Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६४ ) स० तरस्यो पाणी नहि पिए रे : ___ संसारी जीव अनादिकाल से प्यासा है, उसे गुरू वाणी रूपी अमृत जल पिलाते हैं, फिर भी वह नहीं पीता। स० पग विटुणो मारग चले रे : श्रावक और साधु धर्म इन दो पाँवों में से यदि एक पाँव ठीक न हो और आत्मा परभव के मार्ग पर चले तो वह बहुत दुःख प्राप्त करता है। स० नारि नपुंसक भोगवे रे : मन नपुंसक है, वह चेतना रूपी स्त्री को भोगता है अर्थात् जब चेतना मन के साथ हो जाती है, तब वह यथा इच्छित विषय आदि में विलास करती हैं। स० अंबाडी खर उपरे रे ॥४॥: भवभिनंदी दुरभव्य, अभव्य अथवा अरोचक कृष्ण पक्षी मनुष्य को गधा कहा जाता है, ऐसे व्यक्ति को दीक्षित करना अर्थात् गधे पर अम्बाडी लादना कहलाता है । स० नर एक नित्ये उभो रहे रे : एक पुरुष सदैव खड़ा ही रहता है। क्योंकि चौदह राजू प्रमाण लोक एक है, उसके मध्य सर्व भाव कहे गये हैं । ऐसे लोक में पंचास्तिकाय के मध्य उर्ध्व, अधो, तिरछो दिशा के प्रमाण में जो पुरुष के आकार में है। जैसे पुरुष दोनों पाँव दूर-दूर रखकर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़ा हो, इसी आकार को लोक समझें। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87