Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स० सदा योवन नारी ते रहे रे : यह महान् आश्चर्य है कि तृष्णा रूपी नारी से विवाहित अनेक संसारी जीव मृत्यु को प्राप्त होते हैं, किंतु वह स्त्री तो सदा युवती ही रहती है, कभी वृद्ध नहीं होती। स० वेश्या विलुधा केवली रे. गा. ॥२॥: मुक्ति रूपी सिद्धि को अनंत सिद्धों ने भोगा, अतः वह वेश्या ही है, उसमें केवल ज्ञानी लुब्ध होते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते । स० आँख विना देखे घणं रे : केवल ज्ञानी को इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती, अत: वे आँख के बिना ही देखते हैं, ज्ञान नेत्र से संसार को देखते हैं। . स० रथ बेठा मुनिवर चले रे : अठारह हजार सीलिंग रथ में बैठकर मुनिराज मुक्ति मार्ग को ओर प्रयाण कर रहे हैं। स० हाथ जले हाथी डुबोयो रे : अर्ध पुद्गल में स्थित संसार को हाथ जल संसार कहते हैं। जीव उपशम श्रेणी में चढ़ते हुए सराग संयम में पडकर कभी मिथ्यात्व प्राप्त करे, उसे हाथी जैसे विशाल प्राणी का हाथ भर जल में डूबता कहते हैं स० फुतरीआ केशरी हण्यो रे. गा. ॥३॥ : निद्रा रूपी कुतिया ने चौदह पूर्वधारी केसरी सिंह को भी मार दिया अर्थात् प्रमाद के योग से चौदह पूर्वधारी भी संसार में भटकते हैं। For Private And Personal Use Only

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