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( ६६ ) यों अज्ञान में संसार में रहते हुए वय रूपी बल हानि प्राप्त होती है। जिह्वा के बाद जन्मे बत्तीस दांत उसके छोटे भाई होते हुए भो उसके पहले ही चले जाते हैं ।
स० शोके घटे नहि बेनडी रे ॥६॥ :
बत्तीस भाइयों के जाने पर भी बड़ी बहिन जीभ को वैराग्य नहीं होता। आहार आदि का लालच तो होता ही है, पर लोलुपता भी कम नहीं होती अर्थात् चेतन को वृद्धावस्था प्राप्त होने पर भी वह नहीं चेतता।
स० सांमलो हँस में देखीयो रे :
सम्यक्त्व रहित आत्मा रूपी हँस को काला ही कहा जा सकता है, अथवा चेतन रूपी हँस कृष्ण परिणाम को प्राप्त होने से काला ही दिखाई देता है। स० काट वल्यो कंचन गोरी रे :
____अढ़ाई द्वीप में एक हजार कंचन-पर्वत हैं। उनके समान निर्मल आत्मा को असंख्यात प्रदेश हैं, जिन्हें कर्म रूपी जंग लगा है, इसीलिये वह संसारी कहलाती हैं। स० अंजनगिरि उज्वल थयारे :
अंजनगिरी शिखर के समान सिर के काले बाल सफेद हो गये और वृद्धावस्था से काँपते हुए मृत्यु को प्राप्त हुआ। स० तोए प्रभु न संभारिआ रे ॥७॥:
फिर भी स्त्री, पुत्र, घर, धन और विलास की इच्छा करता है,
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