________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
नारी मोटी कंथ छे छोटो:
( ५७ )
वांदरा पासे नेव चलावे ॥२॥चे०॥ :
मन रुपी चंचल बंदर से अपने पाप ढकने के लिये नेव चलावे तो पाप कैसे ढँकेगा ?
छोटा है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संसार में तृष्णा रुपी नारी बड़ी है और आत्मा रुपी पति
नावे भरतां पारणीनो लोटो:
अज्ञानी जीव को उपशम जल का लोठा भरना भी नहीं आता । पूंजी विना वेपर छे मोटो:
ज्ञान रुपी पूंजी-धन के बिना कष्ट क्रिया रूपो बड़ा व्यापार करता है ।
कहो केम धरम नावे टोटो ॥ ३ ॥ चे० ॥ :
फिर घर में नुक्शान क्यों न हो ? अज्ञानी कष्ट उठाकर भी दूर्गति में जाता है ।
बाप थइ ने बेटी ने धावे:
आत्मा रूपी पिता से कर्म रूपी बहुतायत द्वारा कुमति माँ की बेटी होकर जीव उसे पोषित करता है ।
कुलवंती नारी कंथ नचावे:
वह बेटी घर में धंधा करती है तब अशुभ चेतना रूपी स्त्री से विवाहित वह स्त्री आत्मा रूपी पति को नचाती है ।
For Private And Personal Use Only