Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): K C Lalwani
Publisher: Jain Bhawan Publication

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Page 245
________________ 228 भगवती सूत्र शः ५ उ: ९ are similar The Vāṇavyantaras, Jyotiskas and Vaimānikas to the infernal beings. [ with senior monks from the order of Parsva ] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावचिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी : In that period, at that time, some senior monks who were the spiritual progenies of Arhat Pārśva came to Śramaṇa Bhagavan Mahāvīra, and having come, they stood at a reasonable distance from the Lord, i.e., neither very near nor very far, and submitted as follows : प्रश्न १७८ - से णूणं भंते ! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ? विगच्छिंसु वा विगच्छति वा विगच्छस्संति वा ? परित्ता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उपज्जिस्संति वा ? विगच्छिंसू वा विगच्छंति वा विगच्छिस्संति वा ? उत्तर १७८ - हंता अज्जो ? असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया तं चैव । प्रश्न १७९ - से केणट्ठेणं जाव... विगच्छिस्संति वा ? उत्तर १७९ - से णूणं भे अज्जो ! पासेणं अरया पुरिसादाणिएणं सासए लोए बुइए अणाइए अणवदग्गे परिते परिवुडे । हेट्ठा विच्छिण्णे मज्भे संखित्ते उप्पं विसाले । अहे पलियंकसंठिए मज्भे वरवइरविग्गहिए उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठिए । तेसिं च णं सासयंसि लोगंसि अणाइयंसि अणवदग्गंसि परिसि परिवुडंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि मज्भे संखित्तंसि उप्पिं विसालंसि । अहे पलियं कसंठियंसि मज्भे वरवइरविग्गहियंसि उप्पिं उद्घमुइंगाकार संठियंसि अनंता जीवघेणा उप्पज्जित्ता उपज्जित्ता णिलीयंति परित्ता जीवघणा उपज्जित्ता उपजित्ता णिलीयंति से णूणं भूए उप्पण्णे विगए परिणए । —अजीवेहिं लोक्कइ पलोक्कइ । जे लोक्कइ से लोए ? - हंता भगवं । से तेणट्ठेणं अज्जो ! एवं वुक्चइ – असंखेज्जे तं चैव ।

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