Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५३ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीशा धोवे ओढण रोवे : निशा याने शरीर, ओढण याने जीव । शरीर धुल गया अर्थात् बुढ़ापा आ गया तब जीव रोता है अर्थात् दुःखी होता हैं । सकरो बैठो कौतुक जोवे ॥२॥ : सकरो याने सारा कुटुम्ब । सारा कुटुम्ब बैठा-बैठा बुढापे को देखकर विनोद करता है, पर कुछ मदद नहीं कर सकता । आग बले अंगीठी तापे : क्रोध रूपी अग्नि जब जलती है तब अंगीठी रूपी शरीर को उप्त कर देती हैं । विश्वानल बेठो टाढे कंपे : विश्वानल याने कामाग्नि, टाढ याने विषय तृष्णा । कामाग्नि के वशीभूत जीव विषय तृष्णा से काँपता है । खीलो दूजे ने भैंस विलोए : खीलो याने जीव, भेंस याने शरीर । जीव पुण्य दुहता है, पुण्यार्जन करता है, इब ये भेंस रूपी शरीर उस सुख को भोगता है । मीनी बेठी माखंण तापे ॥३॥ : मीन याने माया, मक्खन याने जीव । माया के वशीभूत जीव संसार समुद्र में भटकता है । बहु वीआई सासु जाई : बहु याने कुमति | जब कुमति व्याप्त होती है, तब चिंता रूपी सास को उत्पन्न करती है । For Private And Personal Use Only

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