Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • हरियाली (गूढार्थ स्तुति) अमर्थे प्रावी ठगे उपावी, नीची ऊंची चाडी जी। कालने पाके तेहिज थाके, आवी दूजे पाडी जी ॥ नरभव पाको मोटी खामी, पाडीमा मति मांगीजी । वीरजिनेश्वर स्तवित सुरेश्वर ने समरो बडभागीजी ॥१॥ हिंदी शब्दार्थ : ऊँचे नीचे रास्ते से हमें ठगने के उपाय ढूंढती एक पाडी (भैंस की बेटी) वैसे ही व्यर्थ ही हमारे जीवन में आ गई (स्त्री)। किंतु समय के पक जाने पर वह भी थक जाती है, फिर दूसरी पाडी (स्त्री) भी आ जाती है। मनुष्य का जन्म पाकर भी लोग सिर्फ पाडी (स्त्री) में अपनी बुद्धि को नष्ट करते हैं, यही बड़ी कमी है। इस जन्म में तो इन्द्रों द्वारा स्तवित वीर जिनेश्वर का जो स्मरण करते हैं, वे ही बड़े भाग्यशाली हैं ॥१॥ करि बदनामी चोर हरामी, क्याथी लीधुं करियाणो जी। बीजाए लीधं काळं कीधं, त्रीजं प्रकट करे जाणो जी ॥ चोथु खंखेरे बीजं ना हेरे, तो शिव सुखडां आगे जी । चौवीस जिनवर महित पुरंदर, सेव करो मन रागे जी ॥२॥ हिंदी शब्दार्थ : यह किराणा कहां से खरीदा गया है ? चोर हरामी ने व्यर्थ हमें बदनाम कर दिया है। एक ने तो लेकर उसे छिपा दिया है । For Private And Personal Use Only

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