Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ सू.२ रत्नप्रभापृथिव्याः भेदनिरूपणम् भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभा पुढवीए' रत्नप्रभा पृथिव्यास् 'रयणकंडे' रत्नकाण्डम् 'काविहे पन्नत्ते' कतिविधम्-कति धकारक प्रज्ञप्तं कथितमिति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोषमा' हे गौतम ! 'एगागारे पन्नत्ते' एकाकारं रत्नकाण्डं प्रक्षप्तं कथितम् । 'एपं जाव रितु एवं रत्नकाण्डवदेव शवद् वज्ररत्नादारभ्य रिष्टरत्नकाण्डपर्यन्तमपि एकाकारमेव भवति यावत्पदेन वज्रकाण्डादारभ्य स्फटिकमाण्डपर्यन्तस्य संग्रहो भवति तथा च-सर्वमेव रत्नकाण्डादारभ्य रिष्टरत्नकाण्डपर्यन्त काण्ड मेकरकारमेव भवतीति भावः ॥१॥ ___ 'इमीसे णं संसे ! तस्यां खल्ल गृहन्त ! 'स्यणप्पमा पुढीप' रत्नप्रभापृथिव्याम् 'पंकबहुले कंडे कइबिहे पन्नते' एमबहुलं काण्डं ऋतिविधं कति प्रकारकं घज्ञप्तं कथितमिति प्रश्नः, अगवानाह-'गोयसा' इत्यादि, 'गोयमा' से खरकाण्ड सोलह १६ प्रकार का है। 'हनीसेण भंते' हे भदन्त ! इस 'रयणप्पभाए पुढ श्रीए' जत्नप्रभा पृथिवी में जो 'रघणकंडे' रत्नकाण्ड है वह 'काविहे पण्णत्ते' कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'एगाणारे पन्नत्ते' रत्नकाण्डएक प्रकार का ही कहा गयो है । 'एवं जाव रिडे' इसी प्रकार से थावत् रिष्टकाण्ड भी एक प्रकार का ही कहा गया है ऐसा जानना चाहिये यहां यावत्पद से 'वज काण्ड से लेकर स्फटिकक्षाण्ड-तक के चौदह १४ काण्डों का संग्रह हुआ है । तथा च-रत्नकाण्ड से लेकर रिष्टकाण्ड तक के समस्त ही काण्ड एक प्रकार के ही हैं । 'हनीले णं भले!' हे भदन्त ! इस रयणप्पभा पुढवीए' रत्नप्रभा पृथिवी में 'पंकवहुले कंडे कह बिहे पन्नत्ते' जो दूसरा पङ्क बहुलकाण्ड है-वह कितने प्रकार का कहा गया
'इमीसे णं भंते सावन मा 'रयणप्पभाए पुढवीए' २त्नप्रभा पृथ्वीमा २ 'रयण कंडे' २त्न छ, त 'कइविहे पण्णत्ते' 21 प्रारना । छे. मा प्रशन उत्तरमा प्रभु हे छ'गोयमा!' गीतमा 'एगागारे पन्नत्ते' २नाई मे प्रहारने १ ४ा छे. 'एवं जाव रिटे' से प्रमाणे यावत् रिटsis પણ એકજ પ્રકારને કહેલ છે. તેમ સમજવું અહિયાં યાવત્પદથી વજીકાંડથી લઈને સફટિકકાંડ સુધીના ચૌદ ૧૪ કાંડેને સંગ્રહ થયો છે. તથા રત્નકાંડથી
न Pिexis सुधाना साडी मे४१ प्रारना छे. 'इमीसे णं भंसे है भगवन् 'रयणप्पभा पुढवीए' २त्नप्रभा पृथ्वीमा 'पंकवहले कडे कइविहे पण्णत्त' બીજે જે પંક બહુલકાંડ છે. તે કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु ४३ छे , 'गोयमा !' गौतम! ५४ मतxis 'एगागारे पण्णत्ते से