Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ( ५० ) तीसरे ने उसे प्रकट कर दिया है। चौथा उसे त्याग रहा है तो भी दूसरा उसे नहीं ढूंढता। जो इन्द्र द्वारा सेवित २४ जिनवर की मन के राग सहित सेवा करेंगे, वे शिव सुख को प्राप्त करेंगे ॥२॥ जेहने पाखे जग अंध भाखे, लोकालोक नवि जाणे जी। सूरिने वंदी राजेन्द्र नंदी, दरसन वेरी ने धाणे जी ॥ मध्ये साची बातन काची, मूढपणे न उवेखो जी । गुरु गम सेती तत्त ने कहेती, दीपविजय मति लेखो जी ॥३॥ हिंदी शब्दार्थ : जिसे संसार अंधा कहता है किंतु जो लोक अलोक की सर्व वस्तु को जानते देखते हैं, ऐसे सूरिजी को राजेन्द्र नंदी वंदन करता है । मध्य में बात सच्ची है, कच्ची नहीं है, मूर्ख इसका अर्थ नहीं कर सकता क्योंकि वह दर्शन का वैरी है (मिथ्यादर्शनो है) । देखिये, दीपविजय ने गुरु के प्रसाद से तत्त्व की बात कह दी है ।।३।। गुढो (गुढार्थ) १ दु हो (प्रश्न ) पाणी पोती दुबली तरसी माती होय । करण हरिपाली मोकले राजा भोज विचारी जोय अकनारी मुखकज्जल वरणकी हीडे परगट बोले छनी For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87