Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्र हे गौतम ! 'एगागारे पन्नत्ते' एकाकारमेक पकारक्षमेव पदबहुलं फाडं प्रज्ञप्तं कथितमिति । 'एवं आवबहुले कंडे' एवं हे सहन ! एतस्यां रत्नप्रमाप्रथिव्या मबहुलं काण्डम् 'कविहे एन्नत्ते' कतिविधं कतिपकारकं प्रज्ञातं करितमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! हयागारे पन्नत्ते' एकाकारम्-एकप्रकारकमेव अनाहुलं काण्ड प्राप्त कविमिति । 'सरकरप्रमाणं भंते ! पुढवी' शर्कराममा खल्लु मदन ! पृथिवी करिहा पन्नता' फगिविधाकतिप्रकारका प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'एगा. गारा पन्नत्ता' शर्करामभा पृथिवी एकामाग-एझकारिका प्रज्ञप्ता-वितेति । 'एवं जाव अई सत्तमा' एवं शर्करापभावदेव यावद् बालका-प-धृत-उमः ममा पृथिवी, स्थाऽधः सप्तम्यपि एकाकारा ज्ञातव्याः सर्वत्र प्रशनः उत्तरश्च स्वयमेवोहनीयम् तथाहि-चालुकाप्रभा खलु भदन्त ! पृथिवी कतिप्रकारका है ? उत्तर में प्रशुश्री कहते है-'गोय!' हे गौतम ! पंकयकाण्ड 'एगागारे पत्नत्ते' एक प्रकार का ही कहा गया है। 'एवं अव्यहळे कंडे' इसी प्रकार से हे गौतम ! जो रत्नप्रभा पृथिवी में अबहुलकाण्ड है वह भी 'एगागारे पन्नत्ते' एक प्रकार का ही कहा गया है 'सकराभाणं पुढवी फहविहा पन्नत्ता' हे भदन्त ! जो शर्कराप्रभा पृथिवी है वह कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रनुश्री कहते है-'गोषमा ! 'एगागारा पन्नत्ता' हे गौतम ! शर्कराप्रभा पृथिवी एक प्रकार की ही कही गई है। 'एवं जाव अहे लत्तमा' इसी प्रकार से यावत् घालुकामभा, पडप्रभा तमःप्रभा पृषिधी और अधः सप्तमी पृथिवी भी एक प्रकार की ही कही गई है। यहां सर्वत्र प्रश्न और उत्तर स्वयं उद् नावित करलेना चाहिये, जैसे-वालुकाप्रभा पृथिवी हे बदन्त ! कितने प्रकार की कही गई है ? हे गौतम ! चालु काममा पृथिवी एक प्रकार की कही गई है। प्रारना ४३३ छे. 'सरप्पभाण पुढरी कइविहा पण्णत्ता' मान शश પ્રભા પ્રવી કેટલા પ્રકારની કહી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગીતમ स्वामीन है 'गोयमा! एगागारा पण्णत्ता' 3 गौतम ! शरामा पृथ्वी मे २ नी०४ ४ी छे. 'एवं जाव अहे सत्तमा' मा प्रभाये यावत्वयु પૃથ્વી, પંક પ્રભા પૃથ્વી અને અધઃ સપ્તમી પૃથ્વી પણ એક જ પ્રકારની કહી છે. અહિયાં તેના સંબંધમાં પ્રશ્ન અને ઉત્તર વાક સ્વયં સમજી લેવા. જેમકે હે ભગવદ્ વાલુકા પ્રમા પૃથ્વી કેટલા પ્રકારની કહી છે? હે ગૌતમ! વાલુકાકક્ષા પૃથવી એક પ્રકારની જ કહી છે. ફરીથી ગૌતમસ્વામી પૂછે છે કે હે