Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नारी मोटी कंथ छे छोटो: ( ५७ ) वांदरा पासे नेव चलावे ॥२॥चे०॥ : मन रुपी चंचल बंदर से अपने पाप ढकने के लिये नेव चलावे तो पाप कैसे ढँकेगा ? छोटा है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार में तृष्णा रुपी नारी बड़ी है और आत्मा रुपी पति नावे भरतां पारणीनो लोटो: अज्ञानी जीव को उपशम जल का लोठा भरना भी नहीं आता । पूंजी विना वेपर छे मोटो: ज्ञान रुपी पूंजी-धन के बिना कष्ट क्रिया रूपो बड़ा व्यापार करता है । कहो केम धरम नावे टोटो ॥ ३ ॥ चे० ॥ : फिर घर में नुक्शान क्यों न हो ? अज्ञानी कष्ट उठाकर भी दूर्गति में जाता है । बाप थइ ने बेटी ने धावे: आत्मा रूपी पिता से कर्म रूपी बहुतायत द्वारा कुमति माँ की बेटी होकर जीव उसे पोषित करता है । कुलवंती नारी कंथ नचावे: वह बेटी घर में धंधा करती है तब अशुभ चेतना रूपी स्त्री से विवाहित वह स्त्री आत्मा रूपी पति को नचाती है । For Private And Personal Use Only

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