लावा तेसिं पुव्वं करिति य पियाइ । मज्झे य होति मज्झा महुरा विगतिं च दाएंति ॥ ल० १४ || ५ || कुव्वंति य भासंति य अवसाणे तारिसाणि जेहिं तु । जिज्झति सव्वं सुकतं एवं किर भोयणं भुंजे ||१० १५ || ६ || आदी द्धिमहुरं मज्झ विचित्तं दवलुक्ख अवसाणे । तेणं विपागमेती दुज्जणमेत्तीव अवसाणे ॥० १६||७|| कुसलाभिहिएणं पुण तं भोत्तव्वं इमेण विहिणा तु । असुरसुरं अचवचवं अद्दुतमविलंबियं चेव ||८|| अयमण्णोऽवि विहि खलु भोयणजायम्मि होति णायव्वो । जारिसयं ण भोत्तव्व दोसा जे यावि भुत्तस्स || ९ || अच्चुण्हं हळइ रसं अतिअंबं इंदियाइं उवहणति । अतिलोणियं च चक्खुं अतिनिद्धं भंजते गहणि ॥७५०|| आहारियम्मि एवं णींहारेणं अवस्स भवियव्वं । तत्थ ण धारे वेगं दोसा य इमे धरिज्जते ॥ १ ॥ मुत्तणिरोहे चक्खुं वच्चणिरोहे य जीवियं हणति । उड्डणिरोहे कोढं सुक्कणिरोहे भवे अपमं ||१०||२|| तेइच्छियधूताए आहरणं तत्थ होइ कयव्वं तेइच्छि मते राया पुच्छति पुत्तऽत्थि णत्थित्ति ? ||३|| णत्थित्ति अत्थि धूया राया बेती अहिज्जऊ सत्थं । पिउसंतिओ य भोगो तह चेव य तीयऽणुण्णातो ॥४॥ मच्छरिता विज्नऽण्णे बेंती किं एस णाहिति वराई । भिससत्यं ? अहवा से परिच्छिउं दिज्न अह भोगे ॥५॥ सद्दावेतुं पुट्ठा। किमधीतं तेत्ति ? तेसि सा पुरतो तो णाए वातकम्मं सद्देणं कतं हसे विज्जा ॥ ६ ॥ तो भणति णिवं सा तू एते वेज्जा ण चेव तु परिंदा ! | य जाणंती सत्तं कहंति ? बेती इमं सुणसु ॥ ७॥ तिण्णि सल्ला महाराय !, अस्सिं देहे पइट्ठिता । वाउमुत्तपुरीसाणं, पत्तवेगं ण धारए ॥८॥ णिम्मुहिकता तु वेज्जा ती साऽविय पतिठ्ठता तहियं । तम्हा न धारऍ वेगं वायातीणं तु सव्वेसिं ॥९॥ एवं भत्ते समाणे जति वातादी पकोव गच्छेज्जा । जाणेज्ज तेसिं वेलं पच्चूसादी इमं तहि ||७६०|| सिंभो वट्टति पच्चूसे, पदोसे पित्तमहुरत्तम्मि। मज्झतिए य वाओ, वह्वति पुव्वावरण्हे य ॥१॥ तत्थ ण वेज्जो पुच्छिज्जती तु तेसिं तु वेल स च्चेव । कुवियाण अवेलाए पेच्छे (पत्थे) किरिया इमा तेसिं ||२|| तित्तकडुएहिं सिंभं जिणाहि पित्तं कसायमहुरेहिं । णिदण्हेहिं य वायं सेसा वाही अणसणाते || ३ || केरिसए कालम्मी आहारों केरिसी तु पुरिसेणं । आहारेयव्वो खलु ? तत्थ इमो वण्णितो सो य ॥४॥ सीते उण्हं पविसेज्जा, उण्हे सीयं पवेसए, दव्वं । णिद्धे लुक्खं पविसे ज्जा, लुक्खे निद्धं पवेस ||५|| जो वाही णिद्धेणं समुठ्ठितो तस्स लुक्खकिरियाए । लुक्खेण मुट्ठियस्स तु कायव्वा णिद्धकिरिया तु || ६ || एसो तु लोइओ खलु पिंडो तू वण्णिओ समासेणं । लोउत्तरिए पिंडे वणिज्जति पिंडणिज्जत्ती ||७|| पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अठ्ठविहा पिंडणिज्जुती ॥५१॥८॥ 'पुढवाईया भेदा वत्तव्व जहक्कमेण पिंडस्स । गविसणमादीयाविय एसणभेदा य तह चेव ||९|| उग्गममादी दोसा सव्वे य जहक्कमेण वत्तव्वा । जह भणिय पिंडजुत्तीय [२१] I need on 55 54 55 5 5 5 5 5 5 For Ravate & Reconal Lise Only *L LEVEL LELE श्री आगमगुणमंजूषा - १४८३ वर इमो पुतिऍ विसेसो ||७७०|| संचय कोडग दारूय डाए तह गोरसे य लोणे य। लंबण हे हिंगू दालिम तह तित्तए चेव || ५२|| १ || अगडारमे पुत्ते तुंबे फलही तव गाओ य । एतारिसमुप्पण्णे गहरं किं कस्स केरिसयं १ || ५३ || २ || भत्तस्स उवक्खेवो गोरसमादी तु संचतो होति । सो संघट्टा ठवितो भावे अवोच्छिण्णि अग्गिज्झो (अविगिठ्ठो) ||३|| अत्तट्ठियं परिभुत्ते कप्पति भावम्मि ताहे वोच्छिण्णे । कह वोच्छिज्जति भावो ? सोतूण अफासुदोसं तु ||४|| कोग तंदुल छा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [२२] समणठ्ठा सिं कडा ण कप्पंति । अह दुछड संजयठ्ठा आयठ्ठोवक्खडा कप्पे ॥ ५॥ आयठ्ठाए दुछडा संजयअठ्ठाए तिछड ण कप्पे । जदिऽविय आयठ्ठाए आरंभो होति तेसिं तु ॥६॥ एमे॒व दरूसागाइयाई जाई अफासुदव्वाइं । अत्तठ्ठणिठिताइं कप्पे समणठ्ठ णवि कप्पे |||७|| गोरसहिंगूतेल्लादि दालिमे तित्तकडुयदव्वाई | लंबणे गुलो य भण्णति संचियमेवादी संघठ्ठा ||८|| फागदव्वा जे तू अव्वोच्छिण्णम्मि भावे ण तु कप्पे । उवखडिया वत्तठ्ठा वोच्छिण्णे भावे कप्पंति || ९ || अगडं व खणेज्जाही आरामं वावि अहव रोवेज्जा । संजयणिमित्त कोई पाणफलाई च दाहंति ||ल० १७|| ७८० ॥ तत्थवि संजयजोग्गा संजयअट्ठा कया ण कप्पंति । अत्तट्ठाऍ कता पुण कप्पंती तंदुला ह तु ||० १८ || १ || पुत्तं जणेज्ज कोई आयरिओ मज्झ अपरिवारोत्ति तेसि सहातो होहिति पव्वावेतुं तु सो कप्पे | ल० १९ || २ || तुंबिओ वावे फलही य वत्थमातट्ठा। संजयठाए जा सुत्त अत्तठ्ठवियम्मि पुण कप्पे ॥ ल० २०|| ३ || रूतो संजयठाते आतट्ठा सुत्तमादिक ण कप्पे । जम्हा गहण अजोगो तु संजतठ्ठाए कारिततो ||४|| संजतअठ्ठा वियितो आतठ्ठोवठ्ठितो य कत्तो य । कप्पति जम्हा य कतो संजतजोग्गो तु आतट्ठा || ५ || एवं गावीओवी कोइ किणिज्जाहि संजयट्ठाए । आतट्ठ दूढ कप्पे समणट्ठा दूढ णो कप्पे ॥ ६ ॥ एसो पुतिविसेसो भरितो पुव्वं तु पिंडजुत्तीए । एत्तो उवहीकप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं ||७|| दुविहो यो उवही पत्ते वत्थे व ओहुवग्गहिए । जिणथेरऽज्जाण तहा वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ॥ ८ ॥ पाए उग्गमउप्पायणेसण्णा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम करण अट्ठविहा पातणिज्जुत्ती ||१९|| जहसंभव णेयव्वा पिंडगमेणं तु पातणिज्जुत्ती । सव्वं तु उग्गमादी जहा जहा जे तु जुज्जंति || ७९०|| पातपमाणं तु इमं पमाणदारम्मि होति वत्तव्वं । मज्झजहण्णुक्कोसं वोच्छामि अहाणुपुव्वी ॥ १ ॥ तिण्णि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिम पमाणं । एत्तो हीण जहन्नं अतिरेगतरं तु उक्कोसं ॥२॥ उक्कोसतिसामेसे दुगाउअद्धाणमागतो साहू। भुंजति एगट्ठाणे एयं किर मत्तगपमाणं ||३|| एयं चेव पमाणं अतिरेगतरं अणुग्गह पवत्तं । कंतारे दुब्भिक्खे रोहगमादीसु भइयव्वं ||४|| वट्टं समचउरंसं होति थिरं थावरं च वण्णं च । हुंडं वाताइद्धं भिण्णं च अधारणिज्जासं ॥ ५ ॥ संठियम्मि भवे लाभो, पतिठ्ठा सुपतिठ्ठिए । णिव्वणे कित्तिमारोग्गं, सव्व वणमादिसे ||६|| वत्थे उग्गमउप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अठ्ठविहा वत्थुणिज्जुत्ती ||७|| एत्थविय जहासंभव घोसेयव्वाइं सव्वदाराई । पडलादिपमाणाणी पमाणदारे समोतारो ||८|| गिम्हसिसिरवासासुं पडला उक्कोसमज्झिमजहन्ना । वण्णेऊणं कसमो पच्छादा पुरिसे वोच्छामि || ९ || मेव पच्छादा पुरिसं खेत्तं च कालमासज्ज । तिण्णादी जा सत्त तु परिजुण्णा पाउणेज्जाहि ||८०० || पुरिसा असहू कालो सिसिरो खेत्तं च उत्तरपहादी । गिम्हेऽवि पाउणेज्ना तारिसयं देसमासज्ज || १ || एवं तु उग्गमादिसु सुद्धो सव्वोवि एस उवही उ । धारेयव्वो णियंतं अहाकडो चेव जहविहिणा ||२|| असतीते पुण जुत्तो जोगो ओहोवही उवग्गहितो । छेदणभेदणकरणे जा जहिं आरोवणा भणिता ||३|| तिविह असतित्ति जा सा दव्वे काले य होति पुरिसे य । दव्वम्मि णत्थि पातं ओमोदरिया य कालम्मि ||४|| पुरिसो य उग्गमंतो ण विज्जती एस पुरिसअसती तु । अहवा अणलं अथिरं अधुवं सन्तासती तिविहा || ५ || अहवा तिगत्ति असती अहाकडाणं तु अप्पपरिकम्मं । तस्सऽसति सपरिकम्मं तं तु विहीए इमाए तु ॥ ५४ ॥ ६ ॥ चत्तारि अहागडए दो मासा होति अप्पपरिकम्मे । तेण पर विमग्गेज्जा दिवमासं सपरिकम्मं ||७|| पुणसद्दो तिक्खुत्तो विमग्गियव्वं तु होति एक्केक्कं । एवं तु जुत्तजोगी अलभंते गिण्हती ततियं ॥ ८॥ अहवा असिवोमेहिं रायद्दट्ठेव से गुरूणं वा । सेहे चरित्तसावयभए य तहियंपि गिण्हेज्ना ||५५ || ९ || असिवादी पुव्व भणिता गुरू व मग्गे रू भणिज्जाहि । अच्छाहि ताव अज्जो ! तत्थ तु ते कारण विदंति ॥ ८१० ॥ एतेहिं कारणेहिं अहगडवज्जेण दोण्ह गहिताणं । छेदणमादी कुब्वं जयणाए ताहे सुद्धा तु || १ || णिक्कारणगहणे पुण विराहणा होति संजमायाए । छेदणमादीएसुं जा जहिं आरोवणा भणिता ॥२॥ तं पुण सपरीकम्मं जयणाए होति लिपियव्वं तु । एतेण तु लेसेणं लेवग्गहणं तु वण्णेऽहं ॥ ३ ॥ हरिते बीजे चले जुत्ते, वच्छे साणे जलट्ठिते । पुढवी संपाइमा सामा, महवाए महिया इमे ||४|| एवं लेवग्गहणं जहक्कमं वण्णितं समासेणं ओहोवहुवग्गहितं उल्लिंगेऽहं समासेणं ||५|| जिणंकप्पथेरकप्पअज्जाणं चेव ओहुवग्गहितं । वोच्छामि समासेणं जहण्ण मुज्झिमुक्कासं ॥६॥ पत्तं पत्ताबंधो पायठ्ठवरं च पायकेसरिया पडलाई रंयत्ताणं च गोच्छओ पायणिज्जोगो ॥ ७ ॥ तिण्णेव GK96 W श्री आरामगुणमंजूषा - १४८४ ६9 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YORKO (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [२३] य पच्छागा रयरहणं चेव होइ मुहपोती। एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ||८|| उक्कोसिओ उ चउहा मज्झिमग जहण्णगोऽवि चउहाउ । पच्छादतिगं उग्गहो जिणाण अह होति उक्कोसो ||९|| पडलाणि रयत्ताणं रयहरणं पत्तबंध मज्झिमगो । गोच्छग पत्तट्ठवणं मुहणंतग केसरि जहण्णो ||८२०|| जिणकप्पियाण एसो सेसाण विणिग्गयाण एसेव । थेराणं अतिरेगो मत्तो तह चोलपट्टो य ॥१॥ उक्कोस जहन्ने तू जोच्चिय जिणकप्पियाण सो चेव । मझिमए अतिरेगं मत्तो तह चोलपट्टो य ॥२॥ एसेव चोद्दसविहो चोलट्ठाणम्मि णवरि कमढं तु । अज्जार इमो अण्णो आहोवहि होति णायव्वो ॥ ३॥ उग्गहऽणंतग पट्टो अद्धोरूग जलण्णिया य बोद्धव्वा । अब्भिंतर बाहिणियंसणी य तह कंचुच चेव ||४|| उक्कच्छिं वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य । ओहोवहिम्मि एत्तो अज्जारं पण्णविसं तु ॥ ५ ॥ उक्कोसो अविहो मज्झिमतो होति तेरसविहो तु । चउह जहण्णशे सोच्चिय जो जिणकप्पे समक्खाओ || ६ || पच्छदतियं उग्गहो णियंसणऽब्भंतरी य बाहिरिया । संघाडि खंधकरणी य अट्ठा होति उक्कोसो ॥७॥ पत्ताबंधो पडला रयहरणं पादपुंछणं चेव । मत्ते य कमढ उग्गह णंते तह पट्टए चेव ||८|| अद्धोरूए चलणिया कंचुग उवकच्छि तह विकच्छी य। एसो तु तेरसविहो मज्झिम उवही तु अज्जाणं || ९ || एसो तु ओहिओवहि एत्तो सेसो तु होतुवग्गहिओ। संथारपट्टमादी तु णेगहा होति FOR वो ||८३०|| दुविहोवहीवि एसो जहक्कमं वण्णिती समासेणं । एत्तो उ उवेसणयं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ॥ १ ॥ भिसिगादि उवेसणयं वासारत्ते उ पाणदयहेतुं । वेहासट्टा धिप्पइ तं चिय सावेगपस्सवणं ॥ २॥ विस्समणट्ठा थेराण घेप्पती एत्तो वोच्छ सेज्जं तु । सेज्जा संथारो या एगट्ठ होति णायव्वं ||३|| सव्वंगिया व सिज्जा | होती असव्वंगितोतु संथारे। एगंगि अणेगंगी परिसाडी अपरिसाडी य || ल० २१ || ४ || एतेसिं सव्वेसिं अट्ठहिं दारेहिं मग्गणा होति । पिंडणिजुत्तिमेणं णेयं जहसंभवं सव्वं ||५|| णिसियणहेतु णिसेज्जा रयहरणपमाणओ गहेयव्वा । किं पुण धिप्पइ सा तू भण्णति सुण कारणमिमेहिं || ६ || पुरिसे पुढवि सरक्खे पच्छाकमे तव अचियत्ते । बाउसपरिहरणाऐं संथारणिसेज्जऽणुण्णता ॥ ५६ ॥ ७॥ राजादी पव्वइओ भूमीऍ अणंतरं णिवेसंतो । विप्परिणमेज्ज तेणं संधारणिसेज्ज पण्णत्ता ॥८॥ मीससचित्तधराए अद्वाणादीसु मा विराहणता । उम्हाए पुढवीए तेण णिसेज्जा य संथारो ||९|| एमेव य ससरक्खे सच्चित्ते संतरं भवे जयणा । सागारियंच इहरा धूलीउग्गुंडियसरीरो ||८४०|| कज्जेण गिहिणिसेज्जागतस्स वत्थम्मि मइलिए गिहिणो । उप्फुसणधोवणादी कारेज्जा पच्छक्कम्मं तु || १ || अचिव धलिउग्गंडी पुते (र) णिविट्ठम्मि । अहवा बाउसदोसा पप्फोडिते धुवंते वा ॥२॥ ठारं तिविहं भणितं उड्ड णिसीयण तुयट्टठाणं च । उड्डुं काउस्सग्गगो णिसीयण णिवेद्वाणं च ॥३॥ होति तुयट्ट णिवण्णं पडिलेहपमज्जियाण कायव्वं । सेज्जणिसेज्जाणं वा ठाणं अहवावि ठाणं तु || ४ || लठ्ठी आतपमाणा विलट्ठि चउरंगुलेण परिहीणा । दंडतो बाहुपमाणो विदंडओ कच्छगपमाणो ||५|| दुट्ठपसुसाणसावदविज्जलविसमेसु उदयमग्गेसु । लठ्ठी सरीरक्खातवसंजमसाहिगा भणिता ||६|| चम् पण्हिंयखल्लगवद्धादी होज्ज चम्मगहणं तु । अत्थुरणपादरक्खा फुडिए तह संधणठ्ठादी ||७|| अरिसभगंदलकच्छू छप्पति गिल्लाति अत्थुरणगं तु । दुब्बलपाए चक्खू अद्धाणादीसू तलिया तु ||८|| फुडियविविच्चणहुंगलिरक्खट्टा खल्लकोसगा होति । वज्झा ऊ संघयट्ठा अद्राणादीसु छिण्णा य || ९ || २७० || रज्जुमयी पोत्तमयी कंबलमयि तह य दंडकडगमयी । पंचविह चिलिमिणीओ वण्णिता एस पुव्वं तु ॥ ८५०॥ उडुबद्धे रयहरणं वासावासासु पादलेहणिया । वड उंवरे पिलिंखू तम्स अलंभम्मि चिचिणिया ||१|| उभओ णहसंठारा सच्चित्ताच्चित्तकारणा मसिणा । सच्चित्तेगेण फुसे पासेणेगेण अच्चित्तं ॥२॥ कण्णाण सोहणं पुण कण्णाण मलेण संचिएणं तु । दुक्खेज्ज जस्स कण्णाण सुणेज्न व सो तु गिण्हेज्जा ॥ ३ ॥ पविरलदंतो थेरो सित्थादीणं तु दंतलग्गाणं। लेवाडअरतिसारियरक्खठ्ठा गिण्ह सोहणयं ॥४॥ अद्धाणोमादीसुं पिप्पलतो विकरणठ्ठ कंदाणं । माणाहिगवत्यादी पगासमुह भाण करणठ्ठा ॥ ५ ॥ जुण्णाण संधणठ्ठा सूई णक्खव्वणं तु कंटा (ठा) णं । उद्धरणट्ठ णहार य छेदणहेतुं गहेयव्वं ॥६॥ उच्चारमत्तगादी अण्णाविय बहुविहप्पगारो तु । ओवग्गहिओ भणिओ उवग्गहठ्ठा महाणस्स ||७|| सव्वोवि एस उवघायदोसपरिवज्जिओ धरेयव्वो । वीसतिधा उवघातो तस्स इमो होति णायव्वो ॥ ल० २४॥८॥ उग्गम उप्पायण एसणा य परिकम्मणा य परिहरणा । अचियत्त (विइन्न) वतीयारे तहेव For Polate & Personal Use THELLE of 29/4454545****** Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (0.0555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं २४] 听听听听听听听听听听听听听听听COM परियट्टणा विदिया ।। ५७|ल०२५||९|| उग्गमम्मि य.मण्णाति, पामिच्चे य पवाहणे । तेरिच्छयाहए चेव, तहा तेणाहडेति य॥५८||ल०२६||८६०|| अण्णाणोवहडे चेव, मालोहड अरक्खिए । कते य कारिते चेव, बंदणे य विराहणे ॥५९||ल०२७||१|| विवन्नकरणे चेव, एमेता पडिवत्तिओ । एते पत्तेय उवघातो, उवहिस्स तु वीसती ॥६०॥ल० २८||२|| उम्गमेणं तु अस्सुद्धं, तहा उप्पायणेसणा। उवहिं उवहतं जाणे, वोच्छामि परिक्कमणे॥६१॥ल०२९।।३।। परिकम्मणे चउभंगो कारणे विहि बितिओ काररे अविहि । णिक्कारणम्मि य विही चउत्थ निक्कारणे अविही ।ल० ३०||४|| गग्गरदंडीवेलतिगखीलगमादी यहोति अविही उ। णिक्कारणम्मि तीय तु परिक्कमेयम्मि उवघातो ॥५॥ भाणस्स विपरिकम्मं णिम्मोयणलेवसिव्वणादी य । णिक्कारणमविहीए कुणमाण्णे होति उवघातोल० ३१॥६।। अब्भितरं तु बाहिं बाहिं अभिंतरं करेमाणो । परिभोगविवज्जासे उवघातो होति णायव्वो ॥ल० ३२||७|| णियगोवहिपरिभोगं समणुण्णाणं देति कज्जम्मि । जो भंडमच्छरीयत्तणेण उवहिस्स उवघातो ल० ३३||८|| वतियारे पहिरिय वत्थं पादं च जे गहेऊणं । पुण्णेवि तम्मि काले अणपुच्छ धरेंत उवघातो ल० ३४||९|| लोइय लोउत्तरियं परियोट्टिय जो तु गिण्हति उवही। उग्गमदोसअसुद्धं च उवहतं तं तु णायव्वं ॥ल० ३५||८७०।। अण्णगणमागतस्स तु जस्स उ उवहिस्स उग्गमो ण णज्जे । सोऊणं परि जति उप्पायंते व णायम्मि ल० ३६।।१॥ पामिच्चं उज्जुयगं उच्छिण्णं चेव होति णायव्वं । लोइय लोउत्तरियं तु उवहतं त वियाणाहि |ल० ३७।।२।। अण्ण फ़ वहते असंते दिण्णे साहुस्स अण्ण जदि वाहे । तं तु पवाहणादेसा उवही तू उवहतं जाणे ||ल० ३८॥३॥ सुणएण वाणरेण व जह रूवगमादि हरितुमाणितं । ॐ णरतेणारीतं (दिज्जतमदिज्ज) वा गेण्हतं उवयं जाणे ॥ल०३९।।४।। अण्णाणोवहतो खलु वत्थादि अक्कप्पिएण जो गहिओ। मालोहडो तु उवही आलोइओ जो तु वेहासेल० ४०॥५।। अणरक्खिओत्ति सुण्णं उवही मोत्तूणं जो उ गच्छेज्जा । भिक्खादीणऽठाए सोऽवि य उवहिस्स उवघातो ल०४१॥६॥ सयमेव करे उवही प्रणिसेज्जादी सोऽवि उवहतो होति । कारेइ व अण्णेणं उवघतो सोऽवि बोद्धव्वो।ल० ४२।७। बंधति भिण्णं अविही भिण्णं व धरेति सोऽवि उवधातो। सुव्वण्णं च दुवण्णं करेज्ज मा तं तु हीरेज्ज ।ल०४३।।८।। दुव्वण्णं व सुवण्णं बिभूसहेतुं तुं जो करेज्जाहि। उवहिउवघात एते अहवा अण्णेऽविमे होति ।।ल०४४।९|| पंचठ्ठय पण्णरसा सोलस दस चेव होति ठाणाणि । चत्तारि एक्कगातिं बारस वीसंच ठाणाई। ६२शल०४५।८८०|| दव्वे खेत्ते काले भावे पुरिसे य होति पंचेव । एतेसिं। एतेसिं पंचण्हवि परूवणा होति कायव्वा ।।ल० ४६||१|| दव्वे अणलं अथिरं अधुवं च तहा अधारणिज्जं च । एतेसु चउसुंपी गेण्हते भंग सोलस तु ॥ल०४७।२।। अहवा महद्धणाई खित्ते काले य अच्चितं जं तु । भावे जहा गिलाणो भुंजे अगिलाणो तह चेव ॥ल०४८||३|| पुरिसे असहू तु जहा सहूवि परिभुंजते तहा उवहीं। रायादी पव्वइओ अहवा पुरिसो हवेज्जाही ल० ४९||४|| अहवा गारवमुच्छा अविइत्तऽतिरित्त बाउसत्तं च । पंचेते उवहिम्मी समणाणसया ण कायव्वा ल० ५०॥५॥ जोगमकातुमहागडे जो गेण्हति अप्प सपरिकम्मं वा । अहवा अमग्गिऊणं अप्पं गिण्हे सपरिकम्मं ।ल०५१||६|| अप्पडिलेहिय गारव मुच्छ विभासा य होति सत्तमए । अचियत्ते तू मा से कोई छिवतुत्ती (होति) अठ्ठमए ।ल० ५२।।७।। पण्णरसुग्गमदोसा अज्झोयरमीसजायमेगं तु । उप्पायणसोलसगं एसणदोसा य दसगं तुल० ५३||८|| संजोयणश पमाणे इंगाले चेव होति धूमे य । चत्तारि एक्कगा खलु एते ते होति णायव्वा ।ल० ५४॥९|| बारस ठाण इमे खलु वेदणमादी तु हुँति छठ्ठाणा । आयंकादी छच्चिय अधरण धरणा य उवघातो।ल० ५५||८९०॥ वैयण वेंयावच्चे इरियठ्ठाए य संजमठ्ठाए। तह पाणवत्तियाए छठं पुण धम्म (१०००) चिंताए ॥१॥ आर्यके उवसग्गे तितिक्खता बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेतुं सरीरवोच्छेयणठ्ठाए ।।२।। वीसं पुण पुव्वुत्ता ते चेव य उग्गमादिणो होति । एते सव्वे मिलिया णउति खलु होति उवघाता।ल० ५६॥३॥ आसीतं ठाणसतं जस्स विसोहीए होति उवलद्धं । सो जाणती विसोहिं उवघातं वावि उवहिस्सल० ५९॥४॥ णउति उवधाता खलु तत्तियमेत्तावि अरुवघातावि । एए दोण्णिवि मितिता आसीतं होति ठाणसतं ॥ल० ५७।५।। एयं चिय आसीयं सयं तु जिणथेरअज्जउवहींहिं। गुणिते होइम संखा जहक्कमेणं तु ठाणाणं ल०५८।६।। दो चेव सहस्साई सठ्ठसयं चेव जस्स उवलद्धं । सो जाणती विसोहिं उवघातं वावि जिणकप्पे ||७|| दो 乐乐乐乐 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐垢乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听乐 ISO明明明明明明明明明明明明明明明乐明历历历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐听听听听23 15556 Mero55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१४८६5555555555555555555555555SMOK Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COLO%% % %%%%%%% (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [२५] 155555555555555550XORY Osc55555555555$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ ठाणसहस्साई पंचेव सयाई होति वीसाई । सो जाणती विसोहिं उवघातं वावि थेराण ।।८।। चत्तारि सहस्साइं पंचेव सयाई होति पण्णाई । सो जाणती विसोहिं उवधातं चेव अजाणं ।।९।। एसो उ सोलसविहो अजीवकप्पो समासतो भणितो। एत्तोय मीसकप्पं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए॥९००॥ एत्तो छहिं सोलसहि य दोहिवि निप्फज्जती तु जो कप्पो। दुगसंजोगादीओ सव्वो सो मीसओ कप्पो॥१॥ पव्वावण मुंडावण सिक्खोवठे य भुंज संवासे । एते छण्णायव्वा आहारुवहादि सोलसयं ॥२॥ दुगसंजोगादीया सच्चित्तअचित्तमीसकप्पाणं । पत्तेय मीसगाविय णेयव्वा आणुपुव्वीए॥३॥ पव्वावे मुंडावे पव्वावे चेव तहय सिक्खावे । पव्वावे उवठावे चेव संभुंजे ॥४|| पव्वावे संवासे एवं मुंडावणा दुचरिमेहिं । णेया दुगसंजोगा एवं सेसावि संजोगा ॥५॥ तिचउपणछक्कजोगा एते सच्चित्तदवियकप्पम्मि | पत्तेयं संजोगा एत्तो अच्चित्त वोच्छामि ॥६|| आहारे उवहिम्मि य आहारे तह उवस्सए चेव । एवं जा णक्खछेदण ता आहारेण चारेज्जा ॥७॥ एवं अवसेसासुवि उवधादीएसु उवरि उवरिं तु । णेया दुगसंजोगा जा पच्छिमो सूणियहछेदो ॥८॥ एमेव सेसगावी तियगाई यावि सव्वंसंजोगा। णेया जा सोलसगो एते पत्तेय अच्चित्ते ॥९॥ चित्तेतराण 9 दोण्हवि एत्तो संजोगता मुणेयव्वा । मीसगकप्पे णेया दुगमादी सव्वसंजोगा ।।९१०|| पव्वावे आहारंपी देइ पव्वाविएऽवि उवहिं च । पव्वावे उवस्समणं एवं + णखछेयणं जाव ॥१|| एतेण कमेणेवं दुगतिगमादी तु सव्वसंजोगा। णेयव्वा जा पच्छिमो बावीसमो होइ संजोगो ।२।। एतेसिं सव्वेसिं संखाणयणम्मि आणणोवाओ। पत्तेयमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेयव्वो ॥३॥ एगादेगत्तरिया पदसंखपमाणओ ठवेयव्वा । गुणगारभागहारा तेसिंहेछा उ विवरीया॥४॥ पढमं रूवं गुणए भागं च हरे हवेज्ज जं लद्धं । तम्मिवि पडिरासितगुणितभाइए जं भवे लद्धं ।।५।। एवं ठाणं ठाणं पडिरासियगुणितभजियलद्धाई। एगादीसंजोगाण होति संखप्पमाणाइं|६|| एक्कादीसंजोगाण होति एवं तु लक्खणं दिळं। एते सव्वे मिलिता तेसठिं होति संजोगा॥७॥ एक्कगसंजोगादिसु उप्पज्जते उ जत्तिया भंगा। तेसिं संखाणयणे करणं तु इमं मुणेयव्वं ॥८॥ एक्कगसंजोगादिसु जत्तियमित्ता हवंति ठाणा उ । तत्तियमेत्ता दुयगा ठावेयव्वा कमेणं तु ।।९।। पडिरासिय पडिरासिय अण्णोण्णेणऽब्भसाहि ते दुयगा। जावं तिल्लं ठाणं गुणि एवं जा भवे संखा ॥९२०।। एक्कगसंजोगादिसु एक्कक्के भंगसंख तावतिया। सच्चिय एक्कादीहिं पुणरवि संजोगसंगुणिता॥१॥ पत्तेयं पत्तेयं एक्कगमादीण सव्वजोगाणं । सा होति भंगसंखा जहक्कमेणं मुणेयव्वा ||२|| कह भंग भवंतेत्थं ? भण्णति दिक्खेक्क अहव बहुया उ । मुंडावणादि एवं दुतिचउभंगादिचारणिया ||३|| पच्चयहेतुं तहियं पत्थारो होति पत्थरेयव्वो। इमिणा उ लक्खणेणं तमहं वोच्छं समासेणं ||४|| भंगपमाणायामो गुरूओ लहुआ य अक्खणिक्खेवो । मत्ता दुगुणा दुगुणो पत्थारे होति णिक्खेवो ॥५॥ एवं तू पत्थरिए पिच्छसु एक्कादिए उ संजोगे । जे जत्थ उणिवडंति पच्चक्खं ते तहिं सव्वे ॥६॥ छक्कगसोलसगाणं जीवमजीवाण दोण्ह कप्पाणं । एक्कगसंजोगादीण संखपमाणं इमं होति ॥७|| छ च्चेवय पण्णरसा वीसा पण्णरस छक्क एक्को य । एक्कगसंजोगादी छव्विहसच्चित्तकप्पम्मि ॥८॥ सोलस वीसं च सयं पंचेव सयाइं होति सट्ठाई । अट्ठारस वीसाइं तेयालं अट्ठसट्ठाई ॥९॥ अद्वैव सहस्साइं अट्ठहियाइं अजीवछट्ठम्मि। एक्कारसय सहस्सा चत्तारि सया तहा चत्ता ।।९३०|| बारस चेव सहस्सा अट्ठव सया उसत्तरा होति। अट्ठमसंजोगम्मिवि उक्कमतोएव जावेक्को॥१॥ सच्चित्तदवियकप्पो तेवठ्ठी होति सव्वंसंजोगा। पंच सता पणतीसा पण्णट्ठि सहस्स अच्चित्ते ॥२॥ सच्चित्तअचित्ताणं एते भणिया तु सव्वसंजोगा। पत्तेयं पत्तेयंएत्तो मीसाण वोच्छामि ॥३॥ अच्चित्तदव्वकप्पे संजोग पिहप्पिहे ठवेतूणं । जितकप्पेक्कगंसंजोग गुणित तेसिं फलमिणं तु ॥४॥ छण्णउतिं संजोगा दुगसंजोगम्मि मीसए कप्पे । सत्त सता वीसहिगा तियसंजोगाण बोद्धव्वा ॥५॥ तित्तीसं चेव सता सट्ठहिगा तू चउक्कसंजोगे। दस चेव सहस्साई णव वीसहिया य पंचमए ।।६।। छत्ती (व्वी) स सहस्साई दो चेव सताई अट्ठअहिगाई। अडयालं च सहस्सा अडताला होति सत्तमए ॥७॥ अट्ठट्ठिसहस्साई छच्चेव सताइं होति चत्तारि । सत्तत्तरि सहस्सा दो चेव सया भवे वीसा ॥८॥ एमेव उक्कमेणवि णवमाउ परेण होति बोद्धव्वा । छण्हती जा सोले छच्चेव पदा मुणेयव्वा ॥९॥ एवं पण्णरस य वीस य वीसएण पण्णरस छक्क एक्केण । पत्तेयं पत्तेयं गुणिएणं रासिणो मुणसु ॥९४०।। दोण्णि सता चत्ताला अट्ठार सया य होति णायव्वा । अट्ठ सहस्सा चउसय ततिए मीसम्मि संजोगा॥१॥ सत्तावीस IOS中玩乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐平台 Keros5 5 55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४८७355555555555554KLEEurrwww Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 原POg (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं सहस्सा तिणि सता चेव होति णायव्वा । पण्णद्विसहस्साइं पंच सया वीस अहिया य ॥२॥ एक्कं च सयसहस्सं वीस सहस्सा सयं च वीसहियं । एक्कत्तरिं सहस्सा लक्खेको छस्सता चेव || ३ || एक्कं च सतसहस्सं तेणउइ सहस्स तह य पण्णासा। उक्कमतो सत्तेव य ठाणाई ततो य पण्णरस ||४|| तिण्णी सता तु वीसा दोण्णि सहस्साइं चउसयजुयाइं । एक्कारस य सहस्सा दोण्णि सता चेव णायव्वा ||५|| छत्तीसं सहस्साई चउरो य सता हवंति णायव्वा । सत्तासीति सहस्सा तिण्णि सता चेव सहिता ||६|| एक्कं च सतसहस्सं सठि सहस्सा सयं च सट्ठी य। दो लक्खा अडवीसा सहस्स अट्ठेव य सयाई ||७|| दो चेव सयसहस्सा सत्तावण्णं भवे सहस्साइं । चउरो सय अट्टमए ठाणा सत्तंतिमे वीसा ||८|| जह पढमे तह पंचमे जह बीए तह चउत्थए रासी । एक्कगगुणकारे पुण सोलसमादी तु जावेक्को ॥ ९ ॥ अच्चित्तदवियकप्पे संजोगा सव्वपिडिता कातुं । जितकप्पेक्कादीहिं गुणिते फलरासिणो मुणसु ॥ ९५० ॥ तिण्णेव सतसहस्सा ठाणसहस्सा हवंति तेणउती। दो य सया य दसहिता एक्कगसंजोगसंगुणिता ॥१॥ णव चेव सयसहस्सा तेसीति संस्स तह य पणुवीसा । बियसंजोगचउक्केऽवि एत्तिया चेव णायव्वा ||२|| सत्त सय दससहस्सा तेरस लक्खा य तियगसंजोगे । पंच य पढमसरिच्छा अचित्तपिंडो उ अंतिमए ||३|| जियपिंडेणं पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणा नियमा । सो होति दव्वपिंडो तस्स उ संखा इमा होति ||४|| ईयाल सतसहस्सा अंठ्ठावीसं भवे सहस्साई । सत्त सता पंचहिया ठाणारं मीसकप्पम्मि || ५ || जियअजियमीसगाणं कप्पाणऽणऽवि भंगसंजोगा। पत्तेय मीसगाविय णषयव्वा आणुपुव्वीए ॥६॥ पव्वावेक्को एक्कं एक्को अणेगा अणेग एक्कं च । णेगाणेगे य तहा चउभंगो एव एक्केक्के ||७|| एवं एक्वं एक्कसि एक्कमणेगेवि एत्थऽवि तहेव । चउभंगो णेयव्वो एक्केक्के छण्ह तु पदाणं ||८|| एक्वेक्कसि पव्वावे मुंडावेक्कं तु एक्कसिं चेव । एत्थ तु दुगसंजोगो चउभंगो होति णायव्व ॥ ९ ॥ एवं दुततियपचतुपंचछक्कजोएहिं जत्तिया जे तु । संजोगा भगा य तु ते सव्वे होंति णायव्वा ||९६०|| पव्वावे मुंडेगं पव्वावेगं च मुंड णेगे य । णेगो एक्कंच तहा णेगाऽणेगे य एमेव ॥ १ ॥ एमेव सेसगावी दुगतिगचउपंचछक्कसंजोगा । बुद्धीयऽणुगंतव्वा सव्वेवि जहक्कमेणं तु ॥ २॥ अच्चित्तेऽविय एवं एक्को एक्कस्स देति आहारं । एवं उवहीमादीसु सव्वेसुवि होति चउभंगा ||३|| दुगमादी संजोगा एत्थंपि तहेव हुंति विण्णेया एमेवेक्को एक्कसिं आहारादीणि देज्जाहिं ॥ ४ ॥ एवं दुगमादीया या एपि सव्वसंजोगा । एवं ता अच्चित्ते मीसेऽवियं बुद्धिए जोए || ५ || एक्को पव्वावेक्कं आहारादी य देति एत्थऽवि तहेव । संजोगा णेयव्वा जावतिया संभवे तत्थ ॥६॥ एसो तु दवियकप्पो तिविहोऽवि समासतो समक्खातो। एत्तो समासतोऽहं वोच्छामि उ खेत्तकप्पं तु ||७|| जं देवलोगसरिसं खित्तं णिप्पच्चवातियं जं च । एसो तु खेत्तकप्पो देसा खलु अद्धछव्वीसं ||ल० ६०||८|| रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य । कंचणपुरं कलिंगा वाराणसि चेव कासी य ||९|| साएय कोसला गतपुरं चकुरू सोरियं कुसट्टा य । कंपिल्लं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव १० || ९७० ॥ बारवती य सुरठ्ठा मिहिल विदेहा य वच्छे कोसंबी । मंदिपुरं संदिब्भा भद्दिलपुरमेव वलया य ॥१॥ वयराड वच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियावति दसण्णा । सोत्तियमती य चेती वीतिभयं सिंधुसोवारी २०|| २ || महुरा य सूरसेणा पावा भंगी य मास पुरिवट्टा । सावत्थी य कुणाला कोडीवरिसुं च लाढा य || ३ || सयवियाऽविय णगरी केततिअद्धं च आरियं भणितं । जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकिण्हाणं ||४|| एतेसु विहरियव्वं खेत्तेसुं साहुभाविएसुं तु । जत्थ य गुणा इमे तू खेमाईया मुणेयव्वा ॥ ५॥ खेमो सिवो सुभिक्खो अप्पप्पाणो उवस्सयमणुण्णो । एसो तु खेतकप्पो (पांखंडखेदमुक्को) गामरगरपट्टणाइण्णे ||६३||ल० ||६|| खेमो डमरविरहितो रोगासिवविरहितो सिवो होति । पउरण्णपाणदेसो होइ सुभिक्खो मुणेयव्वो ||ल० ६२||७|| जलुगासंखणगमुंइंगपिसुगमसगादिविरहितो जो तु । सो होति अप्पपाणो अप्प अभावम्मि थेवे य ||ल० ६३ ||८|| समभूमिरेणुवज्जियरितुक्खमोवस्सया मणुण्णा उ । गामा णगरावि य बहु पाउग्गा मासकप्पस्स || ल० ६४ || ९ || सज्ज (व्व) णजणो य भद्दो जहियं च मणुण्णसाहुजोणीओ । तारिस खेत्तम्मी समणुण्णाओ विहारो तू || ल० ६५ || ९८० ॥ खेमो य सिवो य तहा खेमो सुभिक्खो य एव संजोगा । णेयव्व छसु पदेसु सत्तसु वा आणुपुव्वी ॥ १ ॥ अहवोदयग्गिसावदत्तक्करवालभयवज्जिओ रम्मो । णिरवेक्खोऽविय जहियं समणगुणविदूय जत्थ जणो ||ल०६६ ||२॥ एताणि चेव खेमाइयाणि आरीयखेत्तसहियाणि । LOOK श्री आगमगुणमंजूषा - १४८८ [२६] Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROO5555555555555554 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [२७] 55555%%%%%%%%%% HOSC听听听听听乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐坂乐乐 乐乐乐乐明听听听听听乐乐听乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听乐 पुव्वभणियाणि जाणि तु ताई खलु सत्त उ हवंति ||३|| णाणस्स दंसणस्स य चरणस्सय जत्थ णत्थि उवघातो। एसो तु खेत्तकप्पो जहियं च अणायणा णत्थिाल० ६७॥४॥ उदगभयवुज्झणादी जह कोंकणसिंधुतामलित्तादी । णत्थि जहिं अग्निभयं निरग्गिसाहम्मियगिहा वा ।।५।। जहियं च सावयभयं सीहादीणं ण विज्जए देसे। जहियं च णत्थि चोरा देहुवहीपंथामेसादी ॥६।। वाला उ सप्पगोणसमादी बोहिगभयं च णत्थि जहिं । मणसो समाहिकारो सो रम्मो होति णायव्यो ।।७।। सूरो अणण्णगम्मो जत्थ णरिंदो तहिं सुहविहारं । साहुगुणे य वियाणति कुणति य साहूण जो रक्खं ॥८॥ अहिरण्णसुवण्णते छज्जीवणिकायसंजमे णिरता । जाणति जणशे य एवं जत्थ तु साहूण गुणणिहसं ल० ६८॥९॥ सज्झाओ जहिं सुज्झति कुदिगिण्णो ण यावि जो होति । एसण इत्थी सोही य जत्थ तहियं णिवासे तु॥९९०।। जहितं च अणायतणा ण संति के पुण अणातणा भणिता ?। साहम्मि भिण्णचिवा मूलत्तरदोसपडिसेवी ॥१|| एतेहिंजो देसो आइन्नो तह य अन्नतित्थीहिं। मच्छंधवाहगाम पुलिंददेसा अणायतणा ।।२।। एतारिसम्मि खेत्ते अप्पडिबद्धेण विहरियव्वं तु । आलंबणाई केइ तू इमाणि काउंण विहरंति ||३|| वसही संथारो भत्त पाण वत्थे पडिग्गहे सेहा । सड्ढा य पुव्वसंथुय असद्दहते य पडिबंधो ॥६४॥४॥ फासुया एसणिज्जा य, णिवाया य रितुक्खमा। एरिसा साहुपाउग्गा, वसही दुल्लभऽण्णहिं ।।५।। एमेव य संथारा कंबलदब्भादिवत्थुनिप्फन्ना । सयणासणा य जहियं सुलभा जोग्गा य साहूणं ||६|| भत्तं सुलभ मणुण्णं च एरिसं णस्थि अण्णहिं तत्थ । जंगियभंगियमादी नहु सुलभा अन्नयि वत्था ||७|| पडिगहगाऽविय सुलभा सेहा यऽन्नत्था नत्थि खेत्तम्मि । अण्णत्थ दुल्लभा तू तेण तु एत्थं बहुगुणं तु ।।८।। सड्डा आहारादी दिति य जोग्गाणि संथुता चेव । पुरपच्छ दिठ्ठभठ्ठा य अण्णहिं णत्थि एरिसगा ॥९।। उडुबद्धमासकप्पेण विहारो तं ण सद्दहइमेहिं । संजमआतविराण वच्चंते गामअणुगामं ॐ ॥१०००|| णाणादीण य हाणी जोग्गं खेत्तं तु मग्गमाणाणं । खेत्ताओऽविय खेत्तं संकमणे धुवमसज्झाओ॥१॥ जे णीयत्ते दोसा मासंतो परिवसेण ते चेव । एवं मासविहारे मणंतो बहुविहे दोसे ।।२।। णो सद्दहति विहारं तेण तु ण विहरेति तस्स आणादी । मासोवरिं च लहुओ णीयावासे य जे दोसा ॥३।। ते सो पावति सव्वे एतेहालंबणेहिं अच्छंतो। किं एगंतेणेवं ? ण विसेसो भण्णती सुणसु॥४॥ णिक्कारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मि णिद्दोसो। ते चेव अज्जयणाए पुणोऽवि सो पावती दोसे॥५|| काणि पुण कारणाइं जेहिं चिटेज एगठाणम्मि ? । भण्णति पुव्वुद्दिट्ठा जे खेमसिवादिया दारा ||६|| तेसिं चिय पडिवक्खा अक्खमे असिव तह य दुब्भिक्खे। बहुपाणुवस्सओ वा अमणुण्णोतुदयमादी ।।७।। एतेहिं कारणेहिं एगट्ठाणम्मि अच्छमाणा उ। जदि जयण ण कुचंती ते च्चिय णीयदिया दोसा ||८|| का पुण जयणा तहियं ? भण्णति तिहि कारणेहिँ उ ठितस्स । अण्णउवस्सयभिक्खादिया तुजयणा मुणेयव्वा ।।९।। अक्खेममादिएसुवि अक्खेत्तेसुंतु कारणवसेणं । चिठ्ठताणं तहियं समा तु जयणा मुणेयव्वा ॥१०१०॥ अक्खेमेवि सति पुरं संवढें वावि आसयंती उ। अक्खेमं चऽण्णत्था तहिं खेमं तो ण णिग्गच्छे ।।१॥ जदि असिवं तु बहिद्धा तइया अच्छंति ते तहिं चेव ! दुब्भिक्खेऽवि ण णिति य अहवा सव्वत्थ दुब्भिक्खं ।।२।। दुब्भिक्खे जयण तहियं अच्छंते वावि जयण तह चेव । बहुपाणे आउत्ता चंकमंते तु जयणाए ।।३।। उवस्सएँ आउत्ता कुडमुहभूतीत वावि लक्खंता । अण्णाए वसहीए ठंति पमज्जंति य अभिक्खं ॥४॥ जा जत्थ जयण जुज्जति अमणुण्णे उवस्सयम्मि तं कुज्जा कयवरसोहणमादी दुग्गंधे गंध पकिरती ॥५|| उदगभए थलगामे थले च वसही तहिं तु गिण्हंति । अग्गिभएँ मालबद्धे हम्मिततलगम्मि व वसंति ॥६॥ रोगबहुले अपुच्छा णिवेज्जए चोरकिण्णी ण तु विहरे । सत्थेण वावि गच्छे ठायंति व जत्थ णिरवायं ।।७।। जहियं सावयदोसा (च्चा) तहियं एगाणितो ण गच्छेज्जा । गेण्ह वसहिं च गुत्तं गामस्स तु मज्झयारम्मि ॥८॥ विज्जामंतादीहिं वाले णीणेति रातो णवि गच्छे । रायं च पण्णविंती साहुगुणमजाणमाणं तु॥९॥ जत्थ जणो णवि जाणति साहुगुणे तहिं कहंति साहुगुणे । परिभोग अकालम्मी रत्तिं कुव्वंति सज्झायं ॥१०२०॥ दूरेण कुतित्थीए वज्जेती एसणं च पण्णवए । कुल (लगु) डाइत्थीचरियाझ्या य वज्जति चरणठ्ठा ॥१॥ वज्जेज्ज अणायतणा णाणादीणं च जत्थ उवघातो । एवं जहसंभवं तं करेज जयणं णिवसमाण्णे ॥२।। एसो तु खेत्तकप्पो उस्सग्गववायसंजुतो भणितो । एत्तो उ कालकप्पं वोच्छामि जहक्कमेणं तु ॥३|| मासं पज्जोसवणा वुद्धावास परियायकप्पो य । उस्सग्ग पडिक्कमणे कितिकम्मे चेव ॥ 図のAO5555555555円玉5玉虫浜5555555SFFFF[あああああああああああ65FFCC - Pririr NEENELE S ELLELO LELEVELLELELLELELLELENELENTERTELEVEL 11:11- Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RO30555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं २८] 555听听听听听听听听听听听听C HOLIO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听GO पडिलेहा ॥६५॥४॥ सज्झायझाणभिक्खे भत्तवियारे तहेव सज्झाए। णिक्खमणे य पवेसे एसा खलु कालकप्वही ॥६५॥५॥ पुव्वं तु मासकप्पो परूवितो सो णिसीहणामम्मि |तु इहारूवणा वणिज्जति मासे अतिरेगे ||६|| मासातीतं वसतो वसहीए तीऍ चेव मासलहुँ । तह भिक्खायरियाए वीयारे तह बियारे य ||७|| परिसाडी संथारे सव्वेसेतेसु होति मासलहुँ । चत्तारि य उवघाता संधारे अपरिसाडिम्मि ॥८॥ पंचेते मासिया खलु चाउम्मासं च मिलिय सव्वेते । णव मास मासऽतीए उडुबद्धे संवसंतस्स |९|| लहुगा तु वासऽतीते वसहीते सेस होति ते चेव । भिक्खायरियादीसुंजे भणिता मासऽतीतम्मि॥१०३०॥ आरोवणा उ एसा कालदुवे वण्णिता अणिताणं । एत्तो पज्जोसवणासामायारिं पवक्खामि ||१|| पजहेत्तु वासजोग्गं बहिया अच्वंति वासुदिक्खंता । जे अंतरा तु गिण्हे तं सव्वं तेसि खेत्तीण ।।२।। अह पुण वच्चंताणं वासाजोग्गं तु अंतरा वासं । आरद्ध डहरगामे ण पहुच्छति एगवसही य ।।३।। अण्णोण्णसुठ्ठिताणं बहवो सागारिया ण तीरंति। परिहरितु ताहे वज्जे गुरूसागरियं णवरि एक्कं ॥४|| अवसेस समायारी पज्जोसवणाए वण्णिय णिसीहे । सच्चेव णिरवसेसा इमम्मि दारम्मि णायव्वा ||५|| वुड्डस्स तु जो वासो वड्डी व गतो तु कारणेणं तु । एसो तु वुड्डवासो तस्स तु कालो इमो होति ॥६।। अंतोमुहुत्त कालं जहण्णमुक्कोस पुव्वकोडी तु । मोत्तुं गिहिपरियागं जं जस्स व आउगं तित्थे ॥७॥ मरणे अंतमुहुत्तो देसूणा पुव्वकोडि कह होज्जा ? | जो तरूणो च्चिय समणो असमत्थो विहरितं जातो ॥८॥ कदा-विज्जा चरियं लाघवोए तवस्सी, तत्तो तवो देसितो सिद्धिमग्यो । अहाविहं संजम पालइत्ता, दीहाउणो वुड्ढवासस्स कालो ॥६७||९| विज्जा तु बारसंगं करणं तस्स गहणं मुणेयव्वं । सुत्तं बार समाओ तत्तियमेत्ता य अत्थेवि ॥१०४०॥ घित्तुं सुत्तत्थाइं समा देसदसणं च कतं । चरियं भंतेगळं लाघविएणं तु तिविहेणं ||१|| उवकरणसरीरिदिय एवं तिविहं तु लाघवं होति । उवकरण रत्तदुठ्ठो धरेति ण य गिण्हए अहियं ॥ल०६९॥२॥ संघयणधितीजुत्तो अकिसो ण तु थूरदेहसारीरो । वस्सिदिओ तवस्सी चउत्थमादीई तवो चित्तो (न्नो) ल०७०||३॥ कुव्वतेणं अछित्तिं णाणादी देसिओ तु मोक्खपहो । सुत्तत्थुवदेसेणं संजमियं संजमेणं च ।।४।। काऊण अवो (तऽवो) च्छित्तिं बारस । वासाइं णिच्चमुज्जुत्तो । दीहाउतो तु सुरी पडिवज्जेऽब्भुज्जयविहारं ॥५|| अब्भुज्जयमचयंतो अगीयमीसो व गच्छपडिबद्धो। अच्छति जुपरमहल्लो कारणतो वावि अन्नोवि ॥६॥ जंघाबले व खीणे गेलण्णे सहायतो व दोबल्ले। अहवावि उत्तमढे णिप्फत्ती चेव तरुणाणं ||७|| खेत्ताणं व अलंभे कयसलेहे व तरुणपरिकम्मे । एतेहिं कारणेहिं वुड्ढावासं वियाणाहि ||८|| केवतियं तु वयंतो खेत्तं कालेण विहरितुं अरिहो। केवतियं च अणरिहो बलहीणो वुड्डवासी तु ?॥९॥ दुन्निवि दाऊण दुवे सुत्तं दातूण सुत्तवज्जं च । एवं दिवड्डमेगं अणुकंपादीसुवी जतणा ॥६८॥१०५०|| दोण्णिवि सुत्तत्थाई दुवेत्ति जो जाति गाउए दोण्णि । जाव तु भिक्खावेला एस तु सपरक्कमो थेरो॥१॥ एमेव अदाऊणं अत्थं अहवा दोण्णिवि तु । दो गाउयाई दोण्णी पुण्णाए भिक्खवेलाए।।।। एवं दिवड्डमेगं च गाउयं तिन्नि होति एक्कक्के । गमया तु मुणेयव्वा विहरणअरिहो स थेरोतु ॥३|| एस सपरक्कमो तू जो पुण दाऊण उभय सुत्तं वा । गच्छेज्ज अद्धगाउय सपरक्कमों होति एसोवि॥४॥ सव्वेते विहरंती एतेसु दुगाउयं दिवढं वा । जे जंति गाउयं चिय तिण्हंपेतेसि वुड्डाणं ॥५|| जेऽवि य गाउयमद्धं उभयं सुत्तं च दातु गच्छंति । तेसणुकंपा तु इमो कायव्वा होति तिविहा उ||६|| विस्सामण उवकरणे भत्ते पाणे अलंबणे चेव । तं च विजाणति कालं गंतुं वाएति जो जत्थ ॥७|| जयणा सुद्धालंभे पणगादी सा तु होति णायव्वा । अपरक्कमं तु थेरं , एत्तो वोच्छं समासेणं ।।८|| खेत्तं तु अद्धगाउय कालेणं जाव होति दिवसोउ। खेत्तेण य कालेणय जाणसु अपरक्कम थेरं ।।९।। अण्णो जस्सण जायति दोसा; देहस्स जाव मज्झण्हो । सो विहरति सेसो पुण अच्छति मा दोण्हवि किलेसों ||१०६०|| भमो वा पित्तमुच्छा वा, उद्धसासो व खुब्भति | गतिविरिए वसंतम्मि, एवमादी ण रीयति॥१॥ गच्छपरिमाणतो तू सहायगा तस्स होति कायव्वा । सत्तेव जहण्णेणं तेण परं होन्ति णेगावि ॥२॥ चउभागतिभागऽद्धे सव्वेसिंगच्छतो परीमाणं । संतासंतअसंती वुड्डावासं वियाणाहि ॥३।। अठ्ठावीसं जहण्णेणं, उक्कोसेणं सतग्गसो । गच्छं गच्छं समासज्ज, चतुभागी विभायए॥४॥ जदि होति अट्ठवीसं चतुहा गच्छो तु तो विभज्जति तु । सत्त उ चउभागेणं ते दिज्जती सहाया तु॥५॥ पुण्णम्मि मासे ते णिति, सत्त अण्णे उवेति तु । एवं अतिति णिति य, मास मासंमि सत्त तुक ॥६|| एवं दोसा ण होती तु, उवट्ठाणादि जे भवे । तेणं तु अठावीसाए, चउभागा विव(भ)ज्जिता ||७|| अट्ठावीसं ऊणा दुहासतीए उते हवेज्नहि। संताअसति अगीया Morro9955555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४९०5555555555555555555555555OOK 55555555555555555555555555555555555555557 म0055555555 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听C (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं 555555555555520 HKC$$$$乐明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 बाला वुड्डा अजोग्गा वा ||८|| संतासतीए पुजंति तत्तिया तेण तिण्णि दुण्णिक्को। भागा उ विभइयव्वा इगवीसाचोद्दसत्तण्हं ।।९।। दो संघाड अडंती भिक्खं एक्को य गेहए उवहिं । थेर दुवेणीणे सत्तसुजयणेसा लित्त(भिक्ख)मादीसु॥१०७०|| वुड्डावासे जयणा खेत्ते काले वसहीय संथारे। खित्तम्मि णवगमादी हाणी जावेक्कभागो तु॥१॥ धीरा कालच्छेदं करेंति अपरक्कमा तहिं थेरा। कालं च अविवरीयं करिति तिविहा तहिंजयणा ||२|| कालच्छेदो मासं अण्णा वसही तु भिक्खमादीणि । अट्ठसु उडुबद्धेसुं चउमासे सेक्कवासासुं ॥३।। कालं अग्विवरीयं उडुबद्धे वासवासियं णं करे। वासावासे य तहा उडुबद्धं वावि ण करिति ॥४|| तिविह जयणेति इणमो तिविहऽणुंकपा तु होति वुड्डस्स । जह कायव्वा इणमो तमहं वोच्छं समासेणं ।।५|| आहारे जयणा वुत्ता, तस्स जोगेय पाणए। णियया मउया चेव, छऽवेताऽणेसणादिसु ॥६॥ काणिट्ट पक्क आमे पिंडघरे चेव तह य दारुघरे। कडगे कडगतरघरे वोच्चत्थे होति चउगुरुगा॥७॥ कोट्टिमघरे वसंतो आलित्तंमिण डज्झते तेणं । काणिट्टगादिगहणं रक्खइ य णिवातवसही तु ||८|| वसहि णिवेसण साही दूराणयणम्मि जो उ पाउग्यो । असतीय पाडिहारिं मंगलकरणम्मि णीणेति ।।९।। वसही य अहासंथड चंपगपट्टो व चम्मरुक्खो वा। थिरमउओ संथारो असतीय णिवेसणाठाणे ॥१०८०॥ असतीइ साहिबाडग(गड) सग्गामे चेव तह य परगामे । कोसद्धजोयणादी बत्तीसं जोयणा जाव ॥१॥ थिरमउओं अपडिहारी घेत्तव्वो तस्स असति पडिहारी । पितिपज्जयादिफलगं मंगलबुद्धी धरे जं तु ॥२॥ केइ गिहत्था तं उस्सवादि अच्चिति ण परि जंति । तं पणइया तु गिहिणो विति य एअम्ह मंगल्लं ।।३।। देजह नवर छणम्मि अच्चियमहितं पुणोवि णेज्जाह । तं घेत्तूणं फलगं उस्सवदिवसम्मि पेसंति ॥४|| पुण्णम्मि अप्पिणंती अण्णस्स व वुड्डवासिणो देति । मोत्तूण वुड्डवासं आवज्जति चतुलहू सेसे ॥५|| पडियरति गिलाणं वा सयं गिलाणोवि तत्थवि तहेव । भावियकुलेसु अच्छति असहाए रीयओ दोसा ॥६॥ ओमादी तवसा वा अचएंतो दुब्बलोवि एमेव । पडिवन्न उत्तिमढे पडियरगा वावि तण्णिस्सा ||७|| तरुणाणं णिप्फत्ती आततरे चेव होति णायव्वा । कालियसुय दिट्ठिवाए तेसिं कालोऽयमुक्कोसो।।८|| संवच्छरं व झरते बारस वासाई कालियसुतस्स । सोलस य दिट्ठिवाते एसो उक्कोसतो कालो॥९॥ बारस वासे गहियं तु कालियं झरति वरिसमेगं तु । सोलस भूतावाते गहणं झरणं दस दुवे य॥१०९०|| गहणझरण कालियसुतेपुव्वगते य जदि एत्तिओ कालो। आयारकप्पणामे कालच्छेदो तु कतरेसिं॥१॥ आयारकप्पणामंति णिसीहं तत्थ मासमुडुबद्धे । वासासुचउम्मासं एसो कालो तु कतरेसिं? ||२|| भणिओय थेरेण समाणेणं कारणजातेण एत्तिओ कालो । अज्जाणं पणगं पुण णवगग्गहणं तु सेसाणं ॥३।। णिम्मवणट्ठा एतेसिं चेव एयं तु कारणज्जायं । जेहिं उगुणेहिं जुत्ता दिज्जते ते इमे होति ॥४॥ जे गिहिउं धारयिउं च जोग्गा, थेराण ते दिति बिइज्जए तु । गिण्हति ते ठाणठिता सुहेणं, किंच्वं थेरस्स करेति सव्वं ।।५।। आसज्ज खेत्तकालं बहु पाउग्गा ण संति खित्ता उ। णिच्चं च विभत्ताणं सच्छंदादी बहू दोसा ॥६॥ जह चेव उत्तिमढे कतसंलेहस्स ठाति एमेव । तरुणपडिक्कम्मं पुण रोगविमुक्के बलविवड्डी ॥७|| वुड्डावासातीए कालादी तेण उग्गहो तिविहो । आलंबणे विसुद्धे उग्गहों तक्कज्जि वोच्छेओ ।।८|| जंकारण वुड्डीगतो वासो तहिं कारणे अतीयम्मि। मति पडिभग्गा जे उ आयरिए उग्गहो णत्थि ||९|| दुविहेवि कालतीते मासे चउमास उग्गहे छिण्णे । सच्चित्तादी छिण्णो आलंबणे तम्मि छिण्णम्मि ॥११००।। कारणसमत्ति पुरओ जो अच्छति उग्गहे तहिं होति । सच्चित्तादी तिविहेण तस्स तहियं इमं णातं ॥१॥ आगासकुच्छिपूरो उग्गहपडिसेहियम्मि जो कालो। ण हु होति उग्गहो सो कालदुगे वा अणुण्णाओ॥२॥ जह णाम कोति पुरिसो छाओ आकासकुच्छिपूरिच्छे । ण हु होति सोवि तित्तोऽमुत्तत्ता उवणओ एवं ॥३॥ कालदुवेत्ति अणुण्णा गिम्हाए जत्थ चरममास कतो। अण्णक्खेत्तऽसतीए तत्थ ठियाणोग्गहो होति ।।४।। एमे वासतीते दस राया तिण्णि जाव उक्कोसो । वासणिमित्तठिताणं उग्गहों छम्मास उक्कोसो॥५।। तक्कज्जसमत्तीएएवि रायदुट्ठपरचक्कअसिवादी । एतेहिं कारणेहि तु उग्गहो होतऽतीतेऽवि ॥६॥ एतेसु उग्गहेसुं आभव्वऽणभव्ववित्त भणिएसा। अयमण्णोतु पगारो आभव्वमणाभवंते य ॥७॥ सुहसीलऽणुकंपातट्ठिए य संबंधि खवग गेलण्णे । सच्चित्ते ससिहाए पइट्ठिए धारण दिसासु ॥६९||८|| म तणुयंपिणेच्छए दुक्खं, सुहं चाकंखती सदा । सुहसीलो एस अक्खाओ, सातागारवणिस्सितो॥९|| सुहसीलयाए सेहं कोई पेसेज्ज अण्णसाहूणं । पलिमंथं मण्णंतो PROOFF3555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४९१ 5555555FFFFFFFFFFFFFFFFFFFOR Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PORO5555$$$$$$$ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुनं [३०] $$$步步步步步$2503 555 玩玩玩乐乐 SC明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听 दुक्खं खू सारवेउं जे ॥१११०|| असहायस्स व देज्जा कोई अणुकंपयाएँ सेहं तु । आयट्ठीण व कोई पेसिज्जा धम्मसद्धाए ।।१।। दिज्जा सिणेहओ वासंबंधी अस्स कोति सच्चित्तं । खमगो सयं व होज्जा खमगस्स व पेसवेज्नाहि ॥२॥ देइ व गिलाळगस्सा वेयावच्चट्ठताए असहाए। अहवा सयं गिलाणो अचएंतो सारवेउं जे ॥३॥ पेसिंतस्स उससिहो असिहो पुण जस्स पेसिओ तस्स । एवं असंथरेणवि पेसियओजह गिलाणेणं ||४|| कह दातु पुणो मग्गति जम्हा सो अप्पभू तु दाणस्स । तम्हा तस्सायरिओ मग्गति सज्झंतियादी वा ।।५।। अहवा जाहें सयं चिय सो सेहो जा होति गीयत्थो । तो जाणति आभव्वो अहयं पुविल्लयाणं तु॥६।। उडुवासवुड्डवासे एसो भणितो तु कालकप्पविही । परियायकालकप्पं एत्तो वोच्छं समासेणं ||७|| को रातिणितो होती ? को वावी होति ओमराइणिओ? | भण्णति सुणसु विसेसं रातिणियओमरातीणं ।।८।। संजमसेढी अतो जो उ ठितो सोभवे हुरायणिओ। जो बाहिं सो ओमो एयं अतिसेसितो जाणे। ल०७१॥९॥ तम्हा छउमत्थाणं जो पुव्वं ऊ ठावितो वएसुं तु । सो होती राइंणिओ जो पच्छा सो भवे ओमोल०७२।।११२०।। सामइयसंजयाणवि सामइयं जस्स पुव्वमुच्चरितं । सो होती रातिणितो इतरो ओमो मुणेयव्वो ल०७३||१|| अट्ठस्सास जहन्नो काउस्सग्गो उहोति बोद्धव्वो। अट्ठसहस्सुक्कोसो अहवा संवच्छरं वावि ॥२॥ पडिकमणं देसिराइय पक्खिय चउमासि तहय वरिसे य -। एतेसिं वक्खाणं पुव्वं आवस्सए भणितं ॥३॥ कितिकम्मं कायव्वं काहे कति वाऽवि होतऽहोरते ? । एतेसिंणाणत्तं वोच्छामि अहाणुपुवीए ||४|| पडिकमणे सज्झाए काउस्सग्गावराह पाहुणए । आलोयण संवरणे उत्तिमढे य वंदणयं ।।५।। चत्तारि पडिक्कमणे किइकम्मा तिण्णि होति सज्झाए। पुव्वण्हे अवरण्हे किइकम्मो चोद्दस हवंति ॥६|| सूरुग्गते जिणाणं पडिलेहणियाए आढवणकालो। थेराणऽणुग्गयम्मी उवहिणा सो तुलेयव्वो लि०७४||७|| पढमचरिमासु णियमा सज्झओ पोरुस दियराओ। झाणं तु अत्थ(ड)पोरिसि बितियाए तं तु दिवसस्स ॥ ल० ७५||८।। ततियाए पोरुसीए भिक्खग्गहणं तु होति कायव्वं । सेसं च पमाणादी होति इमं तू समासे(णा)णं || ल० ७६||९|| पमाण काले आवस्सए य उवगरणे। मत्तग काउस्सग्गे जस्स य जोगो सपडिवक्खो॥११३०|| भत्तट्ठीणंपि ओहे जह भणित तहेव होति एत्थंपि। एक्कं वेलं भत्तं रत्ति च ण कप्पए भोत्तुं ।।१।। कालस्स पडिक्कमितुं मज्झण्हे ताहे होति गंतव्वं । वीयारं भोत्तूण वसेस अकालो उ वीयारे।ल०७७||२।। चउसंझासुण कप्पति सज्झाओ तासिमं तु कायव्वं : पुव्वावरासु दोसुवि काउस्सग्गट्टिता झत्ति ॥ल० ७८||३।। दिणिमज्झाए भिक्खं झाति अभत्तट्टितो तु जो साहू । राओ मज्झिल्लाओ णिद्दामोक्खं करिती उ ।। ल० ७९||४||णिक्खमणं खलु सरए पाउसकाले पवेस पुव्वत्तो। एसो तु कालकप्पो भावे कप्पं अतो वोच्छं ॥५|| दयसणणाणचरित्ते तवसंजमसमिइपंच(गुत्ति)हिं गुत्तो। हतरागदोस निम्ममखमदमणियमट्ठिओ णिच्वं ॥७०||६|| अणिगूहियबलविरितो परक्कमति जोजहुत्तमाउत्तो। अत्तट्टकरणजुत्तो गुणभावणभावणिक्वंपो॥७१ ॥७॥ रिद्धिहिं कुलिंगीणं ण य देवातीहिंजस्स तू भावो। दसणविगलोजायति दंसणमाराहियं तेणं ॥८॥णाणं दुवालसंगं ते चेव य पवयणं तु संघो वा । गहणम्मी उज्जुत्तो परतो तह वच्छलो वि ॥९॥ चरणे णिच्चुज्जुत्तो मूलगुणेसुं सउत्तरगुणेसु । ण य अतियारं कुणती पच्छित्तेणं व सोहिकतं ॥११४०|| तवबारसंगजुत्तो समितीसहितो तिगुतिगुत्तो य । रागद्दोसणिहंता णिम्ममो णियते सरीरेऽवि ||१|| कोहं जिणति खमाए मद्दवमादीहिं सेसकलुसेऽवि । दमणियमा दोऽवेक्कं इंदियणोइंदिया होति ॥२|| णाणादिएहिं अणिगृहितो तु कम्मस्स णिज्जरट्ठाए । उज्जमति परक्कमती घडइत्तिय होति एगट्ठा ॥३।। जह सुत्ते णिद्दिट्ठो तह कुव्वति जो तु अप्पमाएंतो। सो हु जहुत्तो साहू नूणं मतिमं वियाणिज्जा ।।४।। अत्तट्ठा मोक्खट्ठा ण तु इहलोगादिहेतुगं कुणति। करणं जोगतिएणं जयणाजुत्तोत्ति अववादे ||५|| मूलगुण उत्तरे या भावण पणवीस अणिच्चयादीया । मेत्तीपमोयकारुण्णमज्झत्थादीहिं णिक्कंपोल० ८०॥६।। एसो अ भावकप्पो अहवा णाणादिओ पुणो तिविहो । दसण पढम भण्णति णाणचरित्ता तदायत्ता ल० ८१॥७॥ तो दंसणस्स चेव तु जेहिं पदेहिं तु होति उवघातो। ताई इमाइं वोच्छं णिक्खमणादीणि तु कमेण ।।८। णिक्खमण गमण भुंजण सद्दियवयणे य एक्कवायणिए। दसणणाणाभिगमे रायकुमारे गणहरे य||७२।।९।। णिक्खमणे बितऽम्हं अं(अ)धो व(वा)हाएत्तुणाततो भगवं । एरिसएविण दिक्खे णिक्खंते जेण साहूणं ।।११५०|| पूजासक्काररुयी तेण पवत्तति कीस वावि जाणंतो। तारिसए %%%%%%%%%% AGROF KOYo55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१४९२55555555555$$$$$$$$$$ $FOTOR Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ro95555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [३१] 五五五五五五五五五五五五%5F2C CO听听听听听听听听听听听听听听听听听折纸听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听听听CM रणिक्खंते जेणुदितो होति सक्कारो ॥१॥ण हु एवं वत्तव्वं सो च्चिय भगवन्नु जाणए एवं । ण हु भाणुपमा तीरइ खज्जोयपभाहिं अतिसतितुं ||२|| गमणे तुरितं साहू गच्छंति अहो सुदिट्ठ भिच्छूणं । सणियं वयंति णेवं वत्तव्वेवं तु भाविज्जा ।।३।। ते लोगरंजणट्ठा सणियं गच्छे ण धम्मसद्धाए। ण य जुगपेहाए खलु विवरीयं साहुणो भावे|४|| जंपि कहिचि सतुरितं तंपिय गेलण्णमादिकज्जेसु । गच्छंती तु सुविहिता बहुतरमायं मुणेऊणं ।। ल० ८२।।५।। भुजेति चित्तकम्मट्ठिता व सक्कादि बोडियादी य। ण तहा साहू एवं भासते दंसणविरोही ॥६।। कुक्कुडताए मोणं करंति जणरंजणट्ठताए उ । भावेयव्वं एवं साधू पुण णिज्जरट्ठाए ॥७|| जंपिय भासंति जती तंपिय कजम्मि थोव जयणाए। इम मुंच चिट्ठऊ वा गुरुमादीणं च पाउग्गं ।।८|| सक्कयपाढो गुरुगो दियाण एसा तु देविका भासा । समणाण पागयं तू थीभासाए उवणिबद्धं ।। ल० ८३।।९।। तत्थवि सद्दियवयणं सदिया चेव णवरि जाणंति । सव्वेसुऽणुग्गहट्ठा इतरं थीबालवुड्डादी ॥११६०॥ दिÉतो सिणपल्लीणिवाणकरणेण होति कायव्वो । एक्केण कतो अगडो वावि ससोवाण बितिएणं ल०८४||१|| ततिएण तलागं तू तत्थऽगडे केयघडियमादीहिं । तीरति उवभोत्तुं जे बितियं दुपदाण अभिगम्म ल० ८५।२।। दुपदचउप्पदमादी सव्वेसि तलाग होति अभिगम्मं । इय सव्वऽणुग्नहत्थं सुत्तं गहितं गणहरेहि।ल० ८६||३|| सव्वत्थ वेदसत्थं चरणे करणे य पढम (एग)वादणियं । विवरीयं समणाणं भावितो दंसणविराही ॥४॥ तत्थवि भावेयव्वं सो च्चिय अत्थो तु होति सव्वा(व्वे)सिं । सामुद्दसिंधवादी जह लवणसहाव सव्वेवि ॥५|| दंसणपभावगाइं अहवा णाणे अहिज्जमाणं तु । अत्तट्ट परट्ठ वा जहलंभं गेण्ह पणहाणी ॥६॥ भिक्खुत्ति जं पदम्मी भणितं जं वावि तंणिमित्तेणं । गच्छंतो कि सेवे? असद्दहतो अणाराही ॥७|| पव्वज्ज अप्पपंचम रायसुतस्स तु दाइगभएणं । राजा उ समणुजाणति अंते पडिणीतों सो तेण ||८|| तत्थविय फासुभोती सुत्तत्थाई करेंत अच्छंति । जणइत्तु सुतेक्वेक्के अमूढलक्खासु इत्थीसु ।।९।। ते रज्जेसुं ठाविय पुणरवि गच्छंति गुरुसमीवं तु । आलोइय णिस्सल्ला कयपच्छित्ताण तो तेसिं॥११७०॥ संकप्पियाणि पुब्बिं आयरियादी पदाणि गुरुणा तु । पच्छागताण ताण य तद्दिवसं चेव दिण्णाई॥१|| परियायम्मि णिरुद्धे जं दिण्ण तगं तगं तु जो न सद्दहति । सुहसमुदितस्स जं वा कीरति तू रायपुत्तस्स |२|| तत्थवि भावेज्जेवं पत्तिकडाई तु तेहिं थेराणं । रायसुतदिक्खितेण य उब्भावण पवयणे होति ॥३।। असहुस्स जं च कीरति अज्जसमुद्दस्स चेव गुरुणोतु । एयं सद्दहते विराहणा दंसणे होति ।।४|| तत्थवि भावेयव्वं जेणायत्तं कुलं तं रक्खे। अन्नस्सवि कायव्वं गिलाणगस्सेस उवदेसो॥५|| इति एस समासेणं दंसणकप्पो तु आहितो एवं । एत्तोतु णाणकप्पं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए॥६।। सुत्तुद्देसे वायण पडिच्छ पुच्च परियट्ट अणुपेहा । आयरियउवज्झाया अह होति तु सुत्तकप्पविही ॥७३॥७॥ आयारमादि कातुं सुयं तु जा होति दिद्विवादो तु | अंगाणंगपविट्ठ कालियमुक्कालियं चेव ॥८॥ तं पुण सव्वंपि भवे संवादसमुट्ठियं व णिज्जूढं। पत्तेयबुद्धभासित अहव समत्तीय होज्जाहि ॥९|| ससमयवादं संवादमाह जह केसिगोयमिज्जाती। पण्णवणादसकालियजीवाभिगमादि णिज्जूढं ॥११८०|| पत्तेयबुद्धभासियइसिभासियमादिगं मुणेयव्वं । केवलणाणसमत्तीय भासिता चोद्दस उ पुव्वा ||१|| एतं सुतं तुजं जत्थ सिक्खितं जेण जह तु जोगेणं । तं तह चिय दायव्वं एसो खलु अज्झयणकप्पो॥२॥ एयं पुण सुतणाणं वायणजोग्गं तु जारिस होति । तं वोच्छामी अहुणा सुत्तस्स य लक्खणं जं तु ॥३|| जित परिजितं अमिलितं अविच्चामेलियं अवाविद्धं । घोस णिकाइय ईहिय सुविमग्गिय हेतुसब्भावं ||७४।।४।। फुडविसदसुद्धवंजणपदमक्खरसंधिकारणमणूणं । पादप्पयाणुलोमं णिउत्तसुत्तेत्ति सुयकप्पो ॥७५||५॥ णिपुणं विपुलं सुद्धं णिकाइयं अत्थतो सुपरिसुद्धं । हितणिस्सेसकरं बुद्धिवड्डणं फलमुदारजुतं |७६||६||सगणामं व जितं खलु परिजिय हेढुवरि उवरितो हेट्ठा । मिलिते उ धण्णणातं विच्चमेलो उ अण्णोण्णं ॥७|| अज्झयणुद्देसाणं सुत्ते मीसेति कोलिपयसं वा । तं चेव य हेटवरिं वाविद्धे आवलीणातं ।।८।। घोस उदत्तादीया णिकाइयऽक्खेवसिद्धि(8)परिसुद्धं । ईहित सयंमतीए विचारितं एव णेवत्ती ? ||९|| साहम्मियवेहम्मियहेऊहिं मग्गिओ उ सब्भावो । जस्स तु सुत्तस्स भवे तं होति सुदिट्ठसब्भावं ॥११९०|| णिस्संदिद्ध फुडं खलु संजुत्तं ॥ वावि पुव्वमवरे(चरमे)णं । विसदं अणिगूढत्थं वंचणसुद्धं सउवयारं ॥१॥ अत्थुवलद्धी जत्थ तु तं होति पदं तु अक्खरा वन्ना। संधी संबंधो खलु सुत्ता सुत्सस्स जो EGO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听NE 5 5 555श्री आगमगुणमजूषा - १४९३5555555555555555555555555OHOR Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O9555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [३२] 555555555$$$$$ 2CE MORO CCC纲听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听后 कोति ।।२।। एतेहिं गुणमहितं पादा तु सिलोगमादिणं होति । गज्जम्मि य पदसंखा अणुलोमं जण्ण पडिलोमं ।।३।। पुव्विल्ल परिल्लेणं जं ण विरुज्झति तु तं तहा तहियं । अत्थेण जोइयं तू णिउत्तमेतारिसं होति ।।४।। णयहेतुवादभंगियगणितादी अत्थओ य णिउणं तु । वित्थण्णत्थं विउलं मूगादीवायणाहिं च ।।५|| सुद्धं तु सुगिहीतं अलियादीदोसवज्जियं वावि । अत्थे णि(ण)काइयं खलु णिकाइयं अहव बंधेणं ।।६।। अविरुद्धों अक्खरेहिं जस्सऽत्थो तह य समयमविरुद्धे । तं अत्थतो विसुद्धं हितं तु इहलोयपरलोए ।।७।। अहियं सेयकरं तू णिस्सेसकरं तयं मुणेयव्वं । उप्पत्तीमादीण य बुद्धीण विवद्धणं जं तु॥८॥ तस्स फलं तु उदारं अव्वाबाहं अणोवमं सोक्खं । एसो तु सुत्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उद्देसं ।।९।। उद्दिसियव्व उवट्ठिएँ अणुवट्टितें उदिसते चतुलहुगा । अणुलोइएऽवि लहुगा तम्हा आलोइउद्दिसणा ॥१२००|| आलोयणा य विणए खेत्त दिसाभिग्गहे य काले य । रिक्खगुणसंपदाऽविय अभिवाहारे य अट्ठमए ।।७७।।१।। अण्णगणागत पुच्छे केवइय सहायगा गुरूणं तु ? । एवं पुट्ठो सोऽविय वदेज एगादिय इमे उ॥२।। एगे अपरिणते या, अप्पाहारे य थेरए । गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे ।।३।। एतारिस विउसज्जे आगतते सोहि होति पुव्वुत्ता । आयारकप्पणामे सीस पडिच्छे य आयरिए ॥४|| एयद्दोसविमुक्कं तु आगतालोइए पडिच्छति तु । आलोयणा तु एसा सेसा दारा जहाऽऽवासे ॥५॥ णवरिं कालद्दारं गुणद्दारं चेव ईसि भासिस्सं । अंगसुयक्खंधाणं उद्देसा सुक्खपक्खम्मि ||६|| पण्णत्तिमहाकप्पे सुत्तादि सरदे सुभिक्खकालम्मि। णेमित्तियादि पुच्छिय उद्दिसणा होति कायव्वा ।।७।। सेसं कालविहाणं पुव्वुत्तं तं तु होति णायव्वं । केहिँ गुणेहिँ जुतस्स तु उद्दिसियव्वं ? इमे सुणसु॥८॥ अव्वोच्छित्ती संवेगविणयउववेयवज्जभीरुस्स। पुव्वण्हे जोगसमुट्ठितस्स उद्देदणाकप्पो॥९॥ वायगवाइजते गुणा तु वायणविहिं च वोच्छामि । वायगवादिज्जते गुणाण दारा इमे होति ॥१२१०॥ अप्पणो य दढा रक्खा, विपुलो य तहाऽऽगमो । सुयणाणस्स य पूजा, जिणाण छिद्देय(णापंत)दुच्छल्लो ॥७८||१|| उम्मग्गं वच्चंतो अप्पा रक्खिज्जते तु णियमेणं । सुण्हादिद्रुतेणं सुतवावारोवओगेणं ॥७९।।२।। उवउत्तस्स तदद्वे णिज्जरलाभो तवो य विउलो उ। इंदियपणिही य तहा पसत्थझाणोसओगो य॥३।। जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुयाहि वासकोडीहिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उस्सासमेत्तेणं ।।४।। बारसविहम्मिवि तवे सब्भितरबाहिरे कुसलदिढे । णवि अत्थि णवि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं ।।५।। सुयणाणुवदेसेणं वाइंतेणं च गिण्हगेणं च । सुतपूजा होति कया तं च जितं होति वायते ।।ल०८७||६|| सुयपूजाए य पुणो सुतोवएसेण वट्टमाणेण । वाएंतम(ग)हिज्जते आणा तु कता जिणिंदाणं ॥७॥ सुयणाणुवदेसेणं वायंता गिण्हतो य पंतेहिं । ण चइज्जति छल्लेतुं वंतरमादीहिं देवेहि ||८|| वायणगुणा तु एते समासओ वण्णिता मए कमसो । वायणविहिं तु एतो वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ॥९॥ अत्ताण परिस पुरिसं हितऽणिस्सिय परिजितं जियं काले । दिद्वत्थं फुडवंजाण णिव्वावण णिव्वहणसुद्धं ॥८०||१२२०॥ तवुसी गंधियपुत्तो रन्नो रयणघरिए दओभासे । देवीआभरणविही दिटुंता होति आयरिए ॥८१||१|| अत्ताणं तु तुलेती मि ण वत्ति वायणं दातुं । जाणेज्जा पुरिसेऽविय जो घेत्तुं जत्तियं तरति ॥२|| बहुयं घेत्तु समत्थे बहु देंती अप्प गिण्हेते अप्पं । विच्चामेलणदोसो अतिबहुते तस्स दिज्जते ||३|| परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य तिविह पुरिसा तु । णाऊणं छेदसुतं परिणामगें होति दायव्वं ||४|| इह परलोगे य हितं अणिस्सियं जंतु णिज्जरट्ठाए । न उ वाइ गारवेणं आहारादी तदट्ठाए ।।५।। उक्कइतोवइयं परिजियं तु जिय एव अगुणयंतेवि । कालित्ति कालियादी कालो जो जस्सतं तहियं ॥६|| जस्सवि जाणति अत्थं दिट्ठत्थं तं तु भण्णती सुत्तं । फुडवियडवंजणं तू वयणविसुद्ध मुणेयव्वं ॥७|| तं होती णिव्ववणं जो वाएंतो तु ल्हादि उप्पाए। णिव्वहणसुत्तमेयं जो अक्खितो उणिव्वहति ॥८॥ तउसारामे तउसे पुव्वं ण पलोएँ आगते कइए । जाव पलोए ताव तु कइ विपरिणत अन्नहिं गिण्हे ।।९।। एवं जो आयरिओ पुट्ठो संतो विचिंतयति अत्थं । विप्परिणमितुं तस्स तु सीसा वच्चंति अन्नत्थ ॥१२३०|| जह मुल्लअणाभागी आरामी सो तहिंतुसंवुत्तो। तह णिज्जरअणभागी आयरिओ होति एवं तु ॥१|जेण पुण पुव्वदिट्ठा तउसा आरामिएण होति तहिं। सो देति लहुं तउसे मुल्लस्स य होति आभागी ॥२।। एवं आयरिएणं जेणऽत्थो पुब्वि फ़ चितिओ होति । सो वाएति लहु लहुँ णिज्जरभागी य होएवं ॥३॥ एमेव गंधिपुत्ते जाणमजाणे य गंधभाणे तु । आभागी अणभागी उवसंधारोऽविय तहेव ||४|| 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听C恩 xo 5 555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१४९४55555555555555555555ROR Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KORO555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [३३] 55555555555555 玩玩乐乐乐乐听听听听听听乐乐乐明明听听乐乐乐乐乐乐 2 सेणियणिवस्स हत्थी तंतुयमच्छेण गहिओं जलमज्झे । सिरिघरिओं दओभासं मग्गिओं णवि जाणि कत्थं कओ?||५|| जा मग्गति ता हत्थी पडितो रण्णा विणासिओ + घरिओ। बितिओ मग्गितों दिन्नंमि तक्खणा मोइते पूया ||६|| एमेवायरियम्मिवि उवसंधारो तहेव कायव्वो। चिंतणसमवाकरणे णिज्जरलाभे अलाभे य॥७|| रण्णो के दो देवीओ पेसल्ली वल्लभी य पहायति । पेसल्ली हारावे आभरणे वल्लभीए तु।।८।।जह चेडी आभरणं आवासे तह इमंपि णायव्वं । उवसंधारो तह चिय आयरिए होति कायव्वो ।।९।। एवं ता वाएंतो भणितो अहुणा पडिच्छगं वोच्छं । जारिसगुणेहिं जुत्तो वाएयव्वो तु सो होति ॥१२४०॥ अणुरत्तो भत्तिगतो अतितिणो अचवलो अलुद्धो य । अव्वक्खित्ताउत्तो कालण्णू पंजलिउडो य ॥८॥१॥ संविग्गो मद्दविओ अमुती अणुवत्ततो विसेसण्णू । उज्जुत्तमपरितंतो इच्छितमत्थं लभति साहू + ॥८३॥२॥ जो तु अवाइज्जतो ण रुज्झ(रूस)ती जह ममं ण वाएति । सो होई अणुरत्तो भत्ती पुण होइ सेवा उ||३|| मज्झ न देइत्तिन जो तिंबुरुकढे व तडतडे दिवसं । नं॥ ॐ य आहारादीसुं तदभावोऽतितिणो एसो॥४॥ गइठाणभावभासादिएहिं नवि कुणइ चंचलत्तं तु । गाणंगणिओ न भवे अचंचलो सो मुणेयव्वो ॥५|| आहारादुक्कोसे जो म लभ्रूणं तयं न अत्तढे । एस न लुद्धो वक्खेवणा तु सद्दादिविसएसु ॥६|| लीहालेढुगमादी जो य पढंतो ण करति वक्खेवं । अव्वक्खित्तो एसो आउत्तों अणण्णमणसो तु ||७|| आहारादी काले कालण्णू होति उवणयंतो उ । सुत्तत्थं गिण्हंतो कुण अंजलि पंजलिकडो तु ।।८।। संविग्गो दव्वें मिगो भावे मूलुत्तरेसु तु जयंतो। मद्दविओ जोऽमाणी अमुयी विसमत्तणेऽवि जो ण मुए।९|| आगारइंगितेहिं णातुं हियइच्छितं उवविहेति । गुरुवयणं चऽणुलोभे एसो अणुवत्तओ णामं ।।१२५०।। जाणति तु जो विसेसं हिताहितादीण सो विसेसण्णू । णवि होति णिव्विसेसो समचंदणलेटुचिक्खल्लो ॥१॥ उज्जुत्तो उ अणलसो अप्परितंतो तु थूलभद्द इव । सुत्तत्थ णिज्जराओ मोक्खो वा इच्छियत्थो तू ।।२।। पुच्छणकप्पो अहुणा जातिं पुच्छिज्ज संकियादिं तु । ताति भण्णति इणमो अहक्कम आणुपुव्वीए॥३॥ पदमक्खरमुद्देसं संधी सुत्तत्थ तदुभयं चेव । घोस णिकाइत ईहित सुविमग्गित हेतुसब्भावं ॥८४||४|| पदमादी जा घोसो वुत्तत्था होति एते सव्वेवि । हिययम्मि णिकाएउ पुच्छति तु णिकाइयं एयं ॥५॥ पुव्वावरेण ईहित एय मए होतिण व होति ? | हेतूहि कारणेहि त सुविमग्गिय एव तु मएत्ति ॥६॥ सब्भावो अत्थो खलु संदिद्धाई तु पुच्छते ताई। एयाई चिय कमसो परियट्टे चेव अणुपेहे ।।७।। अहुणा तु अहियव्वं केरिसयाणं समीवे समणेणं । आयरिउवझायाणं तमहं वुच्छं समासेणं ।।८।। उग्गमउप्पायणएसणाएँ णिरवेक्खो णीयपडिसेवी । सुत्ते अदिठ्ठसारो आयरिओ ण कप्पति सो उ॥९|| उग्मउप्पायणएसणाइ साविक्खो णितियपरिवज्जी । सुत्तम्मि दिठ्ठसारो आयरिओ कप्पई सो उ॥८५||१२६०।। सुत्तस्स सारो अत्थो सो दिठ्ठो होति जेण बुद्धीए । सोहोति दिठ्ठसारो आयरिओ तू मुणेयव्वो॥ल०८८||१|| एमेव उवज्झाओ गुणेहि + जुत्तो तु होति णायव्वो। एतेसिंतु सकासे सुत्तत्था होति घेतव्वा ।।२|| आयरियउवज्झाया णाणुण्णाया जिणेहिं सिप्पठ्ठा । णाणे चरणे जोयावगत्ति तोते अणुण्णाता ||३|| एसो दु णाणकप्पो जहक्कम वण्णितो समासेणं । एत्तो चरित्तकप्पं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ||४|| जम्हा चरिज्जते तू चरियं वा तेण तो चरित्तं तु । त पुण अप्पडिसेवे सुद्धमसुद्धं तु पडिसेवे ।।५।। पडिसेवणा तु दुविहा कप्पे दप्पे य होति णायव्वा । एतेसिं तु विभासा जह भणिय णिसीहणामम्मि ।।६।। एसो चरित्तकप्पो छव्विहकप्पो,य एस अक्खाओ। सत्तविहकप्पमेत्तो वोच्छामि अहक्कमेणं तु॥७। ठितमट्टितजिणथेरे लिंगे उवही तहेव संभोगे। एसो तु सत्तकप्पो णेयव्वो आणुपुव्वीए ॥८६॥८॥ ठियमकृितकप्पाणं होति विसेसो इमो मुणेयव्यो । पुरपच्छिमाण व ठिओ अठिओ पुण मज्झिमजिणाणं ||९|| कतिठाणेहिं ठितो खलु ठितकप्पो होति तू मुणेयव्वो ?। कइहि व अद्वितकप्पो ? ठिताठितो होति बोद्धव्वो ? ||१२७०|| दसठाणठितो कप्पो पुरिमस्स य जिणस्स । कतरे दस ठाणा तू ? भण्णति आचेलगाइ ई इमे ||१|| आचेल (लु) कोदेसिय सेज्जातररायपिंडकितिकम्मे । जेठ्ठपडिक्कमणे मासं पज्जोसणाकप्पे ॥८७||२।। एतेहिं दसहिं ठितो ठितकप्पो होति तू मुणेयव्वो। चउहिं ठितो छहिं अठितो अकृितकप्पोपुण इमेहिं॥३॥ सिज्जातरपिड या कितिकम्मे चेव चाउजामे य । राइणियपुरिसजेठो चउसुविएतेसुहोति ठितो॥४॥ आचेलुक्कद्देसिय म णिवपिडे चेव तह पडिक्कमणे । मासं पज्जोसवणा छप्पतेऽणवठ्ठिता कप्पा ॥५॥ दुविहो होति अचेलो संताचेलो यऽसंतचेलो य । तित्थकरऽसंतचेला असंतचेला भवे G乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听玩听听听听听听乐听听听听听2C 055555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा-१४९५55555555555555555555555555OOR Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOXOY! (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसूत्तं [३४] सेसा ||६|| दुविहो होइ अचेलो पडिमाचेलो तहा परिज्जुण्णो । पडिमाचेलो दुविहो सावेक्खो चेव णिरवेक्खो || ७|| णिगणो अचोलपट्टो णिरवेक्खो सो भवे अचेलो उ । णिगणो सचोलपट्टो सावेक्खो सो पुण अचेलो ||८|| णिगिणो णिव्वसणो अवसणो अचेलो य अकडिपट्टो य । पडिमाचेलस्सेए नामा एगगठिया होति ||९|| उग्गमउप्पायणएसणाए जदि हुति अपरिसुद्धाई । मोल्लगख्याणि ताणि तु अपरिज्जुण्णाई चेलाई || १२८० ॥ उग्गमउप्पायणएसणाए जदि हुंति सुपरिसुद्धाई | मोल्ललहुयाणि ताणि तु परिजुण्णाइ तु चेलाई ||१|| एत्तो सावज्जाई चेलाई संजमोवघातीणि । वज्जित्ता विहरंतो होइ अचेलो अपरिजुण्णो ||२|| णिग्गहितराग दोस अणवज्जेहिं अहापरित्तेहिं । अप्पेहिवि विहरंतो होति अर्चेलो उ परिजुण्णो ||३|| णिरूवहतलिंगभेदे गुरूगा कप्पइ य कारणजाते । गेलण्णरोगलोए सरिरविवेगे य कितिकम्मे ॥४॥ असिवे ओमोदरिए रायद्दुठ्ठे पवादिदुठ्ठे वा । आगाढे अण्णलिंगं कालक्खेवो व गमणं वा ॥ ५ ॥ सालीगतगुलगोरस णवेसु वल्लफलेसु जातेसु । दाण करणसट्ठा आहाकम्मे णिमंतणता ||६|| आहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे य। तं पुण आहाकम्मं णायव्वं कप्पती कस्स ? ॥७॥ संघस्स पुरिमपच्छिमसमणाणं तह य चेव समणीणं । चउरो उवासगाणं पच्छा सण्णायगागमणं ॥ ८॥ संघस्स मज्झिमे पच्छिमे य समणाण तह य समणीणं । चउरो पडिस्सताणं पच्छा सण्णायगागमणं ||९|| उज्जुयजड्डा सव्वे पुरिम चरिमा य वक्कजड्डा उ । तम्हा तेसिं संरक्खणठ्ठ सव्वं पडिकुट्ठ || १२९० ॥ अवगतजड्डा मज्झिमसाहू तह चेव तं परिणमंति । कप्पाकप्पं दंसिय तेसिं बज्झं च पडिकुट्टं ||१|| पुरिमाण दुव्विसोज्झो चरिमाणं (मो पुण) दुरणुपालओ कप्पो । मज्झो विसुद्धचरणो एवं कप्पोऽणुगंतव्वो ||२|| आयरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणम्मि भयणा तु । तिक्खूत्तो अडविपवेस चउपरियट्टे तओ गहणं ||३|| असिवे ओमोदरिए रायद्दुट्ठे पवादिदुट्ठे वा । अद्धाणे गेलणे कम्मं तु जयणा ||४|| ज़दि सव्वे गीयत्था ताहे आलोयणोग्गहे भणिता । अह होति मीसगजणो पायच्छित्तं तवोकम्मं ॥ ५॥ चतुरो चउत्थभत्ते आयामेगासणे य पुरिमड्ढे । णिव्विइयं दायव्वं सतं च पुव्वोग्गहं कुज्ना || ६ || संघस्सोहविभागो समणासमणी च कुलगणस्सेव । कडमिह ठिते ण कप्पइ अट्ठितकप्पे जमुद्दिस्स ॥७॥ आरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा तु । अडविपवेसे असती तियपरियट्टे ततो गहणं ||८|| तित्थगरपडिकुट्ठो आणा अन्नायउग्गमोऽविय न सुज्झे अविमुत्ति अलाघवता दुल्लभसेज्जा विउच्छेदो ||९|| दुविहे गेलण्णम्मी णिमंतणे दव्वदुल्लभे असिवे । अवमोदरिय पदोसे भए य गहणं अणुण्णायं ||१३००|| तिक्खुत्तो य सखित्ते चउद्दिसिं जोयणम्मि कडजोगी । दव्वस्स य दुल्लभता सागारियसेवणा दव्वे ||१|| मुदिते मुद्धभिसित्ते मुदितो जोहोति जोणिसिद्धो तु । अभिसित्तो य परेहिं सयं व भरहो जहा राया ||२|| ईसरतलवरमांडबिएहिं सट्ठहिं सत्थवाहेहिं । णितेहिं अतिंतेहिं य वाघातो होति साधुस्स || ३ || लोभे एसणघाते का तेणे चरित्तभेदेय | इच्छंतमणिच्छंते चाउम्मासा भवे गुरूगा ||४|| अण्णेवि हुंति दोसा आइण्णे गुम्म रयण इत्थीए । तण्णिस्साऍ पवेसो तिरिक्खमणुया भवे दुठ्ठा ||५|| दुविहे गेलण्णम्मिवि णिमंतणा दव्व दुल्लभे असिवे । ओमोदरिय पओसे भए य गहणं अणुण्णायं || ६ || पढमं अब्भुट्ठाणं कितिकम्मं अज्जसेवियमुदारं । कस्स व वावि काहे व कखुत्तो ? ||७|| विणओ सासणे मुलं० ( आव० १२२८) ||८|| जम्हा विणयति कम्मं० (आव० १२२९) || ९ || पुव्वामेव य विणओ० (?) गाहा १३१० || आयार विणय कप्प गुणदीवणा अत्तसोही उजुभावो । अज्जव मद्दव लाघव तट्ठी पल्हाकरणं य || १ || लहुओ गुरूओ मासो लगा गुरूगा भवे चउम्मासा | खुड्डग भिक्खू वस आयरिए अदुव विवरीयं ॥२॥ जदिखुत्तो जदिवेलं णिक्खमए णिक्खमित्तु वा एति । तदिखुत्तो तंवेलं सव्वे गुरूणो समुठ्ठति ॥३॥ वसहीय भिन्नमासो काइयभूमीय मासियं लहुयं । चत्तारि य सुक्किलया ओगाहंतस्स बहियाए ||४|| भिक्खू वसभायरिया अज्जा ओवासगा य इत्थीओ । वादी या संघ या संघो उभयओवि (संथारओ य संघाड विभय लहु) ||५|| लहुओ गुरूओ मासो लहुगा गुरूगा भवे चतुम्मासा । छम्मासा लहुगुरूगा छेदो मूलं तह दुगं च ||६|| वंदण चिति कितिकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च । कायव्वं कस्स व केण वावि का व कतिखुत्तो ? ||७|| कतिओणयं० (आव० १११५) ॥८॥ सेढीसमतीताणं कितिकम्मं जे य होंति सेढिगता । सेढीयबाहिराणं कितिकम्मं होति भइयव्वं ॥ ९॥ आयरियउवज्झाए पवित्ति पत्तेयबुद्ध पव्वधरे । केवलणाणधरम्मि HOTOS 55 श्री आगमगुणमंजूषा १४१६ SOTOX Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO步步步步五步步步步步步步步 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [३५] 555555555555555xorg CTIO乐乐乐乐乐乐乐乐乐中乐乐乐乐乐乐场乐乐乐乐乐乐乐$$$$$乐乐听听听听听听听听听听乐明明乐乐 यकायव्वं णिज्जरट्ठाए॥१३२०|| सेढीठाणे सीमाकज्जे चत्तारि बाहिरा होति । सेढीट्ठाणे दुगभेद पाय चत्तारिवी भइया॥१॥ पत्तेयबुद्ध जिणकप्पिया य सुद्धपरिहारिया अहालंदा । एते चतुरो दुग दुग भेया कज्जेसु बाहिरगा ॥२॥ अंतोवि होति भयणा ओमे आवण्ण संजती सेहे। बाहिपि होति भयणा अतिवा (बा) लग वायए सीसो ||३|| हेट्ठट्ठाणठितोऽवि हु पावयणि गणट्ठिताए अवरम्मि । कडजोगि सण्णिसेवति आदिणियंठोव सो पुज्जो॥४॥ संकिण्णवराहपदे अणाणुतावी य होति अवराहे । उत्तरगुणपडिसेवी आलंबणवजिओ वज्जो ||५|| गच्छपरिरक्खणट्ठा अणागतं आउवायकुसलस्स । एसा गणाहिपतिणो सुहसीलगवेसणा भणिता ॥६॥ दुविहे कितिकम्मम्मी वाउलिया मो णिसट्टबुद्धीया । आदिपडिसेधियम्मी उवरिं आलोवणा बहुला ॥७|| मुक्कधुराए (सं)० (आव० ११३८)||८|| वायाए णमुक्कारो० (आव० ११३९)||९|| एतातिं अकुव्वंतो० (आव० ११४०)॥१३३०।। परियाव महादुक्खे मुच्छामुच्छे य किच्छपाणे य । किच्छुस्सासे य तहा समोहते चेव कालगते ॥१॥ चत्तारि छच्च लहु गुरू छेदो मूलं च होति बोद्धव्वं । अणवंट्टप्पे य तहा पावति पारंचियठ्ठाणं ।।२।। परियाग परिस पुरिसं खेत्तं कालागमं च णाउणं । कारणजाए जाए किइकम्मं होइ कायव्वं ।।३।। दंसणनाणचरित्तं तवविणयं जत्थ जित्तियं जाणे । जिणपन्नत्तं भत्तीएँ पूयए तं तहा पायं ॥४॥ सावज्जजोगविरइत्ति संजमो तेण होइ एगविहो । रागहोसनिरोहोत्ति तेण दुविहो मुणेयव्वो।।५।। मरवयणकाय जोगाण णिरोहो तेण होति तिविहो तु । कोहमयमायलोभुवरतोत्ति चउहा स णेयव्वो ||६|| पंच वय इंदियारि य पंचह सराई विरति छक्काया । वतकायअकप्पकप्पादी अट्ठरसहा मुणेयव्वो ||७|| जोगे करणे सण्णा इंदिय भोमादि समणधम्मे य। अठ्ठारससीलंगसहस्स संजमो होइ णातव्वो ल० ८९||८|| कितिकम्मपि य दुविहं अब्भुठ्ठाणं तहेव वंदणयं । समणेहिं य समणीहि य जहक्कम होति कायव्वं ||९|| सव्वाहिं संजतीहिं कितिकम्मं संजताण कायव्वं । पुरूसुत्तरिओ धम्मो सव्वजिणाणंपि तित्थम्मि ल०९०||१३४०||पंचज्जामो य धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं चातुज्जामो भवे धम्मो॥१|| पुरिमाण दुव्विसोझो चरिमाणं दुरणुपालओ कप्पो । मज्झिमगाण जिणाणं सुविसोज्झो सुरणुपालो य॥२॥ पुव्वं तु उवठ्ठविओ जस्स व सामाइतं कतं पुव्वं । सो होती जेठो खलु जो पच्छा सो कणिठ्ठो तु ||३|| पुव्वोवठ्ठो जेठो होइत्ती इत्थ होति पुच्छा उ। उवठावणा तु कतिहि ठाणेहिं ? इमा भवे दसहा ।।ल०९१||४|| ततो पारंचिता वुत्ता, अणवठ्ठप्पा तु तिण्णि तु । दसणम्मि य वंतम्मि, चरित्तम्मि य केवलेल०९२||५|| अदुवा चियत्तकिच्चे, जीवकायं समारभे। सेहे य दसमे वुत्ते, जस्सुवठ्ठावणा भणिता |ल०९३||६|| अहवा पारंचेक्को अणवठ्ठप्पो य होति एक्को य । दसणवंतो ततिओ चरित्ते य चतुत्थओ।ल०९४||७|| पंचमो चियत्तकिच्चो सेहोछछोय होति बोद्धव्वो। एसोय छव्विहो खलु चउव्विहो वा इमो अण्णो॥ल०९५||८|| दसणम्मि य वंतम्मि, चरित्तम्मि य केवले । चियत्तकिच्चे सेहे य उवठ्ठप्पा तु आहिया ॥९|| दसणचरित्तवंते पारंचऽणवट्ठओवि पविसंति। ते जेण भवंती उ एवंएसा भवे चउरो॥१३५०।। ॐ दंसणवंते य तहा जीवणिकाया य जो समारभए । उठ्ठावणाएँ भयणा एतेसिं होति दोण्हपि ॥१॥ अणाभोएण मिच्छत्तं, सम्मत्तं पुणरागते । तमेव तस्स पच्छित्तं, जं सम्म (संजमं) पडिवज्जए ||२|| आभोगेण उ मिच्छत्तं, संमत्तं पुणरागते । जिणथेराण आणाए, मूलच्छेज्जं तू कारए ॥३॥ छण्हं जीवणिकायाणं, अप्पज्झो तु विराहतो। तिविहेण पडिक्कंते, मूलच्छेज्जं तुकारए॥४॥ छण्हं जीवणिकायाणं अणपज्झो तु विराहतो। आलोइयपडिक्कंतो, सुद्धो हवति संजतो॥५|| जीवणिकायारंभे दसणवंते य भणिय पच्छित्तं । तं देय सुत्तविहिणा अण्णह देते इमे दोसा ।।६।। अपच्छित्ते य पच्छित्ते. पच्छित्ते अतिमत्तया। धम्मस्सासायणा तिव्वा, मग्गस्स य विराहणां ॥७|| उस्सुत्तं ववहरंतो, कम्मं बंधंति चिक्कणं । संसारं च पवड्तुति. मोहणिज्जं च कुव्वति ।।८।। उम्मग्गदेसणाए, मग्गं विप्पडिवायए। परं मोहेण रंजंतो, महामोहं पकुव्वति ॥९॥ सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ।।१३६०॥ दुविहो य मासकप्पो जिणकप्पो चेव थविरकप्पो य । एक्केक्कोऽविय दुविहो अकृितकप्पो य ठियकप्पो ॥१॥ पज्जोसवणाकप्पो होति ठितो अट्ठिओ य थेराणं । एमेव जिणाणंपी कप्पो ठितमट्टितो होति ।।२।। चातुम्मासुक्कोसो सत्तरि राइंतिया जहण्णेणं । ठितमट्ठितमेगतरे काररवच्चा (न्ना) सितऽण्णतरे॥३॥ ठियमद्वितोय कप्पो एसो मे (भे) वण्णिओ समासेणं । अह एत्तो जिणकप्पं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ॥४॥ गच्छम्मि य णिम्माया थेरा जे मुणितसव्वपरमत्था । अग्गह अभिग्गहे या उवेति जिणकप्पियविहारं ल In Education internation- --.-.- rururur cucuur श्री आगमगणमंजषा - १४९७5555555555555555555555555556XOK 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明听听听听听听听乐 FootoutebecapaliPOnly www.lainelibrary Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GO (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [३६] ॥८८॥५॥ णवपुव्विं जहन्नेणं उक्कोसेंणं तु दस असंपुण्णा । चोद्दसपुव्वी तित्थं तेण तु जिणकप्प ण पवज्जे ||६|| वयरोसभसंघयणा सुत्तस्सऽत्यो तु होति परमत्थो । संसारभावो वा णाओ तो मुणितपरमत्थो ||७|| दोहऽग्गह ततियादी पडिमाऽभिग्गहण भत्तपाणस्स । दोहिं तु उवरिमाहिं गिण्हंते वत्थपाताई ॥८॥ दव्वादभिग्गहा पुण रयणावलिमादिगा व बोद्धव्वा । एतेसु विदितभावा उवेति जिणकप्पियविहारं ||१९|| परिणाम जोगसोही उवहिविवेगो य गणविवेगो य (यणिक्खेवो)। सेज्जासंथारविसोहणं च विगतीविवेगं च ॥८९॥१३७० ॥ गणहरठवणं च तहा अणुसट्ठी चेव तह य सीसाणं । सामायारी य तहा वत्तव्वा होति जिणकप्पे ||१०||१|| अणुपालिओ य दीहो परियाओ वायरावि मे दिन्ना । अब्भुज्जयाण दोण्हं उवेमि कतरं णु ? परिणामो ॥२॥ सोहिणिमित्तं जोगाण भावणा सा इमा तु पंचविहा। व सुतेगत्ते बले य तह पंचमा होति ॥ ३ ॥ एतेसिं तु विभासा उवरिं भण्णिहिति मासकप्पम्मि। सेसाइं दाराइं वोच्छामि समासतो इणमो ||४|| पुव्वुवहिस्स विवेगं क गेण्हति अहागडं उवहिं । अभिगहियमेसणाहिं उप्पादेउं सयं चेव ||५|| गणसण्णास करेती जो जहिं ठारट्ठितो तु पुव्वम्मि । तं तत्थेव ठवेती गणणिक्खेवं च इत्तरियं ॥६॥ सेज्नाएँ अपरिभुत्ते ठायति तहियं तु एगदेसम्मि। संथारं उप्पादे अहाकडं एसणविसुद्धं ||७|| विगतीओ य ण गेण्हति गेण्हति भत्तं च सो अलेवार्ड । इय भाविओ हे ताहे ठवती गणहरं तु ॥ ८॥ गणहर गुणसंपन्नं वामे पासम्मि ठावइत्ताण। चुन्नाति छुहति सीसे सच्चित्तादी य अणुजाणे ||९|| ठावेऊण गणहरं आमंतऊण तो गणं सव्वं । तिविहेण खमावेती सबालवुड उलं गच्छं || १३८०|| संवेगजणियहास सुत्तत्थविसारता पयणुकम्मा । चिंतेति गणं धीरा णितावि हुं ते जिणाणा ॥ १ ॥ णिद्धमहुराति सेसं परलोगहितं गुरूण अणुरुवं । अणुसद्धिं देति तहिं गणाहिवतिणो गणस्सेवं ||२|| तवणियमसंपउत्ता आवस्सगझाणजोगमल्लीणा । संजोगविप्पजोगे अभिग्गहा जे समत्थाणं ||३|| सुप्पत्ते णिसिंरंतेहिं गणोवी चितिओ हवति सो उ । णिद्धाए दिठ्ठिए आलोए तं गणं सव्वं ||४|| बायाए महुराए आसासे अपरिसेस णिस्सेसं । गुरू अणुरूव जंहरिहं सबालवुड्डाति रातिणिए ||५|| तवो होति बारसविहो दुह णियमो इंदिओ य णोइंदी | आवाससमायारी बोद्धव्वा चक्कवाला तु ॥६॥ सुत्तत्थझाणजोगे अल्लीणा तेसु होइ जुत्ता उ । सव्वेविय संजोगा णियमा ऊ विप्पओंगंता ||७|| तह उवहीउप्पायण दव्वादीया अभिग्गहा जे तु । सति सामत्थे सुवि मा हु पमायं करेज्जाऽणु ||८|| अथवा अभिग्गहा ऊ कुव्वंति जिणा य जे समत्था य । एवं सासित्तु गणं ताहे गणहारि अप्पाहे ||९|| गणसंगहुवग्गहरक्खणे तुमं मा हु काहिसि पमादं । ठितकप्पोहु जिणाणं गणधरपरिवारिया गच्छे ||१३९०|| मज्जाररसियसरिसोवमं तुमं मा हु काहिसि विहारं । मा णासेहिसि दोण्णिवि अप्पाणं चेव गच्छं च ॥१॥ वहू॑तओ विहारो जिणपण्णत्तो दुवालसंगम्मि । जह जिणकप्पियपरिहारियाण सेसाणवि तहेव || २ || परिबढमाणसड्डो जह जिणकप्पो तहा करिज्जासी । अकरिंतमप्पणा ऊ ण ठवे अण्णं इमं णाऊं ||३|| जो सगिहं तु पलित्तं अलसो तु ण विज्झवे पमाएणं । सो णवि सद्दहियव्वो परघरदाहप्पसमणम्मि ||४|| णाणं अहिज्जिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता । ण चएति जो धरेतुं अप्पाण गणं ण गणहारी ||५|| णाणं अहिज्जिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता । चाएति जो ध अप्पा गणं सगणहारी ||६|| णाणं अभिज्झिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता । न चएति जो ठवेउं अप्पाण गणं न गणहारी ||७|| णाणं अभिज्झिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता । चाएति जो ठवेउं अप्पाण गणं सो गणहारी ||८|| णाणम्मि दंसणम्मि य तवेचरित्ते य समणसारम्मि। ण चएइ जो ठवेउं अप्पाण गणं न गणहारी ||९|| णाणम्मिदंसणम्मि य तवे चरित्ते य समणसारम्मि । चाएति जो ठवेउ अप्पाण गणं स गणहारी || १४०० || एसा गणहरमेरा आयारत्थाण वण्णिता सुत्ते । लोगसुहाणुगताणं अप्पच्छंदा जहिच्छाए ॥१॥ लाहसुयसद्दनिद्दादि विसय तेसिं तु जे भवे रत्ता। अप्पच्छंदा तेऊ विहारो ण तु तेसऽणुण्णाओ ||२|| उग्गमउप्पायणएसणा उ चरितस्स रक्खणठ्ठांए। पिंडं उवहिं सेज्जं सोहिंतो होति सचरित्ती ॥३॥ सीतावेति विहारं सुहसीलत्तेण जो अबुद्धीओ । सो नवरि लिंगसारो संजमसारम्मि णिस्सारो ||४|| तित्थगरो चतुणाणा सुरमहितो सिज्झियव्वयधुवम्मि । अणिगूहियबलविरिओ तवोवहाणम्मि उज्जमति ||५|| किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं । होति ण उज्जमियव्वं सपच्चवायम्मि माणुस्से ? || ६ || संखित्ताविव पवहे जह वडति वित्थरेण पवहंती । उदधितेणं च णदी तह सीलगुणेहिं वाहिं ||७|| OK श्री आगमगुणमंजूषा १४९८० Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [३७] कुणमप्पमाय आयवस्सएहिं संजमतवोवहाणेहिं । णिस्सारं माणुस्सं दुल्लभलाभं वियाणित्ता ||ल० ९६ ||८|| तिव्वकसायपरिणता परपरिवादं च मा करेनाह । अच्चासायणविरता होह सदा संजमरता य || ल० ९७|| ९ || सुस्सूसगा गुरूणं चेइयभत्ता य विणयजुत्ता य । सज्झाए आउत्ता साहूण य वच्छला णिच्चं ||ल० ९८||१४१०|| एस अखंडियसीलो बहुस्सुतो य अपरोवतावी य । चरणगुणसुठ्ठियत्ति य धण्णा (ण्ण) णयरीते (ति) घोसणगं || १ || बाढंति भाणिऊणं एवं मे मंगलंति जंपंता । आणंदअंसुपादं मुच्छंति गुणे सरता से ॥ २॥ कतरे गुणा उ तस्स जे सुमरंता तु तस्स ते सीसा ? । भण्णति इणमो सुणसु ते भण्णंते समासेणं ||३|| सव्वस्सदायगाणं समसुहदुक्खाण णिप्पकंपाणं। दुक्खं खु विसहिउं जे चिरप्पवासो गुरूणं च || ल० ९९|| ४ || सीलड्डुगुणड्डूहि य बहुस्सुएहि य अपरोवतावीहिं । पवंसंतेहिं मएहिं देसाते खंडिया होति ||ल० १०००||५|| अणुसट्ठि दाऊणं तहिं पसत्यम्मि तिहिमुहुत्तम्मि । अह सण्णिहितं संघं असति गणं तं समाहूय ||६|| जिणवरपादसमीवे पडिवज्जे गणधराण व समीवे । चोद्दसपुब्वी तह चेइए य असतीय वडमादी ||७|| थामाव (वासावि) हारविजढा काउं गहणं च गाएणं चेव । सुत्तत्थझरियसारा गेण्हंति अभिग्गहे धीरा ॥ ८॥ जिणकप्पियपाउग्गा अभिग्गहा गिण्हती पण अन्ना उ । जिणकप्पो केरिसस्सा कप्पति पडिवज्जिउं ? सुणसु ॥ ९ ॥ कप्पे सुत्तत्थविसारयस्स संघयणविरियजुत्तस्स । एतारिसस्स कप्पति पडिवज्जिउ होति जिणकप्पो || १४२०|| जिणकप्पे संघयणं भणितं पढमं तु होति णियमेण । विरियं तु भण्णति धिती तीऍ जुतो वज्जकुड्डसमो ॥१॥ कोति पुण ण पडिवज्जे सो पुण रियमाउ कारणेहिं तु । काणि पुण कारणाणि य ? इमाई ताई णिसामेह ||२|| देहस्स दुब्बलत्तं आयरियाणं च दुल्लभपसादा। रोग पडिबंध न सहति सीउण्हादी य पडिभागी || ११||३|| सुत्तत्थाणिवि घेत्तू दुब्बलदेहो तु तं ण चाएति । गुरूणंच अणुकूलत्तणणाराहिओ सूरी ||४|| आयरिया अपसण्णा सुत्तपसायं तु ते ण कुव्वंति। णाहीतं तेण सुतं जावइएणं तु पज्जतो ||५|| सोलसविहरोगाणं अंहवा गाढं अभिद्दुएणं तु। णाधीतं होज्ज सुतं ते य इमे वण्णिता रोगा ॥६॥ कासे सासे जरे दाहे, जोणीसूले भगंदले । अरिसा अजीरए दीट्ठी, मुद्रसूले अकारए ||७|| अच्छ तह कण्णवेयणा कंडु कोढ दगऊरं (सरए)। एते ते सोलसवी समासतो वण्णिता रोगा ||८|| अण्णो पडिबंधेणं गुरुकुलवासं ण चेव आवसई । तेणं णाहिज्जति ऊ के पुण पडिबंधिमे सुणसु ॥९॥ सो गामो सा वइया तं भत्तं भद्दओ जणो जत्थ । एताइं संभरंतो गुरुकूलवासं ण रोएती ॥ १४३०|| सक्कारो संमाणो पुज्जइ मे भोईओ हिं गामे। आयरिओ महतरओ एरिसता से (मे) तहिं सड्डा ॥१॥ सच्छंद्वाणणिवज्जणस्स सच्छंदरहितभिक्खस्स । सच्छंदजंपियस्स य मा मे सत्तूवि एगागी |ल० १०१||२|| एएहि ऊ अभागी सीताईणं ण देति उ उरं तु । तो णाहिज्जति सो ऊ गुरुकुलवासं असेवंतो ॥३॥ एतेहिं ण पडिवज्जे अणुसट्ठी दारिघं परिसमत्तं । का पुण सामायारी जिणयप्पे होतिमा सा तु ||४|| खेत्ते काल चरित्ते तित्थे परियाग आगमे वेदे । कप्पे लिंगे लेस्सा गणणा जाणे यऽभिग्गाहे ||५|| पव्वावण मुंडावण मणसाssवण्णेऽवि से अणुग्घाता। कारण णिप्पडिकम्मे भत्तं पंथो य ततियाए ||६|| एसो जिणकप्पो खलु समासतो वण्णितो सविभवेणं । एत्तो उ थेरकप्पं समासओ साहि ||७|| तिविहम्मि संजमम्मि उ बोद्धव्वो होति थेरकप्पो तु। सामइयछेदपरिहारिए य तिविहम्मि एयम्मि ॥ ८॥ ठिय अट्ठिए व कप्पे सामाइयसंजमो (ओ) मुणेयव्वो । छेदपरिहारिया पुण णियमाओ होति ठितकप्पे ||९|| एतेसु थेरकप्पो जह जिणकप्पीण अग्गहो दोसु । गहणं चऽभिग्गहाणं पंचहिं दोहिं च ण तह इहं ॥१४४०॥ बाले वुड्ढे सेहे अगीतत्थे णाणदंसणप्पेही । दुब्बलसंघयणम्मि य गच्छं पइ णेसणा भणिता ||१|| जहसंभवं तु सेसा खेत्तादि विभासियव्व दारा उ । उवरिं तु मासको वित्थतो विभासते तेसिं ॥ २ ॥ इति एस थेरकप्पो एत्तो वोच्छामि लिंगकप्पं तु । तहिय तु लिंगकप्पो इणमो जिणकप्पे भवती तु ॥ ३ ॥ रूढनहकक्खण (णि) यणो मुंडो दुविहोवही जहण्णोसिं। एसो तु लिंगकप्पो णिव्वाघातेण णायव्वो ||४|| रयहरणं मुहपोत्ती संखेवेणं त दुविह उवहि उ। वाघातो विकिलिंगे पमेहे उ कडिपट्टो ||५|| दुविहा अतिसेसाविय तेसि इमे वण्णिता समासेणं । बाहिरऽब्भंतरगा तेसि विसेसं पवक्खामि ||६|| वाहिरगो सरीरस्सा अतिसेसो तेसिमो उ बोद्धव्वो । अच्छिद्दपाणिपातो वइरोसभसंघयणधारी ||७|| अब्भंतरमतिसेसो इमो उ तेसिं समासतो भणिओ । उयहीविव अक्खोभो सूरो इव तेयसा जुत्तो ॥ ८॥ 69 Toon श्री आगमगुणमंजूषा - ROYOR Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NO 5 5 5 5 5 5 555555555 (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [३८] अव्वावण्णसरीरो वइगंधो ण भवते सरीरस्स । खतमवि ण कुच्छ (कच्छु) तेसिं परिकम्मं णवि य कुव्वंति || ९ || पाणिपडिग्गहधारी एरिसया नियमसो मुणेयव्वा । अतिसेसे वच्छामि अण्णेऽवि समासतो तेसिं ॥ १४५० || दुविह अतिसेस तेसिं णाणातिसयो तहेव सारीरो । णाणातिसतो ओही मणपज्जव तदुभयं चेव ||१|| अभिणिबोहियणाणं सुतणाणं चेव णारमतिसेसो । तिवली अभिण्णवच्चा एसो सारीरमइसेसो ||२|| रयहरणं मुहपोत्ती जहणोवहि पाणिपत्तयस्सेसो । उक्कोस तिन्नि कप्पा रयहर मुहपोत्ति पणगेतं ||३|| णवहा पडिग्गहीणं जहण्णमुक्कोस होति बारसहा । तेसिंडवेयाणिं चिय अइरेगा पायनिज्जोगो ||४|| उव्वट्टणघंसणमज्जणा य नणदंतसोभा य । एते उवघाया खलु हवंति जिणकप्पलिंगस्स ||५|| उवट्टणाइयाइं उवगरणं चेव थेरकप्पीणं । भइयव्वो लिंगकप्पो गेलन्नाईहिं कज्जेहिं ||६|| कज्जम्मि गिलाणाइसु उव्वट्टणमाइया अणुन्नाया। दुगुणो चउग्गुणो वा कारणओ होइ उवही उ || ल० १०२ ॥ ७॥ रुढणहकक्खणि (ण) यणो मुंडो विव समासेणं । एसो तु लिंगकप्पो कारणवच्चासि तऽण्णयरो ||८|| लोय खुर कत्तरीय मुंडं तिविहं तु होइ थेराणं । असिवादिकारणेहिं कुज्न विवज्जास लिंगस्स ||९|| निरूवयलिंगभेदे गुरुगा कप्पइ य कारणज्जाते । गेलन्नरोगलोए सरीरवेयावडियमादी || १४६० || वासत्ताणेणावि हु भेदो लिंगस्स तं अणुण्णातं । चाउम्मासुक्कोसं सत्तरि रासंदिय जहन्नं ॥ १ ॥ एयं तु दव्वलिंगं भावे समणत्तणं तु णायव्वं । को उ गुरो दव्वलिंगे ? भण्णति इणमो सुणसु वोच्छं ||२|| सक्कार वंदण णमंस पूजा कहणा य लिंगकप्पम्मि । पत्तेयबुद्धमादी लिंगे छउमत्थ तो गहणं ॥९२॥३॥ वत्थासण सक्कारो वंदण अब्भुट्ठणं तु णायव्वं । पणिवादो तु णमंसण संतगुणकित्तणा पूया ||४|| दणदव्वलिंगं कुव्वतेताणि इंदमादिवि । लिंगमि अविज्यंते णो णज्जति एस विरतोत्ति ||ल० १०३ || ५ || सहितो समणलिंगेणं, धम्मन्नू संम (ज) तो भवे। अलिंग तं की, तो करे तुमं ? || ६ || पत्तेयबुद्धो जाव उ गिहिलिंगी अहव अण्णलिंगी उ । देवावि ताण पूर्योजि मा पुज्जं होहिति कुलिंगं ॥ ७॥ ण य णं पुच्छति कोती केरिसओ होइ तुब्भ धम्मोत्ति ? । ण य सल्लिंगविहूणं छउमत्थो जाणे विरओत्ति ||८|| एसो तु लिंगकप्पो अहुणा वोच्छामि उवहिकप्पं तु । जो जस्स भवे उवही जिणथेराणं जहाकमसो ||९|| ओहे उवग्गहे या दुविहो उवही तु होति णायव्वो । ओहोवही तु तिण्हं ओवग्गहिओ भवे दोण्हं ॥। १४७० ॥ जिणकप्पे थेरकप्पे कप्पाती यतिमोघो तु । थेरारमुवग्गहिओ साहूणं संजतीणं च ॥ १ ॥ बारस चोद्दस पणुवीस णव य एक्को य णिरूवही चेव । जिणथेरअज्जपत्तेयबुद्धतित्थकरतित्थकरे ||२|| पाणीपडिग्गहीता पडिगहधारी य होति जिणकप्पे । थेरा पडिग्गहधरा कप्पादीया उ भजियव्वा ||३|| बियतियचउक्कपणए णव दस एक्कारसेव बारसगं । एते अट्ठ विकप्पा उवहिम्मिवि होति जिणकप्पे ||४|| अहवा दुगं च पणगं उवहिस्स उ होति दोन्निवि विकप्पा । पाणिपडिग्गहियाणं अपाउयसपाउयाणं च ॥५॥ रयहरणं मुहपोत्ती एवं दुयगं अपाउयंगाणं । रयहरणं मुहपोत्ती तिन्नि य पच्छाद इतरेसिं || ६ ||| उग्गहधारीणंपिय दुविहो उवही समासओ होति । णवविह दुवालसविहो अपाउयसमाउयाणं च ||७|| पत्तं पत्ताबंधो पायठ्ठवणंच पायकेसरिया । पडलाई रयत्ताणं च गोच्छओ पायणिज्जोगो ||८|| रयहरणं मुहपोत्ती णवहा एसो अपाउयंगाणं । इयरेसिं एसेव य अतिरेगा तिन्नि पच्छागा ||९|| एते चेव दुवालस मत्तउ अतिरेग चोलपट्यो य । एसो य चोद्दसविहो उवहि खलु थेरकप्पम्मि || १४८०|| अज्जाणं एसेव य चोलत्थाणम्मि णवरि कमढं तु । अतिरेग अंगलग्गा इमे उ अन्ने मुणेयव्वा ॥ १ ॥ उग्गह णंतग पट्टो अड्डोरुग चलणिया य बोद्धव्वा । अभिंतरं वाहिनियंसणी य तह कुंचए चेव ||२|| उक्कच्छिय वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य । ओहोवहिम्मि एते अज्जाणं पण्णवीसं तु || ३|| सत्त य पडिग्गहम्मी रयहरणं चेव होति मुहपोत्ती। एसो तु णवविकप्पो उवही पत्तेयबुद्धारं ||४|| एगो तित्थगराणं णिक्खममाणाण होइ उवही उ । तेण परं णिरूवहि ऊ जावज्जीवाए तित्थगरा ||ल० १०४||५|| जिणा बारसरूवाइं. थेरा चोइसरूविणो । अज्जाणं पण्णवीसं तु, अतो उड्डुं उवग्गहो ॥ ६ ॥ एसो उवहीकप्पो समासओ वन्निओ जहाकमसो। संभोगकप्पमहुणा समासतोमे णिमासेह ||७|| संभोगपरूवणया सिरिघर सिव (त) पाहुडे य संभुत्ते । दंसणनाणचरित्ते तवहेउं उत्तरगुणे ||१३||८|| ओहअभिग्गहाण अणुपालणा य उववाए। संवासम्मि य छट्टो संभोगविही मुणेयव्वो || ९ ||| उवही सुय भत्तपाणे, अंजलीपग्गहे इय। दावणा य निकाए य, अब्भुट्ठाणेत्तियावरे ॐ श्री आगमगुणमजुषा - १५०० Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O $$ $$$$ $ $$ $ $明 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [३९] 55%85%EXISSIrap ॥९४||१४९०॥ किइकम्मस्स य करणे, वेयावच्चकरणे इय । समोसरण सण्णिसेज्जा, कहाए य पबंधणा ॥९५॥१॥ उग्गम उप्पाएसण निवेय परिकम्मणा य परिहरणा। संजोगविहिविभत्ता उवहिम्मिवि होति छट्ठाणा ।।२।। वायण पुच्छण पडिपुच्छ चिंत परियट्टणा य कहणा य । संजोगविहिविभत्ता सुयठाणे होति छट्ठाणा ॥३।। उग्गमउप्पाएसण लोयण संभुजणा णिसिरणा य । संजोगविहिविभत्ता य भत्तदाणे य छट्ठाणा ||४|| वंदिय पणमिव अंजलि गुरूआलोवे अभिग्गहि णिसेज्जा। संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मेवि छट्ठाणा ॥५|| सेज्जोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए। संजोगविहिविभत्ता दावणाएवि छट्ठाणा ॥६।। सेज्जोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए। संजोगविहिविभत्ता निमंतणाएवि छठ्ठाणा |७|| अब्भुट्ठासण अंजलि किंकर अब्भासकरणमविभत्ती। संजोगविहिविभत्ता अब्भुट्ठाणेवि छट्ठाणा ॥८॥ सुत्तायाम सिरो णय मुद्धाणं सुत्तवज्जियं चेव संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे होति छट्ठाणा ||९|| आहारउवहिमत्तग अहिगरणविओसणा य सु (य) सहाए। संजोगविहिविभत्ता वेयावच्चेऽविछट्ठाणा॥१५००॥ वास उडुअहालंदे पुहृत्तसाहारणोग्गहित्तिरिए। वुड्डावासोसरणे छट्ठाणा होति पविभत्ता॥१॥ परियट्टणाऽणुओगे वागरणे परिच्छणा य आ (पुच्छ परिच्छणा) लोए । संजोगविहिविभत्ता सन्निसेज्जाए छट्ठाणा ॥२॥ वादो जप्प वितंडा पइण्णियाऽणिच्छिया कहा होति । संजोगविहिविभत्ता कहापबंधेऽवि छट्ठाणा ।।३।। रागेणं दोसेणं अन्नाणाविरईय मिच्छत्ते । कोमामालोआसवदारेहिँ तु राइछट्टेहिं ।।४।। अविरयस्स बावत्तरिविहो, एसा बावत्तरी दोहिं गुणिया रागदोसेहिं चोयालं सयं अण्णाणातीहिं २१६ कोहादीहिं २८८ आसवदारेहिं ३६० राइभोयणछटेहिं ४३२। 'बारस य चउव्वीसा छत्तीसा अडयालमेव सट्ठी य । बावत्तरी उ एसो संजोगविही मुणेयव्वो॥५|| बारस य चउव्वीसा छत्तीसऽडयालमेव सट्ठी य । बावत्तरी बिगुणिया चोयालसयं तु संजोगा ।।६।। बारस य चउव्वीसा छत्तीसऽडयाल चेव सट्ठी य। बावत्तरी छग्गुणिया चत्तारि सया उबत्तीसा ||७|| जस्सेते संजोगा उवलद्धा अत्थतोय विण्णाया। सो जाणती विसोहिं उवधायं चेव संभोगे ॥८॥ जस्सेते संजोगा उवलद्धा अत्थतो य विन्नाता । णिज्जुहिउं समत्थो णिज्जूढे यावि परिहरिउं ॥९॥ सरिकप्पे सरिछंदे ॥ तुल्लचरित्ते विसिठ्ठतरए वा । आयत्ति भत्तप्पाणं सएण लाभेण वा तुस्से॥१५१०॥ सरिकप्पे सरिच्छंदे तुल्लचरित्ते विसिट्ठतरए वा । साहूहि संथव कुज्ज णाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं॥१॥ ठितकप्पम्मि दसविहे ठवणाकप्पे य दुविहमण्णयरे। उत्तरगुणकप्पम्मि य जो सरिकप्पो स संभोगो॥२॥ सत्तविहकप्प एसो समासओ वण्णिओ सविभवेणं । एत्तो दसविहकप्पं समासओ मे निसामेह ।।३।। कप्प पकप्प विकप्पे संकप्पुवकप्प तह य अणुकप्पे । उक्कप्पे य अकप्पे तहा दुकप्पे सुकप्पे य ।।९६॥४॥ गच्छाओ निग्गयाणं जिणकप्पियमादियाण कप्पो उ । तं च समासेण अहं उल्लिंगेहामि इणमो उ ।।५।। पिंडसेण पाणेसण उग्गह उद्दिठ्ठ भावणा चेव । बारस य भिक्खुपडिमा एवमादी भवे कप्पो ॥९७||६।। पिंडेसण पाणेसण पंचुवरिमया सभिग्गहेगा य । सेसासु य अग्गहणं सेज्जोग्गह उवरिमा दोसु ।।७।। उद्दिछित्ती हेट्ठा जिणकप्पविही उ जो समक्खाओ। खेत्ते कालचरित्ते इच्चाइ तहेव इहइंपि ॥८॥ पुणविस भावणाओ महव्वयाणं तु होति पंचण्हं । बारस अणिच्चयादी तवसुत्तादी य पंचेव ॥९॥ एयाहिं भावणाहिं भावंती ते उनिच्चमप्पाणं । सव्वेऽवि गच्छनिग्गय वेरग्गपरायणा धीरा ॥१५२०॥ बारस भिक्खूपडिमा आदिग्गहणेण लंदिया चेव। तह सुद्धपारिहारी सव्वोऽवेसो भवे कप्पो॥१।। निच्छय निरास निम्मम निरहंकार परमट्ठ दढजोगी। चत्तसरीरकसायो इंदियगामा य निग्गहिया ।।९८॥२॥ जं चण्ण # एवमादी सव्वणयविहाणमागमविसुद्धं कप्पोत्ति नाणदंसणचरित्तगुणमावंह जाणे ।।९९||३|| निच्छयणयट्ठिया उद्विता तु ववहारे । अहवावि णिच्छओ तू णाणादीयं भवे तितयं ।।४।। णासंसइ इहलोयं वावि एस उ निरासो। निम्ममता तु ममत्त ण करेती अविय देहेऽवि ॥५॥ ण करेइ अहंकारं एरिसओ अहंति उत्तमगुणोघो। ईणिव्वाणं परमट्ठो तस्साहणता उ दढजोगी ॥६॥ णिप्पडिकम्मसरीरो चत्तसरीरो उ होइ रायव्यो । णऽवणेतऽच्छिमलादिवि खंतिखमो उज्झियकसातो ||७|| ई सोइंदियमादीसुय विसयपयारेसु सद्दमादीसु । ण उवेइ रागदोसे इंदियगामा य निग्गहिया ।।८।। सव्वणयावी दुविहा नाणे करणे य होति बोद्धव्वा । सव्वणयाणंऽपेयं मतं तुजं (जो) सुट्ठितो चरणे ॥९॥ कप्पो णाम भण्णति जो आवहती उ नाणमादीणि । वुद्धिं वावि करेती सव्वो सो होइ कप्पो उ॥१५३०॥ कप्पो उ एस भणिओ TOC}听听听听听听听听听听$$$$$$$$$$$$研乐乐乐听听听听听听明明明明明明明明明明明明明 Gain Education International 2010_03 1-1-1PTIENCELLANELENNELLENEL: MEN For Eva Personalise Only श्री अग्रणमज्षा- १५०१LLLLLLELE LELFALFALF awww.jainelibrary.00) o o Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ No.95555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [४०] 站 $$$ $ $$230 TOG%听听听听听听听听听听乐乐听听乐乐乐乐乐乐乐乐编乐乐听听国乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明明乐乐乐乐乐 अहुणा एत्तो पकप्प वोच्छामि। उस्सारकप्पमादी जहक्कम आणुपुव्वीए॥१|| उस्सारकप्प लोगाणुओग पढमाणुओग संगहणी। संभोग सिंगणाइय एवमादी पकप्पो उ॥१००॥२॥ आयारदिट्टिवादत्थजाणए पुरिसकारणविहण्णू । संविग्गम परितंते अरिहति उस्सारणं काउं ॥३|| कारणे-अभिग्गते पडिबद्धे, संविग्गे य सलद्धिए। अवट्ठिए य पडिबुज्झी, गुरूअमुई जोगकारए ॥४॥ गच्छो य अलद्धीओ ओमाणं चेव अणहियासो य । गिहिणो य मंदधम्मा सुद्धं च गवेसए उवहिं॥५।। एएहिं कारणेहिं उस्सारायारिहो उ बोद्धव्वो उस्सारो दिहिवादे धम्मकहा गंडियनिमित्तं ।।६।। उस्सारकप्प एसो समासओ वण्णिओ मए एवं । लोगाणुओगमित्तो वोच्छामि अहं समासेणं ||७|| मेहावी सीमम्मी ओहमिए कालगज्ज थेराणं । संज्झंतिएण अह सो खिंसंतेणं इमं भणिओ |८|| अतिबहुतं तेऽधीतं ण यणातो तारिसो मुहत्तो उ। जत्थ थिरो होइ सेहो निक्खंतो अहो हु वोद्दव्व (त्तं) |९|| तो एव सउमच्छ भणिओ अह गंतु सो पतिवाणं । आजीविसगासम्मी सिक्खति ताहे निमित्तत्थं ।।१५४०|| अह तम्मि अहीयम्मी वडहेट्ठ निविट्ठ अन्नय कया (कण्णया का) ति । सालाहणो णरिंदो पुच्छतिमा तिण्णि पुच्छाओ॥११॥ पसुलिडि पढमयाए बितिय समुद्दे व केत्तियं ॥ उदयं ?। ततियाए पुच्छाए मुहरा य पडिज्ज व ण वत्ति ?।।२।। पढमाए वामकडगं देइ तहिं सयसहस्समुल्लं तु । तियाए कुंडलं तू ततियाएवि कुंडुलं बितियं ।।३।। आजीविता उवठ्ठित गुरूदक्खिण्णं तु एय अम्हंति । तेहिं तयं तू गहितं इयरोचित कालकज्ज तु ॥४॥णम्मि उ सुत्तम्मी अत्थम्मि अणढे ताहे सो कुणइ । लोगणुजोगं च तहा पढमणुओगं च दोऽवेए ।।५|| बहुहा निमित्त तऽहियं पढमणुओगे य होति चरियाई । जिणचक्किदसाराणं पुव्वभवाइं निबद्धाइं ॥६।। ते काऊणं तो सो पाडलिपुत्ते उवहितो संघं । बेइ कतं मे किंची अणुग्गहट्ठाय तं सुणह ॥७॥ तो संघेण णिसंतं सोऊण य से पडिच्छितं तं तु। तोतं पतिट्ठितं तूणगरम्मी कुसुमणामम्मि ।।८।। एमादीणं करणं गहणं णिजजूहणा पकप्पो ऊ। संगहणीण य करणं अप्पाहाराणं तु पकप्पो॥९॥ संभोगो संगहुवग्गहठ्ठता य वच्छल्ल पीइ बहुमाणो । साहारण कुलगणसंघठवण अणतिक्कमणमेव ॥१०१॥१५५०।। सुत्तत्थतदुभयादीहिं संगहोवग्गहो उ भत्तादी । वच्छल्ल गुरूगिलाणे एवमादीसु जहकमसो॥१॥ एगत्थ भोयणेणं पीती भवतिक्कभाणजिमितत्ति । बहुमाणंपिय कुव्वति सहायगत्तं च तेणेव ।।२।। केई अलद्धिमंता ण लभंति सलद्धिया चिय लभंति । जं लद्धं सामन्नं संभोगमितो तु इच्छंति ॥३|| कुलगणसंघत्थेरा मज्जायाओ ठवेति हिंडता। जह सकुले परिताणो (कुसलेऽथ परिण्णा) णत्थी उवसंपया चेव||४|| कुलगणसंघट्टवणा जाओयकताओतहिंतुथेरेहिं। कुलवहुमज्जायाविव ताओ य णइक्कमिजंति।।५।। कज्जेसु सिंगभूतं कज्जंतू सिंगणाइयं होइ। तं चेतिसाहुँसंजइ होजाहि सगच्छपरगच्छे ॥६॥ तह पुण होज्जाहि कतं कोइ भणेज्जाहि संजइ जई वा। म मज्झेस दुवक्खरओ कहंति सो पुच्छिओ आह ॥७॥ कीतो मे व पइट्ठो हाउं वा आणिओ धरेतू वा । दारे वा से जाते अहवा राजाइ व पलावी ||८|| अक्कमिऊणं घेत्तूं दासाणि करेउ अहव लोभेउं । वत्थासणमादीहिँ तु तत्थ पमादो ण कायव्वो ॥९|| गच्छस्सरक्खणठ्ठा चारित्तठिते अवस्स कायव्वं । इहरा तू मज्जाता गच्छस्स उ फेडिया होइ॥१५६०|| आणाएँ जिणिंदाणं अणुकंपाए य चरणजुत्ताणं । परगच्छे य सगच्छे सव्वपयत्तेण कायव्वं ।।१।। अणवत्थवारणट्ठा उच्छूट्ठितओ कुसीलेऽवि लिंगंअणुम्मयंते जीवद्वितऽबुद्धधम्मो य ।।२।। अणुसठ्ठी धम्मकहापन्नविओ जइ न मुंचती पावो । ताहे अतिसत्तीए इमाइं कुज्जा उकरणाणि ॥३|| अंतद्धाणी ओसोवणी य पासायकंप वेयालं । अभियोग थंम संकम आवेसण वेयणकरी य॥१०२||४|| अंतद्धाणं काउंहरेति ओसोवणं च काऊणं । वेयालमुठ्ठवेउं भेसेति तगं अमुचंतं ॥५॥ अभिओग वसीकरणं विज्जा संकामणं च अन्नत्थ । थंभस्स कंपणं वा आवेसेउं व भेसेति ॥६॥ साहम्मियवच्छल्लं कुणमारेणं तु एव कत होइ। अण्णे य गुणा उ इमे हवंति ते मे निसामेह ||७|| मिच्छता संमत्तं सम्मद्दिट्ठी चरित्तओलंभं । चरितहिते थिरत्तं मलणा य पभावणा तित्थे ।।८।। तम्हा साहुनिमित्तं पव्वपयत्तेण एव कायव्वं । अहुणा चेतिनिमित्तं जं कायव्वं तगं वोच्छं ॥९॥ चोदेइ चेइयाणं खेत्तहिरण्णे व गामगावादी । लग्गंतस्स व जइणो तिकरणसोही कहं णु भवे ? ॥१५७०|| भन्नइ एत्थ विभासा जो एयाइं सयं विमग्गेज्जा । तस्स ण होती सोही अह कोइ हरेज्ज एयाई ॥१|| तत्थ ई करेंत उवेहं जा सा भणिया उ तिगरणविसोही। सा य ण होइ अभत्तीय तस्स तम्हा निवारेज्जा ॥२॥ सव्वत्थामेण तहिं संघेणं होइ लग्गियव्वं तु । सचरित्तऽचरित्ताण 明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听玩明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听2CM more 5 55555555555555/ श्री आगमगुणमजूषा - १५०२555555555555555555555555555OK Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRO [४१] फ़फ़फ़फ़ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं तु सव्वेसिं एय कज्जं तु ॥३॥ तत्थ पुण पयादि णिवो अन्नत्थ हविज्ज तत्थ उ वयंतो । लिंगत्थेहिं समयं का मज्जता भवे तहियं ? ||४|| भत्ते पाणे सयणासणे य सेज्जोवंहिएँ सज्झाए । वायणपडिच्छणासु य सुहसीले अत्तसंहारो ||५|| जहियं तु सावयादी कोइ करेज्जाहि संघभत्तं तु । तहियं तु न गेण्हेज्ना ण य वस उद्दिट्ठसेज्जासु ॥६॥ पाणभत्तादीसुं ण य संघाडो ण यावि ते सुत्ते । वाहिति आसणेवि य ण जयंती एत्थ उ उवेसो ||७|| सेज्जं वेवं उवहिं ण देति गेण्हंति वा ण संघाडं। सज्झायंपि ण गेहे ण पडिच्छे चोयए वावि ||८|| मोत्तुं राउलकज्जं उवएस वा मुएज्जऽहव एवं अन्नत्थ उदासीणो एसो खलु भ (अ) तसंथारो ||९|| परिवारं दिति तहिं याकुले विन्नविंति ते चेव । जदि वा होज्ज समत्थो मंतेज्जा तो सयं चेव ॥। १५८०|| जो पुण बंधवहादिस उद्दवणचरित्तंभंसरोहे वा । णिरलंबणो समत्थो ण करेड़ तहिं विसंभोगो ॥ १ ॥ कोई वहबंधादी साहूण करेज्ज अहव देवकुलं । पाडिज्ज पडिमभंगं च करेज्जा कोइ पडिणीओ ||२|| अहवावि निमित्तं तू अकहेमाणो तु कोइ रुंभिज्जा । णिरलंबणम गिलाण ओरसविज्जादिस समत्थो || ३ || जइ णेच्छति मोदेउं तमसंभोयं करेति ता (वो) समणं । परितावणादि जं ते पावेति तं च पावइ य ॥४॥ केवइयं पुण कालं बंधादिगताण तेसि समणाणं । कायव्वं तु मइमत्ता ? भन्नइ इणमो निसामेह ||५|| मज्जायसंपउत्ते चिरमवि कायव्वमपरितंतेण । मज्जायविप्पहूणे सउवालंभं सतिं करणं ॥ ६॥ जदि अवराहे गहिओ भण्णति मोएम जदि पुणो ण करे। एरिसयमब्भुवगते मोदेउं पच्चुवालंभे ||७|| इंहपरलोगं चइउं कुव्वंतेतारिसाणि जे इहई । ते पावेंतेताई परे य लो, दुहाई ||८|| एवं उवालभेत्ता मोदेउं जइ पुणो करेमाणो । घेप्पेज्न उदासीणं हवेज्ज ते वाहि (रि) या समणा || ९ || एवं तु समासेणं एस पकप्पो मए समक्खाओ । एत्तो उ समासेणं वोच्चामि विकप्पमहुणा उ || १५९० || अतिरेगं परिकम्मण तह भंडुप्पायणा य बोद्धव्वा । एमादि विकप्पो ऊ तत्थऽइरेगे इमं होइ ||१|| अलेवकडं कप्पो संघाडऽलेवग पकप्पो । तिप्पभिदं तु विकप्पो मत्तगभोगो यऽणट्ठाए ॥ १०३ ॥ २॥ पादेगेण अलेवं गेहे जिणकप्पिया उ सो कप्पे । थेराण दोन्नि पादा संघाडेणं च हिंडंति ॥३॥ तत्तेगपडिग्गहए भत्तं लेवाडगंपि गेण्हंति । एगत्थ दवं मत्तग दोण्हंपी रित्तग पकप्पो ॥४॥ तिप्पभिति हिडंती णिक्कारण भत्तएसु वा गिण्हे । सो होइ विकप्पो ऊ तत्थ य सोही इमा होइ ||५|| जदि भायणमावहती तति मासा जदि दिणा उ आणेती। तावइया चउमासा तियाए रोवणा भणिया ॥ ६ ॥ समणीण तिण्ह कप्पो चउपंचण्ह भणिओ पकप्पो उ। तेण पेरण विकप्पो एत्तो उवहिं तु वोच्छामि ||७|| तिन्नि उ भणिया कप्पो अतरंता विपइणा पकप्पविही। उप्पायगवज्जाणं तिट्ठाणारोवणा भणिया ||१०४ || ८|| गणनाय पमाणेण य उवहिपमाणं दुहा मुणेयव्वं । गणणाऍ जिणारं तू एक्को दो तिण्णि वा कप्पा ||ल० १०५ || ९ || दो य संडासो सोत्थीओ वावि होति आयामो। रूंदा दिवङ्खुहत्थं एय पमाणप्पमाणंतू ॥ल० १०६ || १६०० || दो खोमिओन्निएक्को थेराणं तिण्णि होति गणणाए। आयामायपमाणा दुहत्थ अद्धं च विच्छिन्ना ||ल० १०७|| १ || एसो उ भवे कप्पो पकप्पो उ गिलाणए गुरूणं वा । चउ सत्त वावि पाउण माणऽतिरित्तं च धारेज्जा |० १०८ ||२|| क पकप्पो होती विकप्पो णिक्कारणे मुणेयव्वो । उप्पायगो पवित्ती सावतिरेगं धरेज्जाहिं ॥३॥ गणणाऍ पमाणेण व गच्छठ्ठाए उ तं पमोत्तूणं । जो अण्णो अतिरेगं धरेइ सोही उ तस्स इमा ||४|| चाउम्मासुक्कोसो मासिय मज्झे य पंच य जहण्णे । तिविहम्मिवि उवहिम्मि अतिरेगारावणा भणिया ||५|| अतिरेगउवहिदारं संखेवेणोदितं अहं इयाणिं । परिकम्मदार वोच्छं अप्परिकम्मो जिणाणुवधी ||६|| कारणविही पकप्पो थेराणं अविहीए विकप्पो उ। परिकम्मणा उ एसा भंडुप्पायं अतो वोच्छं ॥७॥ गाहण गहणं गेज्झं च जहासंखेणिमे तु णसव्वा । पुरिसे पडिमा उवही तिन्नि तिगा भावसुद्धाई || १०५ || ८|| गाहगो गीयत्थो खलु पुरिसो णियमेण होइ णायव्वो । उद्दिट्ठमादियाहिं गहणं पडिमाहिं भणितं तु ॥९॥ घेत्तव्वो उवही खलु तिण्णित्ताऽऽहारउवहिसिज्जत्ति । तिण्णिवि तिविसुद्धा उग्गममादहिं नियमेणं ॥ १६१० || एण चेव गहणं कप्पो दोहिं भवे पकप्पो उ। तिप्पभिति तु विकप्पो भत्ते पाणे तहा उवही ॥१॥ आदितिएण उ गहणं बितियंट्ठाणम्मि अब्भणुण्णातं । हंदि परिरक्खणिज्जो सुहारको (हाकरो) सव्वसाहूणं ॥ १०६ ॥२॥ आदित्ति होति कप्पो तिगतिग आहारउवहिसेज्जाओ। गहणं तु होति तिविहं उग्गममादी तिगविसुद्धं || ३ || बितियट्ठाणं पकप्पो तत्थवि तिगसुद्धमेव घेत्तव्वं । असतीय अणुण्णातं पणहाणीए असुद्धपि ॥ल० १०९ || ४ || केण पुण कारणेणं गच्छे असुर्द्धपि उग्गमादीहिं । घेप्पति ? भण्णति 5 श्री आरामगुणमंजूषा - १५०३ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RORO55555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [२] 5555555555555552 IC%乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听乐明明明明明明明乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐 सुणसू कारणमिणमो समाणेणं ।ल० ११०॥५॥ रयणाकरोव्व जम्हा उ आगरो होइ सव्वसुक्खाणं । नाणादीय य पभवो ततो य मोक्खो य तो रक्खे ॥ल०८ १११।।६।। आइन्नता महाणो कालो विसमो सपक्खओ दो (दुभिक्खमादी) सो। आदितिगभंगगेणं गहणं भणित पकप्पम्मि॥१०७|| ल०११२।।७।। तियति (छ) कंतपमाणे अणुवासो चेव कारणनिमित्तं । परिकम्मण परिहरणे उवही अतिरित्तगपमाणो ॥८॥ गच्छो सबालवुड्ढो गिलाणसेहादिएहिं आतिण्णो । एसो व महाणो तू तस्स तु दुलभं तिगविसुद्धं ।।९।। कालो विसमो दुब्भिक्खमादि दोसा सपक्खओ उ इमे। पासत्थादी बहवे ओमांणतो तओ होति ।।१६२०॥ अहव असंविग्गावी जह महराकोट्टइल्लगा केई । मायाए उग्गमती सढा अविकोवि नवि जाणे ||१|| एएहिं कारणेहिं अलभंते आइतिगभंगगहरं तु । आदितिगमुग्गमादी भंगो तू भंसणा होति ॥२॥ कारणतो तिविहंपी माणंतु अतिक्कमेज्ज उ कदादि । किं पुण तिविहं माणं ? भन्नति इणमो निसामेह ||३।। हवति पमाणपमाणं खेत्तपमाणं च कालमाणं च । एतं तिविह पमाणं अतिक्कमो तेसिमो होति ||४|| अतिरेग पमाणेणं तिण्ह परे (य के) णंपि णाम गिण्हेज्जा । खेत्तओ अतिक्कमो तू परतोवि दुगाउया मग्गे ॥५॥ कालपमाणातिक्कमे कुज्जा पाउरणगं अकालेऽवि । वसती कालातीतं असिवादणुवासणं एयं ॥६॥ परिकम्मणमविहीए बलियट्ठऽइदुब्बलम्मि कुज्जाहिं। दुल्लभलंभे सीतेण अहिओ उन्नियं पंतो।।७।। अतिरित्तपमाणं वा धारिज्जइ कारणेहिं एएहिं। सो सव्वो पकप्पो तू निक्कारणओ विकप्पो उ॥८॥ संकप्पो उ इदाणिं सोय पसत्थो य अप्पसत्थो य । एतेसिं दोण्हंपी परूवणा होतिमा कमसो ॥९॥ दंसणनाणचरित्ते अणुपालण पत्थणा पसत्थो उ । इंदियविसंयकसाएसु अप्पसत्थो संकप्पे ॥१०८॥१६३०।। दसणपभावगाइं सत्ताई कहकहं अहिज्जेज्जा ?। जो चिंतेयं (ई) एसो संकप्पे दंसणे होति ॥१|| नाणइयार ण करे कहं च नाणं अहं अहिज्जेज्जा। इति नाणे चारित्ते सुद्धचरित्तो कह होज्जा ?||२|| उत्तरउत्तरिएहिँ व चारित्तगुणेहिं कह णु विहरेज्जा ?। एसोतुचरित्तम्मी संकप्पो सत्थगो भणितो॥३|| सद्दादिइंदियत्थाण पत्थणा तह य रागगमणं तु । कोहादिकसायाण य अज्झप्पं होति अपसत्थं ।।४।। एसो खलु संकप्पे एत्तो वोच्छामऽहं तु उवकप्पं । उवकप्पती करेति उवरेइ व होति एगट्ठा ।।५।। भत्तेण व पाणेण व उवकरणेण व उवग्गहं कुणति । उवकप्पइ गुणधारी उवकप्पं तं वियाणाहि ।।६।। खुहिओ पिवासिओ वा सीतभिभूतो व ण तरती पढितुं। तस्स करेइ उवग्गह पडंतकुड्डस्स वा थूणा ||७|| जो उप्पाएँ समाहिं चउव्विहं नाणदंसणे चरणे । तत्तोय तवसमाहिं तस्स खमे निज्जरा होति।॥८॥ भत्तेण व पाणेणं उवकरणेणं व उग्गहितदेहो । जो कुणइ सि समाहिं तस्सवरणं हणति दाता ||९|| भत्तस्स व पाणस्स व उवकरणस्स व उवग्गहकरस्स। जे कुणइ अंतरायं तस्सावरणं पवड्ढेति ॥ल० ११३||१६४०॥ एसुवकप्पो भणिओ एत्तो वोच्छं अहं तु अणुकप्पं । अणुसद्दो तू तहियं पच्छाभावे मुणेयव्वो॥१॥ नाणचरणड्ढयाणं पुव्वायरियाण अणुकिंति कुणइ । अणुगच्छइ गणधारी अणुकप्पं तं वियाणाहिं ।।२।। गुणसयसहस्सकलियाण गुणुत्तरतरं व अभिलसताणं । जे खेत्तकालभावा आसज्जा जोगहाणि भवे ।।१०९॥३|| गुणसयकलिओ जम्मो मोक्खो य गुणुत्तरो मुणेयव्वो । सामायारीहाणी तु जोगहाणी मुणेयव्वा ॥४॥ केत्ताणऽसती अद्धाण उच्चखित्तम्मि काल दुब्भिक्खे । भावे गेलण्णादिसु सुद्धाभावे तु जदसुद्धं ॥५।। गेण्हेजाऽहारादी नाणादीसू व उज्जमण कुज्जा। अणसणमादी व तवंअकरेमाणस्स साहुस्स ।।६।। णेगंतणिज्जरा से जह भणिया सासणे जिणवराणं । जोगनियत्तमईणं सुहसीलाणं तवो छेदो ||७|| सुहसीलदट्ठसीला तेसिं अप्फासुं गेण्हमाणाणं । जं आवजे तहियं तवं च छेद चतं पावे।।८। उक्कप्पोय इयाणि उर्ल्ड कप्पोऽवि होइ उक्कप्पो। अहवावि छिन्नकप्पो उक्कप्पो अहवण अवेतो।।९।। उग्गमउप्पायणएसणास निरवेक्खो कंदमूलफले । गिहिवेयावडियासु य उक्कप्पं तं वियाणाहि ।।१६५०|| णामणि थंभणि लेसणि वेयाली चेव अद्धवेयालि आदाणपाडणेसु य अण्णेसु य एवमादीस ॥११०॥१॥ तसएगिदियमुच्छणसंसेइममच्छमरणमभिओगे। रोहाहव्वण तह बंभदंड थंभे य अगणिस्स ॥११शा।। णामणि रूक्खफलाणं पडिमाणं देउलाण थूभादी । थंभणि पदमवि ण चलति लेसणि लेसेति अंगाई ॥३॥ विहिट्ठाण य आणणि अहव णिलुक्कावणम्मि वेयाली । उट्ठविऊण णिवाओ तक्खण एसऽद्धवेयाली ||४|| गब्भाणं आदाणं करेति तह साडणं च गब्भाणं । अभिजोग वसीकरणे विज्जाजोगादिहिं कुणइ ॥५|| विच्छिगमच्छिगभमरे मंडक्के मच्छए तहा 9 पक्खी। संमुच्छावेमादी जो जोणीपाहुडेणं च ।।६।। पसुउद्दवियं जागं आहव्वण मंत रोद्दकम्मे य । केहादि बंभदंडो थंभणि अगणिस्स मंतेणं ।।७।। एमादि अकरणिज्ज SO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明G morro 5 55555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १५०४ 55555555555555555555559OYOR Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HORO (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं ॐॐॐॐॐ निकारणे जो करेइ तू भिक्खू । सव्वो सो उक्कप्पो एत्तो अकप्पं तु वोच्छामि ||८|| निक्किवणिरणुक्कंपो पुप्फफलाणं च साडणं कुणइ । जं चन्न एवमादी सव्वं तं जाणसु अकप्पं ||११२||९|| जो उ किवं ण करेई दुक्खत्तेसुं तु सव्वसत्तेसु । निरवेक्को रीयादिसु पवत्तई निक्किवो सो उ ॥ १६६०|| सहसा य पमाएण व परितावणमादि बिदियाईणं । काऊण णाणुतप्पड़ णिरणुक्कंपो हवइ एसो ॥ ल० ११४ ॥ १ ॥ सत्तट्ठमठाणेसू सट्टाणासेवणाएँ सट्ठाणं । गच्छागाढम्मि उ कारणम्मि बितियं भवे ठाणं ॥२॥ सत्तट्ठमठाणाई उक्कप्पो चेव तह अकप्पो य । ते निक्कारणसे पावइ सट्ठाणपच्छित्तं ॥ ३॥ पत्तम्मि कारणे पुण रायद्दट्ठादियम्मि आगाढे। जयणाऍ करेमाणो होति पकप्पो ठि (बि) तिट्ठाणं ||४|| दंसणनाणचरित्त तवविणए निच्चकाल पासत्थो । णिच्चं च णिदिओ पवयणम्मि तं जाणसु दुकप्पं ||५|| दुकप्पविहारीणं एतासायणा बंधो । आसायणाय बंधेण चेव दीहो तु संसारो ||६|| दंसणनाणचरित्ते तवविणए णिच्चकालमुज्जुत्तो । निच्वं पसंसिओ पवयणम्मि तं जाणसु सुकप्पं ॥७॥ सुक्कप्पविहारीणं एगंताराहणा य मोक्खो य। आराहणाइ मोक्खेण चेव छिन्ने य संसारो ||८|| वुत्तो दसविहकप्पो अहुणा वीसतिविहं तु वोच्छामि। तस्स उदारा इणमो संगहिया तीहिं गाहाहिं || ९ || कप्पेसु णामकप्पो ठवणाकप्पो य। खित्ते काले कप्पो दंसणकप्पो य सुयकप्पो ११३॥१६७० || अज्झयण चरित्तम्मि य कप्पो उवही तहेव संभोगो । आलोयण उवसंपद तहेव उद्देसऽणुण्णा ॥ ११४ ॥ १ ॥ अद्वाणम्मि य कप्पो अणुवासे तह य होइ ठितकप्पो । अट्ठितकप्पो य तहा जिरवाणाकप्पो ||११५ || २ || जो चेव दवियकप्पो छव्विह कप्पंमि होति वक्खाओ। सो चेव निरवसेसो जो य विसेसोऽत्थं तं वोच्छं ||३|| एस पुण तिविहकप्पो अहव इमं भावकप्पमज्झयणं । सव्वं वा सुयनाणं दायव्वं केरिसे होइ ? ||४|| सुपरिच्छियगुणदोसे सेलघणादीहिं तू परिच्छाहिं । सुविसोहियमिच्छमले उंडितभोम्मादिणाएहिं ॥५॥ सव्वंपिय सुयनाणं सुत्तत्यो सड्डिए ण उ असड्डी । अह पुण को परमत्थो विसेसओ पवयणरहस्सं ? ||६|| पवयणरहस्समेयणि चेव भन्नंति छेदसुत्ताणि । ताणि ण दायव्वाणिं भन्नति सुत्तम्मि को दोसो ? ||७|| अप्पंतिय तं बहुगं अरहस्समपारधारए पुरिसे। दुग्गतगमाहणेविव जह वइरगहीरगादीया ||८|| हल्लाह रत्थाए वइरहीरतो लदो । सो अण्णस्स दरिसिओ तेणवि अण्णस्स सो सिट्ठो || ९ || एवं परंपरेणं रन्नो कन्नं गओ तु सो ताहे । ताहे दंडिओ रन्ना हो M यसो वइरहीरो से || १६८०|| एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिद्धं । सो कहयति अन्नेसिं परंपरेणं चरणणासो ॥१॥ तम्हा परिच्छिऊणं देयं विहिसुत्तबद्धपेढस्स । परिणामगस्स जइणो ण उ देयं अपरिणामस्स ||२|| दव्वियकप्पो समभिगओ ण भणिय जं हेट्ठ तं भणामित्ति। सो भन्नती विसेसो इणमो वोच्छं समासेणं ॥ ३॥ दव्वं तुहियवं सुद्धं गविसिय गवेसणा दुविहा । अविहीय विहीए या अविहीय इमं मुणेयव्वं ||४|| दव्वाणि जाणि काणिवि गहणं लोए उवेति साहूणं । तेसिं तु संभवं मग्गमाणे ण उसाहते अत्थं || ५ || अविहीय दोस पिंडुवहिसेज्जसज्झायनिक्खमपवेसे। णवकगहदुयचउक्के एते सव्वे ण पावेति ॥ ११६ ॥ ६ ॥ सालीतुंबीमादी आहारे फलिंहमादि उवहिम्मि । रूक्खा पुण सेज्जट्ठा एमाधिगमो हु साहूणं ||७|| एयाइं पुच्छिऊणं कत्थ पइण्णाणि ? तहिं तहिं गच्छे । अविहिगवेसण एसा जह भणिया पिंडी ||८|| आहारोवहिसेज्जाण नाणदव्वेहिं होइ निप्फत्ती । वेसणमिरिएपिप्पलिअल्लगघयतेल्लगुलमादी || ९ || हिमवंते पिप्पलीओ मलए मरिचाण होइ निप्फत्ती | हिंगुस्स रमढविसए जीरगमादी य जे जत्थ || १६९० || मा अम्हं अट्ठाए गावो कीता हढा व दूढा वा । फलमाद मा रूक्खो व रोवितो अम्ह अट्ठा ॥ १ ॥ एमादि विमग्गंतो भवं नाणादियाण परिहाणी । तह वत्थपायसेज्जाण मरेति सो अंतरा चेव ॥२॥ एवं सो हिंडंतो भत्तं पार्ण च ठावमुवहिं च । कह उग्गमेउ कह वा सज्झायं कुणउ हिंडतो ? || ३ || जो निक्खमणपवेसे कालो भणिओ उ वासउडुबद्धो । दुचउक्कं उडुबन्दे विहारो हेमंतगिम्हासु || ल० ११५ || ४ || णवमो वासावासे एसो कप्पो जिणेहिं पन्नत्तो । एयस्स संखमाणं वोच्छामि अहं समासेणं || ल० ११६ ||५|| दोन्नि सया चत्ताला उडुबद्धे एत्तिओ विहारो उ । वासासू पण्णासा पणगं हसति ए ||६|| पुरपच्छिममज्झाणं सव्वेसिं एस कालवोच्छेओ । णिच्चं हिंडतेणं विराहितो होति सो नियमा ||७|| तम्हा खलु उप्पत्ती न एसियव्वा उ तेसि दव्वाणं । जस्सऽद्रा निप्पन्नं तं गतं एसए मइमं ॥ ८॥ अइबहय दल्लभं वायव्वा णाउं दव्वकलदेसभावे य । पच्छति सदमसद्धं ताहे गहणं अगहणं वा ॥९॥ अहवा पत्रो भणेज्जा [४३] ॐ श्री आगमगुणमजूषा 原五五五五五五五五五五五五 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) फ्रफ़ फ्रफ़ फ्र (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं समणादिकयं व अहव निक्खित्तं । पक्खित्तं वावि भवे तत्थ उ दारा इमे होति || १७००|| समणे समणी सावय साविगसंबंधि इड्डि मामाए। राया तेणे पक्खेवे या निक्खेवयं कुज्जा || १ || दमए दुभगे भट्टे, समणे छन्ने य तेणए । ण य णाम ण वत्तव्वं, दुट्ठे रूट्ठ जहा वयणं ॥२॥ एतेसिं दाराणं विभास भणिया जहा य कप्पम्मि । स च्चेव निरवसेसा णायव्वा सव्वदव्वेसु || ३ || जं पुण जत्थाइण्णं दव्वे खित्ते य होज्ज काले य। तहियं का पुच्छा ऊ जह उज्जेणीऍ मंडेसु ? ||४|| एमेव माहमासे किसराए संखडीऍ का पुच्छा ? । विच्चिन्ने व कुलम्मी बहुए दव्वम्मि का पुच्छा १ ||५|| तम्हा उ गहणकाले मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । सोहेज्जा दव्वस्स उ ण मूलओ तस्स उप्पत्ती ||६|| किच्चे पामिच्चे छिज्जए य निप्फत्तिओ य निप्फण्णे । कज्जं निप्फत्तिमयं समाणिते होति निप्पन्नं ||७|| कंडितकीतादीया तंदुलमादी तु होज्ज समणट्ठा । निफत्ती सा भवे आयट्ठा फासु निप्फण्णं ॥ ८॥ तं होइ कप्पणिज्जं जं पुण समणट्ठ होज्झ निप्फण्णं । तं तु ण प्पति एत्थं च चोदए चोदओ इणमो ||९|| निप्फत्तिओ निओ यहणं तु होज्न समणस्स । निप्फत्तिओ असुद्धे कहण्णु निप्फण्णते सोही १ || १७१० || एवं गवेसियव्वे किं एगठ्ठाणगं परिच्चत्तं ? । भण्णति अफासुदव्वे ण चेव गहणं तु साहूणं ||१|| तो तेणं साहूणं किं कज्जं होइती विगप्पे (तू गविट्ठे ) णं । अण्णंपिय एगकुले ण हु आगरो सव्वदव्वाणं ||२|| तिकडुयमादीयाणं सव्वदव्वाण संभवेगकुले । ताणि य गवेसमाणे हाणी सच्चेव नाणादी ||३|| तम्हऽप्पप्पं परिहर अप्पप्पविवज्जओ विवज्जति हु । अप्पं साहेंतो विवज्जति ण तं च साहेति ||४|| निप्पत्ती समणट्ठा समणट्ठा जं च होति निप्फण्णं । गहियं होज्ज जयंतेण तत्थ सोही कहं होइ ? ||५|| सुयणाणपमाणेण ऊ उवउत्तो उज्जुयं गवेसंतो । सुद्धो जइ वावण्णो खमओ इव सो असढभावो || ६ || जो पुण मुक्कधुराओ निरूज्जमो जइवि सो उ णावण्णो । तहविय आवण्णो च्चिय आहाकम्मं परिणओव्व ॥७॥ एयस्स साह अहवा अन्नंपि भन्नए एत्थ । कारगसुत्तं इणमो तमहं वोच्छं समासेणं ||८|| अंगम्मिवि बितिए ततियगम्मि जे अत्थ कुसल ! जिणदिट्ठा । एतेसु जोगी विहरंतो अहाउयं वु (जु) ज्झे ||११७||९|| अंगग्गहणा पढमं आयारो तस्स बितियसुयखंधे । तस्सवि बीयज्झयणे उद्देसे तस्स ततियम्मि || १७२०|| जत्थेयं सुत्तंखलु से य अवस्सं ण होज्ज सुलभो उ अहवावि तईएत्ती अज्झयणम्मी तइज्जम्मि ॥ १॥ तस्सवि ततिउद्देसे आदीसुत्तम्मि जं समक्खायं । जदि संकमो सुद्धा जणाऍ जुत्तो उ ॥२॥ सुपि हु कोडिं अच्छंतो सो विसुज्झती णियमा । तम्हा विसुद्धभावो सुज्झति नियमा जिणमयम्मि ||३|| बाहिरकरणे जुत्तो उवओगमहिट्ठिओ सुतधराणं । जं दोस समावण्णोवि णाम जिणवयणओ सुद्धो ||४|| दव्वेण य भावेण य सुद्धमसुद्धे य होइ चउभंगो। तइओ दोसु विसुद्धो चउत्थओ उभयह असुद्धो ||५|| बितिओ भावविसुद्धो दव्वविसुद्धो य पढमओ होइ । अहंवावि दोसकरणं दव्वे भावे य दुविहं तु ॥ ६ ॥ भावविसुद्धाराह (हार) को दव्वओ सुद्ध व होतऽसुद्धो य । जे जिणदिट्ठा दोसा रागादी तेहिं ण उ लिप्पे ॥७॥ एतेसामण्णतरं कीयादी अणुवउत्तो जो गिण्हे । तठ्ठाणगावराहे संवडियमोऽवराहाणं ॥८॥ आवण्णे सठ्ठाणं दिज्जइ अह पुण बहुं तु आवण्णे । तहियं किं दायव्वं ?' भण्णइ इणमो सुणह वोच्छं ||९|| तहियं किं दायव्वं ? तवो व छेदो तहेव मूलं वा । कत्थेयं भणियंती ? भणति तु णिसीहणामम्मि || १७३०|| वीसइमे उद्देसे मास चउम्मास तह य छम्मासे । उग्घातमणुग्घायं भणियं सव्वं जहाकमसो ॥ १ ॥ एसो उ दवियकप्पो जहक्कमं वणिओ समासेणं । एत्तो य खेत्तकप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं ||२|| आदी छक्कनियत्ती उ वण्णिया जम्मि जम्मि खेत्तम्मि। एतेसिं सन्निकासे सालंबो मुणी वसे खेत्ते ||११८||३|| छव्विहकप्पो आदी तह जारिसगा णिसेविया खेत्ता । अक्खेमअदिवमादी ण कप्पती तारिसे वासो ||४|| खेमादि अलब्धंतो पडिकुट्ठेहिपि वसति जयणा । दुयगादी संजोगा वक्खाणं सन्निकासस्स ||५|| अक्खेमे असिवम्मि य असिवं वज्जे वसिज्ज अक्खेमे । तहियं उवहिविणासो असिवे पुण जीवणासो उ ॥६॥ एवं ओमादीसुं संजोगा तिगचउक्कगादीया । वसियव्वं जेसु जहा तमहं वोच्छं समासेणं ||७|| कडजोगि सन्निकासे बहुतरगं जत्थुवग्गहं जाणे । थोवतरियं च हाणिं तत्थऽन्नयरे दुविहकाले ॥८॥ एतेसामन्नयरे आलंबणविरहिओ वसे खेत्ते । कालद्द्यावराहे संवड्डियमोऽवराहाणं ||९|| संवडियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा । आयारपकप्पे जं पमाण णेमाण चरिमम्मि ॥ १७४० ॥ एसो उ खेत्तकप्पो अहुणा वोच्छामि कालकप्पं तु । जावातुतं तु झीणं अणुपाले ताव सामन्नं ॥ १ ॥ T MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा १५०६ फ्र Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ICFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$55 TORO%%%%%%%%%%%%% (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्त [४५) 35993555555sSITE २ विहरे संविग्गेहि व जयणजुत्तो उ । असतीवि मग्गमाणे खेत्ते काले इमं माणं ॥२॥ पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेगं वावि जोयणाणं तु । गीयत्थपादमूल परिमग्गिज्जा अपरितंतोल० ११७||३|| एक्कं व दो व तिण्णि व उक्कोसं बारसेव वासाइं। गीयत्थपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतोल० ११८||४|| पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेमं 5. वावि जोयणाणं तु । संविग्गपादमूलं परिमग्गिज्जा अपरितंतो॥५|| एक्कं व दो व तिण्णि व उक्कोसं बारसेव वासाइं । संविग्गपादमूलं परिमग्गिज्जा अपरितंतो ॥६॥ संविग्गो गीयत्थो भंगचउक्के उ पढममुवसंपा। असतीइ ततिय बितिए चउत्थगंणो उ उवसंपे ।।७।। उक्कमओ खलु लहुगा चतुरो लहुगा चउत्थभंगम्मि । जस्सऽडा उवसंपद तं नत्थि चउत्थभंगम्मि ।।८।। एतेसिं तु अलंभे एगो थामावहारमकरेंतो । विहरेज गुणसमिद्धो अणिदाणो आगमसहातो ।।९।। कालम्मि संकिल्लिट्ठे छक्कायदयावरोवि संविग्यो । जयजोगीण अलंभे पणगऽण्णतरेण संवासो॥१७५०॥ पणगऽण्णतरं पासत्थमादिभंगे चउत्थए जयणा । जत्थ बसंती ते ऊ ठाति तहिं वीसु वसहीए॥१|तेसि णिवेदेऊणं अह तत्थ ण होज्ज अन्नवसही उ। ण वहेज वा उदंतं वसेज तो एक्कवसहीए।।२।। अपरीभोमोमासे तत्व ठितो तू पुणोक्यि जएज्जा। आहारमादिएहिं इमेण विहिणा जहाकमसो॥३|| आहार उवहिम्मि य गेलण्णागाढकारणे वावि । थामावहारविजढो असती जुत्तो ततो गहणं ॥४ा आहारस्वहिमादी उप्पादे अप्पणा विसुद्धं तु। असती सतलाभस्सा जो तेसिंसाहुपक्खीओ||५|| सो उकुलाइं पुच्छिज्जते उदाएति वाविसे तेसिं। तहवी अलभंतो तू जयती पणहाणि जा लहुगा ||६|| संविग्गपक्खसहितो ताहे उप्पादएज्ज सुद्धं तु । असती पणहाणीए जइत्तु अप्पे पडिग्गहणं ॥७॥ तह असती तब्भायणमाणीयं गिण्हती तहिं चेव । नियगेऽवि पडिग्गहगे गेण्हति पासत्थपाया ऊ॥८॥ उवहिं पुराणगहित अप्परिभुत्तं तु मिण्हती तेसिं। असती तएयरंपिय जदिय गिलाणो भवे तत्थ ॥९॥ तत्थवि जइज्ज एवं असती सव्वंपि से करेज्जितरे। अहवा तेवि गिलाणा हवेज्ज ताहे करे सोऽवि॥१७६०॥ एतत्थं अच्छिज्जति गच्छे अण्णोण्णजंतु साहिज्ज । कीरति ण पमाओ खलु तम्हा गेलण्णे कायव्वो॥११॥ दीहो व मडहतो वा कम्मोदयओ हवेज्ज आतंको। मडहो अदिग्घरोगो तब्विवरीओ भवे इतरो॥२॥ कालचउक्कं वा खलु कायव्वं होइ अप्पमत्तेणं । उडुबद्धे वासासु अ दिय राउ चउक्कमेतं तु ||३|| जिणवयणभासियम्मी निज्जर गेलण्णकारणे विउला । आतंकपउरताए कतपडिकइया जहन्नेणं ॥४||जह भमरमहुयरिगणा णिवयंती कुसुमियम्मिवणसंडे। इय होइ निवइयव्वं गेलण्णे कइयवजढेणं ॥ल० १२९॥५॥ सयमेव दिठ्ठपाढी करेति पुच्छंतऽजाणगा वेज । विजाण अट्ठगं पुण णायव्वमिणं समासेणं ॥६|| संविग्गमसंविग्गे दिद्रुत्थे लिगि सावए सण्णी । अस्सण्णि सण्णि इतरे परतित्थिय कुसल तेइच्छं ॥७॥ पइदिणमलब्भमाणे वत्थु ठवियव्वगं भवे किंचि। तत्थ उ भणेज्ज कोई सुक्कं तु ठवे दवे दोसा ॥८॥ संसत्तंपि य सुक्खं तू, अणिटुं च सुसाहगं । सुसारत्थं तगं होइ, इतरे दोसा बहू इमे ॥९॥ निद्धे दवे (निद्धोदए) पणीए अपमज्जण पाण तक्कणाऽऽयरणा। एए दोसा जम्हा तम्हा उदवं न ठाविज्जा ॥१७७०॥ भण्णइ जेण कजं तं, ठावेज्जा तहिं तु जयणाए। आतंकविवज्जासे चउरोलहुगा य गुरूगा य॥१॥सेवियं तु किंची गेलन्ने तं तु जो उ पउणोऽवि। आसेवते उसाहू रसगिद्धो सेलओ चेव ॥२॥ तंबोलपत्तनाएण मा हु सेसावि तू विणासिज्जा । निज्जूहती तं तू मा अण्णोऽवी तहा कुज्जा ॥३॥ कालक्कप्पाहिगारे पत्थिए होतिमोऽवि तस्सरिसो। कालविकप्पऽन्नोऽवी असिवादीओ मुणेयव्वो ॥४॥ असिवे ओमोयरिए रायडुढे पवादिदुढे वा । आगो अन्नलिंगे कालक्खेवो व गहणं च ॥११९॥५॥ असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्खणं गच्छे । सव्वत्थ वावि असिवे कालक्खेवो विवेगेणं ॥६।। ओमेऽवेवं कुज्जा पवादिदुद्रुण बुद्धिणो णातं । तत्थऽविय अण्णलिंगं गिहिलिंगं वावि भासेज्जा ॥७॥ एयं चिय आगाढं अहवा देहस्स जा उ वावत्ती। णिव्विसयाणत्तीण व भत्तस्स णिसेहणा चेव ।।८।। एतेसामन्नतरं अणगाढि लिगि (ढालंब) णो ण सेवेज्जा । तट्ठाणतावराहे संवड्डियमोऽवराहाणं ॥९॥ संवड्डितावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं च । आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥१७८०॥ एसो उ कालकप्पो एत्तो वोच्छामि दंसणे कप्पं । सद्दहण लक्खणणं तू जिणोवइठूसु भावेसु ॥१|| उवरयछक्कायस्सवि आयरियपरंपरागते अत्थे। फ आगाढकारणेसुं सद्दहसु णिसेवणं तत्थ ॥२॥ छक्काए सद्दहिउं इणमन्न पुणोवि सद्दहेयव्वं । आगाढमणागाढे आयरियव्वं तुजं तत्थ ।।३।। दव्वे खेत्ते काले भावे पुरिसे ॥ 听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听COM ROO5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५०७ 55555555555555555555555555555 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ roo55555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [४६] 历历万历历万事历历步步步步QOS TO乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐明明明明明明明明明明明明明明明$$$ 5CM तिगिच्छि असहाए । एएहि कारणेहिं सत्तविहं होइ आगाढं |ल० १२०||४|| एगादीया वुड्डी एगुत्तरिया य होइ दव्वाणं । ओमत्थगपरिहाणी दव्वागाढं वियाणाहिं ल०.१२१||५|| जंपंति पुणो विज्जा सच्चित्तं दुल्लभं व दव्वं वा। अप्पडिहणतो अच्छइ उद्दिसिउंजाव सो ठाति ॥६॥ जाहे उदिट्ठहाणी ताहे ओमत्थहाणिए भणति। अम्हे करेमो जोग्गं अलंभे एयस्स किं कुणिमो ?||७|| एवं तु हावयंता खेत्तं कालं व भावमासज्ज । ता जूहती जाव उलंभे जेसिं तु दव्वाणं ।।८।। अह पुण भणेज्ज एवं अवससमेतेहिं कज्ज दव्वेहिं । एतं दव्वागाढं तहिं जए पणगहाणीए ।।९|| खेत्तागाढं इणमो असती खेत्ताण मासजोग्गाणं । असिवं वा अन्नत्था णदीय वा होज्ज रूद्धा उल० १२२।।१७९०|| आयरियादिअगारग अहवा अन्नत्थ सावया होज्ज । अंतर जहिं च गम्मइ वाला तह तेणखुभियं वा ॥१॥ एएहिं कारणेहिं खेत्तागाढम्मि एरिसे पत्ते । अच्छंति असढभावा एगक्खेत्तेऽविजयणाएल० १२३||२|| कालस्स वावि असई वासावासे वियारणा नत्थि । एएहिं कारणेहिं कालागाढं वियाणाहि |ल०१२४||३|| वासाजोग्गं खेत्तं पडिलेहेउंतु कालोण पहुत्तो। वच्चंताण व अंतर वासंतूनिवडियं पायं ॥४|| डहरं वऽतरखेत्तं ताहे तं चेव पुव्वखेत्तं तु । गंतुं वसती वासं समतीते वीतदसरातं ||५|| अतिउक्कडं व दुक्खं अप्पा वा वेदणा झवे आउं। एएहिं कारणेहिं भावागाद वियाणाहिं ।।१२०||६|| अच्चुक्कड सुलादी अहिडक्काई उ वेदणा अप्पा । तत्थऽग्गितावणादी देहच्छेदो व गाढादी ||ल० १२५||७|| जम्मि विणढे गच्छस्स विणासो तह य णाणचरणाणं । एएहिं कारणेहिं पुरिसागाढं वियाणाहिल०१२६||८|| तस्स उसुद्धालंभे जावज्जीवं तु (वि) होतऽसुद्धेणं कायव्वं तू नियमा पुरिसागाढह भवे एतं ल० १२७||९|| जेण कुलं आयत्तं तं पुरिसं आरयेण रक्खेज्जा। ण हुतुबम्मि विणढे अरंया साहारगा होति॥१८००|| संजोगदिठ्ठपाढी फासुगउदेसणासुजो कुसलो। एयारिसस्स असती णायव्व तिगिच्छमागाढं ॥ल० १२८||१|| मज्जणतूलिविभासा असणे पाउरणए य पाणे य । केवडियाण पदाणे अण्णहचित्तो गिलाणो वा ||२|| होज्ज व सहायरहिओ अव्वत्ता वावि अहव असमत्था । एय सहायागाढं तम्हा उ मुणी ण विहरिज्जा ल० १२९||३|| जावंति पवयणम्मी पडिसेवा मूलउत्तरगुणेसु । ता सत्तसु सुद्धेसु सुद्धमसुद्धा यऽसुद्धेसु ॥ल० १३०||४|| आगाढमणागाढे एवं जं जत्थ होइ करणिज्जं । तं तह सद्दमाणे दंसणकप्पो हवइ एसो॥५|| एसो दंसणकप्पो अहुणा सुतकप्पमो उ वोच्छामि । जे तत्थ होति विहयो अहिज्जते जेण वा विहिणा ||६|| दुविहम्मि आगमम्मी सुत्ते अत्थे य जे जहिं भावा । सुत्तमसुत्तकडाणं पवित्थरं ताण अत्थेणं ||७|| वित्थारो णाम सुत्तम्मि, गहिए अत्थो ऊ दिज्जती। सुत्ते अहिज्जियव्वे तु, मज्जादा ऊ इमा भवे ।।८|पडिलेहण काऊणं सज्झायं पट्ठवेउवट्ठादी। आयरियादिणिसेज्जं करेइ पच्छा य सज्झायं ||९|| पोरिसिं सा तं झायं (काउं) चरिमाए पढिय पत्त पडिलेहे । ताहे य अत्थपोरूसि इमिणा विहिणा करती ऊ ॥१८१०॥ काउस्सग्गे वक्खेवणाऊ विकहाविसुत्तिया पयतो (त्ता)। अब्भट्ठाणे वा कालणाय अक्खेव साहरणा ||१|| अण्णाविय सुयकप्पो सोयव्वं मंडलीय राइणिए। अणुओगधम्मयाए किइकम्मं होइ कायव्वं ।।२।। वक्खाओ सुतकप्पो एत्तो वोच्छामि अज्झयणकप्पं । दायव्व जेण विहिणा जग्गुणजुत्तस्स वा तं तु ||३|| जोए परियाए अणरिहे य अरहे य विणयपडिवण्णे । सुत्तत्थतदुभएंसुंजे अज्झयणेसुअणुभागा॥१२१।।४।। जस्सागाढो जोगोतं आगाढेण चेव दायव्वं । अणगाढे अणगां एत्तो वोच्छामि परियागं ॥५|| जंसंखपरीमाणं भणियं सुत्तम्मि तिवरिसादीयं । तं तेणं माणेणं उद्दिसियव्वं भवे सुत्तं ॥६|| खुड्डियविमाणपविभत्तिमादि दीहेविय तु (चित्त) परियाए। णवि दिज्जती अणरिहे अणरिह ते तू इमे होति ॥७॥ तितिणिए चलचित्ते गाणंगणिए य दुब्बलचरित्ते । आयरियपारिभासी वामावट्टे य पिसुणे य ||८|| आदीअदिट्ठभावे अकडसमायारिए तरूणधम्मे। गव्वि (च्छि) य पइण्ण गेण्हइ छेदसुए वज्जए अत्थं ।।९।। डहरो अकुलीणो च्चि (त्ति) य दुम्मेहो दमग मंदबुद्धित्ति । अवियऽप्पलाभलद्धी सीसो परिभवइ आयरिए ॥१८२०।। सोऽविय सीसो दुविहो पव्वावियओय सिक्खिओ चेव । सो सिक्खिओऽवि तिविहो सुत्ते अत्थे तदुभए य॥११॥ एतेसिं अणरिहाणं जे पडिवक्खा उ होति सव्वेसिं । पणिणमगा य जे तू ते अरिहा होति णायव्वा ।।२।। एतारिसे विणीए सुत्ते अत्थे य जत्तिया भेदा । अज्झयणुद्देसेसु य ते सव्वे असेसिए दिज्जा ॥३॥ एसऽज्झयणे कप्पो एत्तो वोच्छं चरित्तकप्पं तु । जे तु विहाण चरित्ते वतेसु गुरूलाघवं चेव ॥४|| पंचविहम्मि चरित्तम्मि वण्णिया जे जहिं अणूभावा । एसो SzO乐乐乐历历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听乐明明明明听听听听听听听听听 。 ROYKO ) 555555555 5 श्री आगमगुणमंजूषा-१५०८॥ 5॥5555555555EOPORT Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WORD%%%%%%%%%%% 」 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [४७) %% %%%%% %%%%%%% % HORO听听听听听听听听听听听听听听乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐频听听国乐明明明明明明明明明明明明 चरित्तकप्पो जहक्कम्मं होंइ विण्णेओ॥५|| सामाझ्यादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया भेदा । वयपंचगम्मि कतरं भारियरं लहुतरं किं वा ?॥६|| सव्वगुरूगी यऽहिंसा तीसे सारक्खणठ्ठ सेसाणि । बंभव्वतं च तत्तो ततो अदत्तं मुसं तत्तो ॥ल० १३१॥७॥ सव्वलहुओ परिग्गहो सक्को वत्थादिरागनिग्गहणं । लोगे पुण गुरूगतरो सव्वेसि भवे मुसावादो।ल० १३२।।८।। काऊणवि संवरणं मुसवज्जाणं तु सव्वभंगेऽवि । ण भवति पइण्णलोवो तेण मुसं भारितं लोए ।।९|| जह तेणगा उ केती अचयंता मुसितु भिच्छुगविहारं । णियडीय बेति धम्म सुणेमु अह भिच्छुगे ते य॥१८३०|| सोउं मिच्छुवतारा विणयं काऊण भिच्छुए आह। अज्जप्पभिई अम्हं बुद्धो सत्था वते देह ||१|| सुमवज्जा चाएमो धारेमो गेण्हिउं वते तेणा। वीसत्थभिच्छुगाणं मुसिउ विहार समाढत्ता ।।२।। भिच्छू लवंति तेणे घेत्तुं सिक्खावयाणि मा अज्जो !! भंजह वदंति तेणा ण हुपच्चक्खाय मुस अम्हे ॥३॥ गुरूलाघववक्खाणं एवं तु सोहिकारणा भिहितं । पत्तम्मि कारणम्मि उलहुयतरं पुव्व सेविज्जाल०१३३||४|| काणि पुण कारणाणिं जेसु उ पत्तेसु जयणपडिसेवा ?। भन्नइ ताणि इमाई कित्तेऽहं भे समासेणं ।।५।। गच्छाणुकंपयाए आयरिए गिलाण आवत्तीए य । पडिसेवा खलु भणिया एते खलु कारणा ते उ ॥६॥ बोहियतेणादीसुं गच्छस्सट्ठा णि (द्धाण) सेवणा होइ । आयरियाण व अट्ठा विभास वित्थारओ एत्थं ।।७।। णाउं तुंबविणासं अरगा साहारगा ण एवं तु । आयरियस्स विणासे गच्छविणासो धुयं एवं ।।८।। आगाढे गेलण्णे कंदाति विभास आवती चउहा। दव्वावति खित्तावइ काले तह भावओ चेव ।।९॥ एएहिं कारणेहि अप्पत्तेहिं तु जो उ सेविज्जा । सुहसीलयाए जो (सो) उ आवज्जति णविय सुज्झति हु ॥१८४०॥ जो पुण पत्ते कारणे जयणा आसेवणं करेज्नाहिं। तस्स चरित्तविसुद्धी जह भणति जिणो हि तं इणमो॥१॥ गच्छाणुकंपयाए आयरियगिलाणआवदि विदिण्णे। जत्थेव य पहिसेहो सचरित्तासेवणा तत्था ॥२॥ पुरिमस्स पच्छिमस्स य मज्झिमगाणं तु जिणवरिंदाणं । आसेवणा य सचरित्तया य अत्येण अणुगम्मे ||३|| वयभंगपि करेंतो जह सचरित्ती कहं तु अत्थेणं । अणुंगंतव्वं एयं ? भन्नइ आगाढकारणओ।।४|| जे केअवराहपदा किण्हा सुक्का भवे पवयणम्मि। णिघरिसपरिच्छणाए दुगठाणेणं मुणेयव्वा।।५।। पडिसेहोऽणुण्णा वा पायच्छित्ते य ओह निच्छइए । ओहेण उ सठ्ठाणं अत्थविरेगेण वोगडियं ॥१२२||६|| हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति सुकिल्ला लहुगा । णिघरिसपरिच्छणा खलु जह कणगं तावणिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिऊणं आयवयं गच्छमावती जंतु । नित्थारयम्मि पत्ते जयणाएँ निसेव सचरित्ती |८|| दुठ्ठाणा मूलत्तर दप्पे अजए य होइ पडिसेहो। कप्पे जयणा णु (वु) त्ता जो पुण निक्कारणासेवे ॥९॥ पायच्छित्तं पावति तं दुविहं ओहियं व णेच्छइयं । ओहं तु जमावण्णं तं दिज्जति तम्मि सट्ठाणं ॥१८५०॥ णिच्छइयं अत्थेणं वीमंसित्ता उ दिज्जती जंतु। एयं अत्यविरेगं वोकड़ियं छव्विहं इणमो॥१|| कस्स कहं कहिं तं वा कदिया णु कम्मि केच्चिरं होइ ?। छट्ठाणपदविभत्तं अत्थपदं होइ वोगडियं ।।१२३||२|| कस्सति गीतागीतस्स वावि कह जयण अजयणाए वा । कहिं अद्धाण वसंते कतिया णु सुभिक्खभिक्खे।।३।। अहवा दित राओ वा कम्हिन्ती कारणे व इतरे वा । कम्हि व पुरिसज्जाते आयरियादीण अण्णतरे ॥४॥ केच्चिर कतिवारे खलु केवइकालं व सेविय होज्जा । एवं छट्ठाण एयं सुद्धासुद्धे असुद्धियरे ।।५।। संघयणधितिजुयाणं सहूण अरहं तु दिज्जए तत्थ । असहू अथिरादीणं दिनति चाएति जं वोढुं ।।६।। सोऊण कप्पियपदं करेति आलंबणं मइविहूणा । रहसं च अण्णरहस्सं मइसूयओ पुरिसा ॥७॥ माइट्ठाणविमुक्को अकप्पियं जो उ सेवते भिक्खू । तं तस्स कप्पियपदं मायासहिते चरणभेदो ॥८॥ एसो चरित्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उवहिकप्पं तु । सो पुण पव्वाभिहितो ओहुग्गह वु (जु) त्तओ चेव ||९|| जो उ विसेंसो एत्थं तं नवई इह तु वक्खामि । सुद्धग्गमादिएहिं धारेयव्वो जहाकमसो।१८६०। फासुग्यमन्मसुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोवहुवग्गहिते, धारणा कस्स केच्चिरं ?॥१॥ जर फासुवही कारणे गहिओ तू जाणएण तो धारे। जो जुण्णोऽजुन्नोवि हू अट्ठ पकुव्वे तु छुब्भति हु ||२|| फासुगे अजाणएणं कारणगहिओ धरेजते ताव । जावऽण्णो ताहे उ विगिंचए तं तु ||३|| अह पुण अफासुओ ऊ जाणगगहिओ उ कारणे होज्जा । जइ गीयत्था सव्वे तो धारेती उजा जिण्णो ।।४।। अग्गीतविमिस्सेहिं अण्णुप्पन्नम्मितं विगिंचंति। अह पुण अफासुओ ऊ जाणगहिओ उ कारणे गहिओ अगीतेणं ॥५|| उप्पण्णे उप्पण्णे अण्णम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे । एवं चउभंगेणं धारणता वा परिठ्ठवणा ॥६॥ 9 सो पुण दुविहो उवही वत्थं पातं च होइ बोद्धव्वं । वत्थं तु बहुविहाणं पाता पुण दो अणुण्णता ||७|| चोदेती पंचण्हं किण्णवि एगो पडिग्गहो सोई। ता दो एक्केकस्स ऊ? 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听明明明明明乐乐SCU Mer:5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १५०९:5555555555555555555555555EOMORR Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुतं [४८] 原原原原CTOR भण्णइ ण पहुच्चए एवं ॥८॥ तो चेउ तिण्ह दुवण्हं अहवा एक्क्कतस्स एक्वेक्कं ? । भण्णइ पाहुणगादिएसु ताहे किं काहिंतेक्केणं ? ||९|| अप्पा परो पवयणं जीवनिकाया य चत्त होंतेवं । वारत्तगदिठ्ठतो तम्महा दो दो उ घेतव्वा ।। १८७० || भणति जदेवं तेणं जिणकप्पी एगपातओ कम्हा ? । भण्णइ कारणमिणसो सुणसु जेणेगपादो उ ॥१॥ संगहियकुच्छि जस पगहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे य णासण्णेऽणावाते णातिणिरूद्धे ठविय भाणं ॥ १२४ || २ || तिवली अभिन्नवच्चो कंकग्गहणीय संगहियकुच्छी । जोयणमवि गच्छिज्जा सन्नाडो थंडिलस्सऽसती ॥ ३ ॥ जसकारि पवयणस्स जेणाजसो होइ तं तु ण करेति । पग्गहियएसणाहि य ण यावि सुलभो से आहारो ||४|| जदिविय ह कुच्छिपूरं लभति कदाति बहुस्स कालस्स । तंपिय से विद्धंसइ तत्तकडिल्ले व जह बिंदु ॥ ५ ॥ तेणऽप्पं वच्चं से तो गच्छति जाव सारियं नत्थि । न य बाहा उप्पज्जति चत्तं च सरीरगं तेणं ||६|| णासन्नं जाइ थंडिल्लं, णावातं नियमेण उ । विच्छिन्नं दूरमोगाढं, सव्वदोसविवज्जियं ||७|| निक्खिप्पि पडिग्गहगं वोसिरिजं णेयसो उ णिल्लेवे । एएण कारणेणं जिणकप्पिउ एगपातो उ || ८ || पातदुगस्स उ गहणे कारणमेतं समासओऽभिहितं । अहुणा तु चोदयंती किं घेप्पइ वत्थमतिरेगं ? T ॥९॥ किं तिहिँ ण पहुप्पेज्जा एक्केणाच्छादणा पकप्पम्मि ? | गच्छे सकारणेत्तियं वोच्छेदकरो पसंगस्स ॥१२५॥ १८८०|| चोदेती किं तिण्हं गहणं ? ऊणेहिं जंण संथरति । भण्णति एक्केणावि हु संथरति ? पुणाह तो सूरी ॥ १ ॥ छादणतो णासणओ ऊणेण कता भवे पकप्पस्स । मा हु पसंगविवड्डी ऊणऽहितं तेण धारेति ॥२॥ गच्छरा सकारणोत्ती गिलाणवुड्ढे य बालमसहादी । तेसऽठ्ठा अतिरेगं घेप्पइ मा होज्ज दुलभंति ||३|| सीतादिभावियांणं मा हू णाणादियाण परिहाणी । होज्जाहि तेण गेहति संथरती जावतीएणं ||४|| जदि एयविप्पहूणा तवनियमगुणा भवे निरवसेसा । आहारमादियाणं को णाम परिग्गहं कुज्जा ? ||५|| पंचमवओवघातो चोदेती वत्थमादिगहणम्मि | एगव्वओवघाए घातो पंचण्हवि वयाणं ||ल० १३४|| ६ || एवं तु चोदितम्मी बेंती गुरू ण उ परिग्गहो सो उ । संजमगुणोवकारा उवघाति परिग्गहो होइ ||७|| जम्मि परिग्गहियम्मी तसथावरघातणा पवत्तंति । गहणे गहिए धरणे सो नाम परिग्गहो होइ ||ल० १३५||८|| गहणे पुरकम्मादी गहिए पुण होत पच्छकम्मादी | धरणे अप्पडिलेहा कीरति मुच्छा त जा तत्थ ||९|| जम्मि परिग्गहियम्मी तसथावरसंजमा पवत्तंति । गहणे गहिते धरणे सो तू (गुणकारओ) ण परिग्गहो होइ ॥१८९०॥ रागादिविरहिओ ऊ आहारदीणं जं कुणइ भोगं । ण हु सो परिग्गहो ऊं तो किं गुरूमादिणं पूया || ल० १३६ || १ | कीरति आहारादिहिं ? भन्नति भणिता उ नियमसो सा उ । तित्थंकरहिं चेव उ तेण उ सा कीरए तेसिं ॥२॥ तो किं पूयाहेउं पवत्तयंतींह तित्थगर तित्थं ? । अह कम्मक्खयहेउं ? पुठ्ठो एवं इमं आह ||३|| आहारउवहिपूजादिकारणा ण उ परूवितं तित्थं । णाणचरणाण अठ्ठा तित्थं देसिति तित्थकरा ॥४॥ तित्थं चउहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीणि । तित्थगरणामगोत्तस्स खयट्ठा अविय साभव्वा ||५|| नाणे चरणे गुणकारगाणि आहारउवहिमादीणि । एतेण अणुण्णाता तहिं ठिताणं तु तो पूजा |ल० १३७॥६॥ एसो उवहीकप्पो वन्नियओ वित्थरं पमोत्तूणं । संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं ||७|| पुव्वभणिओ विभागो संभीगविही य दोहिं ठांणेहिं । दोसुवि पसंगदोसा सेसे अतिरेग पन्नवए ||८|| दसविहसत्तविहेहिं पुव्वुत्तेतहिं दोहिं ठाणेहिं । दोसुवि पंसंगदोसा ण भुंजए अन्नसंभोई ||९|| जम्हा उण णज्जंती उग्गममादी उ जे भवे दोसा । एएण अपरिभोगो अमणुण्णे होइ बोद्धव्वो । १९०० ॥ जं तत्थ ण पत्तं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरेगं । जे उ गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं ॥ १॥ अणुकंपा संगहे चेव, लाभालाभेऽविदाघता । दावद्दवे य गेलण्णे, कंतारे अंचिए गुरू ॥ १२६ ॥२॥ बालादणुकंपणट्ठा असहू अतरंतसंगहाणे । केइ सलद्धी अलद्धी तेसिं साहिल्लयाए ॥३॥ उप्पण्णे अहिगरणे काहिति विओसणं तु अविदाही । ण य गच्छे बहिभावं उप्परओऽहंति परिभूते ॥ ४॥ मज्झं अणेक्कभाणोत्तिकाउ मा एस पे (ग) च्छती पुव्विं । जत्थ उ कुले महल्ले लब्भति भिक्खा महल्ली ऊ ||५|| तम्हा उ दवदवस्सा पुव्विं गच्छामहं तु तं गेहं । एते ऊ परिहरिया दोसा उ भवंति संभोगे ॥ ६ ॥ गेलण्णेण व एतस्स हिंडियं आणियं तु अण्णेहिं । भोक्खत्ति यऽसहुवग्गो कंतारे आणित सहूहिं ||७|| एमेव अंचिएवी गुरूवि गिण्हेउ अन्नमन्नस्स । एक्को पुण परितम्मति बाहिरभावं व गच्छेज्जा ॥८॥ एते उ एवमादी संभोगम्मि उ गुणा भवंती उ । तम्हा खलु कायव्वो संभोगो गुणन्निएण समं || ९ || एयाई ठाणाई जो तु सहू होंतओ पमादेति । अण्णे श्री आगमगुणमंजूषा - १५१० Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SOLO%%%%% %%% %%% (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [४९] र आणेतेत्ती घेत्तू व तं केई॥१९१०|| सेसाण पालणठ्ठा तोतं उम्मंडलिं करेंती उ। जइ आउट्टति जुज्जति ताहे मेलिज्जइ पुणोऽवि ॥१॥ अह पुण चोइज्जतो बहुसो कणाउट्टए उतं दोसं। सति लाभलद्धिजुत्तो निज्जूहंती उतं ताहे ||२|| अहं मंदलाभलद्धी ण य जोगं जुज्जती अंहत्थामं । सो हि खरंटेऊणं मेलिज्जई मंडलीए उ॥३॥ किं के कारण णिज्जुहणा ? जं साहूणं गुणुत्तरधराणं । ण केरई वच्छल्लं तेण उ णिज्जुहणा तस्स ॥४॥ एवं आयरिएण उ जोगो सव्वस्स चेव गच्छस्स । वोढव्वो दि→तो गएण' इत्थं इमो होइ ॥५||जहगयकुलसंभुओगिरिकंदरविसमकडगदुग्गेसु। परिवहति अपरितंतोणियगसरीरूपगते दंते॥ल०१३८॥६॥ तह पवयणत्तिगओ साहम्मियवच्छलो म असढभावो। परिवहति अपरितंतो खित्तविसमकालदुग्गेसुल०१३९||७|| जइ एक्कभाणजिमिता गिहिण्णोऽविय दीहमेत्तिया होति । जिणवयणबहिब्भूता धम्म पुन्नं अयाणंता ल० १४०||८|| किं पुण जगजीवसुहावहेण संभुजिऊण समणेणं । सक्को हु (न) एक्कमेक्को नियओविव रक्खिउं देहो ? ||१४१||९|| केरिसय संभुंजे केरिसयं वावि ऊ ण संभुजे ?। भण्णइ उग्गमसुद्धं भुंजे असुद्धं ण भुजेज्जा ।।१९२०॥ चोदेआहारादी उग्गममादी असुद्ध मा भुजे । जं पुण अपेहणादीकालादीहिं उवहयं तु॥१॥ तं पुण सुद्धोवहिणा मा समयं एक्कहिंतु बंधेज्जा । संघासेणं तस्स उउववाओमा हु सुद्धस्स ? ||२|| भन्नति सुद्धस्स जती संघासेणं तुहोइ उवघातो। सुर्तण असुद्धेण(द्धस्सा)ऽवि पावइ सुद्धी तव मएणं ॥३|अह उवघातोत्ति मतं संफासेण उमता विसोही ते । णणु ते इच्छामेत्तं न य इच्छामित्तओ सिद्धी ॥४॥ उवघातों विसोही वा णत्थिय जीवस्सभावओ एसो। उवघातो विसोही वा परिणामवसेण जीवस्स॥५।। तस्सेव पसत्थस्स उ परिणामस्स अह रक्खणठाए। कीरइ संभोगविही गच्छपसत्तीइ मा गच्छे ।।६।। संभोगकप्पदारं एवं खलु वण्णियं मए एवं । आलोयणकप्पविहिं एवो वोच्छं समासेणं ||७|| दुविहपडिसेवणाए दाट्ठाण दुयागताण ठाणाणं । जस्सेव उ अभिमुहओ आलोएज्जा तदछाए ॥१२७||८|| दप्पिया कप्पिया चेव, दुविहा पडिसेवणा । दप्पियाए उ दोठ्ठाणा, मूले तह उत्तरे चेव ।।९।। कप्पियाएविएमेव, दो ठाणा उ वियाहिया। जयणा अजयणाचेव, एक्केक्का य वियाहिया॥१९३०|| जस्सेव अभिमुहोत्ती जंचेव य काउ विहरते पुरतो। आयरियउवज्झाया तस्सेव उ तं तु आलोए|१|| अहवा जंजह सेवित मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । पाणतिवातादीसु य वएसुतं तं तहाऽऽलोए|२|| अहवा मोक्खाभिमहो मोक्खट्ठाए उ अठ्ठकम्माणं । अणलोइए ण मुंचति कम्हा ? इणमो निसामेहिं ॥३|| जइविय तवगुणजुत्तो होइ मणुस्सो अणुद्धरियसल्लो । ण करेति दुक्खमोक्खं सल्लुद्धरणे पततियव्वं ॥४॥ तं पुण केरिसगस्स उ वियडेयव्वं तु ? जाणतो जो तू । अविजाणते ण कप्पति अजाणतो जो अगीयत्थो॥५॥ पायच्छित्तमयाणतो, ठाणे ठाणे अहाविहिं। आलोयणाए उवसंपयाए ण हु होति पाउग्गो ||६|| किं कारणं ? ण याणति सोहिं साहुस्स सोहिकामस्स । ठाणे ठाणे पुडूवादिएसु मूलुत्तरे वावि ||७|| पाणतिवातादीसु य कारण णिक्कारणे य जयणाए । आलोयणगुणदोसदरिसणेणं हु पाउग्गो ।।८।। गुण अणिगुहियमादी दोसा पुण गृहणादिया होति । एते ण याणे अगीतो तम्हा उ इमस्स णालोए।९।। पायच्छित्तं वियाणतो, ठाणे ठाणे अहाविहिं। आलोयणाए उवसंपयाए सो होइ पाउग्गो ॥१९४०।। पडिसेवणकालोऽविय दुविहे काले पबंधवोच्छेदे । एक्कक्के छक्कएणं आलोयण मा पडिच्छाहिं ।।१२८||१॥ पडिसेवणाऽतियारा दुविहा मूलगुण उत्तरगुणे य । पडिसेवणकालोऽविय दुविहो उउबद्ध वासे य ॥२॥ अव्वोच्छिन्न पबंधं तव्विवरीयं तु होइ वोच्छिन्नं । वयछक्ककायछक्काकप्पादी छक्कमेक्कक्कं ।।३।। अक्कप्पादिछक्कमिणं अकप्प गिहिभायणं च पलियंको। तत्तो य गिहिणिसिज्जा होइ सिणाणं च सोभा य॥४॥ एतेसि छक्कगाणं एक्केक्कं जं तु होइ आवण्णो । तं तं आलोएँ तहा पच्छित्ते यावि आयरिओ॥५॥ आलोयणववहारो संवासिपवासिया ऊ अवराहा । संवासिया उ गच्छे पवासिता कारणगतस्स ||६|| अहवा जा अणवठ्ठो ता संवासी तु होति अवराहा । पारंची य पवासी पवसति गच्छाओ जेणं तु ॥७॥ पंचविहो सज्झाओ दाणग्गहणम्मि भइओ संवासे । पावासिए ण दिज्जति ण य गहणं होइ कायव्वं ।।८|| आवन्नगपरिहरिए अणवठे चेव दोण्हऽवेतेसिं । णवि दिज्जति णवि घेप्पति सेसाणं दाणं गहणं च ॥९|| आलोयणाएँ कप्पो एसो भणिओ मए समासेणं । उवसंपयाएँ कप्पं एत्तो उ समासओ वोच्छं ।।१९५०॥ दुविहम्मि आगमम्मि उ परूवणा चेव आयरणया य। पण्णवणगहणअणुपालणाएँ उवसंपया होइ ।।१|| आगमहेउं उवसंपदा उ स य आगमो भवे दुविहो । सुत्तं अत्थो य तहा पारगए तत्थ उवसंपा ।।२।। दो आयरिया पारग कत्थ उ उवसंपदा तहिं कुज्जा ?। जो णिउणतरं भासति अह निउणं दोवि Horos555555555555555555555555 श्री आगमगणमंजषा - १५११ फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ OM 明明明明折纸兵纸兵纸步步乐乐乐乐明明明明明明明明明乐听听听听听 明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明QQ 55 5555556 OEducation International 201003 Forst & PersonalUse Only _www.jainelibrary.o0) Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं ५०] 历历万岁万岁$$$$$20 C乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢听听听听听听听听听 भासंति ।।३।। सामायारी पडिलेहणादि जो तत्थ आयरावेति । दोसुवि समुज्जतेसूजो तहियं धम्मकहिओ उ|४|| तावि य हु सिक्खियव्वा सज्झायस्सेव जे ण तं अंगं। दोसुवि धम्मकहीसु जो तहियं गाहगो होइ ॥५॥ गाहणसत्तिजुतेसुं दोसु अवी कत्थ होति उवसंपा ?। अतरंतअसहुवग्गं विसेसओ जो उ पालेति ॥६॥ एतेसु विसिठ्ठतरा अण्णाहितोऽरिहाइ उवसंपे। इतरो होइ अज्जोग्गो जइविय सो होइ गीयत्थो ॥७॥ जो उ उसंविग्गं पुण पण्णवाकोविदोत्तिकाऊणं । उवसंपज्जइ बालो तस्स इमे होति दोसा उ||८|| सीहमुहं वग्घमुहं उयहिं व पलित्तगं व जो पविसे । असिवं अवमोयरियं धुवं सि अप्पा परिच्चत्तो॥९|| तह चरणकरणहीणे पासत्थे जो पविसते भिक्खु । जयमाणे उ पजहिउं सो ठाणे परिचयति तिण्णि ॥१९६०|| एमेव अहाछंदे कुसील ओसन्नमेव संसत्ते । जं तिन्नि परिचयंती नाणं तह दंसण चरित्तं ।।१।। के पुण उवसंपज्जे ? तत्थ इमे गच्छ होति चत्तारि । एगो देइ लएइ य बितियो देईन गेण्हइ उ ॥२॥ ततिओ न देति गिण्हइ ण य देइ ण गेण्हती चउत्थो उ। पढमे उवसंपज्जइ सेसा उ तओ णुऽणुण्णाया ॥३|| बितिए णिज्जरलाभं न लभति गेलन्नमादिकज्जेसु । ततिए गिलाणकारण अट्टवसट्टे मरणदोसा ।।४।। दोण्णिऽवि चउत्थे दोसा होइ अवत्थूय तेण सो तम्हा। पढमम्मि जे गुणा खलु हवंति ते मे निसामेह ।।५|| भत्तोवहिसयणासण दाणग्गहणे (लो) य एक्कमेक्कस्स । हट्ठगिलाणे कयकारिते य अणइक्कमोज (जोऽ) त्थ ।।६।। जो पुण ते दुसंती करेइ उवसंपद असुद्धेसु। तिठ्ठाणगाभिलासी हवइ तु वोसठ्ठतिठ्ठाणो ||७|| किंण ठिओ सितहिं चिय? पुट्ठो जपेइ तस्सिमे दोसा। अप्पियसज्झायादी णत्थिय ते यावि जतितस्स ॥८॥ जं दोसं आभासति तं दोसं अप्पणा समावज्जे । जो वि पडिच्छइ तं तु सोऽविय तं चेव आवजे ॥९|| गच्छस्स जोवसंपे असुद्धमावज्जती तगं सोउं । जो पुण पडिच्छामाणो अविणीयादीहिं दोसेहिं॥१९७०|| दूसेउं ण पडिच्छति न संति ते यावि तस्स जदि दोसा। ताहे जं सो वदती तं दोसं अप्पणाऽऽवज्जे ॥१॥जं च असुद्ध पडिच्छति रागेणं तस्स जे भवे दोसा । वोसट्ठतिगट्ठाणादि ते उ स अप्पणा पावे ॥२॥ अरूहा अणरूह उवसंपदा य भणिया उ होति दोऽवेते । अयमण्णो उ अणरिहो सूरी उवसंपदाते उ ॥३|| आहारे उवहिम्मि य पगासणा होइ अणरिहमसड्ढे । एगंतणिज्जरट्ठा संविग्गजणम्मि उद्देसा ॥१२९||४|| आहारउवहिसेज्जा लभिहामी तेण संगहं कुणति । होहामि वा पगासो लोए ण ऊ निज्जरछाए ।।५।। एए होति अणरिहा तितिणिचलचित्तमादिणो जे य । अहवावि मंदसड्ढे आकट्टिविकट्टिए वावि ।।६।। जो पुण इमेहिं पंचहिं ठाणेहिं वादे सो भवे अरू हो । संगहुवग्गहणिज्जरसुतपज्जवजातऽवोच्छित्ती||७|| तस्स पुण णिज्जरट्ठा वाइंतस्स नियमेण सूरिस्स। आहारोवहिपूजापगासणा चेव भवती तु ||८|| विणएणांहारादी उक्कोसा तस्स होति दायव्वा । काले कालणुरूवाजे वावि सभावअणुरूवा।।९।। उच्छूढसरीरो उजइविय सो मंडलीय भुंजति ऊ। तहविय मत्तगगहणं सीसपडिच्छेहि कायव्वं ॥१९८०।। एस अणुधम्मता ऊ जह गोतमसामि सामिणो गेण्हे । हिंडंतस्स पुण इमे तस्स उ दोसा भवंती उ॥१॥ वाए पित्ते गणालोए, कायकिलेसे अचिंतता । मेढी अकारए वाले, गणचिंतावट्टी वादिणो॥२॥ एतेसिंदाराणं वक्खाणुवरि बितिज्जउद्देसे । ववहारे भण्णिहिती वित्थरओ इह समासेणं ॥३|| भत्तीए तु गुणाणं पगासणा तस्स तेहिं कायव्वा । एयारिसो महप्पा उज्जुत्तो अणज्जकालीओ ॥४|| थामावहारविजढो तवसंजमसुठ्ठिओ जियकसाओ । बहुसुय आगमिओ भत्तीएँ पगासए एवं ||५|| एसुवसंपदकप्पो वोच्छं उद्देसकप्पमहुणा उ । उद्दिसण वायणत्ति य पाढणया चेव एगट्ठा ।।६।। सुत्तत्थतदुभयाइं पवायते तावजाव संधा (सट्ठा)णं । बहुपच्चवाययाए विजढे भजियं तु संधा (सट्ठा) णं ॥१३०||७|| संधाणमंतगमणं असिवाई पच्चवादऽणेगविहा । विजढेत्ती निक्खित्ते जोगे भइओ पुणुक्खेवो ।।८।। जइ कारणेण केणई निक्खित्तो तो सि उक्खित्तो तो सि उक्खिव पुणोवि। अह दप्पा णिक्खित्तो तोण उ उक्खिप्पती भुज्जो ॥९॥ उद्दिठ्ठम्मि य अंगे सुयखंधम्मि य तहेव अज्झयणे। आसज्ज पुरिस कारण तिठ्ठाणे होइ पडिसेहो॥१३१॥१९९०|| अंगादी उद्दिढे पुरिसं दवण अपरिणामादी। अच्छति वसट्टरा (या) दिहि अविणीयादी वणाऊणं ॥१|| ताहे निक्खिप्पति ऊ तिठ्ठाणे जंतुभणिय पडिसेहो। तं सुत्तमत्थतदुभय एतेसिं तिण्ह पडिसेहो॥२॥ एतद्देसरकप्पो अहुणा वोच्छं अणुण्णकप्पं तु। कम्ही # काले गहणं वत्थादीणं अणुण्णातं ? ||३|| वत्थंपादग्गहणे वासावासेसु निग्गमो सरदे । तिगपणगसत्तयदुगाउयम्मि अप्पोदगं जाणे ॥१३२||४|| वत्थादीणं गहणं है 00年历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听乐乐听听听听听 Horos 3 55555555555 श्री आगमगुणमंजूषा १५१२ ॥ 555555555555555 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3005555555步步步步步步明 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं $ %%%%%%%%%%% % 乐蛋乐乐乐乐乐国步步兵兵兵乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐$$乐乐乐所56CM णाणुण्णातं तु होइ वासासु । वासादीऍ परेणं दुमासे अण्णे उगेहति ॥५|| तेसिं पुण णेताणं सरदे जइ दोण्ह गाउयाणंतो । दगसंघट्य जहण्णेण तिण्णि पंचेव मज्झिमगा ||६|| सत्तेव उ उक्कोसा गिम्हम्मी तिण्णि पंच हेमंते । वासासु य सत्त भवे परेण खित्तं णऽणुण्णातं ।।७।। अप्पोदगत्ति मग्गा जं तं रीयासु वण्णियं पुब्वि। तं अद्धद्धे जोयण दगघट्टा जाव सत्तेव ॥८॥ वत्थंपायग्गहणे णवसंथरणम्मि पढमठाणम्मि । एत्तो वइक्कमम्मि उ सठ्ठाणासेवणा सुद्धी ।।१३३||९|| पढमं ठाणुस्सग्गो तेणं तू नवसु होइ खित्तेसु । वत्थादीणं गहणं तत्थेव य होइ उ विहारो ||२०००|| णवठाणाइकमे पुण हवती सठ्ठाणओ विसुद्धो उ । किं पुण तं सट्ठाणं अववादे असति तो होइ ? ॥१॥ अववादेणं गहणं उस्सग्गो चेव होइ सो ताहे। गेण्हतस्स उ कारणे सुद्धी तह चेव बोद्धव्वो ॥२।। जह गिण्हंतुस्सग्गे सुद्धी उवहिस्स एव बितिएणं। गेण्हतस्स विसुद्धी सठ्ठाणं एवमक्खातं ।।३।। अहवावि इमे अण्णे, णव उठाणा वियाहिया । दव्वाईया उइणमो, वोच्छामि अणुपुव्वसो॥४|| दव्वे खेत्ते य काले य, वसही भिक्खमंतरे। सज्झाइए गुरू जोगी, एते ठाणा वियाहिया।।५|| दव्वाणाहारादिणि जादि तु सुलभाई तम्मि खेत्तम्मि। खित्तं विच्छिन्नं खलु वत्तेतसुणेतगगणस्स ॥६।। वत्तण परियटुंती सुणेति अत्थं गणो उ बालादी । तस्स पहुच्चति खेत्तं आहारादीहिं संथरणं ॥७|| काले ततियाएँ वेला वसही जोग्गाओ भिक्ख सुलभंति । ण विगिठ्ठमंतराविय सज्झाओ सुज्झति जहिं च ।।८।। सुलभं आयरियाणं जोग्गं जोगीण सुलभ पाउग्गं । एते ते नव ठारा जहिं उस्सग्गेण गहणं तु ।।९।। उस्सग्गेण ' विहारो संथरमाणाण णवसु खित्तेसु । तो सव्वुग्घादेवही नवि पेल्ले यावि दगघट्ये ॥२०१०|| णवि दूरे गच्छंती णवगस्स असंभवे बितियठाणं । दगघट्टे बहुएवी पेल्ले दूरंपि गच्छेज्जा ।।१|| दुलभम्मि वत्थ पाए ऊणहिएंसुपि नवसु गच्छिज्जा । एमेव विहारोवि हु खेत्ताणऽसती मुणेयव्वो ॥२॥ आलंबणे विसुद्धे दुगुणं तिगुणं चउग्गुणं वावि । खेत्तं कालातीते समणुण्णातं पकप्पम्मि ॥३॥ एस अणुण्णाकप्पो अहुणा अद्धाणकप्प वोच्छामि । जेहिं च कारणेहिं अद्धाणं गम्मए इणमो ॥४॥ असिवे ओमोयरिए रायडुढे भए व आगाढे । देसुठ्ठाणे अपरक्कमे य अद्धाणओ पणगं ॥५|| उद्दद्दरे सुभिक्खे अद्धाणपवज्जणं तु दप्पेणं । दिवसादी चउलहुगा चउगुरूगा कालगा होति ।।६|| उग्गमउप्पायणएसणाएँ जे खलु विराहते ठाणे । तंनिप्फन्नं तस्स ऊ पायच्छित्त तु दायव्वं ॥७॥ पुढवी आऊ तेऊ चेव वाऊ वणस्सति तसा य। णतेसु परित्तेसु य ज जहिं आरोवणा भणिया ||८|| लहुओ गुरूओ लहुगा गुरूगा चत्तारि छच्च लहुया य । छगुरूय छेदो मूलं अणवठ्ठप्पो य पारंची ।।९।। असिवे ओमोदरिए रायढुढे भए व आगाढे । गीयत्था मज्झत्था सत्थस्स गवेसणं कुज्जा ॥२०२०|| कालमकाले भोती णाऊण य अहिवति अणुण्णवणा भिच्छुयमिच्छादिठ्ठी धम्मकहाए निमित्ते य॥१॥ सुत्तयसमए संखडि पत्थय (रिच्छ) णे खलु तहेव पोग्गलिए। धम्मकहनिमित्तेणं वसहा पुण दव्वलिंगेणं ।।२।। सत्थे पंथे तेणे पंचविहो उम्गहो य दव्वाणं । सुन्नग्गामे दव्वग्गहणं जयणाए गीयत्था ॥३॥ तुवरे फले य पत्ते गोमाहिसे सूयरा य हत्थी य । आतवमणायवे च्चिय जयणाए जाणगे गहणं ॥४॥ पिप्पलगसूतियारिगणक्खच्चणतलियपुडगवज्झे य । कत्तियकत्तरियसिक्कग संवट्यग लाउए चेव ।।५।। वाइयपेत्तियसिभियगुलिगांण अगदसत्थकोसे य । जं चऽण्णुवगहकरगं गिण्हह अद्धाणकप्पम्मि ||६|| सीहाणुगा य पुरतो वसभाणू मग्गतो समण्णिति । पंथे तंपियजंता धरेति जा अद्धपज्जत्ती ॥७।। दंडियमिच्छद्दिठ्ठी समुदाणनिवारणं च निव्विसए । सारूविसन्निभद्दग वसभा पुण दव्वलिंगेणं ॥८॥ उवकरणचरित्ताणं विलोवणा सरीरलोयऽरागाढे। धम्मकहनिमित्तेणपुलागकज्जेण आगाढे ।।९।। असिवादिकारणेहिं अद्धाणपवज्जणं अणुण्णातं । उवकरणपुव्वपहिलेहिएण सत्थेण गंतव्वं ॥२०३०॥ वच्चंताणं असहू कोई ण तरिज्ज गंतु पादेहिं । अपरक्कमो हु ताहे तवियं तु इमे विमग्गेज्जा ॥१॥ एगक्खुरे य दुखुरे दुपए अणुबंधे तह य अणुरंगा । अह भद्दएऽभिजायति असती अणुसठ्ठिमादीहिं ॥१३४।।२।। एगखुरा आसाती दुखुरा उट्यादि दुपय जड्डादी। अरुबंधी सकडादी अणुरंग पिसी उ (सिविय) बोद्धव्वा ।।३।। एतेसिं पुव्वुवठ्ठ खुरादि जाइत्तु सिद्धपुत्तादी। असतीय खुड्डतो वा लिंगविवेगेण कढति तु ॥४॥ आवासियम्मि सत्थे तस्सेव तगंपि अप्पिणंति पुणो । अह भणइ गता संता अप्पेज्जाहत्ति मम एयं ।।५।। ताहे पच्छकडादी चारेती तेसि असइ उ खुड्डो। लिंगविवेगं काउं चारेति जा गतठाणं ।।६।। एवं दुखुरादीसुवि जयणा जा जत्थ सा उ कायव्वा । सुत्तत्थजाणएणं अप्पाबहुयं तु णायव्वं श॥७॥ एतेसामन्नतरं अणगालंबणे णिसेविज्जा । तठ्ठाणगावराहे संवट्टियमोऽवराहणं ।।८।। संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण vex 5 5555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १५१३555555555555555555555555555 OR 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明创 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TOR95555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं [५२] 5555555555555520 CCF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明刚 चरिमम्मि ॥९॥ अद्धाणकप्पो एसो अहुणा अणुवासराए कप्पं तु । वोच्छामि गुरूवएसा अणुग्गहठ्ठा सुविहियाणं ॥२०४०॥ अणुवासम्मि उ कप्पे पण्णवग पडुच्च बहुविहा अत्था। अणवासियाएँ पगयं सुद्धा यतहा असुद्धा य॥१॥ अणुवासत्थो बहुहा उडुवासे वसण अहव असिवादी । वुड्डादीवासो वा अहवा अणुवसणमणुवासो ॥२।। वसिउं पुणोवि वसती अणुवासिग वसहि सामइगी सन्ना। तीयहिगारो एत्थं सा हुज्जा सुद्धऽसुद्धा वा ||३|| पट्ठविसादीहिं वंसगकडणादिएहिं तह चेव । होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य ||४|| कालढुयातिरित्तं अविसुद्धासुं च तासु वसमाणो । पावति पायच्छित्तं मोत्तूर्ण कारणमिमेहिं ।।५।। असिवे ओमोयरिए रायद्दढे भए व आगाढे । गेलन्ने उत्तिमढे चरित्त सज्जातिते असती ॥६॥ बाहिं सव्वत्थऽसिवं तत्थ सिवं तेण कालदुयगम्मि पुण्णेवि ण णिग्गच्छे अणु पच्छाभाव अणुवासी ॥७॥ आलंबणे विसुद्धे सुत्तदुयं परिहरे पयत्तेणं । आसज्ज उ परिभोगं भयणा पडिइवसंकमणे ॥१३५||८|| असिवादीहिँवसंते सुद्धाए वसहीऍ वसे साहू। सुद्धासतीए जतती विसोहिकोडीऍ पुव्वं तु ॥९|| भयणत्तिय जं भणितं पुव्वऽप्पतराऽत्थ जे उजे दोसा। ते ते पुव्वं सेवे संकमणेऽवी इमा भयणा ।।२०५०।। अप्पाबहुं तुलेतुं जत्थ गुणा तू भविज्ज बहुतरगा । गच्छे गच्छंताण व तं चेव तहिं करेज्जा उ॥१|| असिवादिणिट्ठिए पुण अव (पुव्वऽ) क्खेवेण संकमे तत्तो। सत्थं तु पडिच्छंतो जइ अच्छे तत्थ सुद्धो उ ।।२।। एतन्नतरविहूणं अणुवासिय जे उ अणुवसे कप्पं । कालढुयावराहे संवट्टयमोवराहाणं ।।३।। संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयापकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥४॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो वण्णिओ समासेणं । ठिइकप्पमो उ तत्तो वोच्छामि गुरूवएसेणं ।।५।। गच्छाणुकंपयाए सुत्तत्थविसारए य आयरिए। आगाढ़े पढमसंजत ओवग्गहिए पकप्पदुए ||६|| गच्छो जदी हीरेज्जा आयरियं वावि वायते कोई । एरिसए आगाढे जस्स उ जा होइ लद्धी उ॥७|| सोतं न पमाएई पढमनियंठो पुलागलद्धीओ। गच्छोवग्गहहेउं कारण पकप्पट्ठिअऽणुण्णा ॥८॥ दुपएत्ति साहुसाहुणि तदट्ठहेतुं तु एव मूलगुणे । भणिया सेवा एसा सीसो पुच्छइ उ अंह इणमो।।९।।जह कारणम्मि भणिया मूलगुणेसुंतु एव पडिसेवा । तह होज्ज कारणम्मी पडिसेवा उतरगुणेवि?||२०६०|| गुरूयतरएसु एवं मूलगुणेसुं तु जइ भवेऽणुण्णा उत्तरगुणेसु तत्तो लहुयतरेसुं ततोऽणुण्णा ॥१|| ठितकप्पेसो भणिओ अहुणा वोच्छामि अठ्ठितं कप्पं । संखेवपिंडितत्थं जह भणियमणंतनाणीहिं॥२॥ वत्थे पादग्गहणे उक्कोसजहण्णगम्मि अठिओउ। ठितमट्टिते विसेसो परूवितो संपकप्पम्मि॥३॥ वत्थाणि य पायाणि य मज्झिमतित्थंकराण कप्पम्मि। बहुमोल्लाणिवि गिण्हइ अट्ठियकप्पो समक्खाओ||४|| मोल्लगरूयंपि वत्थं अट्ठारसपणितरूवग जहण्णं एत्तो य सयसहस्सं उक्कसमोल्लं तुणायव्व।।५।। ऊणगअट्ठारसगं वत्थं पुण साहुणो अणुण्णातं । एत्तो वइरित्तं पुण णाणुण्णातं भवे वत्थं ।।ल० १४२।।६।। जिणथेराणं कप्पं अहुणा वोच्छामि आणुपुव्वीए। जं जत्थ जहा निवयति समासतो तं तहा सुणसु ॥७॥ जिणथेरांणं कप्पो जम्हा उ ठितम्मि अट्ठिए चेव । ठितअद्वितकप्पाणं जम्हा अंतरंगता एते ॥८॥ जो उ विसेसो एत्थं तं तु समासेण णवरि वक्खामि । जिणथेराणं कप्पे जिणकप्पे ता इमं वोच्छं॥९॥ दुयसत्तए तियचउक्कगस्स अद्धद्धएगछेदेणं । अवि होज कालकरणं पुणरावत्तीणविय तेसिं॥१३६||२०७०॥ पिंडेसणा उ सत्त उहवंति पाणेसणा दुसत्तेए। चउ सेज्जवत्थपाए तिण्णेते चउक्कगा होति ॥१|| दोण्णादिमा उ सत्तसू अवणेउं सेस उवरिमा पंच | अद्धद्ध होति छेदे दो दो अवणे चउक्केसु ॥२॥ गेण्हति उवरिमासु तत्थ अवि घेत्तु अण्णतरियाए । हेडिल्लासु ण गेण्हति जइवि करे कालकिरियं तु ॥३|| अणभिग्गहेण णवि ता गेण्हेति विही उ एस जिणकप्पे । अहुणा उ थेरकप्पे वोच्छामि विहिं समासेणं ॥४॥ गहणे चउव्विहम्मि बितिए गहणं तु परमजत्तेणं । जं पाणबीयरहितं हविज्ज तरमाणए सोही ॥१३७।।५।। गहणं चउव्विहंती वत्थं पायं च सेज्ज आहारो। एतेसिं असतीए गहणं पढमं तु बीयस्स॥६॥ बितियं पातं भन्नति किं कारण तस्स गहण पढमं तु ?। तेण विण बोडिपडिमे गिहिभायणभोगो हाणी य ॥७॥ अहवा चउव्विहं तू असणादी तत्थ होज्ज गहणं तु । तत्थ उ बितियं पाणं तस्स उगहणं पढमताए।ल० १४३||८|| असतीय फासुयस्स तस्सहिए कंदबीयसहिए वा । किं कारण ? तेण विणा आसुं पाणक्खओ होज्जा ल० १४४॥९॥ तरमाणों गेण्हती सुद्धं, अतरो पेल्ले तह संथरे । संथरतो उ गेण्हतो, पावति सठ्ठाणपच्छितं ॥२०८०|| सत्तदुए दसए वा अणेगठाणेण वा भवे गहणं । एत्तो SNO明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听03 reOFFFFFFFFFF55555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५१४ 5555555555555555555555555 FESTION Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुतं फ्र [ ५३ ] तिगातिरित्तं गच्छे गहणं तु भइयव्वं ॥ | १ || पिंडेसण पाणेसण सत्तदुगे तं तु होइ णायव्वं । दसगं एसणदोसा गठ्ठा (हा ) णुग्गमे दोसा ||२|| तो तिगातिरित्तं . उग्गमउप्पायणेसणाऽसुद्धं । भजियंति कप्पतित्ती तस्सऽसतीए असुद्धंपि ॥ ३॥ एसो उ थेरकप्पो वोच्छं अणुपालणाए कप्पं तु । अणुपालेति सुविहिया गच्छं विहिणा उ जेणं तु ॥४॥ परियट्टी परियट्टंतओ य दुविहो पुणोवि एक्वेक्को । उवसग्गखेत्तकालावसेण अज्जाण परिवट्टी || १३८|| ५ || परियट्टियव्वयं खलु परियट्टी चेव होइ एगडं | समासमणीओ वा दुविहं परियट्टियव्वं तु ॥६॥ समणपरियट्ट दुविहो आयरिओ बीयओ उवज्झाओ। संजइपरियट्टो पुण तिविहो तु पवत्तणी तइया ||७|| समणिपरियट्टि दुवा विहिरीय अविहिए चेव । जतिणि य परियट्टियव्वा नियमेणं कारणेणिमिणा ||८|| ताओ बहूवसग्गा तेणादिदुसंचराणि खेत्ताणि । कालवसेण य संपति जाति लोगस्स पंतत् ॥ ९॥ तम्हा सव्वपयत्तेण रक्खियव्वा उ ताओ नियमेणं । णवि सतिरा मोत्तव्वा मा होज्जा तासि उ विणासो ॥। २०९० ॥ संविग्गगीयपरिणओ तासिं परियट्टओ अणुण्णाओ । होइ पुण अणरिहो खलु परियट्टी ऊ इमो तासि || १ || अबहुसुए अगीयत्थे, तरूणे मंदधम्मिए। कंदप्पी सीलणठ्ठा, अविहीदा गहणे य ॥१३९॥२॥ बहुसुयगीय जहन्नो आवासगमादि जाव आयारो । ते अग्गीतऽबहुस्सुत तिण्ह समाणारतो तरूणो ||३|| जो उज्जोगं ण कुणति चरणे सो होइ मंदधम्मो उ । अणिहुयउल्लावादी सरीरकुवि (रूइ) ओ य कंदप्पी ||४|| निक्कारणे अण्ट्ठा संजतिवसही उ वच्चए जो उ । निक्कारणमविहीए जो देती ह ॥५॥ एारिस उ अज्जाणं, परियट्टी उण कप्पति । कारणेहिं इमेहिं तु, गम्मइ अज्जाणुवस्सयं ॥ ६ ॥ उवस्सए य गेलण्णे उवही संघ पाहुणे । सेहट्ठवण उद्देसे, अणुण्णा भंडणे गणे ||७|| अणप्पज्झ अगणी आऊ, वी (ती) यारे पुत्तसंगमे । संलेहणे वोसिरणे, वोसठ्ठाणे ठिते तहिं || ८|| अरिहो अणरिहो यावि, परियट्टी एवमाहिओ । अंहुणा पवित्तिणी तासिं, अजोगा उ इमा भवे ॥ ९ ॥ वासग्गामविहारेसु, वीयारादेक दीहिया । अजुत्तोवहि अणाउत्ता, अप्पच्छंदा य काहिता || १४०||२१०० ॥ पड़िणीयथद्धसुहसीला, गिहिवेयावच्चकारिता । संसत्तठवियभत्ता य, बाउसी अप्पणट्टिता || १ || अणायतणगवेसा य, छण्णंगाणं पलोइया । जा यऽण्ण एवमादी य असा कुता ॥ १४१ ||२|| आहारे उवहिमि य गतीऍ सयणासणे सरीरे य। भासाऍ बाउसाणं जा जहिं आरोवणा भणिया ॥३॥ वासावासं वसति तु एक्किया तह गामअणुगामं । दूइज्जती वियारं विहार भिक्खादि एक्का य ॥४॥ दीहं करेइ गोयर दोच्चमुक्कससगाणि मग्गंती । चित्तलियादिनियंसण अजुत्तउवही भवति एसा 1 ||५|| इरियभासेसणादाणनिक्खेवे निसिरणे अणाउत्ता । अणपुच्छाए गच्छइ जत्थिच्छाए य सच्छंदा || ६ || गेहेसु गिहत्थाणं गंतूणं कहा कहेति काहीया। तरूणादी अहिवडंते अणुजाणति जा उसा पडिणी ||७|| थद्धा जच्चाइमयाइएहिं सुहसील दुठ्ठसीलत्ति । सिव्बणबंधणमादिसु वेयावच्चं गिहीण करे ||८|| उक्कस्सवत्थपत्तादिहिं संसत्तभाव संसत्ता | अहवावि गिहत्थेसुं पाउरणादीसु अविभत्ती ||९|| भत्तं वा पाणं वा निक्खिवती बाउसा उ जा धुवति। अभिक्खं तु हत्थपादे कक्खंतरगुज्झमादीणि ॥२११०॥ सण्णिहिंसनिचए चेव कुणइ जा अप्पणो अणठ्ठाए। अप्पं वावि अणठ्ठा संचयं जाय करणं तु || १|| जंतादिसाल तह वट्टकोट्ट एमेव सोल ठाणाणि । जा गच्छइ एतेसुं अणायतणगवेसिता सा उ ||२|| गुज्झंगाणि पलोए अप्पणो अहवावि जा उ पुरिसाणं । उक्कोसगमाहारं एसति उवहिं च उक्कोसं ||३|| गच्छति सविलासगती सयणिज्ज सतूलियं सबिब्बोयं । उव्वट्टेइ सरीरं सिणाणमादी व जा कुणति ||४|| भमुहुक्खेवादीहिं सविकारं भासति य सविलासं । एमादि अणरिहा तू च्छित्तं वावि सद्वाणं ||५|| तत्थ पुण ताव इणमो पच्छित्तं भण्णई समासेणं । देतगधरेंतगाणं अगीतमादीण दोपहंपि ||६|| अबहुसुते अगीयत्थे णिसिरेज्न गणं तु अहव धारेज्ना । तद्देवसितं तस्स उ मासा चत्तारि भारियया ||७|| सत्तरत्तं तवो होइ. ततो छेदो पधावती । छेदेण छिन्नपरिताए, ततो मूलं ततो दुर्गं ॥८॥ एक्क्कं सत्त दिणे दाउ तवेऽतिच्छिए ततो छेदो। जत्तो तवो आरद्धो पणगादिकडो व जहिं केइ ||९|| तुल्ला चेव य ठाणा तवछेदाणं वहं (हवं ) ति दोण्हंपि । पणगादिपणगवडी दोहवि छम्मास निठ्ठवणा ||२१२० || किं कारणं न कप्पति गणहरो अबहुस्सुतो अगीयत्थो ? | भण्णइ से पच्छित्त जयणं च ण जाणए काउं ॥ १॥ दिठ्ठतो णट्टेणं अजाणमाणेण जाणणं च । कायव्वो इत्थ इणमो परूवणा तस्सिमा होइ ||२|| गेयम्मि अहिणवम्मि य सरसंचाराण कुहरणासुं च । कुणइ विवच्चासं खलु जह श्री आगमगुणमंजूषा १५१५ YO Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं ट्टमसिक्खितो णट्टो || ३|| तह कुणति विवच्चासं अग्गीतो सव्वकरणजोगेसु । सुत्तत्थमजाणतो नाणे तह दंसण चरित्ते ||४|| जह नट्टगीयवाइयविजाणओ जुंजए समं तालं । सुत्तं तु विजाणंतो तह कुणती सम्मकरणं तु ॥ ५॥ किं पुण सो नवि जाणइ जं कुणती सव्वहिं विवच्चासं ? । भण्णइ सुणसू इणमो जं कुणती सो विवच्चासं ॥६॥ ठाणणिसीयतुयट्टणपेहणपप्फोडणे तहा सयणे । भासा सुद्धग्गहणे जे अण्णे परूबिया ठाणा ||७|| उवदिसिउं णवि जाणइ सामायारिं तु ठाणमादीयं । अज्जावि गीताण जाणए सावि तह चेव ||८|| अप्पच्छंदिओ लुद्धो, परिभूओ य पत्थिओ । बहुलोहमोहसण्णो, अज्जावग्गो दुरणुकड्डो ||१४२||९|| पाएणमप्पंछंदा महग्घदाणेण लोभित अकिच्चं । कुव्वंति छगलियाविव परिभूताआ य सव्वस्स ॥ २१३०|| मंसादिपेसियाविव संजतिवग्गो हु पत्थणिज्जो उ । धिज्जाइयदिठ्ठीसुं बहु बहुमोहसण्णाओ || १ || मज्जायविप्पहूणे मज्जायाए य संपउत्तम्मि । पडिसेहोऽणुण्णा ऊ मग्गधर विलोमता चउरो ||२|| जम्हा उ दुपरियट्टो अज्जावग्गो उ ते पडिसेहो । परियट्टणे अज्जाणं मज्जायाविप्पहूणस्स || ३ || मज्जायसंपतो अज्जापरियट्यओ अणुण्णाओ । परियट्टए अजोगे उवठ्ठिए चउगुरू सोही ||४|| मग्गधरो आयरिओ सो पुण सिढिलेइ जो मज्जायं । तस्सुवदेसो कीरइ मज्जायाए दढो होस ||५|| उवदेससार पडिसारणा य तेण पर तिण्णि मास लहू । छंदे अवट्टमाणं अप्पच्छंदं विवज्जए ॥६॥ दिठ्ठेता य इमेसिं पढमा मासलहुगावि दिज्जति । छगणोल्लपट्यरूंचणअवराहे सूरिसु कमेणं ||७|| आयरणे उवदेसो अकप्पपडिसेवणे य उवदेसो । विकहादिपमाएसु य मा वट्टह एस उवदेसो ||८|| णिद्दाइपमादाइसु सई तु खलियस्स सारणा होइ । णणु कहिय ते पमाया मा सीदसु तेसु जाणंतो ॥९॥ विसं बीए वा सदतो वुच्चए पुणो तइंयं । अण्णं वेल ण सज्झं भिक्खण्णादीहिं संमत्तं ॥ २१४०|| फुडरक्खे अचियत्तं गोणो उदितो व मा हु पेल्लिज्जा। सज्झं अओ ण भन्नइ पसन्नचित्ते ततो सारे ||१|| भण्णति दिण्णुवदेसो तुब्भं बितियं च सारितऽम्हेहिं । एगवराहो ते सृ बितियं पुण ते णवि सहामो ||२|| ताहे पुणोऽवराहे कयम्मि पच्छित्तं देति मासलहुं । भण्णइ य सुणेहेत्थं दिठ्ठतो तेणएणं तु ॥ ३ ॥ गोणादिहरणगहिओ मुक्को य पुणो सहोढ संगहिओ । उल्लोल्लछगणहारी न मुच्चती जायमाणोऽवि ||४|| पुणरवि कतावराहे मासलहुं चेव देति से सोही । भन्नति घट्टिज्जंतं च (त) क्वत्थं दुठ्ठ तह तुमंपि ॥ ५॥ पुणरवि अवरद्धम्मिं मासो चिय तेसि दिज्जते दंडो । पाणो सो संपत्तो अरूचियकुंकुमं तइयं ||६|| तेण पर णिच्छुभवणं कुलगणथेरादि तस्स कुव्वंति । अयमण्णोऽवि नियमो भण्णइ तू जस्सिमे दोसा ||७|| अप्पच्छंदियलुद्धं, गिलाणं दुपडिजग्गगं । वामं सगव्वितं णच्चा, संवासोऽवि ण कप्पति ॥१४३॥८॥ उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छायणाऍ मग्गस्स । मग्गगधरउवालंभे मासा चत्तारि भारियया ॥९॥ आयरियाणं छंदे ण वट्टती अप्पछंदिओ सो उ । आहारादुक्कोसं लद्धं अत्तट्ठि लुद्धो उ ॥ २१५० || जो उ गिलाणो अपत्थं मग्गइ सो होइ दुपडिज्जग्गो उ । ठाइसु भणिओ वच्चइ वच्चति य ठाइ वामो सो || १ || जच्चादिमादिएहिं करेत्ति गव्वं तु परिभवति अन्नं । नाणादीया मग्गो परूवणा अन्नहा तेसिं ॥२॥ नाणादिसु सीदंतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेति । एसो मग्गच्छदो वड्ढती दीहसंसारं ॥ ३ ॥ एतेसिं तु विवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया घेरा । तेहिं उवलद्वाणं उठ्ठियाणं गुरू चउरो (मासा) ||४|| बालाणं बुड्डाणं भिक्खुमाईणं चेव सव्विसिं । संखेवेण महत्थो उवएसो कीरई इणमो || ५ || कप्पे सुत्तत्थविसारएण थामावहारविजढेण 7 भत्तादिलंभऽलंभे सक्कारजढेण होयव्वं ॥ १४४॥६॥ कप्पेति थेरकप्पे सुत्तत्थविसारएण साहूण । सव्वत्थेसू सबलं ण गूहियव्वं समत्थेण ||७|| आहारमादिएहिं दडुं धायारमादि पुज्जंते । साहू अपुज्नमाणे ण एव मणसा विचिंतेज्ना ॥८॥ पूइज्जती अजया वयं तु सव्वण्णुमग्गमोइण्णा । हा कह णु न पुज्जामो ? न करे मणदुक्कडं एवं ||९|| सक्कारपुरक्कारे परीसहे उ अहियासऊ एवं । जूरंते णऽहियासिओ तम्हा सुमणेण हायव्वं ॥ २१६० || वीसइविहकप्पो ऊ एसो खलु वण्णिओ समासेणं। बाया कप्पमहुणा गुरूवएसेण वोच्छामि ॥१॥ दव्वे भावे तदुभय करणे वेरमणमेव साहारो। निव्वेस अंतर णयंतरे य ठिय अट्टिए १० चेव || १४५ ||२|| ठाण थेर पज्जुसणमेव सुत्ते चरित्तमज्झयणे । उद्देस वायण पहिच्छणा य २० परियट्टऽणुप्पेहा ॥१४६॥३॥ जायमजाए चिण्णमचिण्णे संधा (ठा) णमेव चयणे य । उववाय णिसी या ३० ववहारे खेत्तकाले य ॥ १४७॥ ४ ॥ उवही संभोगे लिंगकप्प पडिसेवणा य अणुवासे । अणुपालणा अणुण्णा ४० ठवणा कप्पे ४२ य बोद्धव्व ॥ १४८||५|| एतेंसि तु पयाणं पत्तेय परूवणं पवक्खामि । तहियं तु दव्वकप्पो इणमो उ समासओ होति ||६|| पंचहं असणादीण पणुवीसति हि भवे विसोहीओ | अहवावि उ mojoin- 156 XGKOKK [ ५४ ] No : 25 5 5 5 4 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ESC$$$$$乐乐明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐听听乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐明明明明明乐明明明明明明明6C ROSSESS5555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं 59555555555555RNOR चउदसया एत्तो तिगवद्धिया सोहि ॥७।। असणं पाणं वत्थं पायं सिज्जा य पंच एतेसिं । सुद्धी पणुवीसइया उग्गम तह एसणाए य ।।८||सुरणाणपमाणेण उ गहिय असुद्धेऽवि होइ सुद्धो उ। अहवावि उछद्दसया सोलस उप्पायणादोसा ।।९।। एएसिसव्वेसिंहणपयणकिणादिणवहिं कोडीहिं । कयकारियाणुमोदित एसा तिगवडिया सोही ।।२१७०|| दसणनाणचरित्ते तवपवयणसव्व (च) समिति तिहिं गुत्तो। हतरागदोसनिम्ममखमदमनियमठ्ठिओ निच्चं ॥१॥ तदुभयकप्पो अहुणा एते चिय दव्वभावकप्पा उ । दोण्णिवि मिलिया एते तदुभयकप्यो इमो सो य श आहारे अठ्ठविहे सेज्जोवहिं पंच पंचग विसोही। दंसणचरित्तगुत्तो तवसमितिगुणेहिं सोहे (हो) ति ||३|| असणादीओ चउहा उवकारि चउब्विहो य तस्सेव । एसऽठविहाहारो परूवणा तस्सिमा होइ ल० १४५||४|| असणं तु ओदणादी तदुवकारी उ खीरकुसणादी । पाणं तु पाणमेव उ कप्पूरादी उ उवकारील० १४६।।५।। खाइम फलाइयं तू सुत्ता (ण्ठा) दी होति तदुवकारी उ। साइम तंबोलादी चुण्णादी तदुवकारी उ॥ल० १४७||६|| एवं आहारादी उग्गमउप्पायणेसणासुद्धे । उप्पाए दंसणादीहिं जुत्तो अहवा तदठ्ठाए ||७|| विरती य अविरती या विरयाविरती य तिविह करणं तु । एक्केक्कं होइ दुहा आहे य अभिग्गहे चेव ॥१४९||८|| विरतीकरणं ओहे पंचेव महव्वया भवंती उ। होति अभिग्गहकरणं पिंडविसुद्धादि णेगविहं ।।९।। अहवा ओहे संजमो विभागओ होइ सत्तरसभेदो। अविरति असंजमोहे अठारस अभिग्गहे इणमो॥२१८०॥ पाणइवाए मोसे अदत्त मेहुण परिग्गहे चेव । कोहमाण (मय) मायलोभे पेज्जे दोसे तहा कलहे ।।१|| अब्भक्खाणे पेसुन्न अरति रई चेव मायमोसे य। मिच्छादसणसल्ले अट्ठारस अभिग्गहे एस ।।२।। विरताविरतीए पुण ओहेण अणुव्वया भवे पंच । उत्तरगुणा अभिग्गह हवंति सिक्खावता सत्त ॥३॥ एत्थं पुण अहियारो विरतीकरणेण होइ दविहेणं । जह तेसु अतीयारो न होति तह ऊ पयतियव्वं ॥४॥ उज्जामरक्खियाणं महन्वयाणं कओ हवति पीला | भन्नति आहारादिहिं तिहिं पीडा होतऽसुद्धेहिं ॥१५०॥ल० ॥१४८१५|| उज्जम उज्जोओ खलु एतेणं रक्खियाण उ वयाणं । पीला उवघाओ खलु भवति कहं पुच्छती सीसो॥६।। भण्णति आहारोवहिसेज्जा एतेहिं तिहिं असुद्धेहिं । उम्गमदोसादीहिं उ पीला संजायति वयाणं ॥७॥ तम्हा उ उग्गमादीहिं विसुद्धाऽऽहारमादिया कज्जा । वेरमणकष्प एसो एत्तो साहारणं वोच्छं ।।८।। सेज्जवहिज्झाय आहारमेव साहार तह य अणुकंपा । आदिपणगं तु तुल्लं भइयं अणुसासणाए उ ॥१५१।९।। सेज्जवहिझायआहार पसिद्धा एते होति चत्तारि ।साहारणकप्पो पुण मूलगुणा उत्तरगुणा य ॥२१९०|| साहारणत्ति किं पुण सेज्जादुप्पादगाण सव्वेसिं । सामण्णगुणा ते ऊ तम्हा साहारणं जाण ||१|| आदिपणगं तु तुल्लंति जाण सेज्जाति जाव साहारं ठियमट्ठियाण दोण्हवि एए खलु होति तुल्ला उ॥२।। अहवा तिपणग मूलगुण पंचेते होति दोण्ह तुल्ला उ । समणाण व समणीण व तम्हा साहारणं जाणे ॥३॥ भइयमणुसासणंती अणुकंपऽणुसासणन्ति एगट्ठा । कोइ कदाइ अणिउणो ण तरति अणुसासणं काउं ।।४।। सुहभारियत्तणेणं होति विसुद्धो य अंतरप्पा से। तस्सवि होति वताई पंचवि साहारणाई तु ॥५॥ आणा तित्थगराणं सामण्णा संजयाण सव्वेसिं । सुमेवि तप्पमाए अणुसासणयं कुणइ जो उ ।।६।। तेण अणुकंपिया णिच्छएण जम्हाणुस (उ उ) छिता होति । तेणऽणुकंपऽणुसठ्ठी (सऽणुसठ्ठऽकंपा) एगठ्ठा होति नायव्वा ॥७॥ साहारकप्प एसो अहुणा वोच्छामि णिव्विसणकप्पं । जह निव्विसंति समणा सम्मं तु गुरूवएसेणं ।।८। नाणं चदंसणं वा तहा चरित्तं च समितिगुत्तीओ। क्कासीतिपदेहिं निव्विस निव्वेसणाकप्पो॥९॥ छव्विहकप्पादीया ॥ बायालंता उ पंचवी एते । मेलीणा उ भवंती एक्कासीयं भवे भेदा ॥२२००॥ नवरं छव्विहकप्पे वीसतिकप्पे य णामठवणाओ । भोत्तुं सेसा सव्वे एक्कासीइं तु मेलीणा॥१॥ एए सव्वे सम्मं निविसमाणस्स निव्विसणकप्पो । एतेसिं पुण कतरा महिड्डिओ होइ सव्वेसिं ||२| सव्वेऽविहु चरणविसोहिकारगा तहवि अत्थि हुई विसेसो। सद्दहणाचरणाए भइत्तं पुण पालणाए उ ॥३॥ सद्दहणाकप्पो या आचरणा चेव दो पहाणतरा । अहवा सद्दहण च्चिय सद्दहिउं जो ण आयरति ॥४॥ भइयमणुपालणत्तिय सद्दहिऊणंपिण तरई कोई। अणुपालेउं अज्जा तम्हा खलु सोण पव्वावे।।५।। णिव्विसणकप्पो एसोएत्तो वोच्छामि अंतराकप्पं । संखेवपिडियत्थं गुरूवएसं जहाकमसो॥६॥पंचठ्ठाणमसंखा बारसगं चेव तिण्णिवि तियाणं । अज्झत्थनाणकरणठ्ठयाएँ सो अंतराकप्पो॥१५२।१७।। सामादिसंजतादी पंचह चरणं तु 乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$$$$$听听$$$$$$$乐听听听听听$$$$ Education International 2010_03 www.jainelibrary.or Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [ ५६ ] तेसि एक्केक्संजमंठारमसंखा एक्केक्के तत्थ ठाणम्मि ||८|| होति अणंता चारित्तपज्जवा ताणऽसंखगुणियाणि । एक्कं संजमकंडग कंडगसंखा य छठ्ठाणा ||९|| छठ्ठाणाऽसंखेज्जा संजमसेढी उ होइ बोद्धव्वा । सामादिछेदसंजमठाणा गंतुं असंखेज्जा ॥ २२१०॥ परिहरिसंजमठाणा ताहे लग्गंति तेऽवि उ असंखा । गंतूण होत छिन्ना ताहे तत्तो पुणो परओ || १ || वहू॑ति जा असंखा सामाइयछेदसंजमठ्ठाणा । सामादिछेदठाणा ताहे छिन्ना भवंती उ ॥ २॥ तो सुहुमरागठाणा तेऽवि असंखेज्ज गंतु वोच्छिन्ना । तस्स अपच्छिमठाणं अनंतगुणवडियं नियमा ||३|| एक्कं परमविसुद्धं होइ अहक्खायसंजमठ्ठाणं । पंचमसंखत्ति गतं बारसगं बार पडिमाओ ||४|| सुद्धपरिहार चउरो अणुपरिहारीवि णवम कप्पठितो। एते तिन्नि तिया खलु एतेसिं एक्मेक्स्स ॥५॥ अंतरसंजमठाणा होति असंखा उ तेसि सव्वेसिं । होइ दुविहा उ सोही करणे अज्झत्थओ चेव ||६|| ता दोवि य कायव्वा नाणठ्ठाए सुतोवउत्तेण। एसो अंतरकप्पो णयकप्पमियाणि वोच्छामि ॥७॥ सव्वेसिपि णयाणं आदेसणयंतरंति सठ्ठाणे । एस नयंतरकप्पो पुव्वगतविसालमादीसु || १५३||८|| सव्वेवि णेगमादी आदिस्सति जो गयो उ साऽदेसो । णयतो अन्नेवि णओ णयंतरं होइ नायव्वं ॥ ९॥ सठ्ठाणे सठ्ठाणे सव्वे बलिया हवंति सव्विसते । एसो णयकप्पो ऊ पुव्वगतम्मी समक्खाओ ||२२२०|| उप्पदपुव्व विसालं तं आदिं काउ सव्वपुव्वेसु । भणिओ य णचविभगो एत्थं चोदेति अह सीसो || १ || कम्हा कालियसुत्ते न नावि समो परंति उ ? कहं वा । णचविगलहोति साहण मोक्खस्स उ ? भग्नति सुणाहि ||२|| णयवज्जिओवि हु अलं दुक्खयकारओ जइजणस्स । चरणकरणाणुओगो तेण उ पढमं कयं दारं ॥३॥ आयारपकप्पधरो कप्पव्ववहारधाओ अज्जो !। णयसुत्तवजिओ A : 5 5 5 5 555555555555 पट्टी अणाओ || १५४ ||४|| पच्छित्तकरण अणुपालणा य भणिया उ कप्पववहारे। एएण अत्थधारी गणधारी जो चरणधारी ||५|| अन्नोत्ती आमंतण निद्देसे वा णयस्स सुत्ताइं । जारं तु दिठ्ठिवाते पच्छिंत्तं दिज्जए तह उ ||६|| तेहिं विणावि जाणइ आयारपकप्पधारओ जम्हा । तम्हा उ अणुन्नाओ गणपरियट्टी उ सो नियमा ॥७॥ करणाणुपालगाणं तु पज्जवकसिणं समासओ णाणं । करणाणुपालणदुतं पज्जवकसिणं भवे तिविहं | १५५||८|| दुतिपणछक्ककणयंतरेसु सोलस हवंति ठाणा । करणठ्ठाण पसत्था करणठ्ठाणा उ अपसत्था || १५६ || ९ || एयाई ठाणशइं दोहिवि गाहिहिं जाई भणियाइं । तेसिँ परूवणमिणमो समासओ होइ बोद्धव्वं ||२२३०|| करणं तु किया होई पडिलेहणमादि सामयारी उ । तं पालिज्जइ नाणेण तं च दुविहं मुणेयव्वं ॥ १ ॥ पज्जवकसिणसमासो पज्जवकसिणं तु चोद्दस उ पुव्वा । सामाइयं पकप्पो होइ समासो मुणेयव्वो ॥२॥ पज्जवकसिणं तिविहं सुत्ते अत्थे व तदुभए चेव । एमेव समासोऽवि हु तेहिं उ पालिज्जए चरणं ॥ ३ ॥ तस्स णएहिं मग्गण ते उ समासेण होति दुविहा उ। दव्वठ्ठिपज्जवठ्ठित णया तु अविसेसितविसिठ्ठा ||४|| वण्णादिसमुदियं तू दव्वठ्ठी दव्वमिच्छए णियमा। तं चैव पज्जवणओ दवाइ सेसियं इच्छे ॥५॥ अहवावि तिन्निवि णया दव्वठ्ठित पज्जवठ्ठित गुणठ्ठी । पज्जायविसेसच्चिय सुहुमतरामा गुणा होति ||६|| एमगुणकालागादिसु परिसंख गुणठिओ उ णायव्वो । दव्वाओ गुणाऽणपणे गुणा विसेसत्ति एगट्ठा ||७|| आदिल्ला तिण्णि गया एक्को बितिओ य होइ अज्जुसुओ सद्दादि तिणि वेक्को तिण्णि णया होति एवं वा ||८|| अहवावि णिगमसंगहववहारूज्जुसुऍ होति चउरेते। सद्दणय तिण्णि एक्को पंच पाया होति एवं तु || ९ || अहवावि ज्ज छक्कं णिगमो संगाहिओ असंगाही । संगाहितो संगहं तू ववहार पविठ्ठऽसंगाही || २२४०|| तम्हा उ संगहणओ ववहारो चेव होइ उज्जुसुओ सद्दो य समभिरूढो एवंभूओ य छक्क गया || १ || एते पुण Hadsa दुगति पक्क मेलिया संता । सोलस णयंतराई समासओ होति एयाई ||२|| जइ कुणइ दवियकप्पं एतेहिं णयंतरेहिं तु विसुद्धं । करणठ्ठाण पसत्था ते खलु होंती मुणेयव्वा ॥३॥ अकरेंते अपसत्था कप्पे सणयंतरे समक्खाओ। कप्पे ठितमठिते पुण वोच्छामऽहुणा समासेणं ||४|| संघयणवज्जिओवि हु दुक्खक्खयकारओ पणग जाओ । संघयणसमग्गस्सवि अजाय चउरो अमोक्खाए ॥ ५॥ पंच उ महव्वयाइं पणगं तेसिं तु जो करे पयत्तं । जाओ जो निप्फन्नी अजाओ णियमा अनि ॥६॥ ठितमठ्ठिते व कप्पे संघयणेणावि जो विहीणो उ । सो कुणइ दुक्खमोक्खं जो पुण ण करे पयत्तं तु ||७|| पंचसु महव्वएसुं संघयणेणं तु जइवि संपन्ने । सो चउगइसंसारे भमई ण व पावई मोक्खं ||८|| अहुणा उठाणकप्पो उद्धठ्ठाराइओ मुणेयव्वो । ठियकप्पसंजयस्सविऽणण्णाओ अठ्ठितस्सावि ॥ ९ ॥ एवं जिणकप्पो विउ ठितकप्पे अट्ठिए यऽणुण्णाओ । एमेव थेरकप्पो ठितमठिते होतिऽणुणाओ || २२५० || पज्जूवासणकप्पो सुत्ते कप्पो तहा चरित्ते य । अज्झयणुद्देसम्मि य कप्पो तह श्री आगमगुणमंजूषा १५१८ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्त [५७] FOXON वायणाए य ॥ १ ॥ कप्पो पडिच्छणाएं परियट्टऽणुपेहणाएँ कप्पो य। ठियमठ्ठिएसु दोसुवि एते सव्वे भवे कप्पे ॥२॥ जातमजाओ अहुणा दोण्णिवि एते समं तु वच्वंति । जायं निप्फन्नंतिय एगठ्ठे होइ नायव्वं ||३|| जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा छिण्णा । अज्जाते करणम्मि उ अन्नतरीतं गतीं जाइ ||४|| जाय खलु निप्पन्नं सुत्तेणऽत्थेण तदुभएणं च । चरणेण य संजुत्तं वइरित्तं होइ अज्जातं ॥५॥ जातकरणेण छिन्ना नरगतिरिक्खा गती उ दोन्नी भवे । अहवा तिहा उ छिन्ना णरगतिरिक्खा मस्सगती ॥६॥ देवेवि तिण्णि गती छिन्ना वेमाणिएसु उववत्ती । चउसुवि गतीसु गच्छति अन्नतरि अजातकरणेणं ||७|| एसो आतमजाए कप्पोऽभिहितो इदाणि वक्खामि। आइण्णमणाइन्ने कप्पं तु गुरूवएसेणं ||८|| आहारचउक्के करण फासणे खेत्तकालउवगरणे । आइण्णे आइन्नं तव्विवरीए अणाइण्णं ।। १५७ || ९ || आहारच उक्कं खलु असणादीयं तु होइ णायव्वं । करणं आयरणं तू तस्स उ जं जत्थ आइण्णं ||२२६०|| पिसित्तं सिंधूविसए डाई (यं) पुण उत्तरावहाइण्णं । तंबोलं दमिलेसुं एमादी खेत्तमाइण्णे ||ल० १४९||१|| काले दुब्भिक्खादिस पलंबमादी तु सव्वमाइण्णं । उवगरणे आइण्णं वोच्छंमि अओ समासेणं |ल० १५० || २ || सिंधू आउलियाई काला कप्पा सुरठ्ठविसयंमि । दुगुल्लादि पुंडवद्धाणि महरट्ठेसुं च जलपूरा ॥ ल० १५१ || ३ || एवं जत्थाइण्णं तहियं तू कप्पती उ आयरिडं । इतरतथ कारणम्मी फासण गहणं च परिभोगो ||ल० १५२||४|| आइण्णे चउवग्गे ण य पीलाकारओ पवयणे य । ण य मइलणा पवयणे णाइण्णं आयरे कप्पं ||५|| आहार उवहि सेज्जा सेहा चवग्गो होइ णायव्वो । पवयणपीलुवघाओ पिसियाई मज्जपाइत्ति ||६|| चोदेइ का महलणा ? भण्णइ पडिसेहियारि ज सेवे । सा होइ मइलणा ऊ जो पुण सुपरिओि चरणे ||७|| तण्णा सलाहेइ वण्णेइ गुणेहिं एस जुत्तोत्ति । सुठु करे अप्पहितं जो पुण करणे अजुत्तो उ ॥ ८॥ तं दट्ठ संहो उप्पज्जइ किण्णु एस सच्छंदो । आओ णं उवएसो एरिसओ देसिओ समए ? ||९|| आह जिणकप्पियाणऽवि आइण्णं किंचि अत्थि अह नत्थि ? | भण्णइ न अत्थि किं पुण आयरे जिणकप्पियाइण्णं ||२२७० || आहारउवहिदेहे निरवेक्खो नवरि निज्जरापेहि । संघयणाविरियजुत्तो आइण्णं आयरइ कप्पं ॥ १॥ दंसणनाणचरित्ते तवे य तह भावणासु समितीसु । छण्हंपि तिप्पगारं सद्दह संधाण साहणता ॥२॥ सद्दहति सम्मदंसण आयरति परूवणं च कुणमाणो । संधाणकप्प एसो एवं सेसाणवी णेयं ||३|| संधाणकप्प एसो ओउ समासओ जिणक्खाओ। संखेवसमुद्दिनं एत्तो वोच्छं चरणकप्पं ||४|| आहार उवहि सेज्जा तिकरणसोहीऍ जाहिंह परितंतो । परिगहितविहाराओ तो चवती विसयपडिबद्धो ॥१५८ || ५ || कोई विसेसं बुज्झति पसत्थठाणा अहं परिब्भठ्ठो । अंधत्तेण कोई ण बुज्झए मंदधम्मत्ता ||६|| दव्वे भावे अंधो दव्वे चक्खुहिं भावें ओसण्णो संविग्गत्तं ण रोयति णितियाण पहाणमिच्छंतो ||७|| जुत्तो जुत्तविहारी तं चेव पसंसए सुलहबोही । ओसन्नविहारं पुण पसंसए दीहसंसारी ॥८॥ आहार उवहि सेज्जा नीयावासेऽवि तिकरणऽविसोही । तह भावंधा केई इमं पहाणंति घोसंति ||९|| नीयाइविहारम्मिवि जइ कुणती निग्गहं कसायाणं। तस्स हु भवते सिद्धि अवितहसुत्ते भणियमेयं ॥ २२८०|| बहुमोहेवि हु पव्विं विहरेत्ता संवुडे करे कालं । सो सिज्झइ अविय इमे पुरिसज्जाया भवे चउरो ॥१॥ नाणेणं संपण्णो णो उ चरित्तेण एत्थ चउभंगो। तेणेसेव पहाणो एवं भासंति निद्धम्मा ॥२॥ तम्हा उ ण एयाई कुज्जा आलंबणारं मइमं तु । कुज्जाहिं पसत्थातिं इमासं आलंबणारं तु || ३ || तित्थगराणं चरियं चरियं कसिणंगपारगाणं च । जो जाणइ सद्दहती ओसन्नं सो न रोएइ || १५९ || ४ || धुवसिज्झियव्वगम्मिवि तित्थगरो जइ तवम्मि उज्जमति । किं पुण तवज्जोगो अवसेसेहिं ण कायव्वो ? || ५ || चोद्दसपुव्वी कसिणंगपारगा तेसि जो उ उज्जोगो। तं जो जाणइ सो खलु संविग्गविहार सहहतो || ६ || एमादी आलंबण काउं संविग्गतं न रोएति । को पुण ओसन्नत्तं रोएति ? भन्नइ इमो तु ||७|| सुत्तत्थतदुभए अकडजोगि ओसन्नरोयओ होज्जा । अहवा दुग्गहियत्थो अहवावी मंदधम्मत्ता॥१६०||८|| अन्नाणियऽकडजोगी दुग्गहियत्थो उ जेण अववादो । गहिओ णवि उस्सग्गो गहिते वा मंदधम्मो उ ॥९॥ सो रोए ओसण्णे इति एसो वन्निओ चयणकप्पो । उववादकप्पमहुणा वोच्छामि जहक्कमेणं तु ॥ २२९० || पंचहिं ठाणेहिं वियट्टिऊण संविग्गसङ्ख्याजुत्तो । अब्भुज्जतं विहारं छवेइ उववायकप्पो सो ॥१६१||१|| उववयणं उववातो पासत्थादी य पंच ठाणाओ । तेसु विविहं तु वट्टितो वियट्टीतो होइ णायव्वो ॥२॥ संवेगसमावण्णो पच्छा उ उवेइ उज्जयविहारं । एस श्री आगमगुणमजूषा - १५१९ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [ ५८ ] ex उववायकप्पो णिसीहकप्पं अओ वोच्छं ||३|| चउहा निसीहकप्पो सद्दह अणुपालणा गहण सोही । सद्दहणाविय दुविहा आहे निसीहे विभागे य || १६२ ||४|| ओहेति हत्थकम्मं कुणामाणे रागमूलिया दोसा । गिण्हणमादि विभागे अहवोहो होइ उस्सग्गो || ५ || अववादो हु विभागो सव्वंऽपेयं तु सद्दहंतस्स । सद्दहणाए कप्पो होइ अकप्पो पुण इमो हु ||६||मिच्छत्तस्सुदपणं ओसन्नविहारताऍ सद्दहणा । गणहरमेइं ओहं ण सदहती णो णिसीहं तु ||७|| ओसन्नाण विहारं सद्दहति सुविहियाण गणमे । न उ सद्दहती णो खलु हस अकप्पो उ ||८|| जाणि भणियाणि सुत्ते पुव्वावरबाहियाणि वीसाए । ताणि अणुपालयंतो सव्वाणि णिसीहकप्पो उ ||९|| सुत्तत्थतदुभयाणं गहणं बहुमाणविणयमच्छेरं । चोद्दसपुव्विनिबद्धे कप्पे गहियम्मि गणहारी ||२३०० || तिविहो य पकप्पधरो सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव । मोत्तु तइओ बितिओ वा होइ गणहारी ॥ १ ॥ तिग पणग पणग छक्कं अठ्ठग णवगं च जस्स उवलद्धं । ठवणाकरणं दाणं च सो हु वियाणाहि || १६३||२|| नाणाईणं तियगं पणगं ववहारो होइ पंचविहो । बितिय पणग पंच वता छक्कं पुण होति छक्काया ॥ ३ ॥ आलोयणारिहगुणे अठ्ठ उ अहवावि सोहि अठ्ठविहा । आलोयणतादीयं मूलंतं जाणती ..जो तू ॥ ४ ॥ आलोयणमादीयं अणवठ्ठतं तु णवविहं होति । पारंचितंतमहवा दसविहे होती चसद्देणं ||५|| ठवणारो वणकरणं सफला मासा करेत्तु जो जाणे । सो होति दाणअरिहो तव्विवरीओ अणरिहो उ || ६ || किह पुण तं दायव्वं पायच्छित्तं तु ? पुच्छए सीसो । भण्णइ इमेण विहिणा दायव्वं तं जहाकमसो ||७|| ओहेण उसठ्ठाणं साविभागता पवित्थारो । पच्छित्तपुरिसहेऊ किंति ? ण संती चरणमादी ||८|| ओहे सठ्ठाणंति य जह चउगुरू होइ रायपिंडम्मि । सठ्ठाणविभागे पुण ईसरमादी मुणेयव्वो ||९|| जह वा करकम्मम्मि य ओहेणं होइ मासगुरूयं तु । होइ विभागपसंगो दिठ्ठादीओ मुणेयव्वो ||२३१०|| पुरिसज्जातं णाउं च दिज्जए जं च जारिसं वत्युं । गुरूमादिबलियदुब्बलहठ्ठलिगाणादिजं जोग्गं ॥ १ ॥ हेऊ कारण निक्कारणे य जंयणादिसेवियं जह उ । चोदेति किंनिमित्तं पच्छित्तं दिज्जए ? सुणसु ||२|| पायच्छित्ते असंतम्मि, चरित्तं तु न चिठ्ठए । चरितम्मि असंतम्मि, तित्थे णो सचरित्तया ||३|| तित्थम्मि य असंतम्मि, णेव्वाणं तु न गच्छती । णेव्वाणम्मि असंतम्मि, सव्वा दिक्खा निरत्थिया ||४|| एवं निसीहकप्पो चउहा तू वण्णिओ समासेणं । ववहारकप्पमहुणा गुरूवएसेण वोच्छामि ||५|| ववहारे कोइ भिक्खू सच्चित्तनिवातनिद्धमहुरेहिं । ववहरती ववहारं वितहं सो संघमज्झम्मि ||६|| कोइ बहुस्सुय भिक्खू अपुव्वनगरम्मि कंचि ववहारं । णाएणं छिंदिता वत्थव्वेहिं पमाणकतो ||७|| अह पच्छा सच्चित्तं खुड्डाई तस्स केणई दिण्णं । वसही पाउरणं वा वरम्ह पंक्खं ववहरेउ ॥८॥ घयतिल्लादी णिद्धं खंडगुलादीहिं वावि संगहितो। सव्वाहि (अच्चालि) एहिं ताहे ववहरए पक्खवाएणं ||९|| दुठ्ठववहारिएणं को उ णिसेहिज्ज ? तो वदे संघो। एयठ्ठ संघमेलो कीरइ इणमो सयं (य सं) पत्तो ॥ २३२०|| अण्णो तहिं तु गीतो संघसमत्तीए तिण्णि वारा उ । उच्चारे सिद्धपुत्तो तत्थ य मेरा इमा हो || १ || घुठ्ठम्मि संघसद्दे घुलीजंघोऽवि जो ण एज्जाहि । कुलगणसंघसमाए लग्गइ गुरूए व चउमासे ॥ २॥ जं काहिति अज्जं तं पावति सति बले अगच्छंतो। अण्णा (आणा) इया व ओहावणादि तेसिं च जं कुज्ना ||३|| सोऊणं संघसद्दं धूलीजंघेवि होति आगमणं । धूलीजंघनिमित्तं ववहारो उवठ्ठितो होइ ||४|| सोऊण संघसद्दं धूलीजंघो उ आगओ संतो। वितहं ववहारमाणे साहू समएण वारेइ ||५|| निद्धं महुर निवातं कितिकम्म विजाणएसु जपतो। सच्चित्त खेत्त मीसे अत्थधर णिहोड दिसहरणं || ६ || भिक्खू य मुसावादी ववहारे तइयगम्मि उद्देसे। सुत्तं उच्चारेती अह बहु पक्खा इमं होइ ||७|| रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणम्मि एक्कमिक्स्स । कज्जम्मि कीरमाणे किं अच्छइ संघ मज्झत्थो ? ||८|| रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणेण एक्मेक्कस्स । कज्जम्मि कीरमाणे अण्णोऽवि भणेउ ता कोई ? || ९ || कुलगणसंघठ्ठवणं इहं ण याणामि देसिओ मि अहं । अण्णेणवि ता केणइ कप्पइ इह जंपिउं किंचि ? || २३३०|| संघेण अणुण्णाते अह जंपति सो ताहें गुणसमिद्धो । ववहारनीइकुसलो अणुमाणंतो तयं संघ ||१|| संघो महाणुभावो अहं च वेदेसिओ इहं भंते ! संघसमितिं ण जाणे तं भे सव्व (व्वे) खमावेमि ||२|| देसे देसे ठवणा अन्ना अन्नाय होइ समिती य । गीयत्थेहऽभिणातं विदेसिओऽहं ण जाणामि || ३ || अणुमात्ता एवं ताहेऽणुण्णाए जंपर इणमो । परिसाववहारिण य इमे गुणे ऊ समासेणं ॥ ४॥ परिसा ववहारी वा मज्झत्था रागदोसणिहुयावि । जति होति दोवि पक्खा ववहरिउं तो सुहं होति ॥ ५ ॥ वत्तेवsत्थधरेणं जति HOTO श्री आगमगुणमंजू १५२० ॐ ॐ ॐ COO Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ QCC品历历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明5O FORG5555555$$$$ (३८-शपंचक्रप्पमामपंचम छेयसुन ५९] 西55555555555 २ उववहारिणा उजंपेज्जा । नूणं तुम्हें मण्णइ मज्झं सव्विक्कवयणंति ॥६॥ सेसा उ मुसावादी सच्चपरिन्भठ्ठगा उ किं सव्वे ?। भण्णइ सुणेह एस्थं भूतत्थमिमं समासेणं ॥७॥ ओसन्नचरणकरणे सच्चववहारता दुसद्दहिया | चरणकरणं जहंतो सच्चव्ववहारयपि जहे ॥८॥ जइया अणेण चत्तं अप्पणयं नाणंदसणचरित्तं । तइया तस्स परेसु अणुकंपा नत्थि जीवेसुं ।।९।। भवभयसहस्सदुलहं जिणवयणं भावओ जहंतस्स । जस्स ण जातं दुक्खं न तस्स दुक्खं परे दुहिए ॥२३४०६ आयारे बढ्तो आयारपरूवणे असंकियओ। आयारपरिब्भठ्ठो सुद्धचरणदेसणे भइओल०१५४||१।। तित्थगरे भगवंते जगजीववियाणए तिलोगगुरू । जो उकरेति पमाणं सो उ पमाणं सुयधराणं ।।२।। तित्थयरे भगवंते जगजीववियाणए तिलोगगुरु । जो उ करेति पमाणं सो उ पमाणं सुयघराणं ल० १५५॥३॥ संघो गुणसंघातो संघो य विमोयओ य कम्माणं । रागद्दोसविमुक्को होइ समो सव्वसाहूणं ।ल०१५६॥४॥ परिणामियबुद्धीए उववेओ होइ समणसंघो उ। कज्जे णिच्छितकारी सुपरिच्छयकारओ संघो।।५।। एक्कसि दुवे व तिण्णि व पेसविते ण एइ परिभवेणं तु। आणाइक्कमणिज्जूहणाउ आउझ्क्वहारो ॥६|| आसासो वीसासो सीतघरसमो य होति मा भाती (हि)। अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु सव्वेसिं ॥७॥ सीसो पडिच्छओ वा आयरिआ वा न सोम्मई णेति । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥८॥ सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वावि ते इह लोगं । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥९॥ सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघाण सोग्गइंणेति । जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥२३५०|| सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघो व एति इहलोए। जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ल० १५७॥१॥ सीसे कुलिच्चाएँ गणिच्चए व संघिच्चए य समदरिसी। ववहारसंथवेसु यसो सीतघरोवमो संघो॥२॥ गिहिसंघातं जहिउंसंजमसंघाततं समुवगम्मानाणचरणसंघातं संघाएन्तो हवइ संघो॥३|| णाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो विसंघाते । सो संघाए अबुहो गिहिसंघातम्मि अप्पाणं ॥४॥ नाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो विसंघाए। सो भमिही संसारं चउरतं तं अणवयग्गं ।।५।। दुक्खेण लभति बोहिं बुद्धोवि य न लभते चरित्तं तु । उम्मग्णदेसणाए तित्थगरासायणाए य॥६॥ उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छादणाए मग्गस्स। बंधइ कम्मरयंमलंजरमरणमणंतरगं घोरं॥ल०१५८॥७॥ पंचविहं उवसंपद नाऊणं खेत्तकालपव्वजं । तो संघमज्झयारे ववहरियव्वं अणिस्साणं ||८|| निदरिसणं तत्थ इमे तगराणगरीय सोलसायरिया । अण्णायणायकारी तत्थऽव्ववहारि अठ्ठ इमे ॥९॥ मा कित्ते कंकडुयं कुणिमं पक्कुत्तरं च चव्वा (वच्चा) इं। बहिरं च गुंठसमणं अबिलसमणं च निद्धम्मं ।।२३६०॥ कंकडुओविव मासो सिद्धिं ण उवेति तस्स ववहारो। कुणिमणिहो व ण सुज्झइ दुच्छिज्जो एव बितियस्स ॥१|| पक्कुल्लाव भयाओ कज्जपिण सेसतं उदीरेति । पादेणं आउत्तिय उत्तरसोवाहणेणंति॥२॥ रोमंथयते कज्ज चव्वा (वच्चा) दी नीरंविवऽसणेत्ति। कहिए कज्जे संते बहिरो व भणाति ण सुतं मे ॥३।। मरहठ्ठलाडपुच्छा केरिसया लाड ? गुंठ ! साहिस्सं । पावारभंडिछुभणं दसियागणणं पुणो दाणं ॥४|| गुंठादी एवमादीहिं हरति मोहित्तु तं तु ववहार। अंबफरूसेहिं अप्पोणणेति सिद्धिं च ववहारो॥५|| एते अकज्जकारी तगराए आसि तम्मि उजुगम्मि । जेहि कता ववहारा खोडिज्जतऽण्णरज्जेसु |६|| इहलोगमि अकित्ती परलोए दुग्गई धुवा तेसिं । अणणाएँ जिणिंदाणं जे ववहारं ववहरंति ॥ल० १५९||७|| बत्तीसं तु सहस्सा गच्छो उक्कोसओ य उसभंमि। बहुगच्छुवग्गहकरा इत्तियमित्ताण जत्थ संथरणं ।ल०१६०। कित्तेऽहं पूसमित्तं धीरं सिवकोठुतिंच अज्जा (ज्झा) सं। अहरण्णग धम्मण्णग खंदिल गोविंददत्तं च ॥८॥ एते उ कज्कारी तगराए आसि तम्मि उ जुगम्मि । जेहिं कता ववहारा अक्खोभा अन्नरज्जेसु ।।९।। इंहलोगम्मिवि कित्ती परलोगे सुग्गई धुवा तेसिं। आणाएँ जिणिंदाणं जे ववहारं ववहरंति ॥२३७०|| तहियं पुण केरिसएण जंपियव्वं तु होइ समणेण । भण्णइ सुणसू इणमो जारिसएणं तु वोत्तव्वं ॥१|| पारायणे समत्ते थिरपडिवाडी पुणोवि संविग्गो । जो निग्गओ विदिण्णे गुरूहिं सो होति ववहारी॥१६४||२|| मूल पारायणं पढम, बितियं च दु (बहु) भेतिमं । ततियं च निरवसेसं, जइ सुज्झेति गाहगो ॥३॥ सुत्तत्थो खलु पढमो बितिओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ। ततिओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥४॥ पडिणीय मंदधम्मो जो निग्गओ अप्पणो सकम्मेहिं । ण हु होइ सो पमाणं असमत्तो दसनिग्गमणे॥५|| आयरियादेसाऽवारिएण सत्येण गुणितझ (स) रिएण। तो संघमज्झयारे ववहरियव्वं अणिस्साए ।।६।। आयरियअणादेसा वारिएण सच्छंदबुद्धिरतिएणं । सच्चित्तखित्तमीसे जो ववहरती ण सो धण्णो ||७|| सो अभिमुहेइ लुद्धो संसारकडिल्लगम्मि woros55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५२१555555555555555GHOR १०० 听听听听听听听听听听听国乐玉华乐与玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YORO5555555555555559 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [६०] $$$$$$$$$$exong D %%3 SEC%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% अप्पाणं । उम्मग्गदेसणाए तित्थगरासायराए य ।।८।। उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छायणाएँ मग्गस्स । उम्मग्गदेसगस्स मासा चत्तारि भारियया ॥९॥ परिवार वुड्ड धम्मकह वादि खमए तहेव नेमित्ती । विज्जा राइणिया इडिढगारवो अठ्ठहा होइ ।।२३८०|| एमादिगारवेहिं अकोविया जे उतत्थ भासिज्जा । ते वत्तव्वा इणमो न तुज्झ भागो इहं वोत्तुं ॥१|| बहुपरिवारो भन्नति जय परिवारेण होज्ज कजं तु । तह (य) परिवारं दिज्जसु वुड्डो पुण भण्णई इणमो।।२।। लोगेण जत्थ समयं ववहारयं तु तत्थ हुज्जाहि । तत्थ तुम जंपिज्जसु धम्मकही भण्णइ इमं तु ।।३।। जहियं धम्मकहाए कज्ज तहियं तुम भणिज्जासि । वादी जत्थ उ वादिप्पओयणं तत्थ भासिज्जा ||४|| खमगो भन्नइ इणमो देवयकजं जहिं भविज्जाहि असिवादिकारणेहिं तत्थ तुमं तं करिज्जासि ॥५॥ विज्जासिद्धो भण्णइ विज्जाए जत्थ संघकज्जम्मि । कज्ज होज्ज करेज्जसु रायणिओ भण्णइ इमं तु ॥६|| वेले कितिकम्मस्स उ अणुवटुंताण वंदणं अम्हं । कु (लि) जाहिं तुमं गंतुं इह पुण गीयस्स विसओ उ ||७|| ण हु गारवेण सक्का ववहरिउं संघमज्झयारम्मि । णासेई अगीयत्थो अप्पाणं चैव गच्छं च ||८|| णासेई अगीयत्थो चउरंगं सव्वलोगसारंगं । णम्मि य चउरंगे ण हु सुलभं होइ चउरंगं ॥९|| थिरपरिवाडीहिं बहुसुएहिं संविग्गणिस्सियकरहिं । कज्जम्मि भासियव्वं अणुओगे गंधहत्थीहिं ॥२३९०|| मादी य मुसावादी बितियं ततियं वयं च लोवेति । मायी य पावजीवी असुतीलित्ते कणगदंडे ||१|| आभवते पच्छित्ते ववहारो समासतो भवे दुविहो । दासु य पणगं पणगं आभव्वंते अहीकारो॥२॥ सच्चित्तो यमीसओ खेत्तकालनिष्फण्णो। पंचविहो ववहारो आभव्वंतो उ णायव्वो॥१६५||३|| सेहम्मि उ सच्चित्तो अच्चित्तो हवति वत्थमादीओ। मीसो सभंडगाणं खेत्तम्मि उ गाममादीहिं ॥४॥ नगरादसखित्ते पुण वसहीए तत्थ मग्गणा होइ । काले उदु वासासु य आभवणा होइ णायव्वा ।।५|| अहवाऽऽभवंतमण्णो उवसंपयखेत्तकालपव्वज्जा। नाऊण संघमज्झे ववहरियव्वं अणिस्साणं ॥६॥ सुत सुहदुक्खे खित्ते मग्गे विणए य पंचहा होइ । सव्वावि य एयाओ सुयणाणमणुप्पवत्तीओ ॥७॥ जत्थ उ सुओवसंपद तत्थ उ सव्वा हवंति (वि होन्ति) एयाओ। अहवा सुओवदिठ्ठा | ण तु सेच्छाए हवंतेया ॥८॥ गुरूसीसपडिच्छाणं तिण्हवि के कस्स किंचुवकरेइ ?। वेयावच्चगमागम काले चिंतादि दव्वे य ।।९।। सीसो आयरियस्स उ वेयावच्चं तु कुणइ जाजीयं । जहिं गच्छइ तहिं वच्चति पेसेइ व जत्थ तहिं जाइ॥२४००|| कज्ज समाणइत्ता एई लद्धं च सव्वमप्पेति । कायव्वुवग्गहो ऊ नाणादीएहिं गुरूणाऽवि ॥१॥ दव्वे सच्चित्तादीलाभो सीसस्स जो तहिं होति । सोवि य जावज्जीवं सव्वो गुरूणो उ आभवति ।।२।। कुणती पाडिच्छोवि उ वेयावच्चं तु असणमादीहिं । वच्चइ य पमाणेणं कालेणं रोयती जाव ॥३।। गेण्हइ वा जव सुतं ता कुणई सव्वमेव पाडिच्छो । एत्तो दव्वे वोच्छं जं आभवती उपाडिच्छे ।।४।। जं होइ नालबद्धं अभिसंघारेतगं तगं एति । संदेसदिण्णगं वा णामे चिंधे य काले य ।।५|| वल्लीऽणंतर संतर अणंतरा छज्जणा इमे होति । माता पिता त भाता भगिणी पुत्तो य धूया य ॥६|| मातुं माया य पिया भाता भगिणी य एव पिउणोऽवि । भाउभगिणीणऽवच्चा धूतापुत्ताणवि तहेव ||७|| पारंपरवल्लि एसा जइतं धारे पडिच्छगस्सेव। अह णो अभिधारेती सुयगुरूणो तो उ आभव्वा ॥८॥ संगारो पुव्वकओ पच्छा पाडिच्छओ उसो जाओ । तेण णिवेदेयव्वं उवठ्ठिता पुव्वसेहा मे ॥९॥ एवइएहिं दिणेहिं उब्भ सगासं अवस्स एहामो । संगारो एव कतो चिंधाणि य तेसिं चिंधेइ ॥२४१०॥ कालेणय चिधेहि य अविसंवादीहिं तस्स गुरूणिहरा। कालम्मि विसंवदिए पुच्छिज्जति किं न आओ सि ?॥१॥ संगारिददिवसेहिं जइ गेलण्णादि दीवयति तोउ।तस्सेव अह तु भावो विपरिणओ पच्छ पुण जाओ॥२॥ ता होइ गुरूस्सेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु । सुहदुक्खुवसंपन्ने एत्तो लाभ पवक्खामि ||३|| वट्टसुमम सुहदुक्खे अहंमवि उब्भे तु एवमुवसंपे। पुरपच्छसंथुया ऊ सो लभती जे य बावीसं ॥४|| सुहदुक्खसंपएसा एत्तो खेत्तोवसंपदं वोच्छं । खेत्तोग्गहो सकोसं वाघाए वा अकोसं तु ॥५|| पत्ते उग्गह साहारणे य वासे तहेव उदुबद्धे । सव्वदिसासु सकोसं निव्वाघाएण पत्ते उ॥६|| अडविजलतेणसावतवाघाते एगदुत्तिचउसुं वा । होज अकोसो उग्गहो अहुणा साहारणं वोच्छं ॥७॥ साहारण होज्जाहि पडिलेहणपुव्वपच्छनिग्गमणे । पुव्वं पच्छा पत्ते आयरिए वसभअज्जासु ॥१६६||८|| दुगमादीगच्छाणं पडिलेहगणिग्गयाण समगं तु । पत्ता खेत्तं एसो पढमगभंगो मुणेयव्वो ॥९|| समगंनिग्गम एक्के पच्छा पत्ता य बितियओ भंगो। पच्छा निग्गय पुव्वं पविठ्ठ पच्छा य दुहतोवि ॥२४२०|| पढमभंगे जो खलु पुव्विं तु अणुन्नवेति ते खेत्ती। समगं पुणऽणुन्नविए सामन्नं होइ दोण्हपि ।।१।। बितियभंगे दप्पेण पुव्वि पत्ता उ जइ णुऽणुणवंति। MOMO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听2恩 Evere5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१५२२555555555555555555555555GOR Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं इयरेसिं असढाण य अणुन्नवेंताण खेत्तं तु ॥ २॥ पुरनिग्गता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हविज्जाहि ? | गेलण्णखमगपारणवाघातो अंतर हविज्जा | ३ || गेलण्णवाउलाणं तु, खेत्तमण्णस्स णो दए । निसिद्धो खमओ चेव, तेण तस्स न लब्भती ||४|| अंतरवाघाएणं पच्छा पत्ताण पुव्वि जे पत्ता । असढेहि अणुन्नवितं पुव्विं पत्ताण तं खित्तं ||५|| अह समगमणुन्नविए काउ पमादपि ता उ साहारं । एवं तु बितियभंगो अहुणा ततियम्मि वोच्छामि ||६|| पच्छावि अत्थियाणं सभावसिग्घगतिणो भवे खेत्तं । एमेव य आसने दूरद्धाणा व पत्ताणं ||७|| भंगे चउत्थगम्मी पुव्वाणुण्णाएँ असढभावणं । पढमगभंगसरिच्छा आभवणा तत्थ नायव्वा ॥ ८॥ पुव्वगहिओवि उग्गहो होति गिलाणठ्ठताए जहियव्वो । अह होज्ना संघरणं कालक्खेवो दुपक्खवि ॥ ९ ॥ पुव्वठ्ठितखेत्तीणं जइ आगच्छे गिलाणइत्तऽण्णे । जइ दोह असंथरण तो निग्गमो खेत्तियाणं तु || २४३०|| अह दोण्हवि संथरणं दोण्हिवि इच्छंति जा गिलाणो उ । एते य दुन्नि पक्खा अहवा समणा य समणीओ || १ || गिलाण उवहीकिच्चा भत्तोवहलुद्धताऽविहिग्गहितं । पेल्लंती परखेत्तं साहम्मियतेणिया तिविहा ॥२॥ उवही णियडी माया गिलाणणिस्साऍ विज्नमाणेवि । छड्डेत्तु एंति खित्ते भत्तोवहिलुद्धताए उ ॥३॥ लब्भंति सुंदराइं गिलाणणियडीऍ एंति तो तत्थ । इरेवि गिलाणोत्तीकाउं तओ र्णेति खेत्ताउ || ४ || तेसुं तु निग्गएसुं सच्चित्तादी उ तिविहं जं गेहे । तं तेसि होति तेण्णं पच्छित्तं चेव तिविहं तु ||५|| जे पुण असंथरंता एंति तहिं तेमिसा भवे मेरा । आयरियवसभअज्जाण चेव वोच्छं समासेणं || ६ || अच्छंति संथरे सव्वे, वसभो नीई अंसंथरे । जत्थ तुल्ला भवे दोवि, तत्थिमा होति मग्गणा ||७|| निप्फण्ण तरूण सेहे जुंगियपातच्छिणासकरकण्णा। एमेव संजईंणं णवरं वुड्ढीसु णाणत्तं ॥१६७||८|| परिवार अणिप्फन्नो अच्छति निप्फण्णतो उ निग्गच्छे। अच्छंति वुड्ढ तरूणा य णिति सहे असेहिल्ले ||९|| (निति) अच्छंति जुंगिता तु णितियरे अहव गिता दोवि । तत्थाइल्ला अच्छे समणीण तरूणीओ || २४४०|| समणाण य समणीण य अच्छंती संजईउ नियमेणं । जेण बहुपच्चवाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥१॥ संथारे भत्तसंतुठ्ठा, तस्स लाभम्मि अप्पभू । जुंगितमादीएसुं, वयंति खित्ती ण ते जेसिं ॥ २॥ दुयमादीगच्छाणं खित्ते साहारणम्मि वसियव्वे । अप्पत्तियपडिसेहत्या (इ ता) ए मेरा इमा तत्थ ॥३॥ अत्थि बहु वसभगामा कुदेसनगरोवमा सुहविहारा। बहुगच्छुवग्गहकरा सीमच्छेदेण वसियव्वं || ४ || आयरियउवज्झाया दुहिं तिहिं सहिया उ पंचओ गच्छो । एव तु गच्छा तिन्नि उ उदुबद्धे संथरे जत्थ ||५|| वासासुं तिचउजुया आयरियउवज्झ सत्तओ गच्छो। एव तु गच्छा तिन्नि उ वासासुं संथरे जत्थ ||६|| कालदुयंम्मिवि एवं जहण्णयं होइ वासखेत्तं तु । बत्तीसं तु सहस्सा गच्छो उक्कोस उसभम्मि ॥||७|| बहुगच्छुवग्गहकरा एत्तियमेत्ताण जत्थ संथरणं । ऊणा अणुवग्गहिता सीमच्छेदं अओ वोच्छं ||८|| तुब्भंऽतो मह बाहिं तुब्भ सचित्तं ममेतरं वावि । आगंतुयवत्थव्वा धीपुरिसकुलेसु व विसेसो ||९|| वेगो सकोसजोयण मूलनिबंधे अणुम्मुयंतेण । सच्चित्ते अच्चित्ते मीसेऽविय दिण्णकालम्मि || २४५० || सेसत्ती निस्साहारणंमि मूलक्खेत्त अणुमुयंतेणं । होइ सकोसं जोयण दिसविदिसासुं तु सव्वत्तो ॥ १ ॥ एवं खेत्तओ एसो कालओ उदुबद्धि होइ मासो उ । वासासु चउम्मासो एवतिकालो विदिण्णो उ ॥ २॥ एवइकाल विदिण्णं पुण्णे निक्कारणम्मि तेण परं । ण उग्गहो विदिणो मोत्तूणं कारणमिमेहिं ||३|| असिवादिकारणेहिं दुविहऽतिरेगेऽवि उग्गहो होइ । जा कारणं तु छिण्णं तेण परं उग्गहो ण भवे || ४ || जइ होइ खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होज्ज बहुगावि । खेत्तेण य कालेण य सव्वस्सवि उग्गहो णगरे ॥५॥ सति लंभे खेत्ताणं जोग्गाणं जो उ जत्थ संथरति । सो तहियं संचिक्खे खेत्ताण असती पुण बहुंपि || ६ || एत्थ उ गामादिसु जहिंयं तू संथरंति तहिं अच्छे । सव्वेसिं तहिं उग्गहो साहारण होति जह णगरे ||७|| एसा खेत्तवसंपद पुरपच्छासंधुए लभति एत्थ । तह मित्तवयंसा या जं च लभ सुतोवसंपन्न ||८|| मग्गोवसंपदाए मग्ग देसेइ जाव सो तस्स । लभती दिठ्ठाभठ्ठादि जो य लाभो पुरिल्लाण ||९|| विणओवसंपदा पुण कुव्वति विणयं तु जो उ रायणिए । सव्वं तस्साभवती जो उ उवठ्ठायती तस्स || २४६०|| उवसंपद इच्चेसा पंचविहा वन्निया समासेणं । खेत्तम्मि परे खित्ते णिक्खमिओ जो उ होज्जाहि ॥ | १ || काले उदु वासं वा वसिऊणं निग्गयाण जो अण्णो । पढमबितियदिवसेसू निक्खामे कालओ एसो ||२|| इच्चेसो पंचविहो ववहारो आभवंतिओ णांमं । पच्छित्ते ववहारो जह दस (पढ) मुद्देस ववहारे || ३ || अहुणा उ खेत्तकाला तेवि उ तत्थेव भणित ववहारे जं तत्थ उ तस्सेसं तम्हं ucation International 2010 03 फफफफफफ श्री आगमगुणमंजूषा १५२३ [ ६९ ] फ्र Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRO (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [६२] वोच्छं समासेणं ||४|| दुविहे विहारकाले तिविहा सोही उ उवहिभत्ताणं । दिण्णे जतंत सोही अविदिण्णठ्ठाऍ आवण्णे || १६८|| ५ || उदुबद्धे वासासु य विहारकालो उ होइ दुविसो । उग्गम उप्पायण एसणा य एसा तिविह सोही ||६|| उदुबद्ध मास वासासु होति चउरो विदिन्नकालो उ। एत्थ जयंता जइवि हु आवज्ने तहवि सुद्धा उ ||७|| मासा चउमासा पुण संवसमाणा उ तत्थ अतिरित्तं । म (ल) ग्गति जयंतावि हु किमु अजयंता उ ? किंचऽण्णं ||८|| उदुबद्धवासवासं अणुवसमाणो असुद्ध भत्तुवही । आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं || ९ || उग्गममादी दोसा असेवमाणोवि सो उ आवण्णशे । जम्हा दोसांयतणं उरम्मि थावेत्तु संवसति || २४७०|| कत्थेयं भणियंतिय ? भन्नति आयरिएण किमायारे ? आयारपकप्पे ऊ आयारि भवंतु आयारी ||१|| जे भिक्खु णितियवासं वसंइत्ती एत्थ भणिय सुत्तम्मि । एवं पमाण उभये अरिते यावि जे दोसा ||२|| जदि पुण बहिया हाणी तहिं वड्डि गुणाण तत्थ अच्छंति । के पुण गुणादि भणिया ? भन्नति नाणादिया होति ||३|| कालातीते दोसा दव्वक्खओ होइ अच्छमाणाणं । तम्हा उण चिट्टिज्जा अतिरित्तं दुविहकालम्मि ||४|| निद्दय अणुकंपाए गिहिणं तो णाम ण वसहा तुब्भे भण्णति ण होति एवं मा साहूणं चरणभेदो ||१६९||५|| चोदेताहारादिसु सुज्झतेसूऽवि णाम जं तीए । तत्थ ण चिठ्ठइ तण्णाम णिद्दयत्तेण गहियाणं ||६|| मा पाविहिति धम्मं गिहिणो साहूण 'फासुदाणेणं । इय णिद्दयता अहवाइहलोगणुकंपया तेसिं ॥ ७॥ मा दव्वखओ होही अणुवासे णिच्चसाहुदाणेणं । इय अणुकंपिहलोए भण्णइ ण उ एवमादीहिं ॥ ८ ॥ मा होज्न चरणभेदो पुणातीतंमि संवसंताणं । अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसेहिं ||९|| एसो उ कालकप्पो एवं वक्खाणिओ समासेणं । अहुणा उ उवहिकप्पं गुरूवरसेण वोच्छामि ॥२४८० ॥ उवगेण्हति उवकारं करेइ उवहीयतेण उवही उ। किं कारणं तु उवही उद्दिसिओ ? भण्णती सुणसु ॥ १ ॥ जीवाणऽणुग्गहठ्ठा एवं खलु वन्निओ इहं तित्थे । काऊणऽणुग्गहपदं पडिणीयपदे अभावो उ ॥२॥ रसयादणुकंपठ्ठा अगणीमादीण चेव रक्खठ्ठा । असहूणऽणुकंपठ्ठा य उवहीयहणं जा ||३|| आह जहऽणुगहठ्ठा वत्थादीगहण देसियं समए । तो असहूणं कम्हा थीपरिभोगो ऽणुण्णाओ ? || ४ || भण्णइ पवित्ति कम्हिऽवि कम्हिऽवि पुण होति अपवित्ती उ । संजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण नाणुण्णा ॥ ५॥ नाणचरणठ्ठियाणं उवग्गहं कुणति नाणचरणाणं । आहारउवहिसेजजा तेण उ उवहित्तणं बेति ||६|| जस्स पुणोवहि गहिता उवघातकरी उ तस्स उवघातो। कह उवघात करेती ? अइरित्तगहो य मुच्छा य ||७|| संथरमाणो गेण्हति अतिरित्तं उवहि जो भवे समणो । वण्णादिजुते मुच्छति इठ्ठाहारे धुवस्सेवं ॥ ८ ॥ एतेसु अणिठ्ठेसु य जो दुस्सति से करेस उवघातं । नाणादीणं तिण्हं तम्हा ते वज्जिए हेतु ॥९॥ जो जत्थ जदा जहियं उवही परिभोगओ अणुण्णाओ । सो तत्थ अणइचारो अणणुण्णाते चरणभेदो || २४९० || जह सिंधूओ कप्पो ओराला उण्णिया अणुण्णाता । पिसियादीण य गहणं खीरादीणं चऽणुण्णातं ॥१॥ अतिहिमदेसे य तहा कारणितगताण सिसिरकालम्मि । परिभुंजंताण य को विवाद ? चरणे अणुवघातो ||२|| लाडविसयादिएसं एतेसिं चेव भोत्तुं पडिसेहो । पडिसिद्धे परिभोगं कुणमाणो भंजती चरणं || ३ || नाणंपि उ सो भिंदइ उवदेसं जेण ण कुणती तस्स । जं नाणपुव्व दंसण दंसणभेदावि तो तेणं ||४|| निवदिक्खितमतरंतादिएसु कज्जेसु होइ परिभोगो । समणुन्नाओ कसिणादियाण इहरा अणुवभोगो || ५ || एसो उ उवहिकप्पो अहुणा संभोगकप्प वोच्छामि । तस्स पसाहणहेंउ गाहासुत्तं इमं आह ||६|| गवि राया णवि दोसा संभोगविही उ वण्णिओ सुत्ते । नाणचरणठ्ठियाणं भणियं सुयनाणपुरिसेहिं ॥ १७०||७|| रागेणं संभुंजति सिणेंहओ तेहिं सद्धिं मम पीती । जच्चादणुवसमे (गे) ण व दोसेणेवं ण संभुंजे ||८||| नाणचरणे रयाणं एसुवदेसो उ वण्णिओ सत्था । तं गणहरेहिं गहियं तो ते सुतनाणपुरिसाउ ||९|| किं कारणं अणुण्णा ? संभोगविही उ एस साहूणं । भण्णइ नाणादीणं परिवड्डी एव होहिति तु || २५०० || अण्णोऽण्णस्स सगासे नाणमहीहिति तंगहिता । होहिति थिरा चरणे कार्हिति गिलाणकिच्चं च ॥१॥ जति संभोगगुणा ते ता सव्वे कीस ण परिभुज्जंति ? | भण्णति सरिसऽ हिगेहिं व संभोगोण पुण हीणेहिं ॥२॥ अत्थि पुण केइ पुरिसा तिगंतिगेणं पमाय कुव्वंति । आहारउवहि सेज्जा जुत्तों संभुंजणाबंध || १७१ ||३|| आहारादीतियगं उग्गममादी असुद्धगहणेणं । जे कुव्वंति पमादं तेसिं संवासदोसेणं ||४|| अणुमोदणपच्चतिओ मा बंधो होहितित्ति तेणं तु । णवि कीरइ संभोगो तेवि य चगि (विग ) ता वरं होता ||५|| णणु Heron श्री आगमगुणमंजूषा १५२४YO Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XK66666666666 (३८-२) पंचकम्पभास पंचम छेयसुत्तं [६३] रागदोसियत्तं संभुंजण एग एगऽसंभोगे । भण्णति ण रागदोसा सुणसू जं कारणं एत्थं || ६ || संभुंजणा विसुद्धा उवग्गहं कुणइ नाणचरणाणं । संभुंजणा असुद्धा चरित्तभेदं वियाणाहि ||७|| भोगेण पमाएणं तद्दोसाणं तु होइ समणुण्णा । एवं चरित्तभेदो किं पुण सो कुव्वति पमादं ? ॥ ८॥ पूयारसपडिबद्धो सुद्ध असुद्धं करोइ संभोगं | अहवावि अजाणतो संभोगविहीऍ गुणदोसे || १७२ ||९|| पूजाहेतु पमादी सेवति रसहेउगं च तस्सेवी । नाणादिसुद्धकप्पं कुणइ असुद्धं तु सो एवं ।। २५१०॥ बारस मूलपदा खलु संभोगविहीय वण्णिया सुत्ते । जत्तो पावादाणं भणितं दुठ्ठाणं उक्खेवो ||१|| उवहिसुतभत्तपाणे, अंजलीपग्गहे इथ । वायणाय णिकाए य अठ्ठाणेत्तियावरे ॥ ० १६१ ||२|| किकम्मस्स य करणे, वेयावच्चकरणेइय । समोसरण सन्निसेज्जा, कहाए य पबंधणे || ल० १६२ ॥ ३॥ एते बारस भेदा संभोगविहीय तू समक्खाया। पावादाणं तेसु य इमेहिं ठाणेहिं णायव्वं ||ल० १६३ || ४ || रागद्दोसाणुगओ जो संभोगं तु पालए पत्तं । सो दुट्ठो णायव्वो तस्सुक्खेवो विसंभोगो ॥५॥ अहव इमेहिं तु कारणेहिं नियमा भवे विसंभोगो । संभोगोविहिं जो तू विवरीयं आयरिज्जाहि ॥ ६ ॥ उवरिम मज्झिम हेठ्ठिम संभोगठ्ठाणगं तिहा विभए। पडिसेहे पडिसेहे सम होइ समणो || १७३ ||७|| उवरिमपत्ति अहागड मज्झिमगा होति अप्पपरिकम्मा । सपरिक्कम्मा हिठ्ठिम संभोगविहि तिहा एसो ||८|| अहाकडा अहाकडेसु, भत्तं च पाणं तह धोवणं वा । अहाकडा गच्छति हिठ्ठिमेसुं, ण हिठ्ठिया छुब्भ अहाकडेसुं ||९|| मज्झिमिता हिठ्ठिमते छुब्भइ न तु हिठ्ठिमा उवरिमेसुं। एसो तिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं ॥ २५२०|| पडिसेहे पडिसेहो सपरिक्कम्मं तु होइ पडिबद्धं । तस्स पुणो पडिसेहो उवरिल्ले मेलणा जाउ || १ || पडिसेहो हेडुवरिं उवरिल्लो हिठ्ठिमे अणुण्णाओ । अह पडिसेहि अणुण्णा होति इमा तू मुणेयव्वा ॥२॥ जो पडिसिद्धं एवं आयरती तस्स होइ पडिसेहो । पडिसेहो विवेगुत्ती अवितहकरणे अणुण्णा उ ।।३। केरिसएणं तु समं संभोगो तेसि होइ कायव्वो ? | अहवावि ण कायव्वो ? भण्णइ इणमो निसामेहिं ||४|| णवि एस मंदधम्मे ण गिहत्थेसुं न चे अज्जासु । बावत्तरीविभत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे ॥ १७४ || ५ || दिज्जइ घेप्पइ य तहा केसिवी ण दिज्जए ण घेप्पइ य तहा केसिवी ण दिज्जए ण घेप्पइ उ । णवि दिज्नति घेप्पति तू णवि दिज्जति गवि उ घेप्पर तू || ६ || संविग्गसंजयाणं दिज्जइ घेप्पइ य पढमभंगो उ। संजतिवग्गे दिज्जति गवि घेप्पर कारणे बितिओ || ल० १६४ ||७| गिहिअन्नतित्थियाणं णवि दिज्जइ घेप्पई उ नवरं च । नवि दिज्जति नवि घेप्पड़ पासत्थादीण सव्वेसिं ॥ ल० १६५ ||८|| बावन्त्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उ संभोगो । छहिं गुणवत्तरं संभोगणं मुणेयव्वा ||९|| बावत्तरी उ एसा दुगतिगचउपंचछक्कसंगुणिया । जावइय होति भेदा विसुद्धेसु संभोगो || २५३०|| पडिसेहो असुद्धेसु कप्पो संभोग एस वक्खाओ। अहुणा उ लिंगकप्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए || १|| जो पुव्विं वक्खाओ जिणथेराणं तु दोण्हवी कप्पो। रूढणहकक्खमादी सो चेव इहंपि णायव्व ॥ २॥ इति एस लिंग कप्पो वोच्छं पडिसेवणाऍ कप्पं तु । जारिसयं सेविज्जति सुद्धमसुद्धं समासेणं || ३ || गहणपरिभुंजणाए निव्वाघाए तहेव वाधाए । वाधाए दुयगहणं निव्वाघाए य तियगहणं । १७५ || ४ || पडिसेघणा उ दुविहा गहणे परिभुंजणे य नायव्वा । एक्क्कावि य दुविहा निव्वाधाते य वाघाते ॥५॥ वाघातम्मी सुद्धं गेण्ह असुद्धं च एतदुयगहणं । परिभुंजंतीवि एवं निव्वाघातम्मि वोच्छामि ॥६॥ उग्गममादीसुद्धं गेण्हति परिभुंजती य तियमेयं । अहं पुण को वाघातो ? परूवणा तस्सिमा होइ ||७|| असिवे ओमोदरिए रायद्दुट्ठे भए व आगाढे। छक्कायदुगमुवादाय वाघाते निव्वघाते य ॥८॥ सुद्धमसुद्दं च जहिं अहवा सच्चित्तमीसंगं वावि । एतेसिं दोहं तू वाघाते गहण भोगे य ॥ ९ ॥ णिव्वाघाए छण्हवि अच्चित्ताणं तु गहण कायाणं । गहिंयस्स य परिभोगो तस्सेव य होइ कायव्वो || २५४०|| परिभोगे वाघाते पिच्छा होतं गातं । जह आहाकम्मंती ताहे य तयं ण परिभुंजे ॥ १ ॥ वाघाते सेवंतो अकिच्चमेयं तु चिंतए साहू । होइ तहा निज्जरतो जे पुण इणमो समायरति ॥२॥ पूजारसपडिबद्धो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय। चरणकरणं निगुहति तं जाणऽणुयत्तियं समणं ॥ १७६ || ३ || पूजारसहेउं वा बेई जह किच्चमेव एयं तु । मा मेण देहिति पुणो जह एसोsकिच्चकारित्ति ||४|| अहवा ओसन्नाणं तु अणुयत्तीय बेति को दोसो । आहाकम्मादीसुं ? णवरं मा कीरउ सयं तु ||५|| सो गूहति चरणादी एवं तुच्छं खु तस्स सामन्नं । तम्हा उ परूवेज्ना सुद्धं मग्गं तु किंचऽण्णं || ६ || णिस्साणपदं पीहइ अणिस्सविहरंतयं ण रोएति । तं जाण मंदधम्मं इहलोगगवेसगं समणं Pan Education International 2010 03 وستان لالالالالالالا - ॐॐॐॐॐॐॐ v.jainelibrary Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं 55555555552008 EC%$乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐纸纸听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明 ||७|| अहवा उम्मग्गो खलु णिस्साणं तं तु पीहए जो उ। तस्स उ छेदसुतत्थंण कहे दोसा इमे तहियं ।।८॥ पंचमहव्वयभेदो छक्कायवहो य तेणऽणुण्णओ। सुहसीलचि (ऽवि) यत्ताणं कहेइ जो पवयणरहस्सं ॥९|| पडिसेवकप्प एसो अहुणा वोच्छमणुवासणाकप्पं । अणुवास मासकप्पो वासावासो इमेसिं तु ॥२५५०|| जिण थेर अहालंदे परिहरिते अच्च मासकप्पो उ। खेत्ते कालमुवस्सय पिंडग्गहणे य णाणत्तं ॥१॥ एएसिं पंचण्हवि अण्णोण्णस्स उ चउपदेहिं तु । खेत्तादीहिं विसेसो जह तह वोच्छं समासेणं ।।२।। णत्थि उ खित्तं जिणकप्पियाण उदुबद्ध मासकालो उ । वासासुं चउमासा वसही अममत्तअपरिकम्मा ||३|| पिंडो तु अलेवकडो गहणं तू एसणाहुवरिमाहिं । तत्थवि काउमभिग्गह पंचण्हं अण्णतरियाए॥४॥ थेराण अत्थि खेत्तं तु उग्गहो जाव जोयण संकोसं । णगरे पुण वसहीए विकाले उदुबद्धि मासो उ॥५॥ उस्सग्गेणं भणिओ अववाएणं तु होज्ज अहिओवि । एमेव य वासासुवि चउमासो होज्ज अहिओवि ॥६।। अममत्तअपरिकम्मो उवस्सओ एत्थ भंग चउरो उ। उस्सग्गेणं पढमो तिण्णि उ सेसाऽववादेणं ||७|| भत्तं लेवकडं वाऽलेवकडं वावि ते उ गेहंति । सत्तहिवि एसणाहिं साविक्खो गच्छवासोत्ति ।।८।। अहलिंदयाण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिणाणं तु । णवरं कालविसेसो उदुवासे पणगचउमासो॥९॥ गच्छे पडिबद्धाणं अहलंदीणं तु अह पुण विसेसो। उग्गहो जो तेसिं तू सो आयरियाण आभवति ॥२५६०|| एगवसहीऍ पणगं छव्वीहीओ व गाम कुव्वति । दिवसे दिवसे अण्णं अडंति वीहीइ नियमेणं ||१|| परिहारविसुद्धीणं जहेव जिणकप्पियाण णवरं तु । आयंबिल तु भत्तं गिण्हती वासकप्पं च ॥२॥ अज्जाण परिग्गहियाण उग्गहो जा उसो तु आयरिए। काले दो दो मासा उद्धबद्ध तासि कप्पो उल०१६६||३|| सेसंजह थेराणं पिंडोव उवस्सओय तह तासिं। सो सव्वोविय दुविहो जिणकप्पो चेव थेरकप्पोय॥४|| जिणकप्पियऽहालंदियपरिहाविसुद्धियाण जिणकप्पो । थेराणं अज्जाण य बोद्धव्वो थेरकप्पो उ ॥५|| दुविहो य मासकप्यो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य । निरणुग्गहो जिणाणं थेराण अणुग्गहपवत्तो ॥६॥ उदुवासकालतीते जिणकप्पीणं तु गुरूग गुरूगा य । होति दिणम्मि थेराणं ते च्चिय लहुओ (थिराण ते च्चिय लहुगलहुगा) ॥७|| तीसं पदावराहे पुठ्ठो अणुवासियं अणुवसंतो। जे जत्थ पदे दोसा ते तत्थयगो समावण्णे ||८|| पण्णरसुग्गमदोसा दस एसणदोस एते पणुवीसं । संजोयाणादि पंच य एते तीसं तु अवराहा ।।९।। एएहिं दोसेहिं जइ असंपत्ति लग्गती तहवि । दिवसे दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो उ॥२५७०|| वासावासपमाणं आयारे उप्पमाणितं कप्पं । एयं अणुम्मुयंतो जाणसु अणुवासकप्पं तु ॥१॥ आयारपकप्पम्मी जह भणित तीति संवसतोवि । होइ अणुवासकप्पो तह संवसमाणऽदोसा उ ||२|| दुविहे विहारकाले वासावासे तहेव उदुबद्धे । मासातीते अणुवहि वासातीते भवे उवही ॥३।। उदुबद्धिएसु अठ्ठसु तीतेसु तत्थ वास ण उ कप्पे । घेत्तूणं उवही खलु वासातीतेसु कप्पति तु ॥४॥ वासउदुअहालंदे इत्तरि साहारणे पुहुत्ते य । उग्गहसंकमणं वा अण्णोण्णसकासऽहिज्जते ॥१७७||५॥ वासासु चउम्मासो उदुबद्धे मासो लंद पंच दिणा । इत्तरिउ रूक्खमूले वीसमणठ्ठा ठिताणं तु ॥६॥ साहारणा उएते समठ्ठि (मगठ्ठि) याणं बहूण गच्छाणं । एक्केणं परिगहिया सव्वे वोहित्तिया होति ॥७॥ संकमणमण्णमण्णस्स सकासे जइ उ ते अधीयते । सुत्तत्थतदुभयाइं संधे अहवावि पडिपुच्छे ।।८।। ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तं तु गिण्हेज्जा । मंडलियमहिज्जते सच्चित्तादी उ जो लाभो ।।९।। सो उ परंपरएणं संकामति ताव जाव सठ्ठाणं । जहियं पुण आवलिया तहियं पुण अंतरे ठाति ॥२५८०|| ते पुण ठित एक्काए वसहीए अहव पुप्फकिण्णा उ। अहवावि उसंकमणे दव्वस्सिणमो विही अण्णो।।१।। सुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोवे असंतईभेदे । संकमणदव्वमंडलिआवलियाकप्पअणुवासा ||२|| पुव्वठ्ठिताण # खित्ते जदि आगच्छेज्न अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासम्मि जइ खेत्ती॥३॥ किंचि अहिज्जेज्जाही थोवं खेतं च तं जदि हविज्जा। ताहे असंथरंता दोण्णिऽवि साहू विसज्जति ॥४|| अण्णोण्णस्स सगासे तेसिपिय तत्थ विज्जमाणाणं । आभवणा तह चेव य जह भणियमणंतरे सुत्ते ॥५॥ एवं निव्वाघाते मासे चउम्मसिओ उ थेराणं । कप्पो कारणओ पुण अणुवासो कारणं जाव ||६|| एसऽणुवासणकप्पो अहुणा अणुपालणाएँ कप्पं तु । संखेवसमुद्दिठं वोच्छामि अहं # समासेणं।।७।। मोहतिगिच्छाएँ गते णढे खेत्तादि अहव कालगते। आयरिए तम्मि गणे पीलादिरक्खणछाए।।१७८|| ल० १७६||८|| को उगणी ठवणिज्जो? भण्णइ கவம் xx$$555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५२६45555555555555555OOR Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RO9555555555555555 (३८-२) पंचकप्पभास पंचम छेयसुतं 655555555%%%%%% AC HOTO乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FC 2 जइ तस्स कोति सीसो उ । सुत्तत्थतदुभएहिं णिम्माओ सो ठवेयव्वो ॥ल० १६८।।९।। असतीय तस्स ताहे ठावेयव्वा कमेणिमेणं तु । पव्वज्ज कुले नाणे खेतते सुहदुक्खि सुत सीसे ॥ल० १६९।।२५९०॥ गुरूगुरू गुरूणं तू वा गुरूसन्झिलओ व तस्स सीसो वा पव्वज्जएगपक्खी एमादी होइ णायव्वो ॥१|| असतीएँ कुलिच्चो वा तस्सऽसतीए सुएगपक्खीओ। खेत्ते उवसंपण्णे तस्सऽसतीए ठवेयव्वो ॥२॥ सुहदुक्खियस्स असती तस्सऽसतीए सुओवसंपण्णो । एवं तु बियाण तहिं सीसम्मि उमग्गणा नत्थि ।।३।। पाडिगच्छगणधरे पुण ठविए तहियं तु मग्गणा इणमो। सुत्तत्थमहिजते अणहिज्जते धर्मे विभागा ||४ साहारणं तु पढमे बितिए खेत्तम्मि ततिऍ सुहदुक्खे । अणहिज्जते सीसे सेसे एक्कारस विभागा॥५|| पुव्वद्दिठ्ठगणस्स उ पच्छुद्दिढ़ पवाययंतस्स । संवच्छरम्मि पढमे पडिच्छए जं तु सच्चित्तं ॥ ॥६।। पुव्वंपच्छुद्दिढे पडिच्छए जं तु होइ सच्चित्तं । संवच्छरम्मि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स ।।७।। पुव्वंपच्छुद्दिढे सीसम्मि उजं तु होइ सच्चित्तं । संवच्छरम्मि पढमे तं सव्व गणस्स आभवति ॥८॥ पुव्वद्दिट्ठगणस्सवि पच्छुद्दिढ़ पवाययंतस्स । संवच्छरम्मि बितिए सीसम्मि तु जंतु सच्चित्तं ||९|| पुव्वंपच्छुद्दिढे सीसम्मि तु जंतु होति सच्चित्तं । संवच्छरम्मि ततिए तं सव्व पवाययंतस्स ।।२६००|| पुव्वद्दिढे गच्छे पच्छुट्ठि पवाययंतस्स | संवच्छरम्मि पढमे सिस्सिणीए जं तु सच्चित्तं ॥१॥ पुव्वंपच्छुद्दिढे सिस्सिणीए जंतु होइ सच्चित्तं । संवच्छरम्मि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स ।।२।। पुव्वंपच्छुद्दिढे पडिच्छियाए उजं तु सच्चित्तं । संवच्छरम्मि पढमे तं सव्व पवाययंतस्स ।।३। खेत्तवसंपायरिओ सुहदुक्खी चेव जंति तु संठविओ। कुलगणसंघिच्चो वा तस्स इमो होति उ विवेगो॥४॥ संवच्छराणि ति(दु)न्नि उ सीसम्मि पडिच्छयम्मि तदिवसं । एव कुलिच्चगणिच्चे संवच्छर संघ छम्मासा ।।५।। तत्थेव य णिम्माए अनिग्गए निग्गए इमा मेरा । सकुले तिन्नि तियाइं गणदुग संवच्छरं संघे ॥६।। ओमादिकारणेहिं दुम्मेहत्तेण वा ण णिम्माए । काऊण कुलसमायं कुलथेरे वा उवट्टेति ।।७।। णव हायणाइं ताहे कुलं तु सिक्खावए पयत्तेणं । ण य किंचि तेसि गिण्हइ गणो दुगं एग संघो ॥८॥ एवं तु दुवालसहिं समाहिं जति तत्थ कोइ निम्माओ। ताणेति अणिम्माए पुणो कुलादी उवट्ठाणा ॥९॥ तेणेवकमेणं तू पुणो समाओ हवंति बारस उ। निम्माए विहरंती इहर कुलादी पुणोवट्ठा ॥२६१०॥तहविय बार समाओ निम्माओ सो सि गणहरो होइ । तेण परमनिम्माए इमा विही होइ तेसिंतु॥१॥ छत्तीसाइकंते पंचविहुवसंपदाएँ तोह पच्छा । पत्तं तुवसंपादे पव्वज्ज तु एगपक्खम्मि ।।२।। पव्वजाएँ सुतेण य चतुभंगो होति एगपक्खम्मि। पुव्वाहितवीसरिए पढमासति ततियभंगेणं।।३।। सव्वस्सवि कायव्वं निच्छयओ किं कुलं व अकुलं वा ?। कालसभावममत्ते गारवलज्जाएँ काहिति ।।४।। एसऽणुपालणकप्पो अहुणाऽणुण्णातो णंदिसुत्तेहिं । सिद्दो अणुन्नकप्पो णवरेगट्ठाणि वोच्छामि ॥५|| किमणुन्न ? कस्सऽणुन्ना ? केवतिकालं पवत्तियाऽणुन्ना ?। आयरियत्त सुतं वा अणुण्णवइ जं तु साणुन्ना ॥१७९।।६।। कस्सत्ती सीसस्स उ गुरुगुणजुत्तस्स होयऽणुण्णा उ । केवइकालपवित्ती आदिकरेणुसभसेणस्स ||७|| एगट्ठियाणि तीय उ गोन्नाइं हवंति नामधिज्जाई । वीसं तु समासेणं वोच्छामी ताणिमाई तु ।।८।। अणुण्णा उण्णामणा णमण णामणि ठवणा पभावणॉ विदा(ता)रे । तद्भयहिय मज्जाता कप्पे मग्गेय णाए य॥१८०॥९॥ संगह संवर निज्जर थिरकरणमच्छेदजीव(त) वुड्डिपयं । एपवरं चेव तहा वीस अणुणाइणामाई।।१८१॥२६२०।। अणुणव्वइत्तऽणुण्णा उण्णामिय ऊसियंति उण्णमणी । गिहिसाहहिं णमिज्जइ तम्हा ऊ होइ नमणित्ति ॥१॥ सुतधम्मचरणधम्मे णामयती जेण णामणी तम्हा। ठविओ आयरियत्ते जम्हा उ तेण ठवणत्ति ॥२।। ठविओ गणाहिवत्ते होइ पभू तेण पभवो सव्वेसिं । नाणादीणं होती पभवो पभुइत्ति एगट्ठा ।।३।। आयरियत्ते पभविए तेण वियारो उ दिज्जइ गणो से । तदुभयहियंति भन्नइ इहपरलोगे य जेण हियं ॥४॥ गणधरमेर धरेती जम्हा ऊ तेण होति मज्जादा । करणिज्जो कप्पोत्ति य कप्पे गणकप्प समणे(करणा)णं ॥५|| नाणादि मोक्खमग्गो सुत्तो(सो त)म्मि ठितोत्ति तो भवति मग्गो। जम्हा उणायकारीणाओ वा एस तो णातो।।६।। दव्वे भावे संगहो दव्वे आहारवत्थमादीहिं । भावे नाणादीहिँ उ संगेण्हति संगहो तेण ।।७।। दुविहेण संवरेणं इंदियनोइंदिएहिं जम्हा उ। अप्पाण गणं च तहा संवरयति संवरो तम्हा ॥८॥ गणधारणमगिलाए कुणमाणो निज्जरेइ कम्माई। अन्ने य निज्जरावे तम्हा ऊ निज्जरा होइ।।९।। वाएरिता लता इव पकंपमाणाण तरुणमादीणं । होइ थिरावटुंभो तरुव्व थिरकरण तेणं तु॥२६३०|| जम्हा उ अवोच्छित्ती सो कुणई नाणचरणमाईणं । तम्हा खलु अच्छेद गुणप्पसिद्धं हवति णामं ।।१।। तित्थकरेहिं कयमिणं गणधारीणं xex5555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा -१५२७5555555555555555555555555POK - 得明明明明乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38-2) पंचकप्पभास पंचम छेयसुत्तं [66] 555555555552 HOTO乐乐乐乐听听听听听听乐乐乐玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听明明乐听听听听OM तु तेहिं सीसाणं / तत्तो परंपरेणं आयमिणं तेण जीयं तु सा वड्डइ य नाण चरणे गणं तु जम्हा उ तेण वुड्पिदं / पवरं पहाणमेयं सव्वेसिं रायदेवाणं // 3 // इति एसऽणुन्नकप्पो जहाविही वन्निओ समासेणं / ठवणाकप्पं एत्तो वोच्छामि / अहाणुपुव्वीए // 4 // तिविहो ठवणाकप्पो कुले गणे चेव तह य संघे य / एतेसिँ परूवणयं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए / / 5 / / कुलथेरेहिं गणेण व जा मेरा ठाविता भवे नियमा / सो कुलठवणाकप्पो एव गणे होइ संघे य / / 182 / / 6 / / केरिसया पुण थेरा कुलगणसंघाण होति उ पमाणं ? / भण्णइ सुणसू इणमो जेहिं गुणेहिं तु ते जुत्ता ||7|| कप्पा कप्पविहिण्णू सुत्तत्थविसारया सुतरहस्सा / जे चरणकरणजुत्ता ते सुद्धनयाण उ पमाणं / / 8 / / कप्पाकप्प विहिण्णु सुत्तत्थविसारया सुयरहस्सा / जे चरणकरणहीणा ते सुद्धणयाण भइयव्वा / / 9 / / नेयव्वा खलुक (अ) ज्झा असती चरणट्ठियाण थेराण / हीणोवि सुयसमिद्धो मज्झत्थो होइ उ पमाणं // 2640 // कह पुण ठाविज्जते ते उ पमाणं तु तेसु ठाणेसु / कुलगणसंघा थेरा? भण्णइ इणमो निसामेहि // 1 // इच्छंकारनिउत्तो पियधम्मो तिण्ह कोइ एक्कतरो। सो होति तिगत्थेरा तिगचरित्तवियाणओ वी(थी)रो |2|| नाऊण गुणसमिद्धं जोगं तु कुलादिथे रठाणस्स / काऊणिच्छाकारं कुलादिणो बेति तो इणमो॥३|| उब्भे होह पमाणं कुलथेरा थेरठाणजोगं तु / एवं तु कुलादीहिं तिगथेरा ऊ ठविज्जति // 4 // तिगचरितं जाणइत्ति चरित्त मज्जायमेव एगट्ठा / तं तु तहाविहि जाणइ तिण्हपि कुलादिठाणाणं // 5 // पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्खेवि / सो होति तिगत्थेरो तिगथेरगुणेहिं उवउत्तो॥६|| पासत्थादीठाणे ण वट्टती एस रक्खओ होइ / अहवा सति सद्धा(यसत्ती)ए पासत्थादरवि पालेइ॥७॥ परिहुज्जते रागादि रक्खिते साह साहणिदपक्खे / अहवा अप्पाण परे तिगथेरो संघथेरो उ॥८॥ एसो ऊ तिगथेरो तिगथेरगुणेहिं होति संपन्नो। अहुणा वीसुंवीसुंकुलादिथेरेपवक्खामि // 9|| चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा कुलप्पहाणो उ / सो होइ कुलत्थेरो कुलचरियवियारओ धीरो॥२६५०॥ पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिक्खतो दुपक्खेवि / सो होइ कुलत्थेरो कुलथेरगुणेहिं उवउत्तो // 1 // चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा गणप्पहाणो उ / सो होइ गणत्थेरो गणचरियवियाणओ वी(धीरो) // 2 // पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिक्खओ दुपक्खेवि / सो होइ गणत्थेरो गणथेरगुणेहिं उवउत्तो // 3|| चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा जुगप्पहाणो उ / से होइ संघथेरो सीतघरसमो पुरिससीहो / / 4 / / एसो उ मूलसंघो आपुच्छणगमणकरणकज्जेसु / हितसुहनिस्सेसकडो कुलगणसंघऽप्पणो चेव // 5 // दंसणनाणचरित्ते जा पुव्व परूवणाऽऽयरणया य। एसो उमूलसंघो तिविहा थेरा करणजुत्ता // 6 / / पुविपि परूविज्जा आयारादीसुवन्नियचरित्ते। तं सम्ममायरंतो हवति तु संघो तहाथेरो // 7 // जो सो हीणचरित्तो अण्णस्स असतीत पुव्वभणितो उ / कुलथेराति ठविज्जति तस्सुवदेसो इमो होइ ||8|| होज्ज वसणसंपत्तो सरीरमायंकता असहुओ वा / चरणकरणे असत्तो सुद्धं मग्गं परूविज्जा // 183||9|| वसणं वाजीमादी सूलजरादी तु होइ आतंको। धितिसारीरबलेणं हीणो असहू मुणेयव्वो // 2660 // एएहिं कारणेहिं अकप्पपडिसेवणं करेंतोउ। सुद्धं मग्गपरूवे अप्पाहणिया अओएत्तो॥१॥ कप्पपणयस्स भेदा सोच्चा णच्चा तहेवघेत्तूणं / चरणकरणे विसुद्धे आयरणपरूवणं कुणह ||2|| आयरियसगासाओ सोच्चा णच्चा य घेत्तुमत्थेणं / हियए ववत्थवेउं आयरण परूवणा कुज्जा / / 3|| कप्पपणगस्स भेदो परूविओ मोक्खसाहणवाए। जं चरिऊण सुविहिया करेति दुक्खक्खयं धीरा ||4|| पंचविहसुत्तकप्पाण विभासा पमोत्तूणं / गहिया सीसहियट्ठा अव्वोच्छित्तट्ठया चेव / / 2665 // (सव्वसुयसमूहमयी वामकरग्गहियपोत्थया देवी / जक्खकुहंडीसहिया देतु अविग्घं भणताणं ॥१प्र०।। 乐乐编织乐乐乐乐玩乐乐乐乐乐明明听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听乐明明乐明明明明明明明乐乐 Noros卐 5 5555555555584बी आगमगणमजूषा - 1528 155555555555555555555OOR