Book Title: Adhyatmik Hariyali Author(s): Buddhisagar Publisher: Narpatsinh Lodha View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तल्या किन पन्यास प्रवर श्री धरणेन्द्र सागरजी महाराज ने हरियाली साहित्य का गंभीर अध्ययन, मनन एवं चिन्तन कर प्रस्तुत पुस्तिका का संपादन किया है। इसमें आध्यात्म योगी श्रीमद् आनंदघनजी महाराज उपाध्याय श्री यशोविजय महाराज, मुनिराज श्री विनयसागरजी महाराज, एवं मुनिराज श्री ज्ञानविजयजी महाराज आदि की कृतियों को उजागर किया हैं। अवधूत ज्ञानयोगी श्रीमद् आनन्द घनजी महाराज सत्रहवीं अठारहवीं सदी की एक महान् विभूति हुए है जिनके द्वारा रचित स्तवन, सज्झाय आदि में तर्क शास्त्र एवं अलंकार शास्त्र की पूर्ण दक्षता परिलक्षित होती है। उन्होंने अपने पदों में विरही स्त्री को दशा के चित्रण में आध्यात्म को उतारने का प्रयास किया है जिसका प्रमुख उदाहरण पुस्तक का प्रथम सोपान 'ससरो मारो बालो भोलो' है। इस पद में श्रीमद् ने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों को समझाने का अद्भूत प्रयास किया है । उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज भी उनके समकालीन थे। श्रीमद् आनंदघनजी का विचरण मारवाड़ व आबू प्रदेश में विशेष रुप से जुड़ा हुआ तथा मेड़ता सिटी में ही आप कालधर्म को प्राप्त हुए। वहां विक्रम संवत् १७५३ की आपकी एक देहरी अभी भी विद्यमान हैं तथा अब वहाँ एक भव्य समाधि मंदिर निर्णाम की योजना बनाई जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि हरियाली साहित्य मारवाड़ी व गुजराती में अलग-अलग एवं दोनों को मिश्रीत भाषा में भी उपलब्ध है क्योंकि इसकी रचना मारवाड़ व गुजरात के जुड़े हुए प्रदेशों में विशेष रुप से हुई है। आज हिन्दी साहित्य में समस्या पूत्ति व पहेलियों तथा आंगल साहित्य में क्यूज (Quitz) आदि की जो पद्धति प्रचलित है। मध्यकालीन युग का हरियाली साहित्य उसी का प्राचीनतम रुप हैं। For Private And Personal use onlyPage Navigation
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