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( ५८ ) वरण अढार- एढुं खावे :
उस स्त्री की शक्ति से अनंत सिद्धों की झूटन खाता है अथति पुदग्लाभिनंदी नहीं बनना है । संसारी अवस्था में सिद्ध के अनंत जीवों ने आहारिक पुद्गलों का भक्षण कर वमित पुद्गल रूपी झूटन को जीव अशुद्ध चेतना के योग से भोगता है । मागर ब्रह्मण ते कहावे ॥४॥०॥
___शुद्ध स्वरूपी आत्मा जीवत्वपन में रहते हुए भी सिद्ध जैसा कहलाता हैं। मेरु उपर एक हाथी चढीओ :
संयम-श्रेणी-मार्ग रूपी मेरू पर चौदह पूर्वधारी मुनि रूपी हाथी ही चढ़ सकता है। कोडी नी कुंके हेठो पडिओ:
किंतु निद्रा रूपी चिउंटी की फूंक से नीचे गिर पड़ा अर्थात् प्रमादवश पुन: संसार सागर में गिर पडा । कहा है कि:
'चाउदस पुत्वी माहार गाय मलनाली वीयहागा विलुति पमाय परवसात् यगं तरमेव च उठाईमा ।' हाथी उपर बांदरो बेठो:
चरित्र रूपी हाथी पर अभव्य जीव रूपी बंदर बैठा है अर्थात् अभव्य जीव यदि चरित्र ग्रहण करे तो क्रिया के बल पर वह नवग्रेवेयक देव विमान तक जा सकता है । कोडी ना दर मां हाथो पेठा ॥५॥०॥ :
हाथी के समान चौदह पूर्व धारी भी प्रमाद के वश निगोद रूपी चिरंटी के बिल में प्रवेश कर जाता है ।
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