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( ५३ )
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नीशा धोवे ओढण रोवे :
निशा याने शरीर, ओढण याने जीव । शरीर धुल गया अर्थात् बुढ़ापा आ गया तब जीव रोता है अर्थात् दुःखी होता हैं ।
सकरो बैठो कौतुक जोवे ॥२॥ :
सकरो याने सारा कुटुम्ब । सारा कुटुम्ब बैठा-बैठा बुढापे को देखकर विनोद करता है, पर कुछ मदद नहीं कर सकता ।
आग बले अंगीठी तापे :
क्रोध रूपी अग्नि जब जलती है तब अंगीठी रूपी शरीर को उप्त कर देती हैं ।
विश्वानल बेठो टाढे कंपे :
विश्वानल याने कामाग्नि, टाढ याने विषय तृष्णा । कामाग्नि के वशीभूत जीव विषय तृष्णा से काँपता है ।
खीलो दूजे ने भैंस विलोए :
खीलो याने जीव, भेंस याने शरीर । जीव पुण्य दुहता है, पुण्यार्जन करता है, इब ये भेंस रूपी शरीर उस सुख को भोगता है । मीनी बेठी माखंण तापे ॥३॥ :
मीन याने माया, मक्खन याने जीव । माया के वशीभूत जीव संसार समुद्र में भटकता है ।
बहु वीआई सासु जाई :
बहु याने कुमति | जब कुमति व्याप्त होती है, तब चिंता रूपी सास को उत्पन्न करती है ।
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